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नीतीश जी, क्या वाकई आपको शर्म आई? ये बड़प्पन नहीं, बेमन से मांगी गई माफी है

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नीतीश जी, क्या वाकई आपको शर्म आई? ये बड़प्पन नहीं, बेमन से मांगी गई माफी है

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को 24 घंटे के भीतर सद्बुद्धि आ गई और अपने शर्मनाक बयान के लिए उन्होंने माफी मांग ली। लेकिन क्या वह वाकई अपने कहे पर शर्मिंदा हैं? क्या वाकई उन्हें दुख है या ये मजबूरी में मांगी गई माफी है।

हाइलाइट्स

  • जनसंख्या नियंत्रण को लेकर अपने आपत्तिजनक बयान पर नीतीश कुमार ने माफी मांगी
  • नीतीश ने विधानसभा में कहा- मुझे शर्म आ रही है, दुख हो रहा है, मैं अपनी निंदा करता हूं
  • माफी मांगने के दौरान नीतीश कुमार बार-बार महिलाओं के हित के किए कामों की दुहाई देते रहे

नई दिल्ली : बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आखिरकार अपने शर्मनाक बयान के लिए माफी मांग ली। एक दिन पहले विधानसभा में दिए अपने बयान के लिए सदन में ही सार्वजनिक तौर पर माफी मांग ली। अच्छा है कि 24 घंटे में ही मुख्यमंत्री जी को अहसास हो गया कि उनका बयान शर्मनाक है। उन्हें ‘शर्म’ आने लगी और खुद की निंदा करते हुए वह माफी भी मांगने लगे। लेकिन क्या सचमुच नीतीश को अपने बयान पर शर्म महसूस हुई? क्या सचमुच वह खुद की निंदा में ईमानदार रहे? विधानसभा स्पीकर तो आसन से बैठे-बैठे ही माफी मांगने और खुद की निंदा करने को नीतीश कुमार का बड़प्पन बता दिया लेकिन ‘सुशासन बाबू’ के बोल ही गवाही दे रहे कि ये बेमन से मांगी माफी है। मजबूरी में मांगी माफी है। न उनकी खुद की निंदा में ईमानदारी है और न खुद के शर्म महसूस करने में।

बिहार में जनसंख्या नियंत्रण और शिक्षा के बीच सीधे संबंध को बताने की कोशिश में नीतीश ने मंगलवार को सदन में स्त्री-पुरुष संबंधों का जिस भाषा में वर्णन किया, जिस भाव-भंगिमा का सहारा लिया, वह सिर्फ अश्लील नहीं था। भौंडा था। विद्रूप था। बीभत्स भी था। भरे सदन में एक मुख्यमंत्री बेहद गंभीर विषय पर इतने छिछले शब्दों और भौंडेपन का मुजाहिरा कर रहे थे, वह हैरान करने वाला था। खुद उनकी ही पार्टी की महिला जनप्रतिनिधियों का सिर शर्म से झुक रहा था। बयान पर बवाल हुआ। छिछालेदर हुई तो नीतीश को सदन में माफी मांगनी पड़ी। अफसोस ये है कि माफी तो मांगी लेकिन आधी-अधूरी, बेमन से।


सदन में विपक्ष के हंगामे के बीच नीतीश ने कहा, ‘हमसे आज प्रेस वालों ने पूछा है तो हमने सफाई दे दी है। आप जानते हैं कि कल आप सभी लोग यहां मौजूद थे और सभी एकजुट थे। सब लोगों की सहमति से सारा निर्णय लिया गया। आप जानते हैं कि कितना ज्यादा हम लोग पढ़ाई पर जोर दे रहे हैं, महिलाओं की पढ़ाई पर जोर दे रहे हैं। इतना ज्यादा महिलाओं के हित में काम किया गया। और हमने अगर कोई बात कहा है, अगर मेरी किसी बात से तकलीफ हुई है तो मैं अपनी बात को वापस लेता हूं, और मैं अपनी निंदा करता हूं। मैं दुख प्रकट करता हूं कि मेरी किसी एक शब्द के चलते अगर किसी को तकलीफ हुई है तो हम…आपने कहा कि मुख्यमंत्री शर्म करें तो मैं न सिर्फ बल्कि इसके लिए दुख प्रकट कर रहा हूं। मैं अपनी सारी चीजों को वापस लेता हूं।’

यहां तक तो मुख्यमंत्री के एक-एक शब्द में ईमानदारी झलक रही थी। लग रहा था कि वाकई उनको अपने बयान पर अफसोस है। लेकिन इसके बाद उन्होंने जो कुछ कहा, वह ये बताने के लिए काफी है कि ये माफी आधी-अधूरी है, बेमन की है। नीतीश ने विपक्षी सदस्यों की ओर मुखातिब होकर कहा, ‘आपलोग कल सहमत थे लेकिन आप लोगों को आदेश आया होगा कि मेरी निंदा करो। तो मेरी किसी बात के लिए है तो मैं उस शब्द को वापस लेता हूं। जो भी मेरी निंदा करे लेकिन मैं आपका अभिनंदन करता हूं।’


नीतीश जी, अगर वाकई आपको लगता है कि आपने जो कुछ कहा, वह नहीं कहना चाहिए था। आपको उसका अफसोस है। दुख है। शर्म भी आ रही है और इसके लिए आप खुद की निंदा भी कर रहे हैं यानी मन से प्रायश्चित कर रहे हैं तो फिर इससे आपको क्या लेना कि आपत्ति करने वाले खुद से ऐसा कर रहे है या किसी के इशारे पर कर रहे हैं। आपका ये कहना कि आपकी निंदा करने के लिए आदेश आया होगा, आपकी माफी को बेमन से दिया बयान और मजबूरी बता रहा है। आपके प्रायश्चित को खोखला और ईमानदारी से कोसों दूर दिखा रहा है। सफाई के दौरान आपका बार-बार महिलाओं के हितों के लिए काम करने की दुहाई देना आपकी मजबूरी बता रहा। महिलाओं में रोष को खत्म करने की मजबूरी।

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