यूं ही ‘फ्रंटफुट’ पर नहीं आईं वसुंधरा राजे, आलाकमान के संकेतों को नजरअंदाज करने की ये है इनसाइड स्टोरी
Rajasthan Chunav 2023: वसुंधरा राजे ने हाल ही में रिटायरमेंट को लेकर बड़ा बयान दिया है। जिसे लेकर चर्चा शुरू हुई, इसी बीच पूर्व सीएम ने झालरापाटन से नामांकन किया। इसके बाद उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा मैं कही नहीं जा रही। यही नहीं वो राजस्थान चुनाव में उम्मीदवारों के चयन को लेकर वो बेहद एक्टिव रहीं। अपने कई करीबियों को टिकट भी दिलाया, जानिए उनके इस अंदाज की असल वजह।
हाइलाइट्स
- राजस्थान चुनाव में फिर एक्टिव दिख रहीं वसुंधरा
- सीएम पद पर फिर निगाहें तो लगा दिया पूरा जोर
- समर्थकों के टिकट को लेकर जमकर की बैटिंग
- 52 सपोर्टर्स को टिकट दिलाने में रहीं कामयाब
वसुंघरा राजे ने भरा नामांकन, रिटायरमेंट के मुद्दे पर कही ये बात
वसुंघरा राजे ने भरा नामांकन, रिटायरमेंट के मुद्दे पर कही ये बात
नई दिल्ली : बीजेपी आलाकमान की ओर से राजस्थान विधानसभा चुनाव में स्पष्ट संकेत मिलने के बावजूद वसुंधरा राजे सिंधिया राजनीतिक मैदान छोड़ने को तैयार नहीं हैं। पार्टी आलाकमान ने भले ही वसुंधरा राजे की जिद के बावजूद उन्हें मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार या चुनाव प्रचार समिति का मुखिया घोषित नहीं किया। फिर राजस्थान की राजनीति की चतुर खिलाड़ी वसुंधरा राजे अभी भी मैदान छोड़ने को तैयार नहीं हैं। वसुंधरा राजे सिंधिया ने आलाकमान के राजनीतिक मूड और राज्य स्तर के नेताओं की तैयारियों को देखते हुए ग्राउंड जीरो पर फोकस किया। लगातार पांचवी बार न केवल झालरापाटन विधान सभा क्षेत्र से अपना टिकट सुनिश्चित किया बल्कि अपने ज्यादा से ज्यादा समर्थकों को टिकट मिले, इस बात को भी सुनिश्चित करने का पुरजोर प्रयास किया।
अपने समर्थकों के लिए लगातार की बैटिंग
पार्टी के एक नेता ने बताया कि चाहे चुनाव प्रभारी और केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी के घर पर राजस्थान बीजेपी कोर कमेटी के नेताओं की बैठक हो या पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा के घर पर बैठक। या फिर पार्टी मुख्यालय में केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक हो, वसुंधरा राजे हर बैठक में अपने समर्थकों को जीतने वाला उम्मीदवार बताते हुए उनकी जोरदार पैरवी करती नजर आईं। कई बार इसके लिए वसुंधरा राजे सिंधिया को बैठक के अंदर अन्य नेताओ के साथ जोरदार बहस भी करनी पड़ी।
वसुंधरा के बदले वर्किंग स्टाइल ने चौंकाया
वसुंधरा की वर्किंग स्टाइल को जानने वालो नेताओं के लिए यह किसी अचंभे से कम नहीं था। बीजेपी राजस्थान के लिए अब तक 184 उम्मीदवारों के नाम घोषित कर चुकी है और पार्टी उम्मीदवारों की यह चारों लिस्ट अपने आप में बताती है कि वसुंधरा राजे सिंधिया ने पहली लड़ाई जीत ली है। वसुंधरा राजे सिंधिया भले ही पुरजोर पैरवी के बावजूद कैलाश मेघवाल, राजपाल सिंह शेखावत, अशोक परनामी और यूनुस खान जैसे एक दर्जन से ज्यादा करीबियों को टिकट दिलवाने में कामयाब नहीं हो पाई हो।
इन समर्थकों को टिकट दिलाने में रहीं कामयाब
हालांकि पूर्व सीएम ने अपनी जोरदार पैरवी से कालीचरण सराफ, वासुदेव देवनानी, अनिता भदेल, पुष्पेंद्र सिंह राणावत को टिकट दिलाया। जगसीराम कोली, प्रतापलाल गमेती, गोपीचंद मीणा, अशोक डोगरा, प्रताप सिंह सिंघवी, सिद्धी कुमारी, सुरेंद्र सिंह राठौड़ और दीप्ति माहेश्वरी सहित अपने 52 के लगभग समर्थकों को टिकट दिलवाने में कामयाब हो गई।
बीजेपी ने घोषित किए 184 कैंडिडेट्स के नाम
184 घोषित उम्मीदवारों में से 52 वसुंधरा राजे सिंधिया के समर्थक हैं। हालांकि राजस्थान बीजेपी के एक दिग्गज नेता की मानें तो बाकी उम्मीदवारों में से भी 15-20 उम्मीदवार ऐसे हैं जो किसी पाले में नहीं हैं लेकिन उन्हें भी चुनाव जीतने के लिए वसुंधरा राजे की मदद की दरकार है। बाकी बची 16 सीटों पर भी वसुंधरा राजे अपने एक दर्जन के लगभग करीबियों को टिकट दिलवाने की जोरदार पैरवी कर रही हैं। समर्थकों को टिकट दिलवाने के मामले में राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल और लोक सभा अध्यक्ष एवं सांसद ओम बिरला यहां तक कि प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी को भी काफी पीछे छोड़ दिया है।
राजे समर्थक युनूस खान क्या निर्दलीय करेंगे दावेदारी?
वहीं दूसरी तरफ, वसुंधरा के करीबी और राजस्थान में बीजेपी के एकमात्र मुस्लिम चेहरे यूनुस खान ने अलग तेवर अख्तियार किया। उन्होंने टिकट नहीं मिलने से नाराज होकर पार्टी छोड़ने और निर्दलीय लड़ने का ऐलान कर बीजेपी आलाकमान को जोरदार झटका दिया है। यहां गौर करने वाली बात यह है कि अगर राजस्थान में किसी को बहुमत नहीं मिला, तो निर्दलीय विधायक सरकार गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं और यूनुस खान जैसे भाजपा के कई बागी ऐसे हालात में वसुंधरा राजे का ही साथ देंगे। वसुंधरा राजे सिंधिया की अब पुरजोर कोशिश यही रहेगी कि उसके ज्यादा से ज्यादा समर्थक चुनाव जीत कर आएं। जिससे सरकार बनने की स्थिति में वह विधायक दल के बहुमत का सम्मान करने की बात कह कर अपनी मजबूत दावेदारी जता सके।
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