NATIONAL NEWS

डॉक्टर-मेडिकल वर्कर्स पर बिना जांच नहीं होगी FIR:राजस्थान सरकार ने नई गाइडलाइन जारी की, मौत होने पर भी मुकदमा दर्ज नहीं होगा

FacebookWhatsAppTelegramLinkedInXPrintCopy LinkGoogle TranslateGmailThreadsShare

डॉक्टर-मेडिकल वर्कर्स पर बिना जांच नहीं होगी FIR:राजस्थान सरकार ने नई गाइडलाइन जारी की, मौत होने पर भी मुकदमा दर्ज नहीं होगा
राजस्थान सरकार के गृह विभाग ने डॉक्टर्स और मेडिकल वर्कर्स के लिए SOP (स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर) जारी किया है। नई गाइडलाइन में कहा गया कि इलाज के दौरान मौत होने पर अब बिना जांच किए सीधा डॉक्टर और मेडिकल वर्कर्स पर मुकदमा दर्ज नहीं होगा। इलाज में लापरवाही से मौत पर मेडिकल बोर्ड बनेगा। इलाज में भारी लापरवाही पाए जाने पर ही मामला दर्ज होगा।SOP में साफ कहा गया है कि किसी भी डॉक्टर या मेडिकल वर्कर को बिना डिस्ट्रिक्ट पुलिस SP या कमिश्नर के ऑर्डर के गिरफ्तार नहीं किया जाएगा। ऐसे आदेश तब ही दिए जाएंगे। जब SHO की लिखित राय में ऐसे डॉक्टर या मेडिकल वर्कर इन्वेस्टिगेशन में मदद नहीं कर रहा हो। सबूत इकट्ठा करने के लिए उसकी जरूरत हो या केस में बचने के लिए वह अपने आप को छिपा रहा हो। मेडिकल नेगलिजेंस की राय बोर्ड से मिलने पर ही SHO उनके खिलाफ FIR दर्ज करेगा। इन्वेस्टिगेशन के बाद कोर्ट में आरोप-पत्र पेश करने से पहले जो केस धारा 197 CPC की कैटेगरी में आते हैं। उन सभी मामलों में सक्षम लेवल पर अभियोजन स्वीकृति ली जाएगी।इसके साथ ही राजस्थान में मेडिकल वर्कर्स से हिंसा और सम्पत्ति को नुकसान के खिलाफ 2008 के एक्ट की कड़ाई से पालना करने, डॉक्टर या मेडिकल वर्कर की सूचना पर जल्द कार्यवाही करने, जरूरत होने पर उनकी सम्पत्ति की सुरक्षा के लिए लीगल कार्रवाई जल्द करने को भी कहा गया है। डॉक्टर मरीज के इलाज का एक्सप्लेनेटरी नोट तैयार करेंगे। सरकार ने डॉक्टर्स और मेडिकल वर्कर्स से उम्मीद जताई है कि वो कोई अप्रिय घटना होने पर अपनी किसी मांग को मनवाने के लिए कार्य बहिष्कार नहीं करेंगे। सरकार के सामने लीगली अपनी बात रखेंगे।

सूचना को पहले केवल रोजनामचे में लिखा जाएगा
SOP में कहा गया है कि कई बार इंटरनेट के जरिए आधी-अधूरी सूचना लेकर मरीज के परिजन डॉक्टर या मेडिकल वर्कर्स के खिलाफ क्रिमिनल केस दर्ज करवा देते हैं। ऐसे हालात में उन्हें मानसिक तौर पर प्रताड़ित होना पड़ता है। इससे उनकी वर्किंग कैपेसिटी पर नेगेटिव असर पड़ता है। हाईकोर्ट ने कई फैसलों में लीगल प्रिंसिपल दिए हैं। जिन्हें देखते हुए यह SOP तय की जाती है। मेडिकल नेगलिजेंस के केस की सूचना या परिवाद पुलिस थाने के प्रभारी को मिलने पर वह उसे रोजनामचे में लिखेगा। अगर सूचना या परिवाद मेडिकल नेगलिजेंस के कारण हुई मौत से संबंधित है तो ‘कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर 1973’ के तहत मामला दर्ज किया जाएगा। ऐसे हालात में पोस्टमॉर्टम की वीडियोग्राफी भी जरूर करवाई जाएगी।

मेडिकल बोर्ड 15 दिन में देगा अपनी राय
SOP को यह आदेश है कि वह मेडिकल नेगलिजेंस शिकायत पर प्राथमिक जांच करे। जांच के दौरान केस के संबंध में इंडिपेंडेंट और निष्पक्ष राय डॉक्टर या मेडिकल बोर्ड से लेगा। मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल या सीएमएचओ की यह ड्यूटी होगी कि वह अधिकतम 3 दिन में डॉक्टर को नॉमिनेट करेंगे या मेडिकल बोर्ड गठित करेंगे। मेडिकल नेगलिजेंस से मौत या बड़ा नुकसान होने पर मेडिकल बोर्ड अनिवार्य रूप से बनाया जाएगा। जिसमें स्पेशलिस्ट को जरूर शामिल किया जाएगा। मेडिकल बोर्ड बिना भेदभाव के 15 दिन में अपनी राय या रिपोर्ट देंगे। इस टाइम पीरियड में राय नहीं दे पाने की स्थिति में 15 दिन की और बढ़ोतरी की जा सकेगी। इसकी सूचना संबंधित पुलिस एसपी को भेजकर राज्य सरकार को भी यह फैक्ट ध्यान में लाना होगा।राजस्थान हाईकोर्ट के एडवोकेट एके जैन के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के पहले से आदेश हैं कि बिना मेडिकल बोर्ड की जांच के किसी भी डॉक्टर की नेग्लिजेंस का मुकदमा दर्ज नहीं होना चाहिए। जबकि राजस्थान में दौसा की लालसोट पुलिस ने बिना मेडिकल रिपोर्ट के ही धारा 302 में डॉक्टर के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया था। इसी तरह कई केसों में डॉक्टर्स के खिलाफ मुकदमे राजस्थान में दर्ज किए जाते रहे हैं। जिसका डॉक्टर्स और मेडिकल प्रोफेशनल्स विरोध करते रहे हैं।

FacebookWhatsAppTelegramLinkedInXPrintCopy LinkGoogle TranslateGmailThreadsShare

About the author

THE INTERNAL NEWS

Add Comment

Click here to post a comment

error: Content is protected !!