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अनहद कृति – साहित्याश्रय की अनहद गूंज चंडीगढ़ में

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दिल्ली

अम्बाला एवं अमेरिका से प्रकाशित, पी. पी. प्रकाशन की अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की ई-पत्रिका, अनहद कृति के ग्यारहवें वर्ष में पदार्पण के उपलक्ष्य में आयोजित अनहद-कृति-हिंदी-साहित्यकार रिट्रीट, साहित्याश्रय2023, हिन्दी साहित्य पर गहन चिंतन मंथन के साथ, चंडीगढ़ के इन्दिरा हॉलिडे होम के झिलमिल सभागार में 4 अगस्त से लेकर 6 अगस्त तक चली। ‘आपसी मिलवर्तन’ की अवधारणा से प्रेरित, देश के कोने-कोने व अमेरिका से जुटे लगभग 61 लेखकों का अढ़ाई दिवसीय सम्मेलन -‘साहित्याश्रय’ अपने में एक अनूठा समागम रहा। आयोजक अनहद कृति पीपी प्रकाशन की संयोजिका व भारतीय मूल की अमेरिका निवासी विभा चसवाल ने बताया कि इस आयोजन का उद्देश्य देश और विदेशों की सीमायें लांघकर, लेखकों के बीच एक आपसी समन्वय कायम करना था, जिससे उनकी रचनायें उनके ही क्षेत्र तक सीमित न रह कर विदेशों में भी नाम कमाये।

इस कार्यक्रम में भारत भर के सोलह प्रदेशों के साहित्यकारों के अलावा संयुक्त राज्य अमेरिका के फ्लोरिडा व न्यूयार्क से भी हिन्दी साहित्यप्रेमी पहुंचे। सभी रचनाकारों को स्वागत में भेंट-स्वरूप पर्यावरण-अनुकूल रोपण-योग्य नोटपैड एवं पेन दिए गए।
साहित्याश्रय सहित्याकार रिट्रीट में महेश व नीरजा द्विवेदी (लखनऊ से), मंजुमहिमा भटनागर (गुजरात से), आशा शैली (उत्तराखंड से), अंजना सवि (भोपाल से), रमेश मस्ताना (शाहपुर, रैत, हिमाचल से), प्रभात शर्मा (दाड़ी, हिमाचल से), कुशल कटोच (धर्मशाला से), बबिता ओबराय (धर्मशाला से), आशुतोष गुलेरी (पालमपुर, हिमाचल से), श्रीकृष्ण सैनी (अंबाला से), महिमा भटनागर (ग़ाज़ियाबाद से), सुखमंगल सिंह (बनारस से), राजेंद्र प्रताप गुप्त ‘बावरा’ (चंदौली जनपद, काशी से), विवेक कुमार मौर्य (लखीमपुर खेरी से), स्नेही चौबे (कर्नाटक से), मनमोहन भाटिया (दिल्ली से), सुषमा सतीश अग्रवाल (महाराष्ट्र से), साई शिवांग (पानीपत से), वैभव शर्मा (सोनीपत से), नरेंद्र बत्रा (अंबाला से)और आख़िरी पल न आ सकने वाले रणवीर सिंह अनुपम (ग़ाज़ियाबाद से), मिर्ज़ा हफ़ीज़ बेग़ (भिलाई से), प्रदीप पांडेय (बहराईच, उत्तर प्रदेश से), चंद्रेश छत्तलानी (राजस्थान से), राज बोहारे (दतिया, मध्यप्रदेश से), और इस बार विभा चसवाल और कात्यायनी भटनागर ने (मियामी फ़्लोरिडा, यू.एस.ए. से) और लतिका बत्रा ने (न्यू यॉर्क, यू.एस.ए. से) ने अनहद कृति की सहित्याकार रिट्रीट को अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप प्रदान किया। सभी ने रचनाओं/किताबों/चर्चा द्वारा शिरकत की।

उद्घाटन के उपरांत परिचय एवं अनौपचारिक बातचीत में सभी सहभागियों का आपसी परिचय विभा चसवाल के द्वारा विस्तार से दिया गया और बताया गया कि दस वर्ष पूर्व महज़ 11 रचनाकारों की 33 रचनाओं से शुरू की गयी अनहद कृति ई-पत्रिका अब 555 रचनाकारों का वृहद् परिवार बन चुकी है, जिनकी 3375 रचनाएँ मौलिक कलावस्तु के साथ प्रस्तुत की जा चुकी हैं, और यह आँकड़े लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं। कार्यक्रम की मुख्य भूमिका में अनहद कृति की सम्पादक-द्वय युगल, प्रेमलता चसवाल एवं पुष्पराज चसवाल द्वारा सभी सहभागियों का अभिनन्दन-स्वागत किया गया। कार्यक्रम के प्रारम्भ में सरस्वती के सामने दीप-प्रज्ज्वलन के साथ सभी ने पुष्पार्पण किया। प्रवासी बाल कलाकारों त्विशा व तन्वी चसवाल राज के द्वारा बलराम चसवाल रचित सरस्वती वंदना पर भरत-नाट्यम नृत्य की प्रस्तुतियां श्लाघ्य रही। तत्पश्चात अनहद कृति पत्रिका की प्रेरक विभूतियों क्रमशः डॉ वीरेन्द्र मेहन्दीरत्ता, डॉ मैथिलिप्रसाद भारद्वाज और डॉ. नन्दलाल मेहता को स्मरण करते हुए चंडीगढ़ की डॉक्टर सत्यभामा, डॉ. दलजीत कौर, डॉ. शशिप्रभा, संपा. डॉ. प्रेमलता और संपा. पुष्पराज चसवाल ने श्रद्धासुमन अर्पित किए और उनके जीवन के प्रेरक प्रसंग प्रस्तुत किए। हाल ही में दिवंगत हुए डॉ. मेहंदिरत्ता जी को मिलवर्तन का प्रतिमान बताया गया, और उनकी छवियाँ बड़े प्रो जेक्टर पर सभी के सामने लायी गयी; मेहंदिरत्ता परिवार के सदस्यों अपराजिता, राकेश शर्मा, सौम्या, लवनीश और रेवा ने सभागार में अपनी मौजूदगी से कार्यक्रम में शिरकत की। अनहद कृति से जुड़ी, चंडीगढ़ की बाल-कलाकार निशिका द्वारा गणेश-स्तुति पर कथक की अद्भुत प्रस्तुति से साहित्याश्रय की पहली शाम का औपचारिक कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। इसके बाद, किताब की बात कार्यक्रम में सभी सहभागियों के द्वारा लायी गयी अपनी-अपनी पुस्तकें मेज़ों के ऊपर प्रदर्शनी हेतु सजाई गईं। भोजन के बाद सभी आए सदस्यों के स्वास्थ्य-लाभ और थकान-मुक्ति के लिए वैदिक-पाठ में पारंगत साई शिवांग ने ‘रोग-निवारण-सूक्त’ का पाठ किया, जिसके एकदम बाद सब रचनाकार ध्यान-मग्न दिखाई दिए। शांतचित्त से सभी ने विश्राम की ओर प्रस्थान किया।

आयोजन के दूसरे दिन की गतिविधियों में सुबह अनहद कृति के नवल-स्तम्भों यू-ट्यूब चैनल ‘Anhadsahitya’ और ‘किताब की बात’ पुस्तक-केटालॉग का लोकार्पण हुआ, जिसमें अनहद कृति पटल पर वहीं सभागार में प्रदर्शित ‘किताब की बात’ प्रदर्शनी में आयी रंग-रंगीली 160 किताबों का केटालॉग किताब के चित्र, नाम, प्रकाशन काल, संक्षिप्त विवरण, और सम्पर्क के साथ दिखायी दिए। अनहद कृति पत्रिका के विभिन्न अंकों के साथ-साथ ‘साहित्याश्रय2020 अंक में संजोयी अनहद कृति की प्रथम सहित्यकार रिट्रीट जो हिमाचल में आयोजित की गयी थी, उसकी झलकियाँ भी दिखाई गयी; *अनहद कृति का ‘आवाज़ें’ पोर्टल जहां अनहद कृति के रचनाओं के ऑडीओ रेकोर्डिंग और पाड्कास्ट प्रस्तुत होते हैं, उस पन्ने का अवलोकन किया और महाराष्ट्र की सुषमा सतीश अग्रवाल के अप्रतिम सहयोग का खुलासा किया।

  • ‘साहित्याश्रय रचना पाठ’ के दौरान सभी सहभागी साहित्यकारों की रचनाएं साथ-साथ प्रोजेक्ट की गयी, और साथ ही हर रचनाकार का ‘परिचय’ पन्ना फ़ोटोसहित दर्शाया गया। यह एक अनुपम प्रयोग था, एक तरफ़ मुखर-प्रस्तुति और साथ ही अन्तर्जाल पर अनहद कृति पटल पर तैय्यार पन्ना, जहां रचना को पढ़ा ज़ा सकता था! संलग्न कलावस्तु के रोचक विवरण इस रचना-प्रस्तुति सत्र को बेहद रोचक बना गए। विभा, विभोर और राजेश इन पन्नों के सफल संचालन में लगे रहे, ताकि वही प्रोजेक्ट हो, जो रचनाकार द्वारा पढ़ा जा रहा हो।

*उधर संवादात्मक पुस्तक प्रदर्शनी, ‘किताब की बात’ के गौरवमयी आयोजन में जहां रचनाकारों के द्वारा अपनी-अपनी भावनाएं रचना के सन्दर्भ में बतलाई गईं, अपनी प्रकाशन/लेखन के सफ़र की प्रेरणा-चुनौतियों की बात की; वहीं सद्य-प्रकाशित पुस्तकों के लोकार्पण, ‘नयी किताब की बात’ में कर्नाटक की स्नेही चौबे के काव्य-संग्रह ‘मेरी अविरल अभिव्यक्ति’, प्रेमलता चसवाल के कहानी-संग्रह ‘बुधवा चेत’, पुष्पराज चसवाल के उपन्यास ‘महक’ की पुस्तकों के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश के रमेशचन्द्र मस्ताना की ‘मेरया मितरा’, प्रभात शर्मा का उपन्यास ‘शीशम का पेड़’ और आशुतोष गुलेरी की पुस्तक ‘नारायण उवाच’ का लोकार्पण महेश व नीरजा द्विवेदी, आशा शैली, सुखमंगल सिंह एवं राजेंद्र प्रताप गुप्त ‘बावरा’ व सम्पादक द्वय चसवाल द्वारा किया गया। इस सत्र में पुस्तक के रचयिताओं द्वारा लेखकीय-कथन में ‘स्व-समीक्षा’ भी प्रस्तुत की गई जिसमें पहले से निर्धारित बिंदुओं पर बात करनी थी, यह भी एक नवीन रोचक प्रयोग रहा। तत्पश्चात पुस्तक प्रदर्शनी का उद्घाटन वैदिक-पाठ साई शिवांग द्वारा किया गया।

*दिनभर सत्रों में चल रहे कार्यक्रम में मिली-जुली प्रस्तुतियों में चंडीगढ़ के रचनाकारों ने उल्लेखनीय भूमिका निभाई। अनहद कृति के पटल पर डाॅ.मंजु महिमा , डॉ शशिप्रभा, डॉ दलजीत कौर, अल्का कांसरा, डॉ निर्मल सूद, डॉ सुनीत मदान, राजिंदर सराओ, नीरू मित्तल ‘नीर’, अनुभूति, अन्नूरानी, डॉ. सत्यभामा, सत्यवती आचार्य, अनिता ‘सुरभि’, नीलम त्रिखा, सुरेंद्र बंसल, लाजपत राय गर्ग ,डॉ ने अपनी रचनाएँ सुनाई, और किताबों की बात भी की। रंग-रंगीले सभागार में डॉ. मेहंदिरत्ता की फ़ोटो पर ध्यानाकर्षित करते हुए संचालिका विभा चसवाल ने बताया की यों लग रहा है ज्यों सतरंगी स्वर्गिक क्षितिज के उस पार से वे इस महफ़िल का आनंद ले रहे हों, और यहाँ चल रहे मिलवर्तन से अभिभूत हो रहे हों।
*सभागार में ही बच्चों के ‘हिंदी-बिंदी’ कैम्प के संचालन में अनहद कृति से जुड़े बड़े बच्चे, छोटे बच्चों को गाइड करते दिखाई दिए। बच्चों ने सभी रचनाकारों के लिए बुकमार्क बनाए, जिनमें एक तरफ़ सुंदर कलाकृति और दूसरी ओर ज्ञान की बात लिखी थी। इन बुकमार्कों को उठा अपने लिए ज्ञान की बात देखना एक खेल बन गया और वयो-वृद्ध रचनाकार इस खेल को खेलते दिखाई दिए।
*निशित, गुंतास, निशिका और सबरीन ने अनहद कृति वर्क्शाप में रचनाकारों का पंजीकरण किया, रचनायें प्रेषित की और उनके पन्नों को अपडेट किया – बच्चों की हिंदी के कार्यक्रम के साथ यह समरसता नैसर्गिक थी। सत्रों के बीच, सभागार के बाहर, अनहद कृति की कलाकार, पंचकूला की पूनम सैनी की चित्रकला प्रदर्शनी भी अवलोकन के लिये तैयार थी, जिसका सबने खूब आनंद उठाया। इस तरह दूसरे दिन का औपचारिक कार्यक्रम समाप्त हुआ।
*बाहर से आए रचनाकार बस में बैठ कर सुखना-झील घूमने गए, जहां सड़क कर किनारे ‘छल्ला’ और ‘शिव-स्तुति’ सुनी और स्मरणीय समय को छाया-चित्रों में संजोया।
*साहित्याश्रय के तीसरे दिन तड़के ही इंदिरा भवन के हरे-भरे प्रांगण में एक गीत/ग़ज़ल/कविता गोष्ठी हुई, जिसकी ड्रोन-रकोर्डिंग की गयी।
*फिर औपचारिक कार्यक्रम में पत्रकार-लेखक संवाद सत्र में महत्वपूर्ण मुद्दों ख़ासकर किताबों के वितरण के तरीक़ों पर बात हुई। प्रकाशक पैनल में आधारशिला प्रकाशन की अनिता सुरभि, पी पी प्रकाशन के चसवाल दम्पति, आरती प्रकाशन की आशा शैली पैनल-मेम्बर थे।
*इस दौरान हिन्दी साहित्य पर अंग्रेजी साहित्य की तुलना चिंता व्यक्त करते हुये विभा चसवाल ने कहा कि हिन्दी लेखकों में पुस्तकों के रुप में अपनी रचनाओं को भेंट करने का प्रचलन हैं। इसके विपरीत अंग्रेजी साहित्य आक्रमक सेल्स रणनीति, नैटवर्किंग, ऑनलाईन मार्केटिंग के चलते विश्व पटल में बेहतरीन छाप बना चुका है, और हिन्दी साहित्य के लेखकों को भी ऐसी ही शिद्दत के साथ अपनी वैश्विक पहचान बनाने की जरुरत है। इसके लिए लेखक का सहयोग सबसे ज़्यादा ज़रूरी है, ताकि वह प्रकाशक के साथ टीम कर अपनी किताबें बेच सके।
*सभागार में लेखकों को किताबें भेंट करने की बजाय ‘शगुन’ दे कर किताबें लेने को कहा गया।
*एक अनोखे ‘केक’ से ‘हिंदी की पार्टी’ मनायी गयी, इस केक का आकार किताबों के स्टैक जैसा था, जिसमें एक तरफ़ की किताबों पर अनहद कृति के 7 महत्वपूर्ण पड़ाव थे, और दूसरी ओर 6 उन किताबों के नाम जिनका विमोचन साहित्याश्रय में हुआ।
*इसके बाद सभी रचनाकारों को भोपाल में बनवाई गयी गोंड-आदिवासी-कला की मौलिक कलाकृति और सम्मान-पत्र दे कर, चसवाल परिवार ने स्नेहपूर्वक साहित्याश्रय2023 का समापन किया, और सभी साथियों को मध्याह्न भोज के बाद रुख़्सत किया।

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