खराब दवाएं वापस बुलाने पर ड्रग्स अथॉरिटी को बताना होगा:सरकार ने कंपनियों से कहा- WHO के स्टैंडर्ड से टेस्ट करें
सरकार ने 28 दिसंबर 2023 को एक नोटिफिकेशन जारी करके कंपनियों को नए नियमों का पालन करने का निर्देश दिया है।
स्वास्थ्य मंत्रालय ने फार्मास्युटिकल कंपनियों के लिए नई गाइडलाइंस का नोटिफिकेशन जारी किया है, जिसके तहत कंपनियां अगर किसी ड्रग को वापस बुलाती हैं, तो उन्हें लाइसेंसिंग अथॉरिटी को इसकी जानकारी देनी होगी।
इसके अलावा अब दवा कंपनियों को अपने सभी प्रोडक्ट्स के डिफेक्ट, खराब गुणवत्ता या गलत प्रोडक्शन के बारे में भी बताना होगा। साथ ही दवाओं की टेस्टिंग WHO और अन्य ग्लोबल स्टैंडर्ड के मुताबिक करनी होगी।
सरकार ने 28 दिसंबर को एक नोटिफिकेशन जारी करके कंपनियों को यह निर्देश दिया है। हालांकि मीडिया में यह जानकारी 5 जनवरी को आई। ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट 1940 के शेड्यूल M के तहत फार्मास्युटिकल कंपनी के लिए गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस बताई गई हैं। नए नोटिफिकेशन में सरकार ने इस शेड्यूल M में नई गाइडलाइन्स जोड़ी हैं।
दरअसल, 2022 में भारत में बनी दवाओं से विदेश में कई लोगों की जान गई थी। इसके चलते केंद्र सरकार ने फार्मास्युटिकल इंडस्ट्री की स्क्रूटनी बढ़ाने के लिए कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। भारतीय फार्मास्युटिकल इंडस्ट्री 50 अरब डॉलर की है।
देश की 50 अरब डॉलर की फार्मास्युटिकल इंडस्ट्री की छवि सुधारने के लिए सरकार ने यह कदम उठाया है।
दवाओं की टेस्टिंग दुनियाभर के मौसम के मुताबिक की जानी जरूरी
नई गाइडलाइंस में इस बात पर स्ट्रेस दिया गया है कि छोटी कंपनियों को ग्लोबल स्टैंडर्ड पर लाने के लिए यहां बनने वाली दवाओं की टेस्टिंग भी दुनियाभर के मौसम के मुताबिक होनी चाहिए।
गाइडलाइन में यह भी कहा गया है कि कंपनियों को ऐसी क्वालिटी की दवाएं बनानी चाहिए जो दुनियाभर में मंजूर हो। साथ ही तैयार प्रोडक्ट को तभी बाजार में उतारा जाना चाहिए, जब सभी टेस्ट में संतोषजनक नतीजे निकले हों।
दवाओं की क्वालिटी के लिए फार्मा कंपनियां जिम्मेदारी होंगी
इस नोटिफिकेशन में सरकार ने लिखा है कि मैन्युफक्चरर को अपने फार्मास्युटिकल प्रोडक्ट की क्वालिटी के लिए जिम्मेदारी लेनी होगी, ताकि यह तय किया जा सके कि वे जरूरी इस्तेमाल के लिए फिट हैं, लाइसेंस के लिए जिन चीजों की जरूरत होती है, उनका पालन किया गया है।
यह भी मैन्युफैक्चरर की ही जिम्मेदारी होगी कि उनका प्रोडक्ट सेफ्टी या क्वालिटी में कमी के कारण पेशेंट की जिंदगी खतरे में तो नहीं डालता।
इसमें यह भी कहा गया है कि कंपनियों को किसी प्रोडक्ट पर फाइनल या तैयार का लेबल तभी लगाना चाहिए, जब उसके टेस्ट में संतोषजनक नतीजे निकले हों और रिपीट टेस्टिंग या किसी बैच के वेरिफिकेशन के लिए फाइनल प्रोडक्ट के सैंपल की पर्याप्त क्वांटिटी रखी गई हो।
सरकार ने नोटिफिकेशन में लिखा है कि दवा कंपनियों को अपने फाइनल प्रोडक्ट के सैंपल की पर्याप्त क्वांटिटी रिपीट टेस्टिंग के लिए रखना जरूरी है।
इंस्पेक्शन में खरी नहीं उतरी थीं 142 कंपनियां
स्वास्थ्य मंत्रालय ने अगस्त में कहा था कि दिसंबर 2022 से 162 ड्रग फैक्ट्रियों के इंस्पेक्शन में ये पाया गया था कि कच्चे माल की टेस्टिंग नहीं की जा रही थी। भारत की 8,500 छोटी ड्रग फैक्ट्रियों में से एक-चौथाई से भी कम वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) के तय किए गए इंटरनेशनल ड्रग मैन्युफैक्चरिंग स्टैंडर्ड पर खरी उतरी थीं।
नोटिफिकेशन में कहा गया कि बड़ी फार्मा कंपनियों को छह महीने के अंदर जबकि छोटी फार्मा कंपनियों को एक साल के अंदर इन चिंताओं पर जवाब देना होगा।
छोटी कंपनियों ने इस डेडलाइन को बढ़ाने की मांग की है। इन कंपनियों का कहना है कि इन स्टैंडर्ड पर खरा उतरने के लिए जो इन्वेस्टमेंट करने होंगे, उनके चलते आधी से ज्यादा कंपनियां बंद हो जाएंगी, क्योंकि वे पहले से ही घाटे में हैं।
क्लोरफेनिरामाइन मैलेट और फिनाइलफ्राइन वाले कफ सिरप खतरनाक
दिसंबर 2023 में भारत के ड्रग्स कंट्रोलर जनरल (DCGI) ने क्लोरफेनिरामाइन मैलेट और फिनाइलफ्राइन के फिक्स कॉम्बिनेशन वाले कफ सिरप को 4 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए खतरनाक बताया था।
क्लोरफेनिरामाइन मैलेट IP 2 mg और फिनाइलफ्राइन HCL 5 mg के कॉम्बिनेशन वाला सिरप आमतौर पर सर्दी-खांसी और फ्लू के इलाज के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
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