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प्रदेश के​​​​​​​ मुखिया ने किसे सुनाया कबूतर-बिल्ली का किस्सा?:चीफ की बैठक में मोबाइल बैन, गुजरात कैडर के IAS को बड़ी जिम्मेदारी की तैयारी

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प्रदेश के​​​​​​​ मुखिया ने किसे सुनाया कबूतर-बिल्ली का किस्सा?:चीफ की बैठक में मोबाइल बैन, गुजरात कैडर के IAS को बड़ी जिम्मेदारी की तैयारी

  • हर शनिवार पढ़िए और सुनिए- ब्यूरोक्रेसी, राजनीति से जुड़े अनसुने किस्से

नए साल के मौके पर प्रदेश के मुखिया से मिलने के लिए कई नेता और अफसर पहुंचे। मिडल लेवल के पुलिस अफसर भी संगठन पदाधिकारियों के साथ नए साल की बधाई देने पहुंचे। हालचाल जानने की औपचारिकता के बाद हर सरकार की दुखती रग रही कानून व्यवस्था का जिक्र आ गया।

प्रदेश के मुखिया ने पुलिस अफसरों को बिल्ली और कबूतर के किस्से के जरिए सबसे बड़ी समस्या पर ग्राउंड लेवल की कमी पर उलाहना दे दिया। कबूतर ​अगर उसका शिकार करने को तत्पर बिल्ली के सामने आंख मूंदकर बैठ जाएगा तो उस पर मंडरा रहा खतरा टल थोड़े ही जाएगा।

प्रदेश के मुखिया के इस किस्से को पुलिस अफसरों ने कितना डिकोड किया यह तो कह नहीं सकते, लेकिन कानून व्यवस्था दुखती रग है। सरकार की यही दुखती रग ही विपक्ष की संजीवनी होती है। दुखती रग और संजीवनी की पार्टी बदली है, समस्या जस की तस है। बिल्ली और कबूतर का किस्सा तो यही बयां कर रहा है।

गुजरात कैडर के आईएएस को अहम जिम्मेदारी की तैयारी
प्रदेश में ब्यूरोक्रेसी के नए मुखिया के आने के बाद दो और पोस्ट पर सबकी निगाह टिकी है। प्रदेश के मुखिया के प्रमुख सचिव और खजाने को संभालने वाले अफसर की पोस्ट पर तैनाती बाकी है।

गुजरात में खजाने वाला विभाग संभाल रहे सीनियर आईएएस को डेपुटेशन पर राजस्थान लाने की तैयारी है। उन्हें प्रदेश के मुखिया के ऑफिस का सर्वेसर्वा बनाए जाने की चर्चा है।

सब कुछ ठीक रहा तो राजधानी के पड़ोसी जिले के रहने वाले आईएएस जल्द नई पोस्ट पर जॉइन कर सकते हैं। गुजरात कैडर वाले अफसर ब्यूरोक्रेसी के मुखिया के बैचमेट रहे हैं। कई आईएएस अफसरों ने तो नए आने वालों से संपर्क भी साध लिया है।

उपमुखिया ने क्यों बदल लिया दिग्गजों के पास रहा सचिवालय का चैंबर?
प्रदेश के नए-नए बने उपमुखिया को सचिवालय का अपना चैंबर रास नहीं आया और कुछ दिन बाद ही इसे बदलवा दिया। उपमुखिया को जो चैंबर मिला था, उसमें कई दिग्गज नेता बैठ चुके हैं।

पिछले राज में यह चैंबर राजधानी वाले तेजतर्रार मंत्री के पास था, लेकिन वे चुनाव हार गए। अब उपमुखिया ने दूसरा चैंबर लिया, वह भी कांग्रेस राज में राजधानी के ही एक मंत्रीजी के पास था, उन्हें टिकट ही नहीं मिला।

उपमुखिया ने इस चैंबर में अकेले ही चार्ज संभाला था, जबकि राजधानी वाली दूसरी उपमुखिया के बड़े नेताओं की कतार लग गई थी।

कहीं चैंबर चेंज करने के पीछे यह तो कारण नहीं? यह अलग बात है कि उपमुखिया ने जो चैंबर छोड़ा वह मारवाड़ के एक सौम्य छवि वाले कैबिनेट मंत्री को अलॉट हुआ है।

पावर सेंटर बने दो नेताओं के यहां अफसरों के चक्कर
सियासत और ब्यूरोक्रेसी में कई समानताएं और अंतर हो सकते हैं, लेकिन सबसे बड़ी समानता पावर की है। नेता और अफसरों की बड़ी जमात ‘पावर सीकर’ यानी सत्ता की ताकत चाहती है।

राज बदलने के साथ सत्ता वाली पार्टी में पावर सेंटर खोज लिया गया। पावर सेंटर बने दो विचार परिवार से जुड़े नेताओं के यहां अफसर चक्कर लगाने लगे हैं।

कोई नई पोस्टिंग के लिए तो कोई बरकरार रखने के लिए। पुराने राज के कई पीड़ित अफसर भी विचार परिवार से अपने कनेक्शन निकालकर पक्ष रख आए हैं। सत्ता वाली पार्टी के बारे में अफसरों को यह अच्छी तरह पता है कि विचार परिवार का दिल जीते बिना मुख्य धारा में आना नामुमकिन है। कई अफसर इसमें सफल भी हुए हैं, उन्हें अब पुनर्वास का इंतजार है।

ब्यूरोक्रेसी के मुखिया की बैठक में मोबाइल बैन
ब्यूराेक्रेसी के नए मुखिया ने आते ही कुछ कायदे सलीके से समझा दिए हैं। अफसरों को क्या करना है और क्या नहीं करना है, इसे लेकर पहली ही बैठक में साफ-साफ समझा दिया है।

बैठक हो या वीसी अब बड़े अफसरों को मोबाइल बाहर रखकर आने की हिदायत दी गई है। इसके पीछे तर्क यह दिया गया है कि इससे बैठक का फोकस डायवर्ट होता है, डेकोरम खराब होता है।

कोई रिकॉर्डिंग नहीं कर ले यह भी वजह हो सकती है, लेकिन डिसिप्लीन भी एक कारण है। डेकोरम को लेकर बहुत सख्त मिजाज रहे मौजूदा मुखिया जब विभाग में थे तो जींस पहनकर बैठक में आने वाले अफसर को घर लौटा दिया था।

पुराने राज में पावर में रहने वालों ने किसे दी सफाई?
सत्ता बदलने के बाद ​अब ब्यूरोक्रेसी में फेजवार आमूलचूल बदलाव होने ही हैं। राज बदलने पर अफसरों के पावर की अदला बदली होती ही है। पहले जो पावर में थे वे कुछ गर्दिश में जाते हैं और जो पहले गर्दिश में थे वे लाइमलाइट में आते हैं।

पुराने राज के दौरान पावर में रहे अफसरों ने पिछले दिनों कुछ अहम मुलाकातें करके अपना पक्ष रखा कि उन्होंने कुछ गलत नहीं किया जो किया नियमों के हिसाब से किया। पक्ष किस तरह रखा यह तो अफसरों के तबादलों की लिस्ट से ही पता लगेगा।

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