बीकानेर में डोलची मार होली, एक ऐसा ‘खेल’ जो 400 साल से परंपरा के रूप में निभाया जा रहा – HOLI 2025
डोलची मार होली, जो करीब 400 साल पहले हुए संघर्ष के खात्मे से जुड़ी परंपरा के रूप में मनाई जाती है. बीकानेर से खास रिपोर्ट…
बीकानेर: होली के मौके पर बीकानेर में डोलची मार होली का खेल ब्रज की लठमार होली की तरह ही प्रसिद्ध है. संभवत: देश में कहीं भी दूसरी जगह इस तरह से डोलची में पानी भरकर एक दूसरे की पीठ पर मारने का यह प्रेम भरा खेल कहीं नहीं खेला जाता. बीकानेर में इस अनोखी परंपरा को करीब 400 सालों से निभाई जा रही है.
दरअसल, पुष्करणा समाज के आचार्य और व्यास जाति के बीच किसी बात को लेकर विवाद हुआ था और दोनों जातियों के बीच संघर्ष भी हुआ था. दोनों जातियों के बीच हुई इस कटुता को खत्म करने के लिए समाज की अन्य जातियों के साथ ही हर्ष जाति ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और दोनों जातियों में परस्पर प्रेम करवाया. तब से होली के मौके पर दोनों हर्ष और व्यास जातियों के बीच डोलची मार खेल का आयोजन किया जाता है.
हर उम्र के लोग निभाते हैं भागीदारी : होलिका दहन से 2 दिन पहले हर साल बीकानेर के हर्षों के चौक में चमड़े से बनी डोलची में पानी भरकर एक दूसरे की पीठ पर फेंकने का यह खेल दोपहर में शुरू होता है और करीब 3 घंटे तक लगातार हजारों की संख्या में बच्चे, बूढ़े और युवा समेत हर उम्र के लोग बड़े उत्साह के साथ इस खेल में अपनी भागीदारी निभाते हैं. इस दौरान एक दूसरे पर होली के कटाक्ष भी किए जाते हैं.
चमड़े की बनी डोलची से पीठ पर पानी मारने पर होने वाले दर्द को भी लोग हंस कर उत्साह के साथ सहन करते हुए इसमें भाग लेते हैं. खेल के अंत में गुलाल उड़ाकर खेल के समापन की औपचारिक घोषणा की जाती है. वैसे तो यह दो जातियों के बीच खेले जाने वाला खेल है, लेकिन अब बदलते समय में समाज की अन्य जातियों के लोग भी इस खेल में शामिल होते हैं.

एक दूसरे की पीठ पर पानी मारने की परंपरा
आवेश को किया जाता है शांत : बीकानेर के एडवोकेट हीरालाल हर्ष कहते हैं कि किसी भी गुस्से को शांत करने के लिए पानी बहुत बड़ा जरिया बन सकता है और यही संदेश इस खेल में भी देने का प्रयास रहता है. उन्होंने कहा कि मनमुटाव और झगड़ा कभी भी हो सकता है, लेकिन उसको ठीक करते हुए प्रेम बना रहे, इस बात का संदेश इस खेल के माध्यम से दिया जाता है. आज के दौर में भी इस खेल को प्रासंगिक बताते हुए वह कहते हैं कि इस तरह के सौहार्द की जरूरत है.

400 साल से निभाई जा रही ये परंपरा
व्यास जाति के चंद्रशेखर और राजकुमार कहते हैं कि सदियों से यह परंपरा चली आ रही है. ऐसा मानना है कि यह प्रेम आगे भी बना रहे, इसलिए इस खेल में भागीदारी निभाते हुए हर साल इसमें शामिल होते हैं. उन्होंने कहा कि इस खेल को देखने के लिए बड़ी दूर से लोग यहां आते हैं और हम उनका मान-सम्मान करते हुए स्वागत भी करते हैं. सारे लोग हमारी इस परंपरा की सराहना करते हुए नजर आते हैं.
एक साथ तीन पीढ़ियां आती हैं नजर : करीब 400 साल से परंपरा के रूप में निभाए जाने वाले इस खेल में एक साथ तीन पीढ़ियां यानी कि दादा, पोता और पिता भी शामिल होते हैं.

चमड़े से बनी डोलची
क्या है डोलची :बीकानेर की डोलची मार होली एक खास परंपरा है, जिसमें चमड़े से बनी डोलची का इस्तेमाल किया जाता है. होली में इसे एक अलग ही अंदाज में प्रयोग किया जाता है. पुरुष एक-दूसरे की पीठ पर पानी से भरी डोलची मारते हैं. जब यह पीठ पर पड़ती है, तो उसका असर ऐसा होता है जैसे किसी ने जोर से कोड़ा मारा हो. हालांकि, यह इस उत्सव का ही हिस्सा है और लोग इसे हंसी-मज़ाक और खुशी के साथ सहते हैं. रंगों और पानी की मस्ती के बीच डोलची मारने का यह खेल देखने लायक होता है, जिसमें लोग पूरे जोश के साथ भाग लेते हैं.
लोकेश बोहरा
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