जयपुर। राजस्थान शिक्षक प्रशिक्षण विद्यापीठ प्रांगण में आज दिनांक 27.3.2024 को राजस्थान संस्कृत अकादमी, वैदिक हैरीटेज पाण्डुलिपि शोध संस्थान, जयपुर एंव राजस्थान शिक्षक प्रशिक्षण विद्यापीठ, जयपुर के संयुक्त तत्वावधान में ” पाण्डुलिपियों के संरक्षण में श्री अगरचन्द नाहटा का योगदान” विषय पर राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का आयोजन किया गया । जिसमें मुख्य अतिथि श्री मधुसूदन शर्मा (IAS निवृत जिलाधीश, राजस्थान सरकार), विशिष्ट अतिथि डॉ. लता श्रीमाली, (निदेशक, राजस्थान संस्कृत अकादमी ) अध्यक्ष श्री बृजकिशोर शर्मा, मुख्य वक्ता वैद्य गोपीनाथ पारीक (अध्यक्ष आयुर्विज्ञान परिषद, जयपुर), विश्वगुरू महामण्डलेश्वर महेश्वरानन्दपुरी जी , महामण्डलेश्वर ज्ञानेश्वरपुरी जी, महन्त श्री हरिशंकर दास जी वेदान्ती की उपस्थिति में कार्यक्रम का शुभारंभ माँ सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन द्वारा किया गया। इस अवसर पर विद्यापीठ छात्राओ द्वारा सरस्वती वंदना प्रस्तुत की गयी। कार्यक्रम में अतिथियों का माल्यार्पण कर उन्हें श्रीफल, शाल एवं स्मृति चिन्ह भेंट कर स्वागत किया गया। संस्थान सचिव डॉ. राजकुमार जोशी ने अपने स्वागत संबोधन में बताया कि पाण्डुलिपि संरक्षण में अमरचन्द नाहटा का योगदान अविस्मरणीय है। डॉ. सुरेन्द्र कुमार शर्मा समन्वयक पांडुलिपि शोध संस्थान ,द्वारा बताया गया कि अगरचंद नाहटा जी ने पाण्डुलिपि के संरक्षण में अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित करते हुये शास्त्रों के सरंक्षण की महत्ती सेवा की है। वैद्य गोपीनाथ पारीक द्वारा नाहटा जी के जीवन की एक विस्तृत रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए उनके पांडुलिपियों के संदर्भ में योगदान को जीवंत किया गया।
महन्त श्री हरिशंकर वेदांती जी ने अपने अशीर्वचन में बताया कि अगरचन्द नाहटाजी को यह शोध संगोष्ठी एक सच्ची श्रद्धांजलि के रूप में अर्पित की जा रही है। कार्यक्रम की विशिष्ट अतिथि संस्कृत अकादमी निदेशक डॉ. लता श्रीमाली ने बताया कि पाण्डुलिपि में ज्ञान का अथाह भण्डार है इसे संरक्षित करने में अगरचन्द नाहटा का योगदान वंदनीय है। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि आई.ए.एस मधुसूदन शर्मा ने अपने उद्बोधन में कहा कि पांडुलिपियों के अथाह ज्ञान के द्वारा ही हमारा देश पुनः विश्वगुरु के रूप में प्रतिष्ठित हो सकता है। इसी श्रृंखला में अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में विद्यापीठ समिति अध्यक्ष एवं पूर्व शिक्षामंत्री बृजकिशोर शर्मा ने कहा कि पांडुलिपि एक व्यापक विषय हैं और यह संस्कृत भाषा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। इस अवसर पर विद्यापीठ की त्रैमासिक पत्रिका ” शिक्षा क़ौस्तुभ ” का विमोचन प्राचार्य डॉ मनीषा शर्मा द्वारा अतिथिगणों के करकमलों द्वारा करवाया गया। इस अवसर पर समस्त अतिथियों द्वारा प्रवक्तागणों एवं प्रशिक्षणार्थियों को संगोष्ठी के प्रमाण पत्र वितरित किए गये। संगोष्ठी के अंतर्गत संत महामंडलेश्वर श्री ज्ञानेश्वरपुरी जी महाराज ने अपने उद्बोधन में कहा कि वर्तमान युग में संस्कृत की स्थिति विचारणीय हैं संस्कृत और पांडुलिपि एक दूसरे से सह संबंधित है और हमें अवसर मिलने पर इसे सीखने के लिए तैयार रहना चाहिए। कार्यक्रम की संपन्नता की कड़ी में विद्यापीठ प्राचार्य डॉ. मनीषा शर्मा ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि पं. मोतीलाल जोशी जी द्वारा संस्कृत उत्थान का स्वप्न पूर्ण करने के लिए विद्यापीठ निरन्तर अग्रसर है ,इसी क्रम में श्री अगरचंद नाहटा जी द्वारा पांडुलिपियों के संरक्षण में जो कार्य किए गए वह हमारी देश की सांस्कृतिक धरोहरों को सहजने के लिए एक अविस्मरणीय कदम हैं। संगोष्ठी की सफलता तभी होगी जब सभी मिलकर संस्कृत उत्थान के साथ पाण्डुलिपि संरक्षण को अपने जीवन का लक्ष्य बनाये।
संगोष्ठी का समापन राष्ट्रीय गान द्वारा किया गया।
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