अविश्वास प्रस्ताव क्या है, जिसमें PM को स्पीच देनी पड़ेगी:इंदिरा के खिलाफ 15 बार आया, मोदी के खिलाफ दूसरी बार
‘हमें पता है कि लोकसभा में हमारी कितनी संख्या है, लेकिन बात सिर्फ संख्या की नहीं है। ये अविश्वास प्रस्ताव मणिपुर में इंसाफ की लड़ाई का भी है। इस प्रस्ताव के जरिए हमने यह संदेश दिया है कि भले ही PM मोदी मणिपुर को भूल गए हैं, लेकिन INDIA अलायंस दुख की घड़ी में उनके साथ खड़ा है। हम इस मामले में सदन के अंदर PM से उनका जवाब चाहते हैं।’
26 जुलाई को ये बात लोकसभा में कांग्रेस के उप-नेता गौरव गोगोई ने कही। लोकसभा में केंद्र सरकार के खिलाफ गौरव गोगोई के अविश्वास प्रस्ताव का 50 विपक्षी सासदों ने समर्थन किया। इसके बाद लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया है।
अविश्वास प्रस्ताव होता क्या है, संविधान में कहां जिक्र, क्यों लाते हैं?
लोकसभा देश के लोगों की नुमाइंदगी करता है। यहां जनता के चुने प्रतिनिधि बैठते हैं, इसलिए सरकार के पास इस सदन का विश्वास होना जरूरी है। इस सदन में बहुमत होने पर ही किसी सरकार को सत्ता में रहने का अधिकार है।
अविश्वास प्रस्ताव लाने की वजह: सरकार के पास लोकसभा में बहुमत है या नहीं, ये जांच करने के लिए अविश्वास प्रस्ताव का नियम बनाया गया है। किसी भी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है। इसे पास कराने के लिए लोकसभा में मौजूद और वोट करने वाले कुल सांसदों में से 50% से ज्यादा सांसदों के वोट की जरूरत होती है।
संसदीय प्रणाली में इस नियम का कहां जिक्र है: भारतीय लोकतंत्र में इसे ब्रिटेन के वेस्टमिंस्टर मॉडल की संसदीय प्रणाली से लिया गया है। संसदीय प्रणाली के नियम-198 में इसका जिक्र किया गया है।
सरकार के पास बहुमत, फिर विपक्ष क्यों लाया अविश्वास प्रस्ताव?
लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव लाने वाले सांसद ने खुद भी माना है कि उनके पास बहुमत नहीं है। इसके बावजूद सदन में प्रस्ताव लाया गया है। दरअसल, मानसून सत्र के पहले से ही विपक्षी दल मणिपुर हिंसा के मामले में PM नरेंद्र मोदी से संसद में बयान देने की मांग कर रहे हैं। वह सरकार के मुखिया होने के नाते प्रधानमंत्री पर बयान देने के लिए दबाव बना रहे हैं।
यही वजह है कि इस मुद्दे पर कई दिनों के विरोध और हंगामे के बाद आखिरकार बुधवार को सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए 2 अलग-अलग नोटिस दिए गए।
विपक्षी दलों को भरोसा है कि अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के समय PM नरेंद्र मोदी को स्पीच देनी पड़ेगी।
इस प्रस्ताव पर कब होगी चर्चा, क्या संसद में स्पीच देना PM की मजबूरी होगी
अविश्वास प्रस्ताव लाने के 10 दिनों के अंदर चर्चा करके वोटिंग कराना जरूरी है। मंत्री परिषद के प्रमुख होने के नाते प्रधानमंत्री को लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान जवाब देना होता है। इस दौरान विपक्षी दलों के लगाए आरोप पर PM नरेंद्र मोदी को अपनी बात रखनी होगी।
संसद के रिकॉर्ड के मुताबिक 2019 के बाद PM मोदी ने लोकसभा के कार्यकाल के दौरान कुल 7 बार डिबेट में हिस्सा लिया है। इनमें से पांच मौकों पर उन्होंने राष्ट्रपति के भाषण के बाद जवाब दिया। जबकि एक बार उन्होंने श्री राम जन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट बनाए जाने को लेकर व दूसरी बार लोकसभा स्पीकर के तौर पर ओम बिड़ला के शपथ ग्रहण समारोह के दौरान उन्होंने अपनी बात रखी है।
इस बार के अविश्वास प्रस्ताव का हश्र भी तय… किधर-कितने वोट पड़ेंगे
कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई की ओर से लाए जाने वाले अविश्वास प्रस्ताव का हश्र लगभग तय है। इसकी वजह यह है कि लोकसभा में BJP नेतृत्व वाले NDA के पास बहुमत है।
अविश्वास प्रस्ताव सदन में ज्यादातर बार फेल होता है, लेकिन फिर भी ये विपक्ष का हथियार क्यों है?
1963 में पहली बार प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के नेता जेबी कृपलानी ने लोकसभा में पहला अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था। हालांकि, वोटिंग में PM जवाहरलाल नेहरू की सरकार बहुमत हासिल करने में कामयाब रही।
आचार्य कृपलानी ने इस अविश्वास प्रस्ताव को पेश करते हुए कहा था, ‘मेरे लिए यह बेहद दुख की बात है कि मुझे ऐसी सरकार के खिलाफ प्रस्ताव लाना पड़ रहा है, जिस सरकार में मेरे 30 साल पुराने कई दोस्त शामिल हैं। इसके बावजूद अपने कर्तव्य और अंतरात्मा की आवाज पर सरकार की जवाबदेही के लिए मैं ये प्रस्ताव ला रहा हूं।’
इसके जवाब में PM जवाहरलाल नेहरू ने कहा था, ‘इस तरह के प्रस्ताव के जरिए सरकारों का समय-समय पर परीक्षण किया जाना अच्छा है। खासकर तब भी जब सरकार गिरने की कोई संभावना न हो।’
अविश्वास प्रस्ताव के दौरान सभी दलों के सांसद राज्य या देश से जुड़े सवाल पूछते हैं। सरकार को इसका जवाब देना पड़ता है। 2018 में TDP के सांसदों ने आंध्र प्रदेश से जुड़े मुद्दों पर सवाल पूछे थे।
कहीं उल्टा तो नहीं पड़ जाएगा विपक्षी दलों का ये दांव….इसकी 3 मुख्य वजहें हैं…
भले ही विपक्षी दलों की ओर से केंद्र सरकार के खिलाफ सदन में अविश्वास प्रस्ताव लाया जा रहा हो, लेकिन विपक्ष का ये दांव उल्टा भी पड़ सकता है। इसकी 3 वजहें बताई जा रही हैं…
1. संख्या बल: लोकसभा के 537 सदस्यों में से विपक्षी अलायंस INDIA के पास 143 सांसद हैं। वहीं, मोदी सरकार के समर्थक लोकसभा सांसदों की संख्या करीब 333 है। ऐसे में संख्या बल में सरकार विपक्षी दलों पर भारी पड़ेगी।
2. अविश्वास प्रस्ताव गिरने से विपक्ष की आलोचना: इस बात की संभावना है कि अविश्वास प्रस्ताव के गिरने के बाद मोदी सरकार 2024 लोकसभा चुनाव में इस मुद्दे को विपक्षी दलों की आलोचना करने के लिए इस्तेमाल करेगी।
3. लोकसभा में विपक्षी वक्ताओं की कमी: विपक्षी दलों के कई बोलने वाले फायरब्रांड नेता जैसे- राहुल गांधी, अखिलेश यादव, भगवंत मान, आजम खान लोकसभा में इस प्रस्ताव पर होने वाली चर्चा में हिस्सा नहीं ले पाएंगे। वहीं, सरकार की ओर से PM नरेंद्र मोदी, अमित शाह, स्मृति ईरानी, अनुराग ठाकुर समेत कई मंत्री विपक्षी दलों के आरोपों पर तैयारी के साथ कड़ा जवाब दे सकते हैं।
अब राज्यसभा के दो नियम… जिसकी वजह से नहीं चल पा रही कार्यवाही
26 जुलाई को राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने मणिपुर हिंसा मामले में रूल नंबर 176 के तहत चर्चा की अनुमति दी। इस पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भड़क गए। गुस्से में तमतमाते हुए खड़गे ने सभापति के इस फैसले का विरोध करते हुए कहा कि सदन के सभी कामकाज को रोककर सिर्फ इसी मुद्दे पर बहस हो। हमने रूल नंबर 267 के तहत चर्चा के लिए नोटिस भेजा है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि पक्ष और विपक्ष दोनों मणिपुर हिंसा पर चर्चा चाहते थे तो पेंच कहां फंसा? अब पेंच फंसाने वाले उन दो नियमों के बारे में जानते हैं…
रूल नंबर 176: मणिपुर हिंसा पर केंद्र सरकार राज्यसभा की नियम पुस्तिका के रूल नंबर 176 के तहत चर्चा के लिए तैयार हो गई। दरअसल, इस नियम के जरिए सदन में किसी मुद्दे पर ढाई घंटे तक चर्चा की अनुमति मिलती है।
इससे ज्यादा समय तक किसी मुद्दे पर चर्चा नहीं हो सकती है। कोई भी सदस्य किसी खास मुद्दे पर लिखित नोटिस देकर इसकी मांग कर सकता है। इस प्रस्ताव पर 2 अन्य सदस्यों के हस्ताक्षर होने चाहिए।
इसके बाद सभापति उसी दिन या अगले दिन इस मुद्दे पर चर्चा करा सकते हैं। चर्चा के बाद किसी मुद्दे पर वोटिंग नहीं कराई जाती है।
रूल नंबर 267: राज्यसभा रूल बुक के पेज 92 में नियम 267 का जिक्र किया गया है। इस नियम के तहत दिनभर के लिए सदन में सूचीबद्ध बाकी विषयों को छोड़कर किसी जरूरी मुद्दे पर लंबे समय तक बहस होती है।
इस नियम के तहत किसी जरूरी विषय पर चर्चा के लिए कोई भी सदस्य प्रस्ताव पेश कर सकता है। चर्चा के बाद वोटिंग भी होती है।
पूर्व लोकसभा सेक्रेटरी पीडीटी आचारी का कहना है कि लोकसभा में किसी जरूरी मुद्दे पर चर्चा या सरकार की निंदा के लिए स्थगन प्रस्ताव का नियम होता है। लोकसभा के पास सरकार गिराने का पावर होता है, जबकि राज्यसभा सरकार नहीं गिरा सकती है। राज्यसभा में लोकसभा की तरह कोई नियम नहीं होने की वजह से विपक्ष सरकार से जवाब मांगने या चर्चा के लिए रूल नंबर 267 का इस्तेमाल करता है।
पिछले 60 साल में अविश्वास प्रस्ताव का इतिहास कैसा रहा है…
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