
पाक को चिंता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन पीएम इमरान को फोन नहीं कर रहे, मोदी इमरान का फोन उठाते नहीं, मिस्ड कॉल का जवाब नहीं देते। चीन ब्याज दरें घटाने को तैयार नहीं है। सऊदी अरब नाराज है। तालिबान सुन नहीं रहा। इमरान और सेना की खींचतान बढ़ती जा रही है।
इसी अनिश्चितता, राजनीतिक परिदृश्य समेत अहम मुद्दों पर पाक से निर्वासित पत्रकार पर गुल बुखारी ने बात की। गुल के पिता रहमत अली पाक सेना में मेजर जनरल थे, उन्होंने जिया के तख्ता पलट का विरोध किया था। पेश हैं theinternalnews.co से उनकी बातचीत के प्रमुख अंश…
आईएसआई चीफ बदलना: इमरान खान की इजाजत के बिना आईएसआई चीफ बदलने से साफ है इमरान की सत्ता जाने वाली है। सेना का ‘प्रोजेक्ट इमरान’ फेल हो चुका है। सेना उन्हें और झेलने को तैयार नहीं। इमरान की कुर्सी सिर्फ इसलिए बची है क्योंकि सेना के पास अभी विकल्प नहीं है।
प्रोजेक्ट इमरान विफल: सेना का प्रोजेक्ट 2018 में शुरू हुआ था। रणनीति थी, शासन सेना का और मुखौटा इमरान रहेंगे। सेना ने धांधली कर सत्ता दिलवाई। अब अवाम बदहाली के लिए सेना को ज्यादा जिम्मेदार मान रही है। सेना को पंजाब में खुलेआम विरोध झेलना पड़ रहा है। अब सेना अपनी साख बचाने में जुटी है।
पाक की समस्या: खजाना खाली है। महंगाई आसमान छू रही है, उधार नहीं मिल रहा। जिस तालिबान पाकिस्तान के हमलों का जिम्मेदार भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ को ठहराया जा रहा था, उस टीटीपी के लड़ाकों को तो अशरफ गनी रॉ की मदद से ही जेलों में बंद करके बैठे थे। बलूचिस्तान और गिलगिट बाल्टिस्तान फिसल रहे हैं। जनता न इमरान को मान रही, न सेना को।
बाजवा का मोहभंग क्यों: इमरान ने सेना के लिए वह सबकुछ किया। आज स्टील मिल से लेकर स्पेस प्रोजेक्ट तक हर क्षेत्र में आर्मी के कर्नल, ब्रिगेडियर सेवा में हैं। पर संसद से आदेश पारित करवाने में वो विफल रहे। अव्वल तो इमरान बदले की भावना से ग्रस्त हैं। आर्मी चीफ बाजवा चाहते थे कि वे विपक्ष को साथ लेकर चलें ताकि संसद से पास होने वाले कानून बन सकें। यहां इमरान गच्चा खा गए। जब बाजवा को पता लगा कि इमरान उन्हें हटाने के मंसूबे पाले बैठे हैं, तब दरार और गहरा गई।
इमरान के पास विकल्प: बाजवा के खिलाफ इमरान ईश निंदा की मुहिम तेज कर सकते हैं। दरअसल बाजवा के पिता अहमदी थे जिन्हें पाक में मुसलमान माना ही नहीं जाता। इससे बाजवा की फजीहत हो सकती है। पर इससे इमरान को कोई फायदा नहीं मिलने वाला। क्योंकि सेना के कोर कमांडरों में राय बन चुकी है कि बाजवा ससम्मान रिटायर होकर आराम करें। नई लीडरशिप को अनुकूल माहौल देने के लिए बाजवा के रहते हुए सफाई अभियान चलेगा, हमीद के ट्रांसफर से इसकी शुरुआत हो चुकी है।
आगे क्या होगा: इसका आकलन करना मुश्किल है। मैं गलत होने की कीमत पर भी यह तो कह सकती हूं कि न तो इमरान पीएम रहेंगे, न फैज हमीद आर्मी चीफ बनेंगे और ना ही बाजवा का कार्यकाल बढ़ेगा। सेना इमरान की ही पार्टी से किसी को पीएम बनाएगी, जो अपनी ही सरकार गिराएगा और फिर चुनाव होंगे। सेना को मजबूरी में अगले चुनाव बिना धांधली के करवाने होंगे, नहीं तो जनता को मनाना मुश्किल होगा। चुनाव ठीक से हुए तो नवाज शरीफ की पार्टी फिर से सरकार बना सकती है।
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