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पुणे में मिठाई का बिजनेस छोड़ पाली में उगाए कश्मीरी-बेर:बेंगलुरु से लाए 1000 पौधों से की शुरुआत, जानें- कितनी है सालाना कमाई

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पुणे में मिठाई का बिजनेस छोड़ पाली में उगाए कश्मीरी-बेर:बेंगलुरु से लाए 1000 पौधों से की शुरुआत, जानें- कितनी है सालाना कमाई

पाली जिले के बूसी गांव में किसान विजय कुमार चौधरी के खेत में बालसुंदरी किस्म का बेर।

खेती से इतना प्यार कि पुणे में 20 साल से चल रहा मिठाई का अच्छा-खासा बिजनेस बेटे को संभला कर व्यवसायी पाली लौटा और बेर की खेती की। एक बार में 5 लाख रुपए का इन्वेस्ट कर अब यह किसान सालाना 4 लाख रुपए के बेर बेच रहा है। बेर की किस्म भी कश्मीरी और बाल सुंदरी है।

कई साल अपने गांव से दूर रहे मिठाई कारोबारी अपने गांव लौटना चाहते थे, लेकिन गांव में करने के लिए कुछ खास नहीं था, इसलिए खेती-किसानी की राह पकड़ी। अब बेर की खेती से पूरे परिवार जुड़ा है।

म्हारे देस की खेती में इस बार बात पाली के किसान विजय कुमार चौधरी की…
पाली शहर से 25 किमी दूर है बूसी गांव। इस गांव के किसान विजय कुमार चौधरी (49) के पिता मगाराम का 1993 में निधन हो गया था। परिवार की जिम्मेदारी सिर पर आई तो विजय कुमार नौकरी की तलाश में मुंबई चले गए। वहां एक स्टेशनरी शॉप पर काम किया। फिर नवी मुंबई के नेरूल में 5 साल तक मिठाई की दुकान पर काम किया।

इसके बाद विजय कुमार पुणे चले गए। वहां 1998 में लले गांव (दाबाड़े) में उन्होंने ब्रजवासी के नाम से मिठाई की दुकान शुरू की। धीरे-धीरे दुकान जम गई और उन्हें काफी मुनाफा होने लगा। करीब 20 साल में उन्होंने वहां अपना मिठाई का अच्छा खासा बिजनेस खड़ा कर लिया।

कुछ साल पहले उनके मन में गांव में बसने की इच्छा हुई। वे पाली में अपने गांव बूसी पहुंचे और जमीन खरीदी। वे कुछ हटकर करना चाहते थे।

किसान विजय कुमार ने बताया- अगर समझ बूझकर खेती की जाए तो यह घाटे का सौदा नहीं है। कई साल परदेस में बिताने के बाद वापस गांव में आकर बसने की इच्छा थी। पुणे में बेटे को मिठाई की शॉप सौंपी और 2020 में गांव आकर बेर की खेती शुरू कर दी। यहां उगाए बाल सुंदरी और कश्मीरी रेड एप्पल बेर तुरंत बिक जाते हैं।

शुरू में महज 5 लाख रुपए का निवेश किया था। अब बेर से सालाना 4 लाख रुपए की कमाई हो जाती है।

पाली के बूसी गांव के निकट खेत में उगे बेर।

पाली के बूसी गांव के निकट खेत में उगे बेर।

एक साल तक किया रिसर्च
किसान विजय कुमार चौधरी ने बताया- बेटे को मिठाई की शॉप सौंपने के बाद 2018-19 में एक साल तक मैंने कई जगह अलग-अलग खेती देखी। खूब घूमा। मैंने अनार,अंगूर, सेब और बेर के बगीचे देखे। आखिरकार बाल सुंदरी और कश्मीर रेड एप्पल नस्ल के बेर अपने खेत में उगाने की ठानी।

ऐसा इसलिए किया क्योंकि एक बार बेर के झाड़ लगाने के बाद कई साल उत्पादन मिलता है। फिर पाली की मिट्‌टी, जलवायु और पानी बेर की बाल सुदंरी व कश्मीर रेड एप्पल नस्ल के लिए उपयुक्त था।

बेंगलुरु से लाए 1000 पौधे
रिसर्च के बाद विजय कुमार बेंगलुरु गए और वहां कोलकाता नर्सरी से वर्ष 2020 में 500-500 पौधे बाल सुदंरी और कश्मीर रेड एप्पल नस्ल के लेकर आए। प्रति पौधा 70 रुपए कीमत चुकाई। ट्रेन से जोधपुर, फिर वहां से पिकअप में गांव बूसी तक लाए। पौधे लाने के लिए किराए के रूप में इन्हें 30 हजार रुपए खर्च करने पड़े। फिर अप्रैल-मई में खेत में 7 बीघा भूमि पर बेर की इन नस्लों के 1000 पौधे मजदूरों से लगवाए। इनमें सिंचाई के लिए ड्रिप सिस्टम लगवाया। पक्षियों से बेर को बचाने के लिए पूरे बगीचे को पोल और जाली लगाकर कवर करवाया।

पाली के बूसी गांव के निकट खेत में उगे बेर।

पाली के बूसी गांव के निकट खेत में उगे बेर।

बेर तोड़ने की जिम्मेदारी ब्रोकर को
विजय कुमार ने बताया- मैं साल में एक बार बेर की पैदावार लेता हूं। पिछले तीन साल से लगातार बेर की उपज हो रही है। 15 जनवरी से 15 फरवरी के बीच बेर पक कर तैयार हो जाते हैं। इस बार 3 लाख रुपए में एक ब्रोकर को खेत में बेर तोड़ने का ठेका दिया है। बेर तोड़ने और उसे लेकर जाने की सारी जिम्मेदारी ब्रोकर की रहेगी।

ब्रोकर स्थानीय व्यापारी है। 25 प्रतिशत राशि एडवांस दी है। 20 दिन बाद 50 प्रतिशत राशि मिलेगी। बेर तोड़ने के बाद बाकी की 25 प्रतिशत राशि मिलेगी।

बेर के झाड़ और फिर सब्जियों से कमाई
किसान ने बताया- ब्रोकर को उपज बेचने के बाद सभी झाड़ को 4-5 इंच रखवाने के बाद कटवा दूंगा। उन्हें पशुपालकों को बेच दूंगा। फिर यहां हरी सब्जियां उगाऊंगा। इससे भी हर साल 50 से 70 हजार रुपए की कमाई हो जाती है। बरसात के सीजन में बेर के झाड़ फिर तैयार हो जाते हैं। अगले सीजन में (जनवरी-फरवरी-मार्च) में बेर की पैदावार हो जाती है।

पाली के बूसी गांव के निकट खेत में उगे बेर के झाड़।

पाली के बूसी गांव के निकट खेत में उगे बेर के झाड़।

खाद भी खुद बनाते हैं
विजय कुमार ने बताया- बेर के पौधों को पनपाने के लिए जैविक खाद का उपयोग करता हूं। खेत में ही जैविक खाद बनाता हूं। यूरिया आदि का उपयोग नहीं करता। 10 लीटर गौ मूत्र, 10 किलो गोबर, 2 किलो सड़ा हुआ गुड़, 1 किलो खेजड़ी की मिट्‌टी, डेढ़ किलो बेसन आदि से जैविक खाद तैयार करता हूं। इसे तैयार करने में 15 दिन लग जाते हैं। फिर उसमें 200 लीटर पानी डालता हूं। यह तैयार खाद झाड़ की जड़ में डालता हूं।

बेर के झाड़ की कटिंग के बाद मई के महीने में खाद दें। एक हजार पौधों के लिए 30 किलो तक खाद एक बार में ही देते हैं। फ्लोरिंग आने पर कीटनाशक का छिड़काव करते हैं। 15-15 दिन के अंतराल में 4 बार छिड़काव करना होता है। कीटनाशक भी ऑर्गेनिक ही इस्तेमाल करते हैं।

बेर में कीट लगने की समस्या रहती है। कीटनाशक का स्प्रे करना होता है। पक्षियों से बचाना भी एक समस्या रहती है। पक्षियों से बचाने के लिए नेट लगा रखा है।

गले को खराब नहीं करते ये बेर
एक्सपर्ट की मानें तो कश्मीरी रेड एप्पल और बाल सुंदरी बेर खाने में मीठे होते हैं। एक बार में कितने भी बेर खा लो, गला खराब नहीं होता। इसके साथ ही एप्पल बेर की तासीर ठंडी होती है। यह पित्त को नष्ट करता है। बेर में फास्फोरस की कुछ मात्रा होती है। इसलिए इसे खाने से बॉडी और दिमाग को फायदा होता है।

50 हजार किलो सालाना उपज
किसान विजय कुमार ने बताया- एक बेर के झाड़ से करीब 50 से 55 किलो बेर मिलते हैं। इस हिसाब से 1 हजार पौधों पर करीब 50 हजार किलो बेर की उपज तैयार होती है। पहले साल महज 15 से 20 हजार किलो ही उपज मिली थी, जो अब बढ़कर 50 हजार तक पहुंच गई है।

बेर पौष्टिक तत्वों से भरपूर
पाली कृषि उद्यान विभाग के सहायक उप निदेशक मनोज अग्रवाल ने बताया- बेर पौष्टिक तत्वों से भरपूर होते हैं। इनमें विटामिन, खनिज, लवण, शर्करा आदि प्रचुर मात्रा में होते हैं। अपने पौष्टिक गुणों के कारण यह हिमालय के सेब से कम नहीं होते।

छोटा बेटा संभालता है मिठाई की दुकान
विजय कुमार के पिता परंपरागत किसान थे। दो साल पहले उनका निधन हो गया। पत्नी पेपी चौधरी हाउस वाइफ हैं। परिवार में बड़ा बेटा ललित चौधरी (29) मोबाइल का बिजनेस करता है। वह 12वीं तक पढ़ा है। दूसरा बेटा राजू ( 22) पुणे में मिठाई की शॉप संभालता है

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