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श्रीलंका में हिंदू मंदिर तोड़कर बौद्ध टेंपल बनाने का आरोप:LTTE चीफ प्रभाकरन के जाफना में तमिल बेहाल, खुदाई में मिल रहीं लाशें

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श्रीलंका में हिंदू मंदिर तोड़कर बौद्ध टेंपल बनाने का आरोप:LTTE चीफ प्रभाकरन के जाफना में तमिल बेहाल, खुदाई में मिल रहीं लाशें

श्रीलंका का जाफना पहली नजर में एकदम आम शहर नजर आता है, लेकिन यहां आज भी खुदाई में सामूहिक कब्रें निकल रही हैं। LTTE या लिट्टे यानी लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम और श्रीलंकाई सेना के बीच 30 साल चले संघर्ष का गढ़ जाफना ही था। UN के मुताबिक इस जंग में 1 लाख लोग मारे गए थे।

18 मई, 2009 को LTTE चीफ वेलुपिल्लई प्रभाकरन मारा गया। हालांकि, जाफना और वहां के लोगों की जिंदगी से प्रभाकरन अब भी पूरी तरह गया नहीं है। 13 फरवरी, 2023 को तमिल नेता और लेखक पाझा नेदुमारन ने दावा किया कि प्रभाकरन जिंदा है।

इससे जाफना, LTTE और प्रभाकरन फिर चर्चा में आ गया। जुलाई में लाशें निकलीं और युद्ध की यादें फिर ताजा हो गईं। महंगाई-बेरोजगारी से जूझ रहे श्रीलंका पहुंचा और जाफना में प्रभाकरन के घर भी गया।

जाफना में हिंदू मंदिर तोड़े जा रहे, पुरातत्व विभाग पर आरोप
जाफना जाना आज भी आसान नहीं है। श्रीलंकाई आर्मी की इजाजत के बिना नहीं जा सकते। कोलंबो से 403 किलोमीटर दूर जाफना पहुंचने के लिए शानदार सड़कें हैं, लेकिन जैसे ही जाफना पहुंचते हैं, नजारा बदल जाता है। जाफना के रूरल इलाकों की हालत बेहद खराब है, सड़कें और पब्लिक ट्रांसपोर्ट हैं ही नहीं।

जाफना समेत नॉर्थ और ईस्ट श्रीलंका प्रोविंस के 8 जिलों में देश की कुल आबादी के 11% तमिल और 4.2% भारतीय तमिल रहते हैं। यहां रहने वाले ज्यादातर तमिल हिंदू हैं। सबसे पहले हम जाफना यूनिवर्सिटी में बने श्री पोंनाम्बलावानेश्वर देवस्थानम मंदिर पहुंचे। यहां हमारी मुलाकात मुख्य पुजारी सदानंद कुरुकल से हुई।

सदानंद बताते हैं कि कोविड के बाद से इलाके के हालात काफी खराब हैं। कोलंबो (सेंट्रल गवर्नमेंट) से जो मदद पहले मिल रही थी, अब कम कर दी गई है। हिंदुओं के धार्मिक स्थल मंदिर और धर्मशालाओं को बजट ही नहीं मिलता।

हमने मीडिया में आई हिंदू मंदिरों को तोड़े जाने की खबरों पर सवाल किया, तो उन्होंने कहा, ‘हां, यह सही है। यह एक रिलीजियस अटैक है। सिर्फ हिंदू ही नहीं, सभी अल्पसंख्यकों के मंदिरों या धर्मस्थलों को तोड़ा जा रहा है। ये कुछ लोगों की साजिश है। ये सब पुरातत्व विभाग की आड़ लेकर किया जा रहा है।’

प्रभाकरन के घर पहली बार पहुंचा इंडियन मीडिया
इस इलाके में 30 साल तक प्रभाकरन का कब्जा रहा। यहां उसकी सरकार चलती थी। हम जाफना से 2 घंटे का सफर कर प्रभाकरन के गांव वलवेट्टीतुराइ पहुंचे। इस गांव तक पहुंचने के लिए सड़क भी नहीं है।

प्रभाकरन के घर पहुंचे तो करीब 3,000 स्क्वायर फीट का एक प्लॉट नजर आया। प्लॉट के बाहरी हिस्से पर एक दीवार बनी थी। दीवार पर लिखा था कि यह तमिल नेशनल लीडर प्रभाकरन का घर है। एक हिस्से में पुराना टूटा हुआ कुआं नजर आया और दूसरे हिस्से में घर का मलबा पड़ा था।

प्रभाकरन के घर की जगह अब मलबा पड़ा है। एक पड़ोसी ने बिना कैमरे पर आए बताया कि कुछ साल पहले प्रशासन ने ये घर बुलडोजर से गिरा दिया था।

प्रभाकरन के घर की जगह अब मलबा पड़ा है। एक पड़ोसी ने बिना कैमरे पर आए बताया कि कुछ साल पहले प्रशासन ने ये घर बुलडोजर से गिरा दिया था।

हम वहां पहुंचे तो कुछ लोगों ने फोन से हमारा वीडियो बनाया और चले गए। प्रभाकरन के बारे में हमने आस-पड़ोस के लोगों से बात करने की कोशिश की, तो सभी ने साफ मना कर दिया। एक पड़ोसी ने बस इतना कहा कि पहली बार कोई इंडियन मीडिया प्रभाकरन के घर पर आया है। स्थानीय पुलिस ने भी इस बारे में कोई बात नहीं की। फिर हम जाफना लौट आए।

जाफना के रास्ते में ऐसी टूटी बिल्डिंग्स मिलती हैं। बताया जाता है कि ये लिट्टे के लड़ाकों के कैंप थे।

जाफना के रास्ते में ऐसी टूटी बिल्डिंग्स मिलती हैं। बताया जाता है कि ये लिट्टे के लड़ाकों के कैंप थे।

तमिल हिंदुओं के खिलाफ साजिश हो रही
जाफना यूनिवर्सिटी में हमारी मुलाकात अंग्रेजी पढ़ाने वाले सीनियर लेक्चरर तिरुवनंगन से हुई। वे तमिल हिंदुओं के खिलाफ भेदभाव से जुड़े सवाल पर कहते हैं, ‘इस पूरे मामले को दो कैटेगरी में बांटना पड़ेगा। पहला सेंट्रल गवर्नमेंट की ओर से डिस्क्रिमिनेशन और दूसरा लोगों के आर्थिक, सामाजिक और धार्मिक हितों को खत्म करने की कोशिश।’

तिरुवनंगन के मुताबिक, तमिल और अन्य माइनॉरिटी कम्युनिटी के खिलाफ पॉलिसी लेवल पर भेदभाव है। सिंघला एक्ट का इम्प्लिमेंटेशन और बुद्धिस्ट को स्पेशल पावर देने जैसी बातें भी इसी में शामिल हैं।’

तिरुवनंगन श्रीलंका सरकार पर कई गंभीर आरोप लगाते हैं। वे कहते हैं, ‘नॉर्थ और ईस्ट के इलाके में जहां पर तमिल पॉपुलेशन ज्यादा है, वहां अब सिंहली और बुद्धिस्ट बसाए जा रहे हैं। इसके खिलाफ हम कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं, लेकिन कोई असर नहीं हो रहा। LTTE के बनने की वजह भी यही थी।’

‘हमें 30 साल जंग झेलनी पड़ी और अब भी सरकार वही नीतियां लागू कर रही है। इसलिए तमिल ऑटोनॉमस राज्य की मांग कर रहे हैं। वे एक ऐसी सेकुलर जगह चाहते हैं, जहां सिर्फ बुद्धिज्म को ही जगह ना दी जाए।’

जाफना में खुदाई हुई, तो आज भी LTTE के लोगों के शव मिल रहे
तिरुवनंगन के मुताबिक, आज भी हजारों तमिल गायब हैं। वे बताते हैं, ‘जाफना से 125 किमी दूर मुल्लइतिवु में सबसे भीषण जंग हुई थी। अब वहां की जमीनों पर सिंहली लोग कब्जा कर रहे हैं और खुदाई के दौरान लगातार शव मिल रहे हैं। ये वही तमिल हैं जो जंग के दौरान गायब हो गए थे।’

तिरुवनंगन से ये सुनकर हम भी मुल्लइतिवु पहुंचे। यहां के कोक्कुथुडुई गांव में पाइपलाइन लगाने के लिए की जा रही खुदाई के दौरान 8 जुलाई, 2023 को एक शव मिला था। इसके बाद ग्रामीणों ने हंगामा शुरू कर दिया। खुदाई शुरू हुई और तकरीबन 20X40 फीट के गड्ढे से 14 शव मिल गए। इन शवों के साथ कुछ हरे रंग की वर्दियां भी थीं।

इसी जगह खुदाई में 14 शव मिले थे। इसके बाद मांग शुरू हुई कि इस इलाके में और खुदाई की जाए, ताकि पता चले कि अंदर कितने लोग दफन हैं। जांच के लिए एक बोर्ड भी बनाया गया है।

इसी जगह खुदाई में 14 शव मिले थे। इसके बाद मांग शुरू हुई कि इस इलाके में और खुदाई की जाए, ताकि पता चले कि अंदर कितने लोग दफन हैं। जांच के लिए एक बोर्ड भी बनाया गया है।

जहां से ये कंकाल मिले, उसके ठीक सामने गैराज चलाने वाले शायंदन ने बताया, ‘खुदाई के दौरान बुलडोजर के अगले हिस्से में मुझे एक वर्दी फंसी नजर आई। मैंने बुलडोजर रुकवाया। और धीरे-धीरे खुदाई करने के लिए कहा। कोकिलाई पुलिस स्टेशन को भी जानकारी दी गई। पुलिस आई और मामले को टालने लगी।’

‘लोगों ने हंगामा शुरू किया, तो मुल्लइतिवु के मजिस्ट्रेट आर प्रदीपन और जनरल हॉस्पिटल के जेएमओ वासुदेव की देख-रेख में खुदाई कराई गई। 15 दिन में यहां 14 शव मिले। सोचिए कि इस पूरे इलाके को अगर खोदा जाए तो क्या हाल होगा।’

40 हजार से ज्यादा लोग आज भी गायब
श्रीलंका के स्थानीय संगठनों और ITJP (International Truth and Justice Project) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, युद्ध के दौरान LTTE का साथ देने वाले 1.7 लाख लोगों को मार दिया गया था। इसमें से 40 हजार लोग अब भी गायब हैं। गायब लोगों के परिवार कई बार प्रदर्शन कर सरकार से जांच की मांग कर चुके हैं।

मुल्लइतिवु गांव में हमारी मुलाकात 70 साल के शुब्बाराव से हुई। वे बताते हैं, ‘जब यहां शव मिलने की खबर सुनी, तो मैं भी दौड़े-दौड़े यहां आया। उन्हें देख ऐसा लग रहा था, मानो वे हमारे अपने ही हैं। हम अपने आंसू रोक नहीं सके। उन्हें तब दफनाया गया, जब हम यहां नहीं थे। हमें नहीं पता ये किनकी बॉडी हैं।’

जांच के लिए बने बोर्ड में तमिल शामिल किए जाएं…
गांव में हमें विलेज काउंसिल के अध्यक्ष शिवागुरु मिले। उन्होंने बताया, ‘1984 में जंग शुरू हुई, तो मैं और मेरा परिवार यहां से चले गए थे। युद्ध खत्म होने के बाद 2013 में लौटे। यहां मिले शवों की फोरेंसिक जांच के बाद पता चल जाएगा कि ये LTTE के लोग थे या कोई और?’

‘हम चाहते हैं कि इसकी जांच के लिए बने बोर्ड में तमिल लोगों को भी शामिल किया जाए। मेरा भाई और उसका बेटा भी 20 साल से गायब हैं। उन्हें तलाशने के लिए हम लगातार भटक रहे हैं।’

छानबीन में पता चला कि अपना घर छोड़कर गए हजारों लोगों को उनकी जमीनें युद्ध खत्म होने के बाद भी लौटाई नहीं गई हैं। प्रोविजनल काउंसिल के पूर्व MLA टी रविकरण से भी हमारी मुलाकात हुई। उन्होंने बताया, ‘2 दिसंबर 1984 को पोदिया मोलई के 33 लोगों को सेना ने मार दिया था। सेना के जवानों ने एक रात में लोगों को जगह खाली करने का आदेश दिया था।’

‘2013 के बाद से लोग फिर यहां बस रहे हैं। अब यहां से डेड बॉडी मिल रही हैं, आप समझ सकते हैं कि ये क्या है। 40 हजार से ज्यादा लोग अब भी गायब हैं। नॉर्दर्न प्रोविंस के 8 जिलों में 5 साल से इसके खिलाफ प्रदर्शन चल रहा है।’

सेना ने अपनी बहादुरी दिखाने के लिए इलाके में स्मारक बनाया
LTTE और श्रीलंका के बीच हुए युद्ध के वक्त से ही मुल्लइतिवु और यहां के लोग सरकार के रुख से परेशान है। यहां कुछ देर रहने के बाद हम इरनईमाडू पहुंचे। जीत के बाद इसी जगह पर श्रीलंकन आर्मी ने जश्न मनाया था। अपनी बहादुरी दिखाने के लिए इसी जगह पर एक स्मारक बनाया गया है।

स्मारक के ठीक बगल में श्रीलंकन आर्मी ने एक इन्फॉर्मेशन सेंटर बनाया है। इसमें वॉर के दौरान आर्मी की कार्रवाई की कहानी बताई गई है। इन्फॉर्मेशन सेंटर में कई मैप्स लगे हैं। इनमें बताया गया है कि कैसे LTTE के गढ़ में घुसकर, उसे घेरकर खत्म किया गया। LTTE के पास से बरामद हथियार, गोला-बारूद, लैंडमाइन और पनडुब्बियों की तस्वीरों को भी यहां डिस्प्ले किया गया है।

इन्फॉर्मेशन सेंटर में वे फोटो भी हैं, जिनमें श्रीलंकन आर्मी के जवान यहां फंसे लोगों को रेस्क्यू कर रहे हैं। कुल मिलाकर ये इन्फॉर्मेशन सेंटर लोगों में श्रीलंकन सेना की अलग छवि पेश करने की कोशिश है।

यहां से निकलकर हम उस नेवल बेस के पास भी पहुंचे, जहां कभी प्रभाकरन का कब्जा था। इस बेस के ठीक पास नंदिकड़ा में प्रभाकरन की बॉडी बरामद हुई थी। उसके शरीर पर गोलियों के काफी निशान थे। सिर का ऊपरी हिस्सा खुला हुआ था। कुछ लोग दावा करते हैं कि प्रभाकरन को पकड़ कर मारा गया।

ये जगह लिट्टे का नेवल बेस थी। कहा जाता है कि प्रभाकरन की मौत के बाद श्रीलंकन आर्मी यहां पहुंची, तो उसे सबमरीन भी मिली थीं।

ये जगह लिट्टे का नेवल बेस थी। कहा जाता है कि प्रभाकरन की मौत के बाद श्रीलंकन आर्मी यहां पहुंची, तो उसे सबमरीन भी मिली थीं।

आर्थिक संकट के बाद तमिल लोग सबसे ज्यादा झेल रहे
जाफना यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी के लेक्चरर तिरुवनंगन बताते हैं, ‘श्रीलंका में आर्थिक संकट के बाद तमिल कम्युनिटी को सबसे ज्यादा झेलना पड़ा। आर्थिक संकट के बाद उन्हें रोजी-रोटी चलाने के लिए कोई काम नहीं मिल रहा है।

वॉर के बाद से सरकार ने उनके रिहैबिलिटेशन के लिए कोई कॉन्क्रीट सिस्टम नहीं बनाया है। सरकार जो नियम बनाती है, उनमें यहां के लोगों से न तो पूछा जाता है और न ही शामिल किया जाता है। सब कुछ कोलंबो में तय हो जाता है और उसे मिलिट्री के जरिए इम्प्लीमेन्ट किया जाता है।’

तिरुवनंगन आगे कहते हैं, ‘मेरी ही यूनिवर्सिटी की बात करें, तो यहां पर हॉस्टल फैसिलिटी नहीं है। बाहर से आने वाले स्टूडेंट्स को बोर्डिंग में रहना पड़ता है। गरीब स्टूडेंट्स के लिए ये मुश्किल है। तमिल कम्युनिटी को सदियों से कास्ट डिस्क्रिमिनेशन झेलना पड़ रहा है।’

‘तमिल पंजमर कम्युनिटी के पास कोई जमीन नहीं है। इससे उन्हें कंस्ट्रक्शन सेक्टर में काम करना पड़ता है। पॉलिटिकली और इकोनॉमिकली ये बहुत सीरियस इश्यू हैं, लेकिन सरकार तमिलों को नागरिक ही नहीं मानती।’

सरकार ऐसा क्यों कर रही है, इसके जवाब में तिरुवनंगन कहते हैं, ‘मौजूदा राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे की सरकार अवैध तरीके से चुनी गई है। इसे उस परिवार का सपोर्ट है, जिसे लोगों ने नकार दिया था। हमारा मानना है कि देश में जल्द से जल्द इलेक्शन होना चाहिए। रानिल विक्रमसिंघे 13वें संशोधन की बात कर रहे हैं। उसे पूरी तरह से लागू करने की बात कर रहे हैं, लेकिन वे लगातार चुनाव भी टाल रहे हैं।’

क्या है श्रीलंका में 13वां संशोधन?
श्रीलंका में सिंहली बौद्ध बहुसंख्यक हैं, वहीं तमिल अल्पसंख्यक हैं। दोनों के बीच लंबे समय से चल रहे संघर्ष को कम करने के लिए तब के भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी और श्रीलंकाई राष्ट्रपति जेआर जयवर्धने के बीच 1987 में श्रीलंका के संविधान में 13वां संशोधन हुआ था।

इसमें अल्पसंख्यक समुदाय यानी तमिलों को सत्ता में रोल दिया जाना था, लेकिन ये अब तक पूरी तरह से नहीं हो पाया है। इसके तहत 9 प्रांतों को स्वायत्तता दी गई थी। प्रांतीय परिषदों को शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, आवास, पुलिस और भूमि जैसे विषयों पर कानून बनाने का अधिकार दिया गया था।

भारत चाहता है कि श्रीलंका अपने संविधान के 13वें संशोधन का पालन करे। तमिल लोग कहते हैं कि ये संविधान का पार्ट होने के बावजूद लागू नहीं किया जा रहा है। 1990 में श्रीलंका के राष्ट्रपति रहे जेआर जयवर्धने ने संशोधन को निलंबित कर दिया था। 2002 में श्रीलंका सरकार ने संशोधन फिर से लागू करने की घोषणा की थी, लेकिन अब तक इसे पूरी तरह लागू नहीं किया गया है।

तमिल इलाकों में सिंहल बौद्ध बसाए जा रहे, PM मोदी मदद करें
आरोप लग रहे हैं कि सरकार लगातार तमिल इलाकों में सिंहलियों को बसा रही है। देश के उत्तर और पूर्वी हिस्सों में तमिल कम्युनिटी रहती है। यहां हजारों भूमिहीन तमिल हैं। इन्हीं इलाकों में दक्षिण से सिंहली और बुद्धिस्ट लोगों को लाकर बसाया जा रहा है। डेमोग्राफिक बदलाव के बाद यहां बुद्धिस्ट और अन्य समुदाय के लोग बढ़े, तो तमिलों को संसद से दूर रखा जा सकेगा। इस इलाके में बुद्धिस्ट मंदिर भी बनाए जा रहे हैं।

जाफना में आर्मी के बनाए कैंप। आरोप है कि तमिल लोगों की जमीन पर ऐसी बिल्डिंग्स बनाकर सेना सिंहलियों को बसा रही है।

जाफना में आर्मी के बनाए कैंप। आरोप है कि तमिल लोगों की जमीन पर ऐसी बिल्डिंग्स बनाकर सेना सिंहलियों को बसा रही है।

तिरुवनंगन इससे जुड़े सवाल के जवाब में कहते हैं, ‘कुछ इलाकों में यह हुआ है। इनमें से ज्यादातर वे इलाके हैं, जहां सेना का कब्जा है। वॉर शुरू होने के बाद तमिल लोग अपनी जमीनों को छोड़कर चले गए। उनकी जमीनों पर सेना ने कब्जा किया और फिर वहां बौद्ध मंदिर और स्तूप बनाए। मुल्लइतिवु में तमिलों की जमीन छीन ली गई है। इसके खिलाफ यहां प्रदर्शन भी हुए हैं।’

तमिलों की जमीन छीनने और हिंदू मंदिरों को तोड़कर बौद्ध मंदिर बनवाए जाने के खिलाफ जाफना के लोग प्रदर्शन कर रहे हैं।

तमिलों की जमीन छीनने और हिंदू मंदिरों को तोड़कर बौद्ध मंदिर बनवाए जाने के खिलाफ जाफना के लोग प्रदर्शन कर रहे हैं।

वे आगे बताते हैं, ‘वावुनिया में सरकार के करीबी लोगों ने एक मंदिर को तोड़ दिया था। युद्ध के वक्त भी सैकड़ों मंदिरों को बम से उड़ा दिया गया था। सरकार हिंदुओं के पूजा स्थल तोड़कर उनकी जगह बुद्धिस्ट मंदिर बना रही है। सरकार पुरातत्व विभाग के लोगों को भेजकर रिसर्च के नाम पर हिंदू मंदिरों को खोद रही है। उनकी जगह बाद में बुद्धिस्ट मंदिर बनाने में मदद कर रही है।’

जाफना में ही हमारी मुलाकात तेल्लिपलाई मंदिर के ट्रस्टी सदानंद से हुई। उन्होंने बताया कि पिछले 50 साल से तमिल लोग यहां आजादी की लड़ाई लड़ रहे हैं। जिन्हें कुछ नहीं मिला, उन्होंने हथियार उठा लिए। सरकार के खिलाफ लड़ना शुरू कर दिया। इसी वजह से सब कुछ फेल हो गया।’

‘हम प्रधानमंत्री मोदी से मांग करते हैं कि वे हिंदुओं के हितों की रक्षा के लिए आगे आएं और यहां की सरकार पर दबाव बनाकर समस्या का समाधान करवाएं। यहां के लोगों को भारत से मदद का इंतजार है।’

नॉर्थ प्रोविंस की मंत्री बोलीं- हां, तमिलों के साथ गलत हो रहा
सरकार का पक्ष जानने के लिए हम जाफना में नॉर्थ प्रोविंस की महिला और कल्याण मंत्रालय की मिनिस्टर आनंदी शशिधरण से मिले। नॉर्थ प्रोविंस की सरकार को इमरजेंसी के बाद भंग कर दिया गया था।

तमिलों से जुड़े सवाल पर आनंदी कहती हैं, ‘युद्ध के बाद से तमिल लोगों को जस्टिस नहीं मिल रहा है। कोविड और आर्थिक संकट के नाम पर यहां के लोगों का मूल मुद्दों से ध्यान भटकाया जा रहा है। हिंदू मंदिरों को तोड़कर बुद्धिस्ट मंदिरों का निर्माण किया जा रहा है।’

आनंदी आगे बताती हैं, ‘तमिल लोगों ने जमीन की लड़ाई के लिए हजारों जिंदगियां गंवाई हैं। LTTE के लड़ाके भी इसी मुद्दे पर लड़े थे। आर्थिक संकट की वजह सिर्फ एक आदमी नहीं है, बल्कि वे सभी हैं जो श्रीलंका में पहले राज कर चुके हैं।’

‘रानिल विक्रमसिंघे प्रधानमंत्री थे, तो देश के सेंट्रल बैंक में रॉबरी हुई थी। महिंदा के समय उन्होंने वॉर को खत्म किया और तमिल लोगों की प्रॉपर्टी कैप्चर की। उनके मंत्रियों ने बहुत करप्शन किया है, लेकिन आर्थिक संकट आया, तो सिर्फ तमिलों को कीमत चुकानी पड़ रही है।’

आनंदी आगे बताती हैं, ‘मौजूदा समय में कई सांसद वकील हैं, लेकिन किसी ने सरकार के खिलाफ केस फाइल नहीं किया है। वे IMF और भारत से मदद चाहते हैं, लेकिन वे अब भी लूट और भ्रष्टाचार कर रहे हैं। लोग सिर्फ महिंदा और गोटबाया राजपक्षे को जाने के लिए नहीं कह रहे थे, बल्कि वे सभी करप्ट राजनेताओं को जाने के लिए कह रहे थे। गए सिर्फ दो भ्रष्टाचारी और बाकी आज भी कैबिनेट का हिस्सा हैं।’

इलाके में 1000 बौद्ध मंदिर बनाए जा रहे
आनंदी के मुताबिक, ‘2015 में सरकार ने जाफना में 1000 बौद्ध मंदिरों के निर्माण के लिए कई हजार करोड़ रुपए का बजट पास किया। सभी सांसदों ने इसका समर्थन किया। इसके बाद यहां लोगों की जमीनों पर कब्जा किया गया, हाई-सिक्योरिटी जोन बनाया गया और वहां पर सिंहली मंदिर बनाए गए। सरकार को पहले यहां के लोगों से बात करनी चाहिए थी।’

‘मेरे गांव कांगेसंतुराई में भी ये लोग बुद्धिस्ट टेंपल बना रहे हैं। 1990 में हमें अपना गांव छोड़ना पड़ा, तब वहां पर कोई भी बुद्धिस्ट नहीं था। अब वहां बुद्धिस्ट को बसाया जा रहा है। सरकार सीक्रेट तरीके से बौद्ध मंदिर बना रही है।’

‘वावुनिया में लोगों को अचानक एक बड़ा टेंपल नजर आया। जांच करने पर पता चला कि इसे सीक्रेट तरीके से बनाया गया था। बौद्ध मंदिर के निर्माण से पहले जमीन के चारों ओर के हिस्सों को बड़े-बड़े शेड से कवर किया जाता है और फिर उसके अंदर कंस्ट्रक्शन किया जाता है।’

संघमित्रा के लगाए बोधि वृक्ष पर भी कब्जा
आनंदी ने आगे बताया कि नैनातीव कल तक तमिल लोगों का था, आज उसे छीनकर बुद्धिस्ट लोगों को दे दिया गया। बुद्धिस्ट ने वहां पर अपनी पर्सनल शिप सर्विस भी शुरू कर ली है। मैं आपसे बात कर रही हूं, तब भी पास के एक गांव में बुद्धिस्ट टेंपल बनने की जानकारी आ रही है।’

आनंदी ने आगे बताया कि सुल्लीपुरम में बोधि वृक्ष पर सरकार की ओर से कहा जा रहा है कि वह अशोक की बेटी संघमित्रा ने लगाया था। इसलिए वहां बौद्ध धर्म को मानने वालों का अधिकार है। न कि हिंदू धर्म को मानने वालों का।

ये जाफना के सुल्लीपुरम की फोटो है। आरोप है कि यहां पहले एक हिंदू मंदिर था, जिसे तोड़कर बौद्ध मंदिर बनाया जा रहा है।

ये जाफना के सुल्लीपुरम की फोटो है। आरोप है कि यहां पहले एक हिंदू मंदिर था, जिसे तोड़कर बौद्ध मंदिर बनाया जा रहा है।

भारत से मदद मांग रहे, लेकिन नहीं मिल रही
आनंदी कहती हैं, ‘हम भारत से मदद मांग रहे हैं, लेकिन उसकी ओर से भी कोई हेल्प नहीं मिल रही है। भारत ने LTTE के मुद्दों को सपोर्ट किया, हथियार दिए और उन्हें ट्रेनिंग दी। इसके बाद उन्होंने 13वें अमेंडमेंट के तहत एक एग्रीमेंट किया और नॉर्थ और ईस्ट को जोड़ दिया। अब 13वां अमेंडमेंट एक लॉ बन गया है, लेकिन इसे लागू नहीं किया जा रहा है।’

‘अगर एक आम व्यक्ति लॉ को नहीं मानता है, तो पुलिस हमसे सवाल करती है, लेकिन अगर सरकार लॉ को नहीं मानती, तो उससे कोई सवाल नहीं करता है।’

‘हम अपनी समस्या के समाधान के लिए इंडिया में जल्द एक अलग बोर्ड बनाने की मांग करते हैं। सरकार दक्षिण से सिंहली लोगों को लाकर अवैध तरीके से बसाने का काम कर रही है। हमारी जमीनें छीन कर उन्हें दे रही है।’

‘हमें डर है कि अगर ऐसा ही होता रहा तो आने वाले समय में हम अपनी मेजॉरिटी खो देंगे। हम भारत सरकार के खिलाफ नहीं है। हम भारत सरकार से चाहते हैं कि वह आगे आए और एक जनमत संग्रह करवाकर जनता से पूछे कि वह अलग ‘ईलम देश’ चाहती है या श्रीलंका में रहना चाहती है।’

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