Dr Mudita Popli
“पत्रकारिता में आपकी जान जा सकती है, लेकिन जब तक आप इसमें है यह आपको जिंदा रखेगी”। -होरैस ग्रीले
भारत में प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए प्रेस परिषद का गठन किया गया उससे पूर्व प्रेस आयोग की भी योजना बनाई गई थी परंतु बाद में प्रेस परिषद की ही स्थापना की गई जो 16 नवंबर 1966 से प्रभावी हुई इसीलिए 16 नवंबर हर साल राष्ट्रीय प्रेस दिवस के रूप में मनाया जाता है।
प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया का गठन प्रेस काउंसिल एक्ट 1978 के तहत 1966 में किया गया था। यह प्रेस की स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए राज्य के साधनों पर भी अधिकार रखता है। इसके अलावा यह सुनिश्चित करता है कि भारतीय प्रेस किसी बाहरी मामले से प्रभावित न हो।
भारत में पहली प्रेस 1550 में पुर्तगाली मिशनरियों द्वारा शुरू की गई 1757 में प्लासी का युद्ध जीतने के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी भारत की शासक बन गई | इसके कुछ वर्ष बाद अंग्रेजों द्वारा अंग्रेजी भाषा में अंग्रेजों के लिए समाचार पत्र का आरंभ हुआ | पहले पत्रकार विलियम का 1768 में चिपकाया गया नोटिस ही पत्रकारिता का आरंभ माना जाता है इसके बाद 1787 में जेम्स ऑगस्टस हिक्की ने ‘बंगाल गजट’ नामक एक साप्ताहिक पत्रिका निकाली | अंग्रेजी भाषा में रचित बंगाल गजट को भारत का पहला समाचार पत्र या पत्रिका माना जाता है |
यदि हम इसके उदय कालिया आरंभिक काल की बात करें तो यह 1826- 1867 तक माना जाता है इस दौरान आरंभ में भारत में समाचार पत्रों की कोई परंपरा नहीं थी | अत: पत्रकारिता के उदय काल में समाचार पत्र के संपादक इसके संचालक भी स्वयं थे | वही इसका मुद्रण करते थे, वही इसका प्रकाशन करते थे | उनके पास सीमित संसाधन थे | इस संबंध में डॉक्टर कृष्ण बिहारी मिश्र का कहना है – “हिंदी पत्रकारिता के आदी उन्नायकों का आदर्श बड़ा था किंतु साधन-शक्ति सीमित थे | वह नई सभ्यता के संपर्क में आ चुके थे और अपने देश तथा समाज के लोगों को नवीनता से संयुक्त करने के आकुल आकांक्षी थे | उन्हें न तो सरकारी संरक्षण और प्रोत्साहन प्राप्त था और ना ही हिंदी समाज का सक्रिय योगदान |”
हिंदी पत्रकारिता के आरंभिक काल अथवा उदय काल में प्रकाशित समाचार पत्रों के
विवरण से स्पष्ट है कि इस काल में हिंदी पत्रकारिता का धीरे-धीरे उदय हुआ | अधिकांश आरंभिक पत्रिकाएं उर्दू-मिश्रित हिंदी में या बांग्ला से प्रभावित हिंदी भाषा में थी | कुछ ऐसी पत्रिकाएं भी थी जो उर्दू और बांग्ला के साथ-साथ हिंदी में प्रकाशित हो रही थी | ‘समाचार सुधा वर्षण’ को अगर छोड़ दें तो बहुत कम पत्रिकाएं ऐसी थी जो हिंदी पत्रकारिता के विकास और उत्थान का मार्ग प्रशस्त करें लेकिन फिर भी इन पत्रिकाओं का एक महत्वपूर्ण योगदान यह है कि इन पत्रिकाओं ने आने वाले समय में पत्रकारों, संपादकों तथा प्रकाशकों को हिंदी भाषा में पत्र-पत्रिकाएं निकलने के लिए प्रेरित किया।
इसके बाद भारतेंदु युग रहा जो 1867 से 1900 तक माना जाता है।इस काल में भारतेंदु हरिश्चंद्र ने 1867 ईo में काशी से ‘कविवचन सुधा’ का मासिक प्रकाशन आरंभ किया | इस पत्रिका की लोकप्रियता को देखते हुए शीघ्र ही इसे पाक्षिक बना दिया गया | इस पत्रिका में पद्य के साथ-साथ गद्य भी प्रकाशित होता था | यह पत्रिका 1885 तक चली |इस युग के पत्रकार आदर्शवादी थे | इन्होने न केवल देश की उन्नति के लिए पत्रकारिता की बल्कि हिंदी पत्रकारिता व हिंदी साहित्य के विकास में भी उल्लेखनीय योगदान दिया |
इसके पश्चात भारत में द्विवेदी युग माना जाता है जिसका समय 1900 से 1920 तक का है।
इसी युग में महावीर प्रसाद द्विवेदी जी ने ‘सरस्वती’ पत्रिका के माध्यम से भाषा का संस्कार किया | उन्होंने इस पत्रिका के संपादन को 1903 में संभाला और व्याकरण की अशुद्धियों और भाषा की अस्थिरता को दूर किया | दिवेदी जी ने 20 वर्ष तक विद्वता तथा श्रमशीलता से इस पत्रिका का संपादन किया तथा हिंदी पत्रकारिता को नए आयाम प्रदान किए | उन्हीं की प्रेरणा से मैथिलीशरण गुप्त, अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’, रामनरेश त्रिपाठी, गया प्रसाद शुक्ल ‘स्नेही’ जैसे लेखक हिंदी में आए | ‘सरस्वती’ पत्रिका से प्रभावित होकर तत्कालीन पत्रिकाओं ‘प्रभा’, ‘चांद’, ‘माधुरी’ आदि ने अपने स्वरूप को निखारा |द्विवेदी युग के पत्र और पत्रिकाओं के विश्लेषण के बाद कहा जा सकता है कि इनमें विषय की विविधता थी और भाषा के संस्कार पर बल दिया गया था | इस युग ने हिंदी पत्रकारिता को स्थायित्व प्रदान किया |
भारत में राष्ट्रपिता गांधी का काल पत्रकारिता में स्वतंत्रता पूर्व युग कहा जाता है।जिसका समय 1920 से 1947 तक रहा। वर्ष 1917 में महात्मा गांधी ने भारतीय राजनीति में सक्रिय प्रवेश किया | उनका भारतीय राजनीति में आगमन भारतीय इतिहास की एक अत्यंत महत्वपूर्ण घटना है | इन्होंने राष्ट्र को न केवल राजनीतिक दिशा ही प्रदान की अपितु सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक दिशा भी दी | इस कार्य के लिए गांधीजी ने पत्रकारिता का सहारा लिया | उन्होंने ‘नवजीवन’, ‘हरिजन, ‘यंग इंडिया’ पत्रों के माध्यम से रचनात्मक कार्यक्रम को देशवासियों के समक्ष प्रस्तुत किया | यह पत्र विज्ञापन प्रकाशित नहीं करते थे क्योंकि इससे समाचार पत्रों की स्वतंत्रता घटती थी |इस युग में दैनिक समाचार पत्रों की संख्या में भी वृद्धि हुई | 1920 में ‘आज’( काशी ) प्रकाशित हुआ | 1923 में ‘अर्जुन’, 1925 में ‘सैनिक’ ( आगरा), 1930 में ‘प्रताप’ को साप्ताहिक से दैनिक बनाया गया, 1933 में ‘दैनिक नवयुग’ ( दिल्ली), 1936 में ‘इंदौर समाचार’ ( इंदौर ), 1938 में ‘नवभारत दैनिक’ ( नागपुर ), 1942 में ‘आर्यवर्त’ ( पटना ), ‘विश्व बंधु’ ( लाहौर ), ‘दैनिक जागरण’ ( झांसी ), 1947 में ‘नवभारत’ ( आज का नवभारत टाइम्स ) तथा ‘नई दुनिया’ ( इंदौर ) का प्रकाशन हुआ |इस युग में राष्ट्रीयता और देशभक्ति का स्वर प्रबल था | इसके साथ-साथ सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक उत्थान को भी उल्लेखनीय स्थान प्राप्त था | हिंदी को सबल, सशक्त और प्रौढ़ बनाने में इस युग के समाचार पत्रों और पत्रिकाओं ने महती भूमिका निभाई |
अंततः स्वातंत्र्योत्तर युग ( 1947 से अब तक चलायमान है।स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात अन्य क्षेत्रों की भांति पत्रकारिता के क्षेत्र में भी परिवर्तन आए हैं | भारत की जनता की स्वतंत्रता के अनुरूप नयी भाव भूमि तैयार करने का कार्य पत्रकारों के कंधों पर आ गया | इससे पत्र-पत्रिकाओं के उद्देश्यों में भी परिवर्तन हुए | यह उद्देश्य विविध थे | नए भारत का निर्माण, हिंदी माध्यम से ज्ञान विज्ञान का उद्घाटन, भारतीय सभ्यता और संस्कृति का विकास, विभिन्नता में एकता का प्रचार, सांप्रदायिक सहिष्णुता का विकास, साहित्यकारों की रचनात्मकता का जागरण, मौलिक शोध को प्रोत्साहन तथा नये युग की मांग के अनुरूप नए विषयों का अनावरण जैसे नए तथ्य प्रकाश में आए |पत्रिकाओं में विषय की विविधता में भी वृद्धि हुई | साहित्य, संस्कृति, धर्म, दर्शन, महिला, बाल, कला, फिल्म, नाटक, रंगमंच, खेलकूद, ज्ञान-विज्ञान, शिक्षा, समाज-कल्याण, स्वास्थ्य, आयुर्वेद, योग, वाणिज्य, उद्योग, बीमा, बैंकिंग, कानून, पशुपालन, कृषि, परिवहन, संचार, ज्योतिष आदि अनेक विषयों पर पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित होने लगी |
आज पत्रकारिता का स्वरूप पूरी तरह बदल गया है ।कभी केवल उसूलों की पत्रकारिता आज भौतिकता वादी युग में अर्थ की गुलाम बनकर रहने लगी है। विज्ञापन के मायावी संसार ने और अर्थ के हाहाकार में पत्रकारिता के आवाज को बहुत हद तक परिवर्तित कर दिया है। इन से अछूता रह पाना तो संभव नहीं है परंतु फिर भी व्यावसायिकता को साथ लेकर भी पत्रकार अपनी राह पर चलने का प्रयास कर रहा है ।यह सच है कि पत्रकार बार-बार यह दंश झेलता है कि वह धन के आगे झुक गया है ।बावजूद इसके बहुत से पत्रकार कर्तव्य राह पर चले जा रहे हैं, यह बात अलग है की विश्व सहित भारत में भी पत्रकारिता की स्वतंत्रता पर बार-बार हमला बोला जाता है। बार-बार पत्रकार को कटघरे में खड़ा किया जाता है ,परंतु दुनिया में ऐसा कोई कार्य नहीं जिसमें कमियां नहीं निकाली जा सकती, इन सब परेशानियों इन सब समस्याओं से जूझता हुआ पत्रकार बार-बार अपनी कर्तव्य निष्ठा को साबित करने की दौड़ में पुनः जुट जाता है ऐसे सभी निर्भीक और कर्मयोगी कलम के सभी सिपाहियों को बारंबार प्रणाम।
मेरा अब भी मानना है कि यदि आपका उद्देश्य दुनिया को बदलना है, तो पत्रकारिता एक तात्कालिक अल्पकालिक हथियार है।”
— टॉम स्टॉपर्ड
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