CM का 40 मिलिटेंट के एनकाउंटर का दावा गलत:मणिपुर में पुलिस-असम राइफल्स आमने-सामने, डेड बॉडी नहीं ले रहे कुकी
मणिपुर में 98 मौतें… 300 से ज्यादा घायल…37 हजार से ज्यादा लोग रिलीफ कैंपों में हैं। हिंसा के एक महीने बाद भी इंटरनेट बंद है। हालात ये हैं कि 4 जून की शाम को इरोइसेम्बा इलाके में 8 साल के बच्चे को उसकी मां और नानी समेत एम्बुलेंस में जिंदा जला दिया गया। ऐसा तब हो रहा है जब चप्पे-चप्पे पर सेना, अर्धसैनिक बल और पुलिस तैनात है।
कुकी हों या मैतेई, दोनों अपने-अपने इलाके की रक्षा के लिए हथियार लेकर सड़कों पर चेकपोस्ट बनाए खड़े हैं। 5 मई तक 5,200 हथियार लूटे गए। गृहमंत्री अमित शाह की अपील के बावजूद सिर्फ 900 ही बरामद हो पाए हैं। इनमें से 80% हथियार मैतेई इलाकों में, जबकि 20% कुकी इलाकों में लूटे गए थे।

मणिपुर में सुरक्षाबल लगातार सेंसिटिव एरिया में सर्च ऑपरेशन चला रहे हैं। ज्यादातर हथियार सर्चिंग के दौरान ही मिले हैं।
मैतेई और कुकी कम्युनिटी के बीच चल रही लड़ाई अब केंद्र बनाम राज्य में तब्दील हो चुकी है। पहाड़ों पर रहने वाली कुकी कम्युनिटी के लोगों को लगता है कि असम राइफल्स उनके सपोर्ट में है और पुलिस उनके खिलाफ।
मैदान में रहने वाले मैतेई को लग रहा है कि पुलिस सही काम कर रही है, लेकिन असम राइफल्स अपने हितों की वजह से कुकी को सपोर्ट कर रही है। मैतेई तो NRC और कुकी को बेदखल करने की मांग कर रहे हैं, उधर कुकी अलग राज्य की मांग तक पहुंच गए हैं।
कुकी कम्युनिटी तय प्लानिंग के तहत डेड बॉडी घरों में नहीं ला रही। वे पहले अपने लिए अलग एडमिनिस्ट्रेशन चाहते हैं, जो इंफाल से अलग हो। जवान बेटे को गंवाने वाले एक पिता कहते हैं, ‘मैंने बेटे को कम्युनिटी के लिए कुर्बान कर दिया है। हमारी मांगें पूरी होने के बाद ही उसका अंतिम संस्कार करूंगा।’
कुकी कम्युनिटी के लोग अपनी मांगों के पूरा होने के बाद सम्मान के साथ डेड बॉडी लेना चाहते हैं। गृहमंत्री अमित शाह तक ये मैसेज पहुंचा दिया गया है।
40 मिलिटेंट के एनकाउंटर का सच…
28 मई को मणिपुर के CM एन बीरेन सिंह ने दावा किया था कि पुलिस ने अब तक 40 मिलिटेंट्स का एनकाउंटर किया है। ये मिलिटेंट कौन थे और कहां से आए, इसकी छानबीन के लिए रिपोर्टर टीम मौके पर पहुंची।
5 दिन में हमने इंफाल से लेकर चुराचांदपुर इलाके को खंगाला। मैतेई, कुकी कम्युनिटी के लोगों से बात की। पुलिस के अलावा उन अस्पतालों तक पहुंचे, जहां हिंसा में मारे गए लोगों की बॉडी लाई गई है, या जहां घायलों का ट्रीटमेंट चल रहा है। जिन लोगों के परिजन हिंसा में मारे गए, उनसे भी बात की।

मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह लगातार अपील कर रहे हैं कि लोग किसी भी तरह की रैली, धरना-प्रदर्शन में शामिल न हों। हालांकि उनके एनकाउंटर वाले बयान पर विवाद हो रहा है।
तहकीकात में पता चला कि CM बीरेन सिंह जिन 40 मिलिटेंट के मारे जाने का दावा कर रहे हैं, उसकी जानकारी पुलिस को भी नहीं है। कौन मारा गया, अधिकारी भी ये नहीं जानते। हालांकि हिंसा में मारे गए लोगों के जिन परिवारों तक हम पहुंच पाए, उनसे मालूम चला कि मारे गए लोग न तो मिलिटेंट थे, न ही उसका ऐसा कोई कनेक्शन था।
पड़ताल में यह फैक्ट भी सामने आया कि मारे जाने वालों में मैक्सिमम कुकी कम्युनिटी से थे। पढ़िए मणिपुर से ये इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्ट…
मणिपुर में सिक्योरिटी के लिए कौन-कौन तैनात
- आर्मी
- असम राइफल्स
- सेंट्रल आर्म्ड पुलिस फोर्स
- स्टेट पुलिस
मैतेई और कुकी कम्युनिटी के बीच दो थ्योरी…
कुकी: इनका मानना है कि स्टेट पुलिस मैतेई कम्युनिटी को सपोर्ट कर रही है, क्योंकि इंफाल में मैतेई का दबदबा है। CM से लेकर मंत्री तक सब मैतेई हैं। कुकी कम्युनिटी के DGP थे, उन्हें हिंसा के वक्त हटा दिया गया। इन्हें राज्य से ज्यादा केंद्र सरकार पर भरोसा है।
मैतेई: इनका मानना है कि आबादी में कम होने के बावजूद 90% जमीन पर कुकी लोगों का कब्जा है। कुकी का म्यांमार से सीधा कनेक्शन है। वहां से मिलिटेंट इनके सपोर्ट के लिए आते हैं। असम राइफल्स को अपने बाहरी ऑपरेशन में कुकी की जरूरत होती है। इसलिए वो कुकी को सपोर्ट कर रहे हैं। ये लोग ड्रग्स का धंधा करते हैं। NRC लागू हो, ताकि ‘आउटसाइडर’ को बाहर किया जा सके।
अब पढ़िए वो कहानियां, जो बताती हैं कि हिंसा में कैसे लोग मारे गए…
इन लोगों तक पहुंचने के लिए हम इंफाल से चुराचांदपुर के लिए निकले। रास्ते में 5 से 7 जगह हमारी गाड़ी को सड़क किनारे बैठे लोगों ने रोका। हमारी गाड़ी चेक की। ID कार्ड देखे, इसके बाद ही आगे जाने दिया। कुकी को डर है कि इंफाल से आने वाली गाड़ियों में मैतेई हो सकते हैं या हथियार भेजे जा सकते हैं। इसलिए वे गाड़ियां चेक कर रहे हैं। इसी तरह मैतेई कम्युनिटी के लोगों ने भी गाड़ी चेक की।

कुकी समुदाय से आने वाले चुराचांदपुर के डालामथांग एक प्राइवेट वेलफेयर ऑर्गेनाइजेशन के लिए एम्बुलेंस चलाते थे। 3 मई को डालामथांग घर से एम्बुलेंस लेकर निकले और कभी नहीं लौटे। उनका शव भी अब तक घर नहीं पहुंचा। डालामथांग के परिवार में पत्नी, दो बेटे और एक बेटी है। इनमें से किसी ने भी उनका चेहरा तक नहीं देखा है।
3 मई की खौफनाक रात को याद करते हुए डालामथांग की पत्नी वुनगेनियांग बताती हैं कि ‘रोज की तरह वो शाम को घर से निकले थे। उस दिन उन्हें इंफाल एयरपोर्ट से किसी पेशेंट को रिसीव करना था। इतनी जल्दी में थे कि पर्स भी घर पर भूल गए थे। पर्स में उनका आधार कार्ड, लाइसेंस वगैरह सब कुछ था। शाम जैसे-जैसे बीतने लगी, चुराचांदपुर और इंफाल से बवाल की खबर आने लगीं। पता चला कि लोग एक-दूसरे को मार रहे हैं और घर जला रहे हैं। ’
चुराचांदपुर से इंफाल के रास्ते में मोइरांग नाम की जगह पड़ती है, जो बिष्णुपुर में आती है। उसी वक्त डालामथांग की एम्बुलेंस पर भीड़ ने हमला किया। वो बचते-बचाते पुलिस स्टेशन पहुंच गए।
पत्नी वुनगेनियांग बताती हैं कि ‘दूसरे दिन यानी 4 मई की शाम को मेरी पति से फोन पर बात भी हुई, तब तक सब कुछ ठीक था। हमारे समुदाय के एक जानने वाले उनके साथ पुलिस स्टेशन में मौजूद थे। 5 मई को उन्होंने कॉल करके बताया कि भीड़ ने पुलिस स्टेशन पर हमला किया और डालामथांग को मार डाला।’
कुकी समुदाय के कुछ लोगों ने परिवार को जानकारी दी है कि डालामथांग की बॉडी इंफाल के रीजनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (RIMS) के शव गृह में रखी है। परिवार ने प्रशासन से गुहार लगाई, लेकिन कुछ नहीं हुआ।
डालामथांग के बेटे जाथांगलिन कहते हैं कि मैं इंफाल जाकर अपने पिता की डेडबॉडी देखना चाहता हूं, पर ये संभव नहीं है। चुराचांदपुर का बॉर्डर पार करना खतरनाक है। हर दूसरे दिन फायरिंग हो रही है। ऐसे में घर से निकलने में भी डर लगता है। कुकी समुदाय से आने वाले हर किसी का इंफाल जाना नामुमकिन हो गया है।

हमने जाथांगलिन से पूछा कि CM बीरेन सिंह ने दावा किया है कि 40 मिलिटेंट को मार दिया गया है, इनमें आपके पिता भी तो शामिल नहीं थे? जवाब में वे कहते हैं- ‘कभी आपने 5 लोगों के परिवार वाला मिलिटेंट सुना है क्या, वो जिसकी उम्र 50 के पार हो और वो एम्बुलेंस ड्राइवर की नौकरी करता हो।’

चुराचांदपुर से करीब 17 किमी दूर लालचिंग गांव है। यहां 38 साल के थांगखोचोंग परिवार के साथ रहते थे। परिवार खेती करता है। ये गांव मैतेई बहुल इंफाल घाटी और कुकी बहुल पहाड़ी इलाकों के बीच में पड़ता है। इन इलाकों को फुटहिल कहा जाता है। 3 मई को हिंसा शुरू हुई, तो लोगों में दहशत फैल चुकी थी। थांगखोचोंग का परिवार हिम्मत जुटाकर 28 मई तक गांव में टिका रहा।
थांगखोचोंग के मामा मरथा पूर्व सैनिक हैं। वे इस परिवार की दास्तान बताते हैं, ‘28 मई की रात करीब 2 बजे थे। हिंसा शुरू हुए एक महीना पूरा होने वाला था, तो हमारे लिए थोड़ा बहुत शोर-शराबा नॉर्मल हो चुका था। उस रात भी शोर हुआ, शुरू में लगा कि कहीं और हंगामा रहा है, लेकिन धीरे-धीरे आवाज बढ़ती गई। पुलिसवाले फायरिंग करते हुए हमारे गांव की तरफ बढ़ रहे थे। हमें लगा कि राज्य की पुलिस है, इसलिए हम सुरक्षित रहेंगे, लेकिन हुआ इसका एकदम उल्टा।’

थांगखोचोंग के मामा मरथा (नीली टीशर्ट में) हमले वाले दिन उनके साथ ही थे। वे वक्त रहते घर से निकल गए थे, लेकिन थांगखोचोंग वहीं फंसे रह गए।
मरथा कहते हैं कि ‘मणिपुर पुलिस आगे से फायरिंग कर रही थी और मैतेई भीड़ उनके पीछे चली आ रही थी। पुलिस की फायरिंग धीमी हुई और भीड़ ने घरों पर हमले शुरू कर दिए। पेट्रोल फेंककर आग लगाई गई। हमें सोचने-समझने का मौका ही नहीं मिला। रात को परिवार के जितने सदस्य उठ पाए, उन्होंने बिना कुछ सोचे-समझे भागना शुरू किया। घर के अंदर घुसकर लोगों को चेक करने का मौका ही नहीं मिला। हमने रात में जो कपड़े पहने थे, उसी में भागे।’
‘मेरा भांजा थांगखोचोंग और बहन लेथोई घर में ही छूट गए। हमारे पड़ोसी हमसे कुछ देर बाद गांव से भागे थे, उन्होंने बताया कि हमारे घर में आग लगा दी गई और शायद दोनों जलकर मर गए। वो हमें आज तक नहीं मिले। हम फिर से गांव जाकर उनकी बॉडी भी नहीं ला सकते। पुलिस ने कहा है कि चुराचांदपुर से कुछ बॉडी आई हैं, उनमें हमारे रिश्तेदारों की हो सकती है, पहचान कर लें।’
मरथा से भी हमने CM बीरेन सिंह के 40 मिलिटेंट वाले दावे के बारे में पूछा। जवाब सुनिए- ‘मैंने अपनी पूरी जिंदगी फौज को दे दी। मेरी बहनों ने मेरी देखभाल की है। बहन और भांजे को अगर कोई मिलिटेंट कहेगा तो मैं उसे जवाब देना भी जरूरी नहीं समझता। अगर सरकार के पास कोई पुख्ता चीज है तो बताए, वर्ना बकवास बंद करे।’

3 मई की रात को चुराचांदपुर के रहने वाले रोंबो दिल्ली के जीबी पंत हॉस्पिटल में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी कर रहे थे। रोंबो बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स (BSF) में रहे हैं और कुकी समुदाय से आते हैं। घर से फोन आया कि उनका 19 साल का छोटा बेटा एलेक्स 2 मई की रात को घर से निकला और फिर लौटा ही नहीं।
रोंबो बताते हैं कि ‘रात करीब 8-9 बजे बेटा घर से निकला था। उस दिन ट्राइबल पीस मार्च भी था और लोग इकट्ठा हो रहे थे। उसे भी घरवालों ने जाने दिया, आस-पड़ोस के भी कई लड़के गए थे। रात को लौटे एक लड़के ने बताया कि मैतेई भीड़ ने मेरे बेटे को मार दिया है। फायरिंग हुई और किसी को कुछ समझ नहीं आया।’
रोंबो आगे कहते हैं, ‘मैं तब तक एलेक्स की डेड बॉडी नहीं लूंगा, जब तक सरकार हमारी अलग प्रशासन की मांग नहीं मानती। हमारा मैतेई लोगों के साथ रहना बहुत मुश्किल हो गया है, हमारा इंफाल तक जाना मुश्किल है, ऐसे में हम कैसे साथ रहने की उम्मीद कर सकते हैं। अगर एक ही एडमिनिस्ट्रेशन होगा, तो लड़ाई और बढ़ेगी। प्रशासन हमारे कुकी नेताओं की बात मान लेगी, तब मैं अपने बेटे एलेक्स की डेड बॉडी लूंगा। प्रशासन को मेरे बेटे की बॉडी पूरे सम्मान के साथ देनी होगी।’
एलेक्स BA सेकेंड सेमेस्टर का स्टूडेंट था। घर वाले एडमिशन, आईकार्ड, रिजल्ट के डॉक्यूमेंट दिखाते हैं। कहते हैं, ‘CM बीरेन सिंह कहते हैं कि 40 मिलिटेंट मारे गए हैं। अगर मेरा बेटा मिलिटेंट था, तो क्या ये डॉक्यूमेंट झूठे हैं?’

केफाइजांग, चुराचांदपुर से 5 किमी दूर है। 35 साल के सेखोहाओ किसान थे। बहन और पत्नी के साथ रहते थे। 3 मई को 35 साल के सेखोहाओ ट्राइबल पीस रैली में शामिल होने गए थे। रैली में शामिल होते हुए उन्होंने अपना फोटो फैमिली के साथ शेयर किया था। उस दिन के बाद से वे नहीं लौटे। परिवार वाले एक वीडियो दिखाते हैं। इसमें भीड़ एक शख्स को बुरी तरह पीट रही है।
परिवार का कहना है कि ये सेखोहाओ ही थे। भीड़ मैतेई लोगों की है। परिवार पूछता है, जब वीडियो में दिख रहा है कि सेखोहाओ को कौन मार रहा है तो पुलिस इन्हें क्यों नहीं पकड़ती।

सेखोहाओ की पत्नी की गोद में 6 महीने का बच्चा है। इस बच्चे को कुछ समझ आना शुरू होता, इससे पहले ही इसने अपने पिता को खो दिया है।
अब तक परिवार को सेखोहाओ की बॉडी नहीं मिल पाई है। सेखोहाओ की पत्नी बात करने की स्थिति में नहीं हैं। एक मीडिएटर के जरिए हमने उनसे पूछा कि CM बोल रहे हैं कि मिलिटेंट्स को मारा गया है, क्या आपके पति कुकी मिलिटेंट थे? जवाब मिलता है, ‘अगर मेरा पति मिलिटेंट होता, तो क्या वो परिवार के साथ रहता। क्या वो ट्राइबल पीस प्रोटेस्ट में शामिल होने जाता?’
इन्वेस्टिगेशन में क्या निकला…
CM के दावे पर: पुलिस अफसर बोले- ‘महामहिम’ का दावा बोगस
हमने खबर की पड़ताल CM के दावे से ही की। सवाल यही था कि क्या हिंसा में मिलिटेंट इन्वॉल्व हैं? पुलिस एनकाउंटर में जो लोग मारे गए, वो कौन हैं? जवाब में राज्य के टॉप पुलिस ऑफिसर ने ऑफ रिकॉर्ड बताया कि, ‘महामहिम (इशारा CM बीरेन सिंह की तरफ था) ने जो कहा, वो बोगस है। फिर वो सामने रखे मैप के जरिए राज्य में फैली हिंसा की इक्वेशन समझाने लगे।
बोले, देखिए, मैतेई करीब 53% हैं, जो इंफाल वैली में रहते हैं। ट्राइबल नगा और कुकी करीब 40% हैं, जो पहाड़ी जिलों में रहते हैं। अब कुकी को लग रहा है कि मैतेई को ST दर्जा मिल गया, तो वो पहाड़ों पर भी जमीनें खरीद लेंगे। इसलिए वो विरोध कर रहे हैं। मैतेई को लगता है कि बहुसंख्यक हैं, फिर भी हम महज 10% जमीन पर रह रहे हैं। इसी की लड़ाई है।’
हमने उनसे पूछा, कुकी और मैतेई राज्य पुलिस और असम राइफल्स में बंट गए हैं। कुकी को लगता है कि राज्य सरकार जानबूझकर उन पर हमलावर है, जबकि मैतेई को लगता है कि सेंट्रल फोर्स उनके अगेंस्ट है। इसके जवाब में ऑफिसर ने कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया। बोले, अब कोई बात नहीं कर सकता।’

चौंकाने वाली बात ये है कि मारे गए लोगों की कोई डिटेल पुलिस नहीं दे पाई। ट्राइबल कम्युनिटी के लिए काम करने वाले ITLF से डिटेल मिली। उनकी लिस्ट के मुताबिक, ट्राइबल कम्युनिटी के 80 लोग मारे गए हैं। 50 मौतें अन्कनफर्म्ड भी हैं। अगर सरकार कह रही है कि टोटल मौतें 100 के करीब हैं, तो उनमें से 80 कुकी होना कई सवाल खड़े करता है।
कुकी स्टूडेंट ऑर्गेनाइजेशन (KSO) लीडर मांगखोंग ने कहा, ‘होम मिनिस्टर अमित शाह से हमारा जो समझौता हुआ है, उसके तहत सम्मान और अधिकार मिलने के बाद ही हम अपने लोगों की डेड बॉडी लेंगे।’ छानबीन करने पर पता चला कि डेड बॉडी देने के बारे में अब तक राज्य या केंद्र सरकार ने भी पहल नहीं की है।
हमने मांगखोंग से पूछा, क्या अधिकार चाहते हैं आप लोग? जवाब मिला, ‘हमारी कम्युनिटी के लिए इंफाल से अलग एडमिनिस्ट्रेशन होना चाहिए।’
हिंसा में मिलिटेंट के इन्वॉल्व होने के सवाल पर मांगखोंग कहते हैं, ‘सरकार के पास इससे संबंधित डेटा है तो शेयर क्यों नहीं कर रही। उन्हें वैरिफाई करके सही डिटेल देना चाहिए। अब तक तो सरकार की तरफ से ऐसी कोई डिटेल सामने आई नहीं। है ही नहीं तो आएगी कहां से।’

मणिपुर पुलिस vs असम राइफल्स : दोनों एजेंसियों में तालमेल की कमी
केंद्र बनाम राज्य की राजनीति सिर्फ मैतेई और कुकी कम्युनिटी के बीच ही नहीं चल रहीं। पड़ताल में हमें मणिपुर पुलिस की एक FIR, जिसका नंबर 33(6) 2023 सुगनू पीएस U/S166/186/189/342/353/506/34 मिली। यह FIR सुगनू थाने में असम राइफल्स के कर्नल अहलावत के खिलाफ लिखी गई है।
FIR सुगनू में कर्नल और उनकी टीम के गैरकानूनी तरीके से कार्रवाई करने पर रजिस्टर की गई है। इससे पता चल रहा है कि मणिपुर में केंद्र और राज्य सरकार की एजेंसीज के बीच तालमेल की भारी कमी है। ये हालात तब हैं, जब राज्य और केंद्र दोनों में एक ही पार्टी सरकार में है और पूरे मामले को खुद गृहमंत्री अमित शाह देख रहे हैं।

असम राइफल्स के कर्नल अहलावत और उनकी टीम के खिलाफ दर्ज FIR, जिसमें गैरकानूनी तरीके से कार्रवाई करने का आरोप लगाया गया है।
आर्मी और CM : दोनों के बयान अलग-अलग
CM ने बयान दिया कि 40 मिलिटेंट का एनकाउंटर किया गया है। चीफ ऑफ डिफेंस यानी CDS अनिल चौहान ने कहा, ‘मणिपुर में मौजूदा हिंसा का उग्रवाद से कोई लेना-देना नहीं है और यह मुख्य रूप से दो जातियों के बीच संघर्ष था।’
इससे पहले CM ने कहा था कि ये कुकी उग्रवादियों और सुरक्षाबलों के बीच हुई लड़ाई का नतीजा है। ग्राउंड पर भी इन बयानों पर दोनों कम्युनिटी बंटी हुई हैं। सेना के बयान का कुकी समर्थन कर रहे हैं, जबकि CM के बयान का मैतेई समर्थन कर रहे हैं।
अस्पताल, जहां पेशेंट एडमिट हैं…
इंफाल के तीन अस्पताल रीजनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (RIMS), जवाहर लाल नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (JNIMS) और राज मेडिसिटी में हिंसा का शिकार हुए लोगों को एडमिट किया गया है। सबसे ज्यादा डेडबॉडी RIMS में हैं। किसकी मौत कैसे हुई है, उसका नाम क्या है, इसकी जानकारी यहां से भी नहीं दी जा रही।
RIMS के डायरेक्टर सुनील कुमार शर्मा ने कहा, ‘मैं इस बारे में कोई जानकारी नहीं दे सकता।’ JNIMS में एडमिट एक पेशेंट ने बताया- ‘मैं मैतेई कम्युनिटी से हूं। हिंसा के वक्त पुलिस फायरिंग में मेरे पैर में गोली लगी थी।’
कांग्रेस का आरोप- CM ने पूरी प्लानिंग के साथ हिंसा करवाई
मणिपुर में हुई हिंसा पर कांग्रेस अध्यक्ष के मेघचंद्रा कहते हैं, ‘मणिपुर में हिंसा के लिए CM बीरेन सिंह जिम्मेदार हैं। ये पूरी प्लानिंग के साथ किया गया। सरकार को कुकी और मैतेई समुदाय के बीच ब्रिज की तरह काम करना चाहिए, लेकिन सरकार ने तो उल्टा काम किया।’
हालांकि मैतेई समुदाय को ST स्टेटस देने की मांग पर कांग्रेस का स्टैंड भी क्लियर नहीं। कांग्रेस अध्यक्ष खुद मैतेई समुदाय से आते हैं, लेकिन बतौर मैतेई और बतौर कांग्रेस अध्यक्ष उनका पक्ष अलग-अलग है।
वहीं, CM बीरेन सिंह के दावे पर इंडिपेंडेंट विधायक निशिकांत कहते हैं, ‘अगर CM कह रहे हैं, तो ये बात सही होगी। हमें मैतेई जनता से शिकायतें आ रही हैं कि सेंट्रल फोर्स कुकी का समर्थन कर रही हैं और मैतेई के साथ पक्षपात हो रहा है। मेरा मानना है कि जब तक पहाड़ों से फायरिंग नहीं रुकेगी, तब तक शांति स्थापित नहीं होगी।’

निशिकांत कहते हैं, ‘मणिपुर में पहले से कुकी रह रहे हैं, उनका कोई विरोध नहीं है। 1961 के बाद जो कुकी मणिपुर में आए हैं, उनकी मांगों को नहीं सुना जाएगा।’











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