जरूरत की खबर- टॉयलेट-पेपर के लिए रोज कटते 27000 पेड़:प्रकृति से हम हैं, हमसे प्रकृति नहीं, इसे बचाने को आगे बढ़ाएं हाथ
आज विश्व पर्यावरण दिवस है। साल का एक दिन हमें यह याद दिलाने के लिए कि प्रकृति से हम हैं, हमसे प्रकृति नहीं।
मनुष्य ने विकास के नाम पर जंगल काटे, नदियों, समुद्रों का पानी दूषित किया, थोक के भाव ऐसी चीजों का उत्पादन किया, जिसकी हमें कोई जरूरत नहीं थी। पांच हजार अरब टन से ज्यादा टॉक्सिन्स पर्यावरण में छोड़े और आज हालत ये हो गई है कि 12,000 से ज्यादा स्पिशीज विलुप्त हो चुकी हैं और हजारों विलुप्ति की कागर पर हैं।
प्रकृति का इकोसिस्टम डैमेज हो रहा है। तापमान बढ़ रहा है, ग्लेशियर पिघल रहे हैं।
प्रकृति में जो सबसे गर्म दस दिन रिकॉर्ड हुए हैं, वे सारे-के-सारे पिछले एक दशक में हुए हैं। 2022 की गर्मियों में मौसम विभाग कह रहा था कि इस तापमान ने पिछले 122 सालों का सारा रिकॉर्ड तोड़ दिया है। देश में इतनी गर्मी पहले कभी नहीं पड़ी। लेकिन फिर आया 2023 और उसने तो पिछले 2000 सालों का गर्मी का रिकॉर्ड तोड़ दिया। इस साल की गर्मी ने पिछले साल का भी रिकॉर्ड तोड़ दिया है।
यह हाल सिर्फ भारत का नहीं है। पूरी दुनिया जल रही है। वियतनाम, सिंगापुर, इंडोनेशिया, मलेशिया, मैक्सिको हर जगह गर्मी का पारा हजारों साल के रिकॉर्ड ध्वस्त करते हुए आसमान छू रहा है।
अगर हम आज भी नहीं चेते तो आप कल्पना कर सकते हैं कि अपने बच्चों के लिए हम कैसी दुनिया छोड़कर जाने वाले हैं।
पर्यावरण की रक्षा के लिए बड़े पॉलिसी डिसीजन लेना तो सरकारों का काम है, लेकिन एक नागरिक के रूप में हमारी जिम्मेदारी भी कुछ कम नहीं है। अगर इस देश के सवा करोड़ लोग अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में छोटे-छोटे बदलाव करें, छोटे-छोटे कदम उठाएं, अपने हर एक्शन से पहले यह सोचें कि इसका प्रकृति पर क्या प्रभाव पड़ेगा तो काफी हद तक बदलाव मुमकिन है।
बूंद-बूंद से ही तो घड़ा भरता है।
आज जरूरत की खबर में बात उन्हीं छोटे बदलावों की।
सबसे कम जनसंख्या वाला देश फैला रहा सबसे ज्यादा प्रदूषण
अमेरिका की आबादी करीब 34 करोड़ है यानी पूरी दुनिया की आबादी का महज 5 फीसदी वहां रहता है। लेकिन वे दुनिया में चीन के बाद सबसे ज्यादा संसाधनों का इस्तेमाल कर सकते हैं और सबसे ज्यादा कार्बन हवा में छोड़ते हैं, तकरीबन 60 लाख टन।
इस मामले में पहले नंबर पर है चीन, जो तकरीबन 1.4 करोड़ टन कार्बन उत्सर्जन करता है। 35 लाख टन कार्बन के साथ भारत तीसरे नंबर है। अमेरिका हर साल इतना प्लास्टिक पर्यावरण में डिस्पोज करता है कि उससे हमारी पृथ्वी के चारों ओर पांच बार घेरा बनाया जा सकता है।
आगे बढ़ने से पहले नीचे ग्राफिक में देखिए पर्यावरण से जुड़े कुछ ऐसे तथ्य, जो भयावह हैं।
हम देश के आम नागरिक पर्यावरण को बचाने के लिए क्या करें
हम अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में जो छोटे-छोटे काम करते हैं, उन सबका पर्यावरण पर प्रभाव पड़ता है। हमें लगता है कि इतने बड़े ब्रम्हांड में हमारा वजूद कितना छोटा सा है। एक मामूली बिंदु के बराबर। तो हमारे कुछ करने, न करने से क्या फर्क पड़ता है।
यह सोच ही गलत है क्योंकि सवा अरब लोगों का एक छोटा कदम ही मिलकर बहुत बड़ा हो जाता है। इसलिए हमारा हर छोटा एक्शन बहुत मायने रखता है।
पहले ग्राफिक में देखिए कि हम अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में कौन से मामूली बदलाव करके पर्यावरण को बचाने में बड़ा योगदान दे सकते हैं।
एक प्लास्टिक की थैली को नष्ट होने में लगेंगे 1000 साल
सेंटर फॉर ग्लोबल चेंज एंड अर्थ ऑब्जर्वेशन के मुताबिक पूरी दुनिया में हर साल 400.3 मिलियन मीट्रिक टन प्लास्टिक का उत्पादन होता है।
हम हर साल 353.3 मिलियन मीट्रिक टन प्लास्टिक वेस्ट पैदा करते हैं। जितना प्लास्टिक उत्पादन होता है, उसका सिर्फ 15 पर्सेंट रीसाइकिल होता है। बाकी वेस्ट बनकर पर्यावरण में पड़ा रहता है। प्लास्टिक को डीकंपोज होने में 1000 साल लगते हैं।
पानी की बोतल से लेकर चिप्स के पैकेट तक, रोज सुबह उठकर टूथब्रश करने से लेकर रात में सोने तक हमारी जिंदगी में हर वक्त हर जगह प्लास्टिक मौजूद है। हमें लगता है कि प्लास्टिक ने हमारी जिंदगी को आसान बनाया है, जबकि सच तो ये है कि एटम बम के बाद यह मनुष्य का सबसे खतरनाक आविष्कार है।
प्लास्टिक न सिर्फ प्रकृति को बल्कि हमारी जिंदगी को भी नुकसान पहुंचा रहा है। यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू मैक्सिको की एक स्टडी के मुताबिक प्लास्टिक हमारे लिवर, किडनी और ब्रेन को डैमेज कर रहा है।
इसलिए जहां तक हो सके, अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में इसके इस्तेमाल से बचें। खासतौर पर ऐसे प्लास्टिक के इस्तेमाल से जो कूड़ा बनकर प्रकृति में पड़ा रहेगा, जो रीसाइकिल नहीं होगा।
सब्जी मार्केट में जाएं तो प्लास्टिक की थैली न लें। अपने घर से कपड़े का झोला लेकर जाएं। अपनी जिंदगी से जितना हो सके, प्लास्टिक को कम करें।
उपभोक्तावाद धरती को खा जाएगा
हम जो भी सामान खरीदते हैं, उसके उत्पादन में वेस्ट पैदा होता है और वह वेस्ट प्रकृति को नुकसान पहुंचाता है। सोचकर देखिए, हमने अपने घरों को जितने सामानों से भर रखा है, क्या हमें सचमुच उतनी चीजों की जरूरत है। हम आए दिन नई-नई चीजें सिर्फ इसलिए खरीदते रहते हैं क्योंकि हम पुराने सामान से बोर हो गए हैं। पुरानी चीजों को उठाकर कूड़े में फेंक देते हैं। हमारा फेंका ये कूड़ा हजारों-हजार साल प्रकृति में पड़ा रहता है, समुद्री जीव-जंतुओं को क्षति पहुंचाता है और हवा को खराब करता है।
इसलिए उपभोक्तावाद से बचें। कम-से-कम चीजें खरीदें। जो खरीदा है, उसका इस्तेमाल करें। पुरानी टूटी चीजों को रीसाइकिल करके दोबारा यूज करें। कोई भी नया सामान खरीदने से पहले सोचें कि क्या आपको सचमुच इसकी जरूरत है। ऐसी कोई भी चीज न खरीदें, जो ‘यूज एंड थ्रो’ के टैग से आती हो।
किफायती होना, कम चीजें खरीदना कंजूस होना नहीं होता। यह प्रकृति के प्रति संवेदनशील और जिम्मेदार होना होता है।
कागज का इस्तेमाल कम करें
कागज बनाने के लिए भी पेड़ काटना पड़ता है। आपको पता है, हर साल पूरी दुनिया में सिर्फ टॉयलेट पेपर बनाने के लिए 27000 पेड़ काट दिए जाते हैं। एक सुपरमार्केट में औसतन हर साल 60 करोड़ पचास लाख पेपर बैग्स इस्तेमाल होते हैं। पेड़ कटने से गर्मी बढ़ती है, बारिश नहीं होती और प्रकृति का इकोसिस्टम खराब होता है।
इसलिए इस मुहिम में बहुत छोटा सा आपका योगदान ये हो सकता है कि आप कागज का कम-से-कम इस्तेमाल करें। सुपरमार्केट में कागज की थैली न लें। घर से कपड़े के छोटे-छोटे थैले सिलकर ले जाएं।
साइकिल चलाएं, पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करें
ये कंजूसी नहीं है। यह विवेक और समझदारी है। प्रकृति के प्रति अपने दायित्वों को समझना और निभाना है।
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