पाकिस्तान की राजनीति में जरदारी परिवार से पिछड़ा शरीफ खानदान:संसद में इनके 4 सदस्य; सिर्फ 3 सीटों पर सिमटे नवाज और उनके रिश्तेदार
इस्लामाबाद
तस्वीर पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी, उनकी छोटी बेटी आसिफा (बाएं), बेटे बिलावल भुट्टो, बड़ी बेटी बख्तावर (दाएं) की है।
पाकिस्तान में राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के परिवार ने नया रिकॉर्ड बनाया है। यह रिकॉर्ड पाकिस्तान की संसद में एक ही परिवार के सबसे ज्यादा सांसद होने का है।
दरअसल, आसिफ अली और दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की सबसे छोटी बेटी आसिफा निर्विरोध पाकिस्तान नेशनल असेंबली की सदस्य चुनी गई हैं। इसी के साथ जरदारी परिवार ने शरीफ परिवार को पछाड़ दिया है। पाकिस्तानी मीडिया जियो न्यूज के मुताबिक अब पाकिस्तान की संसद में जरदारी परिवार के 4 सांसद जबकि शरीफ परिवार के सिर्फ 3 सदस्य सांसद हैं।
तस्वीर पाकिस्तानी PM शाहबाज शरीफ (दाएं), उनके बड़े भाई नवाज शरीफ (बीच में) और नवाज की बेटी मरियम (बाएं) की है।
शरीफ और जरदारी दोनों पाकिस्तान के प्रमुख राजनीतिक परिवार
पाकिस्तान की परिवारवादी राजनीति का सबसे बड़े और पुराने चेहरे जरदारी और शरीफ परिवार ही हैं। जरदारी परिवार से आसिफ अली फिलहाल पाकिस्तान के राष्ट्रपति हैं। उनकी बेटी आसिफा, बेटे बिलावल भुट्टो जरदारी और बहनोई मुनव्वर अली तालपुर नेशनल असेंबली के सदस्य हैं, जबकि दोनों बहनें फरयाल तालपुर और अजरा पेचुहो सिंध में प्रांतीय असेंबली की सदस्य हैं।
वहीं, शरीफ परिवार से शाहबाज शरीफ फिलहाल पाकिस्तान के प्रधानमंत्री हैं। बड़े भाई नवाज शरीफ और उनके बेटे हमजा शाहबाज शरीफ नेशनल असेंबली के सदस्य हैं। नवाज की बेटी मरियम नवाज शरीफ पंजाब की मुख्यमंत्री हैं।
उम्मीदवारों ने नाम वापस लिया इसलिए आसिफा जीतीं
आसिफा ने उपचुनाव के लिए सिंध प्रांत के शहीद बेनजीराबाद (नवाबशाह) इलाके से नेशनल असेंबली सीट NA-207 के लिए नामांकन भरा था। क्षेत्र के इलेक्शन ऑफिस के मुताबिक, आसिफा को निर्विरोध चुना गया, क्योंकि उनके खिलाफ नामांकन दाखिल करने वाले तीन उम्मीदवारों ने अपना नाम वापस ले लिया।
पाकिस्तानी मीडिया ‘द डॉन’ के मुताबिक, नाम वापस लेने वाले अब्दुल रसूल ब्रोही, अमानुल्लाह और मेराज अहमद थे। उम्मीदवारों के नाम वापस लेने की वजह से आसिफा को कोई चुनौती नहीं मिली और उन्हें विजेता घोषित किया गया। यह सीट उनके पिता आसिफ अली जरदारी के राष्ट्रपति चुने जाने के बाद खाली हुई थी।
राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने अपनी बेटी आसिफा भुट्टो को फर्स्ट लेडी का दर्जा देने का फैसला किया है। पाकिस्तान के इतिहास में यह पहली बार है जब देश के राष्ट्रपति ने फर्स्ट लेडी के लिए बेटी के नाम की घोषणा करने का फैसला किया है। आमतौर पर राष्ट्रपति की पत्नी फर्स्ट लेडी कहलाती है।
आसिफा ने यह तस्वीर कुछ दिन पहले पोस्ट की थी। इसमें वे मां बेनजीर भुट्टो की तस्वीर के सामने सेल्फी लेती दिखाई दे रही हैं। आसिफा में कई लोग उनकी मां और पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की झलक देखते हैं। उनकी स्पीच को भी काफी पसंद किया जाता है।
भुट्टो परिवार का भारत से 4 पीढ़ी पुराना नाता
भुट्टो परिवार का भारत से 4 पीढ़ी पुराना नाता है। बिलावल भुट्टो जरदारी के परनाना शाहनवाज भुट्टो का इतिहास जूनागढ़ की रियासत से जुड़ा हुआ है। वो ब्रिटिश भारत के सिंध क्षेत्र (लरकाना) के बहुत बड़े जमींदार थे। इनके पास तकरीबन ढाई लाख एकड़ जमीन थी। सिंध का इलाका उस समय बॉम्बे प्रेसिडेंसी का हिस्सा था। बॉम्बे प्रेसिडेंसी बनवाने में भी शाहनवाज भुट्टो का बड़ा योगदान था।
भुट्टो ने 1931 में सिंध को बंबई प्रांत से अलग करने की मांग करते हुए सिंधी मुसलमानों के नेता के रूप में गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया। 1935 में मांग मान ली गई। 1937 के प्रांतीय चुनावों में वो जिस पार्टी से चुनाव लड़े, उसका बाद में मुस्लिम लीग में विलय हो गया। इसी बीच वह एक मुस्लिम नेता के तौर पर स्थापित हो गए और साल 1947 आते-आते वह जूनागढ़ रियासत से जुड़ गए।
अपनी दूसरी पत्नी लाखीबाई और बच्चों के साथ शाहनवाज भुट्टो।
व्यापार करने पाकिस्तान आया था शरीफ खानदान
मूल रूप से व्यापार करने वाले शरीफ खानदान के लोग जब राजनीति में आए तो यहां भी उनकी धाक जमी। हालांकि, एक वक्त ऐसा भी था जब नवाज के पिता मियां मोहम्मद नवाज ने राजनीति में आने से इनकार कर दिया था। मियां मोहम्मद बंटवारे से पहले ही भारत से जाकर लाहौर में बस गए थे। उनकी रेलवे स्टेशन के पास ही लोहे की भट्टी थी। कुछ सालों में ही उन्होंने स्टील का कारोबार शुरू किया और स्टील कंपनियां खड़ी कर दीं। जल्द ही वे लाहौर के जाने-माने परिवारों में से एक हो गए।
इसी दौरान जनरल जिया उल हक ने मियां मोहम्मद को राजनीति में आने का न्योता भिजवाया। इसे उन्होंने ठुकरा दिया। 1972 में जुल्फिकार अली भुट्टो ने पाकिस्तान में बड़े उद्योगों का राष्ट्रीयकरण करना शुरू कर दिया। इसकी चपेट में शरीफ परिवार की स्टील कंपनियां भी आईं। मियां मोहम्मद किसी भी तरह अपनी कंपनियां वापस हासिल करना चाहते थे।
नतीजा ये हुआ कि उन्होंने जिया उल हक की बात मान ली और अपने बेटों नवाज शरीफ और शाहबाज को राजनीति में उतारने के लिए तैयार हो गए। उधर, जनरल जिया उल हक भुट्टो खानदान का दबदबा घटाने के लिए किसी दूसरे ताकतवर परिवार की खोज में थे।
मियां ने बेटों को राजनीति में उतारने की शर्त रखी कि पहले उन्हें सियासत की ट्रेनिंग दी जाएगी। 1976 में नवाज शरीफ ने पाकिस्तान मुस्लिम लीग जॉइन की। पहले जनरल जिया उल हक ने उन्हें राज्य की सियासत में उतारा। 1980 में नवाज को पंजाब का वित्त मंत्री नियुक्त कर दिया गया, फिर 1985 में पंजाब का मुख्यमंत्री बना दिया गया। जिया उल हक की मौत तक शरीफ परिवार मिलिट्री का हिमायती था।
नवाज शरीफ अपनी पत्नी कुलसूम और बेटी मरियम के साथ।
1990 में मुस्लिम लीग बंटी तो नवाज शरीफ को मिली अपनी पार्टी
1988 में पाकिस्तान के आम चुनाव में नवाज शरीफ की पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग सेना के समर्थन वाले गठबंधन इस्लामी जमहूरी इत्तेहाद (IJI) में शामिल थी। ये चुनाव बेनजीर भुट्टो की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP) ने जीता था। हालांकि, बहुमत नहीं होने और सेना की दखलंदाजी के चलते सरकार टिक नहीं पाई। IJI की तरफ से नवाज शरीफ विपक्ष के नेता बनकर उभरे।
1990 में पाकिस्तान मुस्लिम लीग पार्टी दो हिस्सों में बंट गई। इसमें से एक हिस्सा नवाज शरीफ को मिला। इसे PML-N नाम दिया गया। जो नवाज शरीफ की पार्टी है।
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