JCB से बनी 108 फीट की गोवर्धन प्रतिमा:भरतपुर में 40 लोग 3 दिन तक जुटे; 20 ट्रॉली गोबर लगा
राजस्थान रीति रिवाज और परंपराओं का प्रदेश है। दीपावली के पंच उत्सव में प्रदेश में ढूंढाड़ (दौसा) से लेकर ब्रज-मेवात (भरतपुर) तक अनूठे रीति रिवाज निभाए जा रहे हैं। ब्रज क्षेत्र में गोवर्धन पूजा का विशेष महत्व है। आज भरतपुर के कॉलेज ग्राउंड में जेसीबी से 108 फीट की गोवर्धन प्रतिमा तैयार की गई। एक साथ 40 लोगों ने इसके लिए लोग सैकड़ों किलो गोबर से भगवान गोवर्धन की लेटी हुई प्रतिमा को तैयार कर रहे हैं, दावा है कि यह ब्रज ही नहीं बल्कि दुनिया की सबसे बड़ी गोवर्धन प्रतिमा है, लिहाजा इसे लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज कराने की कोशिश होगी।
ब्रज में विशेष गोवर्धन पूजा
राजस्थान का पूर्वी इलाका ब्रज क्षेत्र में आता है। इसे भगवान कृष्ण की लीला स्थली माना जाता है। ऐसे में यहां दीपावली के दूसरे दिन मनाया जाने वाला गोवर्धन पर्व खास होता है। भरतपुर क्षेत्र ब्रज में शामिल हैं। भरतपुर से बड़ी तादाद में लोग गोवर्धन पूजा के दिन भगवान गोवर्धन की परिक्रमा करने पहुंचते हैं। इस बार सूर्यग्रहण के कारण दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा नहीं हो सकी। बुधवार को गोवर्धन पूजा को खास बनाया जा रहा है।
भरतपुर में गोवर्धन प्रतिमा का ड्रोन शॉट। हर बार गोवर्धन पूजा को खास बनाया जाता है।
सबसे बड़ी गोवर्धन प्रतिमा का निर्माण
भरतपुर के कॉलेज ग्राउंड जेसीबी से गोवर्धन भगवान तैयार किए गए हैं। इसके लिए 3 दिन से 40 लोगों ने लगातार मेहनत की। आस-पास की सभी गोशालाओं से 20 ट्रॉली में हजारों किलो गोबर जुटाया गया। इसे जेसीबी से मिलाकर 40 महिला-पुरुष एक साथ भगवान गोवर्धन की प्रतिमा तैयार की गई। पर्यटन मंत्री विश्वेंद्र सिंह 108 फीट की विशाल गोवर्धन प्रतिमा की पूजा करेंगे। सारा शहर भगवान गोवर्धन के दर्शन करेगा और पूजा करने महिलाएं पहुंचेंगी।
भगवान गोवर्धन का विग्रह बनाने के लिए जेसीबी की मदद ली गई। 20 ट्रॉली गोबर को मिक्स करने और फैलाने के लिए जेसीबी का इस्तेमाल किया गया।
लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में हो सकती है शामिल
दावा किया जा रहा है कि भगवान गोवर्धन की यह लेटी हुई मुद्रा में 108 फीट की प्रतिमा न केवल ब्रज में बल्कि दुनिया में कहीं भी बनने वाली गोवर्धन प्रतिमा में सबसे बड़ी है। इसलिए आयोजकों की कोशिश है कि इसे लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज किया जाए।
भरतपुर के कॉलेज ग्राउंड में तैयार 108 फीट की गोवर्धन प्रतिमा।
पहले ग्राउंड साफ किया, फिर चूने से बनाई आकृति
108 फीट की यह गोवर्धन प्रतिमा बनाने के लिए खास तैयारियां की गई। कॉलेज ग्राउंड के बड़े हिस्से को साफ किया गया। पानी छिड़का गया। फिर शहर भर की गोशालाओं से गोबर जुटाकर यहां जेसीबी से मिक्स किया गया। इसके बाद ग्राउंड पर 108 फीट लम्बे और 80 फीट चौड़े आकार को जमीन पर तैयार कर चूने से आकृति बनाई गई। इसके बाद 40 महिला-पुरुषों ने चूने से बनी आकृति पर गोबर से भगवान गोवर्धन का निर्माण करना शुरू किया। काम लगभग पूरा हो चुका है। शाम को पर्यटन मंत्री गोवर्धन पूजा करेंगे, इसके बाद शहर भर के लोग पूजा में शामिल होंगे।
ब्रज में गोवर्धन पूजा का विशेष महत्व
भगवान कृष्ण की जन्म स्थली मथुरा और ब्रज क्षेत्र में गोवर्धन पूजा का विशेष महत्व है। इसी के तहत भरतपुर में जिला प्रशासन और विप्र फाउंडेशन ने कॉलेज ग्राउंड में लेटी हुई गोवर्धन प्रतिमा तैयार करवाई। गोवर्धन पूजा में शहरवासी हिस्सा लेंगे। जिला कलेक्टर आलोक रंजन ने बताया कि पारंपरिक पूजा से शहरवासियों को ज्यादा से ज्यादा संख्या में जोड़ने के लिए यह आयोजन किया गया है।

यूपी में वृंदावन के प्रेम मंदिर में स्थित गोवर्धन पर्वत की छविद्ध (फाइल फोटो)
विप्र फाउंडेशन के जिला महामंत्री विपुल शर्मा ने बताया कि शहर में पहली बार इतनी बड़ी गोवर्धन प्रतिमा तैयार की गई है। गोवर्धन पूजा के लिए विशेष इंतजाम किए गए हैं। नगर निगम भरतपुर कमिश्नर कमल राम मीणा ने कहा कि दीप महोत्सव के तहत आज गिरिराजजी महाराज की पूजा की जा रही है। प्रशासन व संगठन के सहयोग से 108 फीट का विग्रह बनाया गया है। जिसकी विधि विधान से पूजा होगी। नगर निगम की ओर लेजर शो का आयोजन भी किया जाएगा। पहली बार लाइट एंड साउंड शो किया जाएगा।
भगवान कृष्ण ने ब्रज की रक्षा के लिए उठाया था गोवर्धन पर्वत
पवित्र गोवर्धन पर्वत की कहानी बेहद रोचक है। यह वही पर्वत है जिसे भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी एक उंगली पर उठाकर ब्रज के लोगों की रक्षा की थी। इसके रोज घटने के पीछे भी एक रोचक कहानी है। कहा जाता है कि पुलस्त्य ऋषि के शाप के कारण यह पर्वत एक मुट्ठी रोज कम होता जा रहा है। अब इसकी ऊंचाई 179 मीटर हो गई है। यह पर्वत दो राज्यों में स्थित है।
इस पर्वत की परिक्रमा कर लोग भगवान श्रीकृष्ण की अराधना करते हैं। इसकी परिक्रमा के दौरान 7 किमी का हिस्सा राजस्थान में आता है और बाकी का हिस्सा उत्तर प्रदेश में है। बेहद पुरानी मान्यता है कि गिरिराजजी की सुंदरता को देख पुलस्त्य ऋषि बेहद खुश हुए। उन्होंने इसे द्रोणांचल पर्वत से उठाया और अपने यहां ले जाने लगे। उठाने से पहले गिरिराजजी ने कहा था कि आप मुझे जहां भी पहली बार रखेंगे मैं वहीं स्थापित हो जाऊंगा। रास्ते में साधना के लिए ऋषि ने पर्वत को नीचे रख दिया। ऋषि की लाख कोशिशों के बाद भी पर्वत हिला नहीं। इसके बाद गुस्से में ऋषि ने पर्वत को शाप दिया कि वह रोज कम होगा।

गोवर्धन पर्वत का परिक्रमा मार्ग। (फाइल फोटो)
माना जाता है कि उसी समय से गिरिराज जी वहां हैं और कम होते जा रहे हैं। दूसरी मान्यता यह भी है कि जब राम सेतुबंध का कार्य चल रहा था तो हनुमानजी इस पर्वत को उत्तराखंड से ला रहे थे, लेकिन तभी देव वाणी हुई की सेतुबंध का कार्य पूरा हो गया है, यह सुनकर हनुमानजी इस पर्वत को ब्रज में स्थापित कर दक्षिण की ओर पुन: लौट गए।
भगवान कृष्ण ने तोड़ा इंद्र का घमंड
मान्यता है कि इस पर्वत को भगवान कृष्ण ने अपनी एक उंगली से उठा लिया था। कारण यह था कि मथुरा, गोकुल, वृंदावन आदि के लोगों को वह घनघोर बारिश से बचाना चाहते थे। नगरवासियों ने इस पर्वत के नीचे इकट्ठा होकर अपनी जान बचाई। यह बारिश इंद्र ने करवाई थी। लोग इंद्र से डरते थे और डर के मारे सभी इंद्र की पूजा करते थे, तभी कृष्ण ने कहा था कि आप डरना छोड़ दें, मैं हूं ना।
परिक्रमा का महत्व
इस पर्वत की परिक्रमा का लोगों में महत्व है। वल्लभ संम्प्रदाय के वैष्णव मार्गी लोग तो इसकी परिक्रमा अवश्य ही करते हैं, क्योंकि वल्लभ संप्रदाय में भगवान कृष्ण के उस स्वरूप की आराधना की जाती है, जिसमें उन्होंने बाएं हाथ से गोवर्धन पर्वत उठा रखा है और उनका दायां हाथ कमर पर है। इस पर्वत की परिक्रमा के लिए समूचे विश्व से कृष्ण भक्त, वैष्णवजन और वल्लभ संप्रदाय के लोग आते हैं। यह पूरी परिक्रमा 7 कोस अर्थात लगभग 21 किलोमीटर है।

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