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कर्म अपने अपने : डॉ मुदिता पोपली

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गुलशन परस्त हूं मगर मुझे गुल
ही नहीं अज़ीज़
कांटों से भी निबाह किए जा रहा हूं
मैं…”
जीवन में जो जैसा मिले उसे वैसा स्वीकार करना सबसे मुश्किल कार्य है। जीवन में हर व्यक्ति गुलशन परस्त है लेकिन निभाना तो सबसे है शायद यही कारण है कि गुलों के साथ कांटे भी जीवन का एक अटूट हिस्सा है।
आज आपके साथ एक कहानी साझा कर रही हूं
जिसपर बहुत समय पहले एक फिल्म बनी थी “द ब्वॉय इन द स्ट्राइप्ड पजामा’ जो कहानी है द्वितीय विश्व युद्ध के समय की, जब हिटलर यहूदियों को चुन-चुन कर गैस चैंबर में डाल कर मौत के घाट उतारा करता था। इस कहानी में ब्रुनो नामक आठ साल का एक मासूम अपने एक यहूदी दोस्त से मिलने के चक्कर में गलती से अपने पिता के रचे उस बाड़े में पहुंच जाता है, जहां गैस चैंबर में डाल कर मारे जाने के लिए ढेरों लोग रखे गए हैं।
उसका पिता सेना का एक बड़ा अधिकारी है और उसे आदेश मिला होता है कि जर्मनी में रहने वाले सभी यहूदियों को एक-एक कर जला दिया जाए। पिता अपने दो बच्चों और पत्नी के साथ शहर के किनारे एक बंगले में रहता है और उसकी जिम्मेदारी है कि वो सभी यहूदियों को गैस चैंबर में डाल कर खाक कर दे। घर में बच्चे की नाक में सुबह शाम आदमी के जलने से उठने वाले धुंएं की दुर्गंध आती है तो वो पिता से पूछता है कि उस चिमनी से ऐसी बदबू क्यों आती है। पिता बच्चे के सवाल को टाल जाता है। पिता बहुत ध्यान रखता है कि घर के किसी सदस्य को ये पता नहीं चले कि बतौर सेना अधिकारी उसका काम क्या है। वो बच्चों से बहुत कम बात करता है, बच्चों पर इस बात का प्रतिबंध रहता है कि वो अकेले बाहर न खेलें, वो आदमी के जलने की उस प्रक्रिया को न समझें और न ही बाप की तरफ से बोए दहशत के उस कारोबार से उनका कभी पाला पड़े।
सेना अधिकारी का वो आठ साल का बेटा किसी तरह एक यहूदी बच्चे के संपर्क में आ जाता है, वो उसका दोस्त बन जाता है। एक दिन उसका दोस्त लापता हो जाता है। वो अपने दोस्त की तलाश में पिता और दूसरे कर्मचारियों की नज़र बचा कर चुपचाप घर के पीछे बने बाड़े की ओर जाता है। उसे लगता है कि उसका दोस्त वहां फंस गया है। और ऐसे ही एक दिन वो बाड़े के उस पार पहुंच जाता है। बच्चा जब बाड़े के उस ओर पहुंच जाता है तो उसे वहां तमाम लोग मिलते हैं, जिन्हें अपने जलाए जाने की बारी की इंतज़ार है। पिता का पूरा तंत्र वहां काम कर रहा होता है। क्योंकि उस बच्चे को वहां कोई अधिकारी पहचानता नहीं, इसलिए उसे भी कैदियों का पायजामा पहना कर कैद कर लिया जाता है। इधर सैनिक अधिकारी के घर में कोहराम मचा है कि उसका बेटा कहां लापता हो गया? पूरे शहर में उसे ढूंढा जाता है। बच्चे का कहीं पता नही चलता है।
उधर पीछे बंद लोगों को एक-एक कर जलाया जा रहा होता है। एक दिन सैनिक अधिकारी को पता चलता है कि उसका बेटा गलती से बाड़े के उस ओर चला गया है, जहां ढेरों लोग जलाने के लिए बंद किए गए हैं। वो अपने सारे आदमी उस बाड़े में दौड़ाता है। अफसोस जिस वक्त उस अधिकारी के आदमी वहां पहुंचते हैं, उसका बेटा गैस चैंबर में डाल दिया गया होता है। उस चैंबर में जब बच्चे को जलाया जा रहा होता है, तब उसकी चिमनी से पहली बार उस सैनिक अधिकारी की नाक तक आदमी के जलने की दुर्गंध पहुंचती है। दुर्गंध अपने ही रचे तंत्र की अनकही कहानी जिसमे अपनों के जलने के बाद ही उस दुर्गंध को महसूस कर पाता है। हम सोचते हैं कि राह में केवल फूल ही फूल होंगे पर कब कौन सा कांटा उन फूलों की खुशबू को खत्म कर दे ये समय के चक्र में है। तो बस अपने कर्मो के लेखे जोखे को सामने रखें और सही का सदैव साथ दें।
कल फिर होगी मुलाकात……..

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