NATIONAL NEWS

लोक कलाओं से ही समृद्ध राष्ट्र की पहचान

FacebookWhatsAppTelegramLinkedInXPrintCopy LinkGoogle TranslateGmailThreadsShare

लोक कलाओं से ही समृद्ध राष्ट्र की पहचान
शैक्षिक आगाज़ के बैनर तले चल रहे पांच दिवसीय कलाकृति कार्यक्रम के दूसरे दिन मिथिला बिहार की कला ने सभी शिक्षकों छात्रों एवं अभिभावकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। कार्यक्रम का उद्देश्य कला के माध्यम से शिक्षा और संस्कृति का समाज में प्रचार प्रसार करना है। मुख्य अतिथि के रूप में आकाशवाणी के भूतपूर्व निदेशक एवं वर्तमान में केंद्रीय हिंदी निदेशालय, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार की नागरी लिपि परिषद, दिल्ली के महासचिव डॉ हरिसिंह पाल जी ने अपने वक्तव्य में कहा कि मनुष्य भाषा और कला के द्वारा ही अपने समाज और राष्ट्र को उन्नत कर सकने में सक्षम होता है, इसलिए प्रत्येक व्यक्ति का यह कर्तव्य होना चाहिए कि वह अपनी बोली-भाषा, कलाओं-लोक कलाओं, गीतों-लोकगीतों के माध्यम से अपनी संस्कृति को संरक्षित एवं समृद्ध बनाएं। भारत में ही नहीं अपितु भारत के बाहर अन्य देशों में अपनी पहचान को स्थापित करने के लिए प्रत्येक भारतीय को अपनी सभ्यता और संस्कृति से ज्यादा से ज्यादा जुड़कर काम करने की आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि प्रत्येक वर्ष कई भाषाएं कई लोक कलाएं सिर्फ इसलिए समाप्त हो जाती हैं क्योंकि वह सही समय पर एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक नहीं पहुंच पातीं। ऐसे समय में शैक्षिक आगाज़ द्वारा किया जा रहा यह पांच दिवसीय कार्यक्रम जिसमें भारत और भारत के बाहर की विभिन्न लोक कलाओं से शिक्षकों का परिचय कराया जा रहा है और उन में उन कलाओं के प्रति कौशल विकसित कराया जा रहा है अपने आप में अभूतपूर्व कार्य है। शिक्षक अपनी संस्कृति के प्रति जागरूक होंगे तो निश्चय ही प्रत्येक छात्र के व्यक्तित्व में स्वत ही अपने देश के प्रति प्रेम, श्रद्धा एवं भक्ति उत्पन्न होगी। शिक्षा का उद्देश्य भी यही है कि वह देश भक्त नागरिकों का निर्माण करें अंतरराष्ट्रीय जगत में अपने देश की पहचान को बनाने और बनाए रखने में सक्षम हों। कार्यक्रम में मास्टर ट्रेनर की भूमिका में दिल्ली से इंदिरा जैन जी ने मधुबनी कला की बारीकियों का परिचय सभी से कराया। चित्रकारी में कछनी और भरनी से लेकर आलेख एवं अल्पनाओं जैसी विभिन्न मधुबनी विधाओं पर चर्चा परिचर्चा के दौर में उन्होंने बताया कि मिथिला के राजा जनक की इच्छा अनुरूप वहां की स्त्रियों ने अपने घरों की दीवारों पर भगवान राम राम और सीता जी की शादी के उत्सव पर इस कला को उकेरा था जिसको बाद में धीरे-धीरे संपूर्ण भारत और विदेशों में पहचान प्राप्त हुई। इंदिरा जैन जी द्वारा मधुबनी के इतिहास से लेकर मधुबनी में इस्तेमाल होने वाले बेसिक रंगो और उनके समायोजन पर विस्तार से बताया गया। शैक्षिक आगाज़ के समस्त राज्य संयोजकओ के साथ-साथ देश विदेश के तमाम शिक्षकों ने इस कार्यशाला से लाभ उठाया। कार्यक्रम का संयोजन उत्तर प्रदेश सहारनपुर की श्रीमती स्मृति चौधरी एवं बहराइच के श्री पूरन लाल चौधरी द्वारा किया गया। कार्यक्रम का लाइव फेसबुक पर प्रसारित किया गया जिसके द्वारा भी हजारों व्यक्तियों ने मधुबनी लोककला की जानकारी ली।


कार्यक्रम की समाप्ति पर स्मृति चौधरी ने बताया कि शैक्षिक आगाज़ भारत के सभी राज्यों के सरकारी अध्यापकों का एक ऐसा स्वैच्छिक समूह है जिसमें अध्यापक एक दूसरे के साथ सीखने सिखाने की तकनीकी बारीकियों एवं पुस्तक पढ़ने की संस्कृति के विकास पर कार्य करते हैं और जो की लिटिल हेल्प ट्रस्ट की एक शैक्षणिक संस्था है। लिटिल हेल्प ट्रस्ट एवं शैक्षिक आगाज पूर्व में भी इस तरह के कार्यक्रमों का आयोजन करता रहा है और कलाकृति कार्यक्रम भी सरकारी शिक्षा की उन्नति की ओर एक ऐसा ही बढ़ता कदम है। उन्होंने मुख्य अतिथि डॉ हरिसिंह पाल एवं मास्टर ट्रेनर श्रीमती इंदिरा जैन जी के साथ ट्रस्ट की संस्थापिका सुश्री समृद्धि चौधरी एवं राष्ट्रीय संयोजक सुश्री सृष्टि चौधरी के साथ-साथ सभी जुड़ने और देखने वालों का धन्यवाद धन्यवाद व्यक्त किया।

FacebookWhatsAppTelegramLinkedInXPrintCopy LinkGoogle TranslateGmailThreadsShare
error: Content is protected !!