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बच्चियों को जल्दी जवान करने के लिए इंजेक्शन:स्टाइलिश कपड़े, इंग्लिश बोलने की ट्रेनिंग; कई दिन भूखा भी रखते हैं

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बच्चियों को जल्दी जवान करने के लिए इंजेक्शन:स्टाइलिश कपड़े, इंग्लिश बोलने की ट्रेनिंग; कई दिन भूखा भी रखते हैं

‘बेटियों का नर्क’ सीरीज के पहले पार्ट में हमने खुलासा किया कि किस तरह गोद लेने के नाम पर बेटियों को नीलाम कर दिया जाता है। अगर आपने पहला पार्ट नहीं पढ़ा है तो खबर के अंत में उसके लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं।

सीरीज के दूसरे पार्ट में हम आपको बता रहे हैं कि नीलामी में खरीदने के बाद बेटियों को किस तरह गुलाम बनाया जाता है। किस तरह हर रात डरावनी बन जाती है। ये सच सामने लाने के लिए स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम लड़कियों को बेचने वाले दलालों और जहाजपुर रेडलाइट एरिया तक पहुंची।

इन्वेस्टिगेशन में हैरान कर देने वाले खुलासे हुए…

  • 4 जिलों से लड़कियों को स्टाम्प पेपर पर खरीद कर देशभर में भेजा जाता है।
  • उम्र के हिसाब से लड़कियों की कीमत तय होती है।
  • खरीदने के बाद तब तक भूखा रखा जाता है, जब तक कि लड़की दलाल का हर हुकुम मानने के लिए राजी न हो जाए।
  • ग्राहकों को लुभाने के लिए स्पेशल ट्रेनिंग दी जाती है।
  • ऑक्सीटोसिन के इंजेक्शन दिए जाते हैं, जिनसे शरीर जल्दी विकसित हो जाता है।
  • पुलिस की रेड में इन लड़कियों को पकड़ लिया जाता है तो दलाल चालाकी से उनके परिजन बनकर वापस ले जाते हैं।
  • कई इलाकों में रेड लाइट एरिया बने हुए हैं, जहां शाम ढलते ही ये घिनौना कारोबार शुरू हो जाता है।

स्पेशल रिपोर्ट में पढ़िए कैसे काम करता है दलालों का घिनौना नेटवर्क…

हर गांव में दलाल एक्टिव
दलाल आकाश (बदला हुआ नाम ) ने बताया कि भीलवाड़ा, टोंक, बूंदी जिले के गांवों में अपने एजेंट बना रखे हैं। यह एजेंट गांव के लोग ही होते हैं, जो नजर रखते हैं कि किन लोगों पर कितना कर्जा है। अधिकतर एजेंट खुद ही उन लोगों को कर्जा देते हैं, जिनके घर में लड़कियां होती हैं।

जिस परिवार में भी 8 साल या उससे बड़ी उम्र की लड़कियां होती हैं, दलाल उस परिवार के सम्पर्क में रहते हैं। जरूरत पड़ने पर खुद कर्जा देते हैं या अपने किसी परिचित से दिला देते हैं। कर्जा नहीं चुकाने पर खरीदारों को सूचना कर देते हैं। फिर एजेंट कर्जदार को लोगों का कर्जा उतारने के लिए बेटियों को बेचने के लिए मनाते हैं। बेटी के घरवालों के राजी होने के बाद खरीदारों को बुलवा कर स्टाम्प पेपर पर सौदा करवाते हैं।

दलाल आकाश(बदला हुआ नाम) ने बताया कि किस तरह जरूरतमंद लोगों को अपने जाल में फंसाकर बेटियों को बेचने के लिए मजबूर कर दिया जाता है।

दलाल आकाश(बदला हुआ नाम) ने बताया कि किस तरह जरूरतमंद लोगों को अपने जाल में फंसाकर बेटियों को बेचने के लिए मजबूर कर दिया जाता है।

बेटियों को बेचकर भी कर्जा नहीं उतरता है
बेटियों और बहनों को बेचने के बाद भी कर्जा नहीं उतरता, क्योंकि ब्याज की रकम ही बहुत ज्यादा होती है। इसके अलावा लड़की को बेचने पर मिली रकम का एक तिहाई हिस्सा कमीशन के तौर पर दलाल ले जाते हैं। जैसे अगर किसी लड़की का सौदा 6 लाख रुपए में होता है तो दलाल 2 लाख रुपए कमीशन ले लेता है। बाकी रकम से सिर्फ ब्याज चुकता है, मूल रकम कभी नहीं चुकती। बस्तियों में रहने वाले लोगों के पास खेती के लिए जमीन भी नहीं होती है। यह मजदूरी या बेटियों को बेचकर ही गुजारा चलाते हैं।

अब पढ़िए लड़कियों को कैसे बनाते हैं गुलाम

रिटायर होने के बाद खुद देती है दूसरी लड़कियों को ट्रेनिंग
एक बार कोई लड़की गिरोह के शिकंजे में आ जाती है तो कभी आजाद नहीं हो पाती, क्योंकि समाज में इनके लिए कोई जगह नहीं होती। ऐसे में उम्र बढ़ने के बाद कोई महिला रिटायर हो जाती है वो बाद में खुद ही यह गिरोह चलाने लगती है। नई लड़कियों को संभालने की जिम्मेदारी इन्हीं की होती है।

नई लड़कियों को सुनसान घरों में रखते हैं, जहां यह महिला ही इन्हें तैयार करती हैं। लड़कियों को काम करने के लिए तरीके, ग्राहकों को लूटने और पुलिस में पकड़े जाने के बाद क्या बयान देना है, इसकी ट्रेनिंग दी जाती है। लड़कियां उसे मम्मी या अम्मा के नाम से ही पुकारती हैं। लड़कियों की देखरेख के लिए कुछ लड़कों को भी चौकीदारी के लिए रखा जाता है।

स्टाम्प पेपर : गिरोह में काम करने के लिए अधिकतर लोग कम पढ़े लिखे या अनपढ़ होते हैं, लेकिन काम शातिर तरीके से करते हैं। परिजनों को कानून और पुलिस का खौफ दिखाने के लिए लड़कियों को स्टाम्प पेपर पर खरीदते हैं।

स्टाम्प पेपर पर लड़की को गोद लेने और कितने साल तक अपने पास रखेंगे, उसका कॉट्रैक्ट परिजनों से साइन करवाते हैं। कॉट्रैक्ट में कुछ गवाहों के भी साइन करवाए जाते हैं। पूरी प्रक्रिया को कानूनी तरीके से करने का नाटक करते हैं ताकि लड़की के घरवाले कभी विरोध न जताएं और न ही पुलिस तक पहुंचें।

फर्जी आधार कार्ड : खरीदार लड़कियों को खरीदने के बाद उनके फर्जी आधार कार्ड बनवाते हैं। फर्जी आधार कार्ड में लड़कियों को नया नाम, नए मां-बाप और नया एड्रेस मिलता है। यह आधार कार्ड लड़कियों को हर समय पास रखने की सख्त हिदायत दी जाती है।

पुलिस कभी इनके अड्‌डों पर छापा मारकर लड़कियों को छुड़वा लेती है तो आधार कार्ड पर दिए नाम-पते पर सम्पर्क करती है। आधार कार्ड में दिए नकली नाम-पते से खरीदार के एजेंट ही वापस पुलिस में इनके फर्जी मां-बाप बनकर छुड़वाने आ जाते हैं। लड़कियां भी डर के कारण मां-बाप के रूप में इन्हीं की पहचान करती हैं।

ऐसे में पुलिस को पता ही नहीं लगता है कि जिस गिरोह से लड़कियों को छुड़वाया, ये लड़कियां फिर से उसी गिरोह के पास पहुंच जाती हैं।

भीलवाड़ा के मांडलगढ़, जहाजपुर जैसे कस्बों में हाईवे के पास ही गिरोह के अड्‌डे हैं। हाईवे के पास छोटी-छोटी झोपड़ियां और कच्चे मकान बने हुए हैं। शाम होते ही यहां गाड़ियों के पहिए थम जाते हैं और देह व्यापार शुरू हो जाता है।

गाड़ियों के पहिए थम गए मतलब ग्राहक आ गए
भीलवाड़ा के मांडलगढ़, जहाजपुर जैसे कस्बों में हाईवे के पास ही गिरोह के अड्‌डे हैं इन्वेस्टिगेशन के लिए जहाजपुर पहुंची। हमने एक शख्स से इनके अड्‌डे के बारे में पूछा तो उसने बताया- आगे चलते ही आपको गाड़ियों की लंबी लाइन लगी दिखेगी तो समझ जाना आप पहुंच गए।

थोड़ी आगे चले तो एक बारगी लगा कि ट्रैफिक जाम है, लेकिन थोड़ी दूर पर ही सड़क किनारे खड़ी लड़कियों को देखकर पूरा माजरा समझ में आ गया। यहां हाईवे के पास छोटी-छोटी झोपड़ियां और कच्चे मकान बने हुए हैं। शाम होते ही यहां गाड़ियों के पहिए थम जाते हैं और देह व्यापार शुरू हो जाता है।

हमने देखा वहां एक महिला खाट लगाकर सड़क किनारे बैठी थी। ग्राहक को लड़कियां इशारे करके बुलाती हैं, फिर वो महिला रेट तय करती है। उसके इशारे के बाद ग्राहकों को मकानों में लेकर जाते हैं।

जितनी लड़कियां, उतनी पुलिस को बंदी
टीम ने उस महिला से बात की। पूछा कि- यह सब काम खुले आम कैसे करते हो, डर नहीं लगता? महिला ने चौकीदारी कर रहे कुछ लड़कों को वहां बुला लिया। उन्होंने बताया कि इस सब के लिए वे पुलिस को हर महीने बंदी देते हैं। जितनी लड़कियां हैं, उस हिसाब से हर महीने बंदी देनी पड़ती है। यहां कोई ग्राहक हंगामा करता है तो वे पुलिस को ही बुलाकर उन्हें भगाते हैं। तुम लोग भी निकल जाओ, वरना पुलिस बुलानी पड़ेगी।

पुलिस भी नहीं करती कार्रवाई
कुछ देर बाद गश्त कर रही पुलिस की एक जीप भी वहां आ गई। पहले तो पुलिसकर्मियों ने रौब झाड़ते हुए वहां से चले जाने के लिए कहा लेकिन जब हमने अपनी पहचान बताई तो पुलिस ने बात करने से ही इनकार कर दिया। कहा- आप यहां से निकलो, यह खतरनाक इलाका है, हम भी गश्त करके लोगों को चेतावनी देते हैं। यह लोग बहुत खतरनाक हैं। यहां रहने वाली महिलाएं बदमाश हैं। इनका कोई भरोसा नहीं है, अभी पथराव शुरू कर देंगी।

इन गांवों में गिरोह सबसे ज्यादा एक्टिव
भीलवाड़ा, टोंक, सवाईमाधोपुर, बुंदी के गांवों में सबसे ज्यादा लड़कियों को स्टाम्प पेपर पर बेचा जाता है। भीलवाड़ा के पंडेर, टोला, पिपलू, सुई, सरतला, थामनिया, मांडलगढ, सुराणा का खेड़ा, कुचलवाडा, बडलियावास, उदलियावास, बासनी के गांवों में ये गिरोह सबसे ज्यादा एक्टिव है। इसके अलावा टोंक के जयसिंहपुरा, मंहतवास, फोजगढ, घुणी, खोलियाड़ा, राजमहल, ककोड़ गांव से भी ज्यादा लड़कियां बेची जाती हैं।

यहां लगती है बोली
भीलवाड़ा, टोंक, सवाईमाधोपुर, बूंदी के गांवों से लड़कियों को खरीदने के बाद दलाल सवाईमाधोपुर और बूंदी लेकर आते हैं। यहां लड़कियों को गुप्त मकानों में रखा जाता है। लड़कियों की उम्र, सुंदरता देख कर बोली लगती है और उन्हें स्टेट से बाहर भेज दिया जाता है। लड़कियों की बोली लाखों रुपए में लगती है।

सवाईमाधोपुर के चौथ का बरवाड़ा, उदलवाडा, सोंफ, मंडावरा, वनोभाबस्ती और बुंदी के डबलाना, रामनगर में दलालों ने गुप्त ठिकाने बना रखे हैं। यहां से लड़कियों को देशभर के खरीदारों को बेच देते हैं। इसके बाद इन्हें मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु, पुणे, नासिक, गोवा, गुजरात के वापी, दमन-द्वीप, यूपी के मेरठ, गाजियाबाद, एमपी में ग्वालियर, नीमच, मंदसौर और महाराष्ट्र के नागपुर भेजा जाता है।

जयपुर से करीब 340 किलोमीटर का सफर करके भीलवाड़ा के पंडेर गांव पहुंची। यहां कई बस्तियों में गरीब परिवारों की लड़कियों को दलाल स्टाम्प पेपर पर खरीदकर बेच देते हैं।

हम बस्तियों में जाकर लोगों से बात करने की कोशिश की, लेकिन दलालों के डर से कोई तैयार नहीं हुआ। इसके बाद हम गांव में पानी की समस्या को हल करने के लिए सर्वे वाले बनकर गए।

लोगों ने हमें अपनी समस्याएं बताईं। कुछ लोगों को विश्वास में लेकर हमने लड़कियों की खरीद फरोख्त के बारे में पूछताछ की। इलाके के लोगों ने जो कुछ बताया, वो हैरान करने वाला था।

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