SCO के जरिए भारत ने चीन को दो बार झुकाया:NATO का काउंटर है ये संगठन, आखिर चीन-पाक वाले SCO में क्यों है भारत?
PM मोदी शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन यानी SCO की बैठक में शामिल होने के लिए उज्बेकिस्तान के समरकंद शहर पहुंच चुके हैं। SCO बैठक में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ भी इस बैठक में हिस्सा ले रहे हैं।
PM मोदी SCO बैठक के दौरान रूसी राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन से मुलाकात करेंगे। उनके चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से भी मिलने के कयास लगाए जा रहे हैं, लेकिन अब तक इसकी पुष्टि नहीं हुई है।
एशिया के चार ताकतवर देशों के प्रमुखों के एक मंच पर आने की वजह से SCO सुर्खियों में है।
एक्सप्लेनर में जानेंगे कि भारत, पाकिस्तान, चीन, रूस की चौकड़ी वाला SCO आखिर करता क्या है? इसे अमेरिका के दबदबे वाले NATO का जवाब क्यों माना जाता है? भारत के लिए इस बार की बैठक क्यों अहम है?
SCO में रूस, उज्बेकिस्तान और ईरानी राष्ट्रपतियों से मिलेंगे PM मोदी
पीएम मोदी SCO बैठक में शामिल होने के लिए 15 सितंबर की शाम को समरकंद पहुंचे। इस बैठक के दौरान वह रूसी राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन से मुलाकात करेंगे।
रूस ने कहा है कि मोदी और पुतिन की मुलाकात के दौरान दोनों देश रणनीतिक स्थायित्व से जुड़े मुद्दों के साथ ही एशिया-प्रशांत क्षेत्र की स्थिति और UN और G20 में द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाने पर काम करेंगे।
पुतिन के अलावा PM मोदी उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपति शवकत मिर्जियोयेव और ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रायसी के साथ भी बैठक करेंगे। चीनी राष्ट्रपति
2001 में बना था SCO, भारत 2017 में शामिल हुआ
SCO यानी शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन का गठन 2001 में हुआ था। SCO एक पॉलिटिकल, इकोनॉमिकल और सिक्योरिटी ऑर्गेनाइजेशन है। भारत, रूस, चीन और पाकिस्तान समेत इसके कुल 8 स्थाई सदस्य हैं।
1996 में पूर्व सोवियत देशों रूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, तजाकिस्तान और चीन ने मिलकर शंघाई फाइव बनाया था। 2001 में शंघाई फाइव के 5 देशों और उज्बेकिस्तान के बीच हुई मुलाकात के बाद शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन यानी SCO का जन्म हुआ।
शुरुआत में SCO में छह सदस्य- रूस, चीन, कजाकिस्तान, तजाकिस्तान , किर्गिस्तान और उज्बेकिस्तान थे। 2017 में भारत और पाकिस्तान के भी इससे जुड़ने से इसके स्थाई सदस्यों की संख्या 8 हो गई।
6 देश- आर्मीनिया, अजरबैजान, कंबोडिया, नेपाल, श्रीलंका और टर्की SCO के डायलॉग पार्टनर हैं। 4 देश- अफगानिस्तान, ईरान, बेलारूस और मंगोलिया इसके ऑब्जर्वर सदस्य हैं। अब तक ऑब्जर्वर रहे ईरान को नवंबर 2021 में SCO के स्थाई सदस्य के रूप में शामिल किए जाने की प्रक्रिया शुरू की गई है।
2001 में अपनी स्थापना के बाद से, SCO ने रीजनल सिक्योरिटी से जुड़े मुद्दों, आतंकवाद, अलगाववाद और धार्मिक कट्टरपंथ के खिलाफ लड़ाई पर ध्यान केंद्रित किया है। SCO के एजेंडे में इसके सदस्य देशों का विकास भी शामिल है।
दुनिया का सबसे बड़ा रीजनल संगठन है SCO
आबादी और भौगोलिक स्थिति के लिहाज से ये दुनिया का सबसे बड़ा रीजनल ऑर्गेनाइजेशन है। दुनिया के दो सबसे ज्यादा आबादी वाले देशों भारत और चीन के इसका सदस्य होने से SCO ऐसा संगठन है, जो दुनिया की करीब 40% आबादी को कवर करता है। एरिया की बात की जाए तो यूरेशिया के 60% और दुनिया के करीब एक तिहाई इलाके को यह कवर करता है।
ग्लोबर GDP में इसकी करीब 30% में हिस्सेदारी है। साथ ही ये संगठन हर साल खरबों डॉलर का एक्सपोर्ट करता है।
SCO के जरिए भारत ने चीन को फिर से झुकाया
रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत को अगले साल SCO सम्मेलन के साथ ही G-20 की भी मेजबानी करनी है। इसलिए भारतीय अधिकारियों ने समरकंद में होने वाले SCO सम्मेलन के नजदीक आते ही चीन को साफ तौर पर कह दिया कि प्रधानमंत्री इस सम्मेलन में तभी हिस्सा लेंगे, जब वह LAC पर अप्रैल 2020 से ही तैनात अपनी सेनाओं को पहले की स्थिति में वापस बुला लेगा।
इस मैसेज का असर भी हुआ और SCO बैठक से ठीक एक हफ्ते पहले ही 8 सितंबर को चीन ने अपनी सेना को LAC में पूर्वी लद्दाख के हॉट-स्प्रिंग्स-गोर्गा इलाके, जिसे पैट्रोलिंग पॉइंट 15 भी कहा जाता है, से हटाना शुरू कर दिया।
दरअसल इस साल जून में BRICS सम्मेलन के लिए PM मोदी चीन नहीं गए थे, जबकि कुछ दिनों बाद वह अमेरिकी अगुआई वाले QUAD देशों की बैठक में हिस्सा लेने टोक्यो चले गए थे। लिहाजा चीन नहीं चाहता था कि SCO सम्मेलन में मोदी की गैरमौजूदगी से इस संगठन के आपसी मनमुटाव का संदेश दुनिया में जाए। BRICS ब्राजील, रूस, भारत, चीन और साउथ अफ्रीका समेत 5 देशों का संगठन है।
ये पहली बार नहीं है जब भारत ने SCO बैठक के लिए चीन को अपनी बात मानने पर मजबूर किया है। इससे पहले 2017 में भी भारत ने चीन को कह दिया था कि प्रधानमंत्री मोदी BRICS समझौते के लिए चीन के शियामेन नहीं जाएंगे, अगर डोकलाम में चीनी सेनाएं अपनी पहले की स्थिति में नहीं लौटेंगी। चीन ने भारत की बात मानी और मोदी ने BRICS समझौते के लिए शियामेन की फ्लाइट पकड़ ली।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, SCO सम्मेलन को भारत ने चीन के खिलाफ डिप्लोमैटिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करते हुए दो बार ड्रैगन को झुकाया।
पुतिन, जिनपिंग, शहबाज शरीफ से मोदी की मुलाकात है अहम
रिपोर्ट्स के मुताबिक, SCO सम्मेलन के दौरान PM मोदी की रूसी राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ से मुलाकात हो सकती है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, ये मुलाकात भारतीय फॉरेन पॉलिसी के लिए बहुत अहम होगी।
भारत-चीन के बीच सीमा विवाद गहराने के बाद मोदी-जिनपिंग की ये पहली मुलाकात होगी। इन दोनों नेताओं के बीच आखिरी मुलाकात 2019 में BRICS सम्मेलन के दौरान ब्रासीलिया में हुई थी।
वहीं पुतिन से मुलाकात ऐसे समय में हो रही है, जब रूस-यूक्रेन युद्ध के मुद्दे पर दुनिया दो धड़े में बंटी नजर आ रही है। भारत UN में रूस के समर्थन के लिए अमेरिका के निशाने पर रहा है। ऐसे में इस मुलाकात पर अमेरिका समेत दुनिया की खास नजर होगी।
पाकिस्तान में इमरान खान के पद से हटने और शहबाज शरीफ के PM बनने के बाद मोदी से ये उनकी पहली मुलाकात होगी। भारत कश्मीर में आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान की आलोचना करता रहा है। ऐसे में इस बैठक के दौरान मोदी, शहबाज शरीफ के सामने आतंकवाद के मुद्दे को उठा सकते हैं।
ये तस्वीर 2018 में चीन के क्विंगडाओ में हुए SOC सम्मेलन की है। इसमें PM नरेंद्र मोदी, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग समेत SOC के 8 सदस्य देशों ने हिस्सा लिया था।
चीन-पाकिस्तान पर लगाम, सेंट्रल एशिया पर नजर, भारत के लिए क्यों जरूरी है SCO?
SCO भारत को आतंकवाद से लड़ाई और सिक्योरिटी से जुड़े मुद्दे पर अपनी बात मजबूती से रखने के लिए एक मजबूत मंच उपलब्ध कराता है।
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, SCO को लेकर भारत की तीन प्रमुख पॉलिसी हैं:
- रूस से संबंध मजबूत करना
- पड़ोसी देशों चीन और पाकिस्तान के दबदबे पर लगाम और जवाब देना
- सेंट्रल एशियाई देशों के साथ सहयोग बढ़ाना
- SCO से जुड़ने में भारत का एक प्रमुख लक्ष्य इसके सेंट्रल एशियाई रिपब्लिक यानी CARs के 4 सदस्यों- कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, तजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान से आर्थिक संबंध मजबूत करना है।
- इन देशों के साथ कनेक्टिविटी की कमी और चीन के इस इलाके में दबदबे की वजह से भारत के लिए ऐसा करने में मुश्किलें आती रही हैं।
- 2017 में SCO से जुड़ने के बाद इन सेंट्रल एशियाई देशों के साथ भारत के व्यापार में तेजी आई है। 2017-18 में भारत का इन चार देशों से व्यापार 11 हजार करोड़ रुपए का था, जो 2019-20 में बढ़कर 21 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा हो गया।
- इस दौरान भारतीय सरकारी और प्राइवेट कंपनियों ने इन देशों में गोल्ड माइनिंग, यूरेनियम, बिजली और एग्रो-प्रोसेसिंग यूनिट्स में निवेश भी किया।
- सेंट्रल एशिया में दुनिया के कच्चे तेल और गैस का करीब 45% भंडार मौजूद है, जिसका उपयोग ही नहीं हुआ है। इसलिए भी ये देश भारत की एनर्जी जरूरतों को पूरा करने के लिए आने वालों सालों में अहम हैं।
- भारत की नजरें SCO के ताजा सम्मेलन के दौरान इन सेंट्रल एशियाई देशों के साथ अपने संबंध और मजबूत करने पर रहेंगी।
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SCO को माना जाता है NATO का काउंटर
SCO का एक प्रमुख उद्देश्य सेंट्रल एशिया में अमेरिका के बढ़ते प्रभाव का जवाब देना है। कई एक्सपर्ट SCO को अमेरिकी दबदबे वाले NATO के काउंटर के रूप में देखते हैं। 1949 में अमेरिकी अगुआई में बने NATO के अब 30 सदस्य हैं।
SCO में शामिल चार परमाणु शक्ति संपन्न देश भारत, रूस, चीन और पाकिस्तान NATO के सदस्य देश नहीं हैं। इनमें से तीन देश- भारत, रूस और चीन इस समय अर्थव्यवस्था और सैन्य ताकत के लिहाज से दुनिया की प्रमुख महाशक्तियों में शामिल हैं।
यही वजह है कि SCO को पश्चिमी ताकतवर देशों के सैन्य संगठन NATO के बढ़ते दबदबे का जवाब माना जाता है।
SCO के चार परमाणु शक्ति संपन्न देशों- भारत, रूस, चीन और पाकिस्तान के पास 6928 परमाणु बम हैं, जबकि अमेरिकी दबदबे वाले NATO देशों के पास 6065 परमाणु बम हैं।
SCO की एकजुटता को लेकर उठते हैं सवाल
SCO में शामिल भारत और पाकिस्तान के बीच लंबे समय से कश्मीर मुद्दे को लेकर तनाव रहा है, जबकि भारत-चीन के बीच सीमा विवाद को लेकर टकराव रहा है। यही नहीं SCO में शामिल चार सेंट्रल एशियाई देशों के बीच भी विवाद रहे हैं।
इसलिए ये संगठन दुनिया का सबसे बड़ा रीजनल संगठन होने के बावजूद यूरोपियन यूनियन EU (जिसके देशों की कॉमन करेंसी है) और NATO जैसा ताकतवर संगठन नहीं बन पाया है।
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