अफगानिस्तान में सभी 70 पॉलिटिकल पार्टियां बैन:तालिबान बोला- ये शरिया के खिलाफ, क्या इस्लाम में राजनीति करने की मनाही है
‘मुस्लिमों के लिए बना शरिया कानून ही उनके जीवन का आधार होता है। इस कानून में पॉलिटिकल पार्टीज का कोई वजूद नहीं है। इसलिए अफगानिस्तान में राजनीतिक दलों के संचालन के लिए शरिया आधार नहीं हो सकता है।’
16 अगस्त को अफगानिस्तान के मिनिस्टर ऑफ जस्टिस अब्दुल हकीम शरेई ने ये बयान दिया। तालिबान के मुताबिक राजनीतिक दलों की वजह से विभाजन की भावना बढ़ती है, जो किसी देश के विकास के लिए सही नहीं है।
15 अगस्त को अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी के 2 साल पूरे हो गए हैं। इसके एक दिन बाद ही तालिबान ने वहां के 70 राजनीतिक दलों को बैन कर दिया है।
जानेंगे कि इस्लामिक कानून शरिया क्या है, इस्लाम में राजनीति को लेकर कब और क्या कहा गया है और बड़े मुस्लिम देशों की राजनीति कैसे चल रही है?
जिस शरिया कानून के जरिए 70 राजनीतिक दलों पर बैन लगा वो क्या है…
कुरान, हदीस, इस्लामिक स्कॉलर्स और समुदाय की आम राय के आधार पर शरिया चलता है। हदीस का संकलन अलग-अलग सूमहों ने किया है। इस्लामिक स्कॉलर्स के नजरिए में भी फर्क हो सकता है, इसलिए किसी देश में शरिया कानून कहीं बेहद सख्त और कहीं कुछ नरम होते हैं। इस्लाम में प्रमुख रूप से चार स्कूल ऑफ थॉट्स होते हैं, जिसे मसलक कहते हैं…
इस्लाम धर्म में राजनीति का जिक्र कब और कहां पर हुआ है?
इस्लाम धर्म में राजनीति के जिक्र को लेकर अलग-अलग तरह की बातें कही जाती हैं। 2 अलग-अलग रिसर्च के हवाले से जानते हैं कि इस्लाम में राजनीति का जिक्र कब हुआ…
- UN के पूर्व अधिकारी एडवर्ड मोर्टिमर की किताब ‘फेथ एंड द पावर पॉलिटिक्स ऑफ इस्लाम’ में दावा: किताब के पेज 37 में बताया गया है कि मोहम्मद के बनाए या चुने गए उत्तराधिकारियों के समय से ही इस्लाम में राजनीति की शुरुआत हुई है। सुन्नी इस्लाम में खलीफा और शिया इस्लाम में इमाम जैसे दो पद इसके उदाहरण हैं।
- डेनमार्क यूनिवर्सिटी के रिसर्च पेपर में जर्मन स्कॉलर फ्रिट्ज स्टेपट का दावा: इस्लाम में राजनीति की शुरुआत 622 ईस्वी में माना जाती है। जब पैगंबर मक्का से मदीना पहुंचे थे। मदीना पहुंचने के बाद पैगंबर ने कई आदिवासी समूहों के बीच हो रही लड़ाई को खत्म कराकर सुलह कराई।
मदीना की राजव्यवस्था को नए और संगठित तरीके से शुरू किया। इसमें इस्लामिक देशों के लिए धार्मिक और राजनीतिक व्यवस्था और उसके नए पैमाने तय किए गए।
इसका उल्लेख कुरान के सूरा में और ‘मदीना के कानून’ में किया गया है। ऐसा माना जाता है कि इस्लाम में राजनीति की शुरुआत इसी समय से हुई है।
क्या पॉलिटिकल पार्टी या लोकतंत्र इस्लामी कानून के खिलाफ है?
हनफी मसलक के शरिया में राजनीतिक दलों और राजनीति को धर्म के खिलाफ बताने जैसी चीज हमारे रिसर्च में नहीं मिली। हालांकि, तालिबान हनबली मसलक मानते हैं।
अब इस्लामी कानून राजनीतिक दलों का विरोध करता है या नहीं, ये जानने के लिए समझते हैं इस्लाम में राजनीति को लेकर क्या कहा गया है…
यूके संसद की वेबसाइट पर ‘पॉलिटिकल इस्लाम का गवाह’ नाम से पब्लिश एक रिसर्च पेपर के मुताबिक राजनीतिक पार्टी और लोकतंत्र के मुद्दे पर इस्लाम विद्वानों के दो तरह के विचार हैं..
पहला– कुछ इस्लामिक स्कॉलर का मानना है कि लोकतंत्र एक अलग धर्म के समान है और इसलिए यह इस्लाम में स्वीकार नहीं किया जा सकता है।
दूसरा: कुछ स्कॉलर का मानना है कि इस्लाम में लोकतंत्र से विरोध नहीं है, जब तक इस्लामिक कानून और इस्लाम धर्म की भावना का उल्लंघन न हो।
शरिया कानून वाले ज्यादातर देशों में पॉलिटिकल सिस्टम तीन तरह से लागू होते हैं…
1. डुअल लीगल सिस्टम: सरकार पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष रहती है, लेकिन मुस्लिमों को अपने पारिवारिक और फाइनेंशियल मामले शरिया अदालतों में ले जाने का सिस्टम होता है। इन देशों में कई राजनीतिक दल होते हैं और सरकार लोकतांत्रिक तरीके से चुनी जाती है। जैसे- नाइजीरिया, केन्या।
2. अल्लाह के अधीन सरकार: इन देशों का ऑफिशियल धर्म इस्लाम होता है। सभी कानूनों का सोर्स शरिया होता है। इस तरह के ज्यादातर देशों में राजशाही है। सऊदी अरब, कुवैत, बहरीन, यमन और UAE जैसे देश इसके उदाहरण हैं।
3. पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष: मुस्लिम देश होने के बावजूद यहां की सरकार और कानून सेकुलर होते हैं। ऐसे देशों में सरकार लोकतांत्रिक तरीके से चुनी जाती है। अजरबैजान, तजाकिस्तान, सोमालिया और सेनेगल जैसे देश इसके उदाहरण हैं।
अब शरिया कानून वाले दो बड़े देश जहां राजनीतिक पार्टी और लोकतंत्र हैं…
1. दुनिया के सबसे बड़े मुस्लिम देश इंडोनेशिया ने खुद को 1945 में डचों से आजादी की घोषणा कर दी। पूरी तरह से आजादी पाने के लिए उन्हें अगले पांच साल तक संघर्ष करना पड़ा। इंडोनेशियन नेशनल पार्टी ने आजादी की लड़ाई लड़ी। 1927 में सुकार्नो नाम के शख्स ने इस पार्टी की नींव रखी थी। सुकार्नो 1945 में इंडोनेशिया के राष्ट्रपति बने। आजादी के बाद से ही यहां न्याय व्यवस्था में शरिया कानून लागू हैं। इसके बावजूद यहां करीब 50 राजनीतिक दल हैं जो लोकतांत्रिक तरीके से चुने जाने के बाद सरकार बनाते हैं।
2. 1928 में मिस्र के एक स्कूली शिक्षक हसन अल-बन्ना ने मुस्लिम ब्रदरहुड नाम से एक राजनीतिक पार्टी की स्थापना की थी। इन्होंने बताया था कि उनकी पार्टी का मुख्य मकसद इस्लामी शरिया कानून के जरिए सरकार की स्थापना और दैनिक जीवन में आने वाली समस्याओं का समाधान करना है।
मिस्र से लेकर दुनियाभर में मुस्लिम ब्रदरहुड को न सिर्फ सफल राजनीतिक पार्टी बल्कि एक सफल इस्लामिक ग्रुप के तौर पर भी जाना जाता है। इससे साफ होता है कि मिस्र में शरिया कानून लागू है और वहां राजनीतिक दल भी एक्टिव हैं।
हर देश में शरिया अलग-अलग क्यों है?
- इस्लाम में 4 अलग-अलग स्कूल ऑफ थॉट हैं। ये चारों अपने-अपने हिसाब से कुरान और सुन्नतों की अलग-अलग व्याख्या करते हैं। इसी वजह से दुनिया के अलग-अलग देशों में शरिया कानून भी अलग-अलग है।
- शरिया कानून में भी अलग-अलग नियमों की वजह स्थानीय रीति-रिवाज हैं। इनके आधार पर भी शरिया कानून में सजा और अन्य अपराध तय होते हैं।
- शरिया में पीनल कोड भी है। यह तभी लागू हो सकता है, जब पूरा सिस्टम ही इस्लामिक हो। इसका एक उदाहरण ईरान है। जिन देशों में लोकतंत्र है, वहां शरिया निजी मामलों में ही लागू होता है, जैसे- भारत में।
Sources and further Readings…
- https://committees.parliament.uk/writtenevidence/67123/pdf/
- https://www.pewresearch.org/religion/2013/04/30/the-worlds-muslims-religion-politics-society-religion-and-politics/
- https://www.pewresearch.org/religion/2013/04/30/the-worlds-muslims-religion-politics-society-overview/
- https://journals.sagepub.com/doi/pdf/10.1177/09735984211019797
- https://academic.oup.com/book/3215/chapter-abstract/144140529?redirectedFrom=fulltext
- https://journals.sagepub.com/doi/pdf/10.1177/09735984211019797
- https://www.annualreviews.org/doi/10.1146/annurev-polisci-082112-141250
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