बात बराबरी की- मोहब्बत में चाकुओं से गोदने का हुनर:मर्दों को ही आता है, लड़की ‘NO’ बोले तो इसकी कीमत जान देकर चुकाती है
मर्दों की मोहब्बत की कीमत औरतों को अपनी जान देकर चुकानी पड़ती है।
ये पिछले हफ्ते का वाकया है। कर्नाटक के हुबली में एक 23 साल का लड़का गिरीश सावंत सुबह पांच बजकर 45 मिनट पर अंजलि अम्बिगेरा के घर पहुंचा। दरवाजा 21 साल की अंजलि ने खोला। गिरीश ने वहीं दरवाजे पर खड़ी लड़की पर चाकू से हमला कर दिया। अंजलि की मौके पर ही मौत हो गई और गिरीश फरार हो गया।
अंजलि को एक दिन जान से मार डालने से पहले बाकी के तमाम दिनों में वह लड़की के सामने रोज अपने प्यार का इजहार करता था। मोहब्बत के ऊंचे-ऊंचे ख्वाब, बड़े-बड़े वादे। राह चलते रोककर बात करने की कोशिश करना, अपना प्रेम प्रस्ताव स्वीकार करने के लिए लड़की पर दबाव बनाना, शादी के लिए कहना, अपने साथ मैसूर चलने की जिद करना और अगर ये सब कारगर न हो तो अंत में धमकी देना कि मैं तुम्हें जान से मार डालूंगा।
‘मैं तुम्हें दुनिया में सबसे ज्यादा प्यार करता हूं’ से लेकर ‘मैं तुम्हें जान से मार डालूंगा’ तक का सफर वो एक ही मिनट में, एक ही सांस में पूरा कर सकता था।
गिरीश ने बाकायदा अंजलि को धमकी दी थी कि अगर तुमने मुझसे शादी नहीं की तो तुम्हारा अंत भी नेहा की तरह ही होगा। नेहा हिरमेथ उसी हुबली की रहने वाली एक 23 साल की लड़की थी, जिसे 18 अप्रैल को कॉलेज के एक ड्रॉपआउट स्टूडेंट 23 साल के फैयाज खोंडुनाईक ने चाकुओं से गोदकर मार डाला था।
एक महीने के भीतर एक ही शहर की दो लड़कियों की चाकू मारकर हत्या कर दी गई। दोनों को सिर्फ एक ही अपराध की सजा मिली- कोई लड़का उनसे प्यार करता था और वो उस लड़के से प्यार नहीं करती थीं। उन्होंने इनकार करने की जुर्रत की थी और इस जुर्रत की कीमत उन्हें अपनी जिंदगी देकर चुकानी पड़ी।
उन लड़कों का तो जो होगा सो होगा, लेकिन वो लड़कियां अब कभी लौटकर नहीं आएंगी।
क्या नेहा और अंजलि अपवाद हैं? ऐसी कितनी सारी लड़कियां हैं, जो पुरुषों की एकतरफा मोहब्बत में रोज अपनी जान गंवा रही हैं, एसिड से जलाई जा रही हैं। सिर्फ एकतरफा ही क्यों, दोतरफा मोहब्बत में भी खरीदी और बेची जा रही हैं। सिर्फ प्रेम ही क्यों, शादी के भीतर भी रोज पीटी जा रही हैं, जलाई जा रही हैं, मौत के घाट उतारी जा रही हैं।
ऐसी कितनी लड़कियां हैं, जो रोज किसी मर्द के हाथों मर रही हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो का डेटा कहता है कि 2011 से लेकर 2021 तक महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामलों में 87% की बढ़ोतरी हुई है। 2011 में जहां हिंसा के कुल 228,650 मामले रिपोर्ट हुए थे, वहीं 2021 में यह संख्या बढ़कर 428,278 हो गई। यूएन वुमेन का सर्वे कहता है कि पूरी दुनिया में हर चौथे मिनट कोई-न-कोई औरत किसी मर्द के हाथों पिटती है और उसमें से भी 70% इंटीमेट पार्टनर के हाथों।
एक और रोचक डेटा है यूएन वुमेन का ही। उनका वर्ष 2022 का एक सर्वे कहता है कि कोविड पैनडेमिक के दौरान पूरी दुनिया में महिलाओं के साथ होने वाले इंटीमेट पार्टनर वॉयलेंस में 16 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। इसमें इंटीमेट पार्टनर किलिंग भी शामिल है यानी औरत को मरने के लिए भी कोरोना वायरस की जरूरत नहीं है। उनके पति और प्रेमी ही सबसे बड़े वायरस है, जो उन्हें यूं ही मूड बिगड़ जाने पर मौत के घाट उतारे दे रहे हैं।
कोर्ट तो इस अपराध के लिए उन्हें दोषी ठहरा देगा, सजा भी मुकर्रर कर देगा, लेकिन असली सवाल फिर भी अनुत्तरित ही रहेगा। क्या रोज-रोज हो रही ऐसी सैकड़ों-हजारों घटनाओं के लिए सिर्फ लड़के दोषी हैं या इसमें हमारे समाज का, परिवार का और हमारी सांस्कृतिक संरचना का भी कोई दोष है। क्या उनकी भी अकाउंटिबिलिटी तय नहीं की जानी चाहिए।
अगर किसी पुरुष का इगो, उसका अहंकार इतना बड़ा हो जाए कि उसे इनकार करने वाली स्त्री को वो जान से मारने की हद तक पहुंच जाए तो क्या यह पूरे समाज के लिए चिंता की बात नहीं है। क्या हम सबको एक बार अपने-अपने गिरेबान में झांककर देखने की जरूरत नहीं है।
ये कई साल पहले की बात है। ऑस्ट्रेलिया के कोर्ट में एक बड़ा ही अजीब सा केस आया। एक 32 साल के हिंदुस्तानी पुरुष पर दो महिलाओं का पीछा करने का आरोप था। एक महिला को उसने 18 महीनों तक स्टॉक किया और दूसरी महिला को चार महीने। आखिरकार जब महिला कोर्ट पहुंची और पहला मामला भी खुलकर सामने आया।
ऑस्ट्रेलिया के कानून के मुताबिक यूं तो यह पूरी तरह आपराधिक मामला था क्योंकि इसमें लड़की का कंसेंट यानी सहमति नहीं थी। लेकिन लड़के ने कोर्ट में अपने बचाव में कहा कि उसके देश में तो ऐसे ही होता है। लड़की पहले इनकार करती है, लेकिन लड़की की ना में भी हां है। तो लड़का कोशिश करना नहीं छोड़ता। फिर लड़की अंत में हां बोल ही देती है। ऑस्ट्रेलियन जज के लिए यह बात बड़ी अजीब थी, लेकिन लड़के के तर्क को मानते हुए उन्होंने उसे साबित करने के लिए कहा।
फिर पता है क्या हुआ। जज साहब को 20 से ज्यादा हिंदी फिल्में दिखाई गईं। जज साहब ने बैठकर सबटाइटल के साथ देखी भीं और ये सब देखकर अंत में वो इस नतीजे पर पहुंचे कि उस स्टॉकर इंडियन आदमी का तर्क बिलकुल सही है।
इंडियन कल्चर में महिला का पीछा करना बहुत सामान्य बात है। कोई इसका बुरा नहीं मानता और शुरू में नाराज हो रही लड़की भी आखिरकार अपने स्टॉकर को दिल दे बैठती है।
जज ने कहा कि उनके देश में यह अपराध है, लेकिन इस केस में आरोपी के सांस्कृतिक परिवेश और उस पर पड़े उसके प्रभाव को देखते हुए उसे बरी किया जाता है। हालांकि उसे चेतावनी भी दी गई कि अगली बार अगर उसने किसी महिला को स्टॉक किया तो उसकी जगह सलाखों के पीछे होगी।
यह केस काफी पॉपुलर हुआ था और इसकी डीटेल आप खुद गूगल कर सकते हैं।
कहने का आशय सिर्फ ये है कि लड़कों को अगर ये लगता है कि वे एकतरफा प्रेम में पगलाकर जिद कर सकते हैं, पीछा कर सकते हैं, लड़की को अपनी बात मानने के लिए मजबूर कर सकते हैं तो कहीं-न-कहीं इसके पीछे ये यकीन काम कर रहा होता है कि अगर सिनेमा के हीरो को हिरोइन मिल जाती है तो मुझे भी मिल जाएगी। उसे यकीन होता है कि लड़की की ना में ही हां होती है। लड़की शर्म के मारे मुंह खोलकर हां नहीं बोल पा रही।
और ये यकीन इतना पुख्ता होता है कि इसके टूटने पर मरने और मार डालने के अलावा उन्हें कुछ और नहीं सूझता। कुछ और इसलिए भी नहीं सूझता क्योंकि मर्द होने के नाते सैकड़ों विशेषाधिकार और रियायतें हर वक्त उनकी थाली में सजाकर परोसी गई होती हैं। उनके अहम को बल दिया गया होता है। उनकी श्रेष्ठता को सबसे ऊंचे पायदान पर बिठाकर दिन-रात पूजा गया होता है। वो तो राजा बेटा है। उसकी बात कोई कैसे नहीं मानेगा।
और एक दिन कोई मासूम लड़की उसकी बात मानने से इनकार कर देती है और चाकुओं से गोद डाली जाती है। एसिड से जला दी जाती है। कोर्ट एक लड़के को पकड़कर जेल में डाल देता है और समाज अपनी नैतिक जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेता है।
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