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बेटे को तिरंगे में लिपटा देख मां हुई बेसुध:बचपन से पैरा-कमांडो बनना चाहता था, 12 दिन पहले किया था ज्वाइन

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बेटे को तिरंगे में लिपटा देख मां हुई बेसुध:बचपन से पैरा-कमांडो बनना चाहता था, 12 दिन पहले किया था ज्वाइन

नागौर के मेड़ता का लाल शहीद हो गया। जवान दिलीप 2 साल 11 महीने और 21 दिन सेना में रहे। देश सेवा का जज्बा ऐसा कि पैरा कमांडो में जाने का सपना देखते थे। सपना पूरा भी हुआ। 12 दिन पहले ही उनकी पैरा मिलिट्री में एंट्री हुई। वे ट्रेनिंग के लिए काफी उतावले थे।

10 सितंबर को दिलीप अपनी रेजीमेंट से विशेष ट्रेनिंग के लिए आगरा गए। 12 सितंबर को दौड़ लगाते वक्त उनकी तबीयत बिगड़ गई। उन्हें तुरंत आगरा से दिल्ली सेना के अस्पताल में भर्ती कराया गया। 10 दिन तक दिलीप का इलाज चला। लेकिन 22 सितंबर की रात 1,30 बजे वे जिंदगी की जंग हार गए।

हम जिस बहादुर सैनिक की बात कर रहे हैं वह नागौर जिले के मेड़ता-डेगाना क्षेत्र के पोलास गांव के दिलीप ऐचरा हैं। जिन्होंने मात्र 22 साल की उम्र में पढ़ाई-लिखाई की और देश सेवा के काबिल बने। इसी वतन की सेवा के लिए ट्रेनिंग भी ली और ऐसा ही जज्बा लिए अंतिम सफर पर भी चल दिए। आज दिलीप ऐचरा के पैतृक गांव पोलास में उनके घर के पास ही उनका विश्नोई समाज के धार्मिक रीति-रिवाज के अनुसार और सैन्य सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया।

शहीद को पुष्प चक्र अर्पित करते हुए सैन्य अधिकारी

शहीद को पुष्प चक्र अर्पित करते हुए सैन्य अधिकारी

पिता के आंखों से थम नहीं रहे थे आंसू
शुक्रवार को पोलास गांव में बहादुर बेटे की विदाई और आखिरी सफर का समय हुआ तो परिवार बिलख पड़ा। पूरे गांव में शोक की लहर थी। शहीद दिलीप विश्नोई अमर रहें…, वंदे मातरम…,भारत माता की जय…के नारे लगते रहे।

दिलीप अपने स्टाइल के कारण भी दोस्तों के चहेते थे। वे सोशल मीडिया पर अपने फोटो अपलोड करते रहते थे।

दिलीप अपने स्टाइल के कारण भी दोस्तों के चहेते थे। वे सोशल मीडिया पर अपने फोटो अपलोड करते रहते थे।

पिता बोले- मुझे गर्व है मेरा बेटा देश के काम आया
दिलीप के पिता पांचाराम भी फौज में हैं। अभी उनकी पोस्टिंग बीकानेर में है। पिता ने कहा- मैं खुद फौजी हूं। मेरा बेटा देश की रक्षा के लिए ट्रेनिंग ले रहा था। उसके रग-रग में वतन की हिफाजत की भावना थी। ये कहते हुए पांचाराम की आंखें भर आईं, गला रुंध गया। हिम्मत जुटाकर फिर भी बोले- मुझे देखकर मेरे बेटे ने बचपन से ही सेना में जाने की ठान ली थी। मैं जब भी घर आता तब वह मुझसे सैनिकों की बहादुरी के किस्से सुनता था।

दिलीप दिल से देश के लिए जीने वाला इंसान था। देश के लिए यही जज्बा उन्हें सेना में ले गया था। वह कमांडो बनना चाहता था।

दिलीप दिल से देश के लिए जीने वाला इंसान था। देश के लिए यही जज्बा उन्हें सेना में ले गया था। वह कमांडो बनना चाहता था।

कहता था कि पापा मैं भी आपकी तरह एक दिन बहादुर फौजी बनूंगा। मेरा बेटा फौजी बन भी गया और आज हमें पीछे छोड़कर इतना आगे निकल गया कि हम चाहकर भी उससे नहीं मिल सकते। वह हमारे दिलों में जिंदा है और हमेश रहेगा। मुझे बेटे पर गर्व है।

तिरंगे में लिपटी बेटे की पार्थिव देह देखकर उसके फौजी पिता पांचाराम अपने आंसू नहीं रोक पाए। मां, भाई, बहन, काकी, पूरा परिवार, दोस्त और गांव अपनी आंखों से आंसू रोक नहीं पा रहा था। बड़ा भाई मनीष, दिलीप की बहन, मां और काकी बेसुध हो गई थी।

तिरंगे में लिपटी बेटे की पार्थिव देह देखकर उसके फौजी पिता पांचाराम अपने आंसू नहीं रोक पाए। मां, भाई, बहन, काकी, पूरा परिवार, दोस्त और गांव अपनी आंखों से आंसू रोक नहीं पा रहा था। बड़ा भाई मनीष, दिलीप की बहन, मां और काकी बेसुध हो गई थी।

सैन्य सम्मान के साथ दी अंतिम विदाई
इस दौरान डेगाना से पूर्व विधायक रिछपाल सिंह मिर्धा, पूर्व सेंट्रल को-ऑपरेटिव चेयरमैन महेंद्र चौधरी, मेड़ता डीएसपी मदनलाल जेफ, चौलियावास सरपंच जस्साराम चौधरी, रेण उप सरपंच मोहन सिंह, व्यापार मंडल अध्यक्ष श्यामसुंदर बेड़ा, वन्य जीव रक्षा के रामस्वरूप विश्नोई, किसान मोर्चा के हेतराम विश्नोई, पं.स. सदस्य पूनाराम भादू, मनोहर विश्नोई सहित बड़ी संख्या में क्षेत्र के लोग मौजूद रहे। इस दौरान थर्ड सिक्ख लाइट इंफेंट्री के कैप्टन अमन सहारन के नेतृत्व में बटालियन के जवानों ने सैन्य सम्मान के साथ जवान को अंतिम विदाई दी।

दिलीप पूरे गांव का चहेता था। गांव के युवा उससे प्यार करते थे। पिता फौज में थे इसलिए उसने फौज में जाने का सपना देखा। आर्मी में रहते हुए वह पैरा कमांडो बनना चाहता था। यह सपना भी 12 दिन पहले पूरा हो गया। ट्रेनिंग का वक्त आया तो दौड़ लगाने के दौरान दिलीप की तबीयत बिगड़ गई। वह हमेशा के लिए चला गया।

दिलीप पूरे गांव का चहेता था। गांव के युवा उससे प्यार करते थे। पिता फौज में थे इसलिए उसने फौज में जाने का सपना देखा। आर्मी में रहते हुए वह पैरा कमांडो बनना चाहता था। यह सपना भी 12 दिन पहले पूरा हो गया। ट्रेनिंग का वक्त आया तो दौड़ लगाने के दौरान दिलीप की तबीयत बिगड़ गई। वह हमेशा के लिए चला गया।

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