बीकानेर।उस्ता कला में मुख्य रूप से डिजाइन वर्क है। डिजाइन मन को खुश करती है। जब इस कला में गोल्डन रंगों का उपयोग हो तो यह और मुखर हो जाती है। इस कहना था उस्ता कला कार्यशाला की अध्यक्ष्यता करते हुए सुप्रसिद्ध चित्रकार हरिगोपाल हर्ष ‘सन्नू’ का। उन्होंने कहा कि कला हमें जीवित रखती है, हमारे एकाकी भाव को समाप्त कर हमें हर्षित करती है।
कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में पधारे महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय के चित्रकला के प्रोफेसर डॉ. राकेश किराडू ने कहा कि मृत ऊंट को भी किस प्रकार कला के माध्यम से जीवित किया जा सके यह ‘उस्ता कला’ हमें सिखाती एवं दर्षाती है। उस्तादो की कला के रूप में पहचाने जाने वाली उस्ता कला आज विश्वविख्यात है। कला क्षेत्र में जब भी बात होती है तो उस्ता कला का नाम बड़े ही आदर से लिया जाता है। यह हमारे एवं पूरे शहर के लिए गौरव की बात है।
उस्ता कला कार्यशाला के मुख्य सदंर्भ व्यक्ति सुप्रसिद्ध उस्ता कलाकार मो. हनीफ उस्ता ने अपनी बात रखते हुए कहा कि ‘उस्ता कला’ के सभी रूपक शून्य से ही प्रारम्भ होते है। हमें शून्य को ही आधार बनाकर डिजाइन की रचना करनी पड़ती है। उन्होंने कला के बारे में बोलते हुए कहा कि ‘कला का कोई धर्म नहीं’ होता उसको रचना पड़ता है। कला को जब हम आत्मसात करते है तो वह हमें एक पहचान देती है और वह पहचान हमारे राष्ट्र की पहचान बनती है।
आज के सत्र में मो. हनीफ उस्ता ने सर्किल के द्वारा अक्षर बनाना एवं उस्ता कला में उपयोग होनी वाले फूल पत्तियों के बारे में बताया।
उस्ता कला कार्यशाला के मुख्य अतिथि के रूप में आए नाबार्ड के रमेश ने कहा कि ‘उस्ता कला’ को जीआई टैग मिला है, यह हमारे तथा पूरे शहर के लिए गौरव की बात है। उन्होंने कहा कि ‘उस्ता कला’ के लिए वह हर संभव मदद करने के लिए तैयार है तथा इसके संवर्द्धन हेतु निरन्तर प्रयास में कदम से कदम मिलाकर चलने हेतु तत्पर है।
संस्था समन्वयक संजय श्रीमाली ने संस्था की गतिविधियों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उस्ता कला जोकि आज सम्पूर्ण विश्व में अपने नाम से जानी जाती है उसको सिखना एवं उस पर कार्य करना भविष्य के लिए एक सुनहरा अवसर है, जिसे प्रत्येक कलाकार को जानना चाहिए।
कार्यशाला में जावेद उस्ता, अयूब उस्ता, राम भादाणी, कमल जोशी, गणेश रंगा सहित कई युवा कलाकार एवं महाविद्यालयों के 40 से ज्यादा प्रतिभागियों ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया।
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