बीकानेर।बीकानेर जिले के हिम्मतसर गांव में नाबार्ड (राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक) के सहयोग से “एक पेड़ मां के नाम” कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस अवसर पर ग्रामीणों को पर्यावरण संरक्षण, मातृत्व के सम्मान और सतत कृषि से जोड़ते हुए मोरिंगा (सहजन) के पौधों का वितरण किया गया। यह पहल न केवल जैविक विविधता को बढ़ावा देती है, बल्कि पोषण और आय के स्रोत के रूप में भी किसानों के लिए लाभकारी सिद्ध होती है।
कार्यक्रम की अगुवाई कर रहे नाबार्ड के जिला विकास प्रबंधक (डीडीएम) रमेश तांबिया ने कहा कि “मां जीवन की पहली प्रेरणा होती है, और जब एक पेड़ मां के नाम लगाया जाता है, तो वह केवल पौधारोपण नहीं बल्कि एक भावनात्मक और सामाजिक जागरूकता का कार्य होता है।” उन्होंने कहा कि नाबार्ड द्वारा चलाए जा रहे इस अभियान का उद्देश्य ग्रामीणों को प्राकृतिक संसाधनों के प्रति संवेदनशील बनाना है। उन्होंने बताया कि हमारे यहां सदियों से मोरिंगा का उपयोग अलग-अलग तरह से किया जा रहा है। खासकर महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए इसे बहुत ज्यादा फायदेमंद माना जाता है। बीकानेर में महिलाओं को अपनी वास्तविक डाइट में मोरिंगा जरूर शामिल करना चाहिए। विशेषकर, इसके पाउडर का सेवन करने से महिलाओं को स्वास्थ्य लाभ मिलता हैं। इसके स्वास्थ्य लाभ के बारे में जानने से पहले सभी को बताया गया कि मोरिंगा के पाउडर को रोजाना डाइट में शामिल करना बहुत आसान होता है। मोरिंगा पाउडर को इस कार्यक्रम के आधार दैनिक सेवन में शामिल करने हेतु प्रेरित किया गया।
वहीं, अग्रणी जिला प्रबंधक लक्ष्मणराम मोडासिया ने कहा कि “मोरिंगा जैसे बहुउपयोगी पौधे स्वास्थ्य के साथ-साथ आय का भी मजबूत जरिया बन सकते हैं। इस तरह के पौधों की खेती से ग्रामीण क्षेत्रों में पोषण सुरक्षा और आर्थिक मजबूती दोनों सुनिश्चित की जा सकती हैं।”
कार्यक्रम में भारत सरकार की किसान उत्पादक संगठन योजना (एफपीओ) के अंतर्गत मरुधरा जांगलादेश किसान उत्पादक संगठन की भी महत्वपूर्ण भागीदारी रही। संगठन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी सुशील गाट ने कहा कि “गांव में सहजन की खेती को बढ़ावा देना हमारी प्राथमिकता है, जिससे विशेष रूप से ग्रामीण महिलाएं आजीविका के नए विकल्पों से जुड़ सकें। मोरिंगा की पत्तियां, डंडी, बीज और फूल सभी व्यावसायिक रूप से उपयोगी हैं और इनका बाजार भी तेजी से बढ़ रहा है।”
हिम्मतसर गांव की विशिष्टता इस बात में है कि यहां के किसान नवाचार और सामूहिक भागीदारी में विश्वास रखते हैं ।
गांव के किसान कहते हैं कि मां के नाम पर पौधा लगाना हमें गहरे स्तर पर जोड़ता है। सहजन पौधे का स्वास्थ्य पर असर भी सकारात्मक होता है और इसका पाउडर बच्चों की पढ़ाई में उपयोगी है।”
कार्यक्रम के अंत में ग्रामीणों और अधिकारियों ने मिलकर सामूहिक पौधारोपण किया और यह संकल्प लिया कि हर घर से कम से कम एक व्यक्ति मां के नाम एक पौधा अवश्य लगाएगा। नाबार्ड, एफपीओ और बैंकिंग संस्थानों की यह संयुक्त पहल गांव में पर्यावरणीय चेतना के साथ-साथ आर्थिक सशक्तिकरण का सशक्त उदाहरण बनकर उभरी है।
“मां के नाम एक पेड़”: हिम्मतसर गांव में नाबार्ड के सहयोग से पर्यावरण, मातृत्व और आजीविका को समर्पित अभिनव कार्यक्रम….

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