जयपुर : 1962 के भारत-चीन युद्ध के महानायक और परमवीर चक्र विजेता मेजर शैतान सिंह की 62वीं पुण्यतिथि पर जोधपुर के पावटा स्थित परमवीर सर्कल पर पूरे सैन्य सम्मान के साथ श्रद्धांजलि कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस अवसर पर सैन्य अधिकारियों, सेवानिवृत्त सैनिकों, नागरिकों और स्कूली छात्रों ने भाग लेकर देश के इस वीर सपूत को नमन किया।
वीरता की कहानी को किया गया साझा
कार्यक्रम की शुरुआत में मेजर शैतान सिंह के अद्वितीय साहस और वीरता का वर्णन किया गया। दर्शकों को बताया गया कि कैसे उन्होंने 1962 के भारत-चीन युद्ध में लद्दाख के रेजांग ला क्षेत्र में अपनी कंपनी का नेतृत्व करते हुए दुश्मन को कड़ा जवाब दिया और अंत तक डटे रहे। उनके बलिदान ने भारतीय सेना के इतिहास में साहस और समर्पण का एक नया अध्याय लिखा।
फूलों से सजी श्रद्धांजलि
मेजर शैतान सिंह को श्रद्धांजलि देने के लिए चौपासनी स्कूल के 40 छात्र भगवा पगड़ी पहनकर कार्यक्रम स्थल पर पहुंचे। यह वही स्कूल है, जहां मेजर शैतान सिंह ने अपने स्कूली दिनों में शिक्षा प्राप्त की थी। इन छात्रों ने वीर सपूत को नमन करते हुए उनके साहस को अपना प्रेरणा स्रोत बताया। कार्यक्रम में मेजर शैतान सिंह की पोती ने भी हिस्सा लिया और अपने दादा के अद्वितीय बलिदान को याद करते हुए श्रद्धांजलि दी।
सैन्य सम्मान और मौन श्रद्धांजलि
मैकेनाइज्ड इन्फैंट्री के बेदाग सैनिकों ने शहीद को पुष्पांजलि अर्पित करते हुए उलटी राइफलों के साथ मौन श्रद्धांजलि दी। यह दृश्य पूरे माहौल को भावुक और गर्वमयी बना गया। सैन्य धुनों के साथ हुए इस समारोह ने सभी के दिलों में देशभक्ति और सम्मान का भाव जागृत कर दिया।
रेजांग ला की लड़ाई: एक वीरता की मिसाल
श्रद्धांजलि समारोह में 18 नवंबर 1962 की ऐतिहासिक लड़ाई को याद किया गया। लद्दाख के 17,000 फीट की ऊंचाई वाले रेजांग ला में 13 कुमाऊं बटालियन की कमान संभालते हुए मेजर शैतान सिंह ने अपनी सेना का नेतृत्व किया। भारी संख्या में आए चीनी सैनिकों ने उनके पोस्ट पर हमला किया, लेकिन मेजर शैतान सिंह ने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने अपने सैनिकों का मनोबल बनाए रखने के लिए प्लाटून पोस्टों के बीच जाकर उन्हें प्रेरित किया।
गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद, उन्होंने अपने सैनिकों को दुश्मन का डटकर सामना करने के लिए प्रेरित किया। जब उनके सैनिक उन्हें सुरक्षित स्थान पर ले जाना चाहते थे, तो उन्होंने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि उनका कर्तव्य युद्ध के मैदान में डटे रहना है। उनकी इस अदम्य इच्छाशक्ति और साहस ने दुश्मन को भारी नुकसान पहुंचाया और रेजांग ला की लड़ाई को भारतीय सेना के इतिहास में एक मील का पत्थर बना दिया।
स्मृति और प्रेरणा का प्रतीक
मेजर शैतान सिंह को मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया, जो उनके अद्वितीय साहस और बलिदान का प्रमाण है। जोधपुर में हर साल आयोजित होने वाला यह कार्यक्रम उनकी विरासत को जीवित रखने का प्रयास है।
युवाओं के लिए प्रेरणा
कार्यक्रम के दौरान वक्ताओं ने युवाओं को मेजर शैतान सिंह की वीरता से प्रेरणा लेने और देश की सेवा के लिए आगे आने का आह्वान किया। इस आयोजन ने न केवल उनके बलिदान को स्मरण किया, बल्कि राष्ट्रभक्ति और साहस के मूल्यों को भी उजागर किया।
जोधपुर के लोग इस महान वीर सपूत की स्मृति को गर्व के साथ संजोए हुए हैं और उनकी वीरता की गाथा आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाने का संकल्प दोहराते हैं।
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