” मेरी छोटी सी बेटी……….”
मेरी पहचान को मुकम्मल बनाने कि खातिर
मेरी बेटी मुझसे दूर रहने लगी हैं
मेरे सपनों को सजाने कि खातिर
खुद को वो यूँ निखारने लगी हैं……..
न वक़्त देखती हैं न मुश्किलें देखती हैं
बस तारीखों को वो बदलने लगी हैं……
मेरी छोटी सी बेटी न जाने कब मेरी माँ हो गई हैं
बिन कहे मेरी सारी बातें समझने लगी हैं
कल तक जो लिपटती थी जो सानो से मेरे
मेरी शान अब वो यूँ बढ़ाने लगी हैं…….
मेरी छोटी सी बेटी अपने नन्हें कदम से
इस दुनिया को नापने लगी हैं…………
मेरी बेटी जो छोटी सी बात भी मुझसे छिपाती नहीं थी
बड़ी परेशानियां भी अब खुद उठाने लगी हैं
मेरे सपनों को उड़ान देने कि खातिर
मेरी बेटी खुद के पँख यूँ फैलाने लगी हैं…..
मेरी छोटी सी बेटी जिसे थोड़ी भी गर्मी बहुत लगती थी
आज सूरज से भी गर्मी हथियाने लगी हैं……..
मेरी प्यारी बेटी जिसकी मांग कभी ख़त्म नहीं होती थी
अब वो क़ोई तकरार न चीजों कि दरकार करती हैं
मेरी बेटी अब मेरे लिए ख्वाहिशो की चाह रखती हैं
मेरी बेटी मेरे लिए खुद की सारीजिम्मेदारी उठाने लगी हैं..थकते हैं जब भी कदम उसके थोड़े…..
बड़े हौसले से उन्हें फिर उठाने लगी हैं…..
मेरी प्यारी सी बेटी कही-कही से मुझसे भी बड़ी हो गई
जब उसकी बातें उसकी उम्र से भी कही ज्यादा गहरी हो गई
हम सबको समेटने की खातिर वो एक कड़ी हो गई
आज यक़ीनन मेरी बेटी बहुत बड़ी हो गयी……….!
राधा शैलेन्द्र
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