राजस्थान में भाजपा की पहली लिस्ट का एनालिसिस:कमजोर सीटों पर कांग्रेस से आए नेताओं पर दांव, मिशन-25 के लिए ‘जीरो रिस्क’ फॉर्मूला
जयपुर
भाजपा ने लोकसभा चुनाव में राजस्थान में 25 में से 15 प्रत्याशी उतार दिए हैं। इसके बाद सबसे बड़ा सवाल है कि चुनाव की घोषणा से पहले ही आधे से ज्यादा प्रत्याशी उतारने के पीछे रणनीति क्या है?
इस प्रश्न का उत्तर मोदी के प्रोग्राम ‘परीक्षा-पर-चर्चा’ में छिपा है। उन्होंने एग्जाम हॉल में टेंशन से कैसे बचें? के एक सवाल का जवाब देते हुए कहा था-
‘एग्जाम हॉल में हमेशा जल्दी जाने की कोशिश करें। गहरी सांस लें और खुद में खोने की कोशिश करें।’
लोकसभा चुनाव को भाजपा परीक्षा के रूप में ही ले रही है। लंबे समय से पार्टी इसकी तैयारी में जुटी है। पहली लिस्ट में ‘चुनौतीपूर्ण परीक्षा के पेपर’ को हल करने की कोशिश की है, ताकि रिजल्ट उम्मीद के मुताबिक आए।
25 सीटों में से करीब 7 सीटों को पार्टी सी और डी कैटेगिरी में मान रही थी। 15 प्रत्याशियों की पहली सूची में 5 कमजोर सीटों पर उम्मीदवार उतार दिए हैं।
सूची में नए, पुराने, अनुभवी चेहरों को महत्व देते हुए गुड मिक्स बनाने की कोशिश की गई है। जातिगत समीकरणों को साधकर राजनीतिक मौसम नहीं बिगड़े ये कोशिश की गई है।
सूची में प्रयोग के स्थान पर लर्निंग को महत्व दिया गया है।
12 सवालों से जानते हैं भाजपा की पहली सूची में छिपे हुए मायने…
पीएम ने जल्द ही टिकटों का ऐलान करके वही फॉर्मूला अपनाया है जिसकी अक्सर वे बच्चों से चर्चा करते हैं। पार्टी को विश्वास है कि पीएम का ये फॉर्मूला उनके मिशन-2024 के लिए फिट बैठेगा।
भाजपा ने पहली सूची में क्या मैसेज दिया है?
चुनावी परीक्षा में कांग्रेस से पहले उतरी है। इसका फायदा ये भी है कि जनता में क्लियर मैसेज जाता है कि पार्टी पूरी तरह कॉन्फिडेंट है। पहली लिस्ट में कमजोर मानी जा रही नागौर, बांसवाड़ा सीटों पर कांग्रेस से आए नेताओं को टिकट देकर अपनी जमीन को मजबूत करने की कोशिश की है।
भाजपा गठबंधन में पिछला लोकसभा चुनाव जीते हनुमान बेनीवाल की पार्टी आरएलपी की संभावना को खत्म करते हुए विधानसभा चुनाव हारने के बावजूद ज्योति मिर्धा को टिकट दिया गया है। बांसवाड़ा में कांग्रेस और अन्य आदिवासी दलों से निपटने के लिए महेंद्रजीत सिंह मालवीय को टिकट दिया है।
पांच सांसदों के टिकट काटने के पीछे भाजपा आलाकमान का क्या मकसद रहा?
दो मैसेज साफ तौर पर दिए हैं।
पहला, अनुशासनहीनता सहन नहीं की जाएगी। विधानसभा चुनाव में भाजपा के वरिष्ठ नेता राजेंद्र राठौड़ की हार ने सभी को चौंका दिया था। राठौड़ ने पार्टी में शामिल ‘जयचंदों’ को लेकर जमकर निशाना साधा। ये विवाद चूरू से सांसद राहुल कस्वां से जुड़ गया और पहली सूची में नाम गायब हो गया। यहां नए चेहरे पैरालिंपिक में गोल्ड मेडल विजेता रहे देवेंद्र झाझड़िया को मौका दिया गया है।
दूसरा, मैसेज परफॉर्मेंस से संबंधित है। जिन सांसदों की परफॉर्मेंस कमजोर है या विरोध है, उन्हें मौका नहीं दिया गया है, जैसे जालोर से देवजी पटेल। पटेल स्थानीय विरोध के कारण विधानसभा चुनाव हार गए थे। सर्वे में बांसवाड़ा सीट से सांसद कनकमल कटारा की जीत लेकर संशय सामने आया था। यहां भाजपा ने कांग्रेस से नाराज और इस क्षेत्र में मजबूत चेहरे महेंद्रजीत सिंह मालवीय को उतारा है। भरतपुर से रंजीता कोली खुद पर हमलों के कारण विवादों से घिरी रहीं और उनकी जगह भाजपा ने रामस्वरूप कोली को उतार दिया।
क्या टिकट काटने से भाजपा को विधानसभा चुनाव की तरह विरोध झेलना पड़ेगा?
नहीं। पिछले बार की टिकटों से लर्निंग ली गई है। पहली सूची में बेटे के नाम से वसुंधरा राजे की नाराजगी की चुनौती खत्म हो गई है। चूरू में जाट का टिकट काटकर जाट को ही दिया गया है। अलवर में सांसद बालकनाथ विधानसभा चुनाव जीतने के बाद यादव को ही टिकट दिया गया है।
वहीं, दो केंद्रीय मंत्रियों को विरोध के सुर के बाद भी टिकट दिया गया है। इनमें जोधपुर से गजेंद्र सिंह शेखावत और बाड़मेर-जैसलमेर से कैलाश चौधरी शामिल हैं। चौधरी तो दो दिन पहले कह चुके हैं कि उनकी गलतियों की सजा मोदी को नहीं दें।
पिछले कुछ समय से वसुंधरा राजे की केंद्रीय नेतृत्व और स्टेट लीडरशिप से दूरियों की खबरें आती रहीं हैं। ऐसे में लोकसभा चुनाव में पार्टी झालावाड़-बारां के टिकट पर चौंका सकती है, लेकिन फिर दुष्यंत को टिकट देकर शायद सब सही होने की मैसेजिंग की गई है।
भाजपा ने सूची में कोई रिस्क लिया है क्या?
नहीं। सीकर में बीजेपी का जनाधार कम है। यहां स्वामी सुमेधानंद का टिकट कटने की भी चर्चा थी, लेकिन भाजपा ने इन्हें तीसरी बार मैदान में उतारकर हिन्दुत्व का कार्ड खेलने की कोशिश की है। पूरे देश में बीजेपी राम मंदिर के मुद्दे को लोकसभा चुनाव में भुना रही है। ऐसे में किसी संत का टिकट काटने से गलत संदेश जा सकता था। पहले ही बाबा बालकनाथ, महंत प्रतापपुरी को मंत्री नहीं बनाए जाने से नाराजगी है।
पुराने चेहरों को मौका देने के पीछे की क्या राजनीति रही?
अपनी पहली ही सूची में भाजपा ने 15 में से लगभग आधी 7 सीटों पर नए चेहरे उतारकर राजनीतिक इच्छाशक्ति दर्शाई है कि पार्टी की एक-एक सीट जीतने की प्यास कितनी गहरी है। जिन्होंने केंद्र सरकार में या संगठन के लिए परफॉर्मेंस दी, उन्हें टिकट दिए। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला हों या केंद्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल, भूपेंद्र यादव जैसे नेताओं को सूची में शामिल किया गया।
टिकट बंटवारे में पार्टी के आंतरिक सर्वे और फीडबैक को कितना महत्व मिला है?
जिस तरह पांच सांसदों के टिकट काटे गए हैं और दो नए चेहरे हैं, उसे देखते हुए लगता है कि पार्टी ने सर्वे के आधार पर फैसले लिए हैं। उदयपुर से सांसद अर्जुनलाल मीणा का विरोध था। यहां पर ब्यूरोक्रेट मन्नालाल रावत काे टिकट दिया गया है।
पहली सूची के जातिगत समीकरण क्या कहते हैं?
कोई भी चुनाव हों, कोई पार्टी बड़ी जातियों को नाराज नहीं करना चाहती। भाजपा की पहली सूची में जातियों का बैलेंस नजर आ रहा है। सबसे बड़ा वोट बैंक ओबीसी और इसमें शामिल जाट समाज है। ओबीसी की बात करें, तो 15 में से 8 प्रत्याशी इस वर्ग से हैं और इसमें से भी 4 प्रत्याशी जाट समाज से आते हैं। वहीं ब्राह्मण, वैश्य और राजपूत समाज को एक-एक सीट पर मौका दिया है। कुल मिलाकर 3 सवर्ण कैंडिडेट हैं। वहीं, एससी-एसटी से भी दो-दो टिकटें दी गई हैं।
महिला वर्ग और मुस्लिम पर ध्यान दिया गया है क्या?
महिलाओं के लिए भले ही 33 फीसदी आरक्षण की बात की जाती हो, लेकिन राजस्थान के नजरिए से पहली सूची को देखें, तो ज्योति मिर्धा के रूप में केवल एक महिला को मौका दिया गया है। वहीं, भाजपा पर हमेशा आरोप लगे हैं कि मुस्लिम वर्ग से टिकटें नहीं दी जाती। यदि देश के लिहाज से देखें पूरी 195 की सूची में केवल 1 मुस्लिम प्रत्याशी है। राजस्थान में इस वर्ग से किसी को मौका नहीं दिया गया है।
क्या बची 10 सीटों पर कुछ नया देखने को मिलेगा?
जी हां। लोकसभा चुनाव में देवजी पटेल, राहुल कस्वां जैसे पांच पुराने चेहरों के टिकट काट दिए गए हैं। सबसे ज्यादा चिंता जयपुर शहर, अजमेर, झुंझुनूं, टोंक-साईमाधोपुर, श्रीगंगानगर जैसी सीटों पर नजर आ रही है। विधानसभा चुनाव हारे दो सांसदों पर भी नजरें टिकी हुई हैं। ताजा सूची से साफ जाहिर है कि भाजपा आलाकमान ने जहां परफॉर्मेंस में और पार्टी के सर्वे में जो सांसद कमजोर साबित हो रहे थे, उनके विकल्प के रूप में जनता के सामने नए मजबूत चेहरे लाकर रख दिए हैं।
अब आगे क्या? क्या राजनीतिक उठापटक की आहट है?
इस सूची के बाद जिनका टिकट कटा, उन प्रत्याशियों के लिए राजस्थान में कांग्रेस सक्रिय हो जाएगी। सूची से हताश हुए नेताओं का दल-बदल देखने को मिल सकता है। 7 सीटों पर प्रत्याशी बदले हैं। राहुल कस्वां लगातार लोकसभा चुनाव जीत रहे थे, अब उनका टिकट कट गया है तो संभव है कि कांग्रेस के संपर्क में आए।
इधर, हनुमान बेनीवाल के गठबंधन तोड़ने के बाद इस बार भाजपा ने दूरी बनाए रखी और उनके प्रभाव क्षेत्र से ही उनके टारगेट पर रहने वाली ज्योति मिर्धा को मौका दिया है। ऐसे में ये भी चर्चाएं चल रही हैं कि बेनीवाल इस बार कांग्रेस से गठबंधन कर सकते हैं। ज्योति मिर्धा को टक्कर देने के लिए कांग्रेस को भी मजबूत चेहरे की जरूरत है।
कांग्रेस की सूची कब तक आ सकती है?
कांग्रेस की सूची के लिए अभी काफी इंतजार करना पड़ेगा। अभी राहुल गांधी की न्याय यात्रा चल रही है। दूसरा अभी कांग्रेस पैनल भी नहीं बना पाई है। ऐसे में अभी कोई दूर तक संभावना नजर नहीं आ रही है।
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