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बीकानेर राजकुमारी की गुरुस्थली : गलता तीर्थ

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आलेख: श्रीमती अंजना शर्मा (शंकरपुरस्कारभाजिता)
पुरातत्वविद्, अभिलेख व लिपि विशेषज्ञ
प्रबन्धक देवस्थान विभाग, जयपुर – राजस्थान सरकार

गलता गौरव

बीकानेर राजकुमारी की गुरुस्थली : गलता तीर्थ

कालान्तर में जब जल की आवश्यकता हुई तो जिस प्रकार सूर्यवंशी राजा भागीरथजी ने गंगाजी की आराधना करके उनको पृथ्वी लोक पर लाकर अपने पितरों का उद्धार करने के साथ अनन्त काल तक जन सामान्य के उद्धार का मार्ग प्रशस्त कर गये। उसी प्रकार श्रीराम में रमण करने वाले महर्षि गालवजी ने भी लोक कल्याणार्थ श्रीगंगाजी की आराधना करके इस जयपुर की मरुभूमि में गंगा को प्रकट किया तो वह गालवी गंगा कहलायी। जिसकी पावन जलधारा प्राचीन काल से ही यहां के लोगों को पवित्र कर रही है। यहां के लोगों की ऐसी मान्यता है कि सभी तीर्थों की यात्रा करने के बाद यदि गलता स्नान नहीं करते तो तीर्थ यात्रा अधूरी मानी जाती है।

इसलिये सामान्य दिनों की अपेक्षा आज भी एकादशी, अमावस्या, पूर्णिमा और विशेष पर्वो पर यहां अपार भीड़ होती है। इस प्रकार की महिमा से मण्डित श्रीरामोपासक महर्षि गालवजी की तपस्थली गलता तीर्थ अत्यन्त प्राचीनतम तीर्थ है, जो कि अपने अप्रतिम प्राकृतिक सौन्दर्य के कारण बड़े-बड़े ऋषि महर्षियों की साधना स्थली बनी। इसी क्रम में यह नाथ सम्प्रदाय के तान्त्रिक श्रीतारानाथ की भी साधना स्थली रही हैं। गोस्वामी तुलसीदासजी ने रामचरितमानस के अयोध्या कांड का लेखन भी 18 महीने गलता तीर्थ में रहकर पूर्ण किया।

बीकानेर के महाराज लूनकरण जी की पुत्री अपूर्व देवी जो बचपन से ही श्री पयाहारी जी की शिष्या थी जो बाद में श्रीबालाबाई के नाम से प्रसिद्ध हुयी का विवाह आमेर नरेश श्रीपृथ्वीराज कछवाहा से सन 1507 में हुया , श्रीबालाबाई अत्यंत धार्मिक प्रकृत्ति की महारानी थी जो दान पुण्य में निरन्तर संलग्न रहती थी के आग्रह पर उनके गुरुदेव श्रीकृष्णदासजी पयहारी सम्वत् 1561 में चैत्रीय नवरात्रों में गलता पधारे जो कि जगद्गुरु श्रीरामानन्दाचार्य के पौत्र शिष्य एवं श्रीअनन्तानन्दाचार्यजी के शिष्य थे। गलताजी की स्थापना के समय 7 कुण्ड थे। 1. कदम्ब कुण्ड, 2. यज्ञवेदी कुण्ड, 3. सूर्य कुण्ड, 4. गोपाल कुण्ड, 5. लाल कुण्ड, एक कुण्ड के निकट हनुमानजी का मन्दिर शिव मन्दिर बन गया इसकी सीध में दक्षिण की तरफ एक और कुण्ड है। यहाँ पर 6 मन्दिर बने हैं जिनमेंश्रीसीतारामजी, श्रीरघुनाथजी, श्रीराजकुमारजी, श्रीनृत्यगोपालजी, श्रीविजय गोपालजी एवं ज्ञानगोपालजी की सेवा-पूजा होती है।

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