संतुष्टि
छोटी , जब कभी भी परेशान होती या उसका मन ना लग रहा हो, तो अक्सर मेरे घर आ जाया करती थी।
इसी तरह आज भी डोर बैल बजाने की फॉर्मेलिटी करती हुई,घर के अंदर कुछ बड़ बड़ाते हुए आई और मेरे गले लग गई।
मैं समझ गई मेरी छुटकी बहन आज फिर असंतुष्टि से भरी अनेकों परेशानियों से घिरी हुई है।
हमेशा की तरह मैंने बड़े ही लाड़ प्यार से गले लगाया,और बोली की अरे बिलकुल सही समय पर आई है, गरमा गरम चाय और पकोड़े बना रही हूं अच्छा हुआ तू आ गई
परेशानी से भरी छुटकी मेरे साथ चाय तो पीने लगी,लेकिन रेडियो पर बज रही ग़ज़ल…तुम इतना जो मुस्कुरा रही हो ,क्या गम है जिसको छुपा रही हो…को जब मैं साथ साथ गुन गुनाने लगी और बोली की कितनी सुंदर ग़ज़ल है..
दर असल हम सभी को यदि खुशी और सुकून से रहना है तो यही करना चाहिए, चाहे कितना भी दुःख या गम क्यूं ना हो अपने गमों को छुपा कर ही रखना चाहिए ।
जो और जितना है उसी में संतुष्ठ रहना चाहिये ।पर ये हर किसी के बस की बात नहीं है।
रहने भी दीजिए दीदी, हर किसी में आप जैसा हुनर और संतुष्टि नहीं हो सकती,बड़ा मुश्किल होता है खुद को खुश और संतुष्ट रखना।
तब जबकि कोई और जो हमसे कमतर हो , हमसे कम ही डीसर्व करता हो,और उसके पास हर वो चीज, हर वो सुख हो जो वास्तव में हमारे पास होनी चाहिए।
मेरे बस का तो नही है ये सब।
बस बस…छुटकी समय और समझ के साथ साथ पता ही नही चलता कब ये हुनर हमारे अंदर आ जाए।
कहते हुए मैंने कहा चल आज मेरे पास ही रूकजा,मेरे साथ बाज़ार चल, कल रानी की बिटिया मुनिया का जन्म दिन है,उसके लिए बढ़िया सी नई फ्रॉक लानी है।
हम दोनों ने बहुत ही सुंदर सी फ्रॉक मुनिया के लिए ली,छुटकी का भी मन अब काफी अच्छा था,बोली हां दीदी मुनिया पर ये फ्रॉक बहुत सुंदर लगेगी, एक फ्रॉक मेरी तरफ से भी ले लेती हूं। वो बहुत खुश होगी इसे पहन कर।
अगले दिन रानी के साथ मुनिया आई तो, उसे छुटकी के हाथों ही नई फ्रॉक दिलवाई ,मुन्नी दोनो फ्रॉक देख के बहुत खुश हुई।छुटकी बोली देखा दीदी इसके चेहरे पर कितनी खुशी आ गई ।
मुन्नी फ्रॉक को ले कर हमेशा की तरह फुदकती खेलती रही, रानी से बोली ये फ्रॉक मैं अभी पहन लूं?
रानी कुछ जवाब देती उससे पहले छुटकी बोली हां हां क्यों नहीं आज मुन्नी का जन्म दिन है,आज ही नई फ्रॉक पहनेगी,कहते हुए बोली चल मैं तुझे नई फ्रॉक पहना देती हूं।
वास्तव में मुन्नी उस नई फ्रॉक में बहुत प्यारी लग रही थी,छुटकी ने दूसरी फ्रॉक का पैकेट पकड़ाते हुए कहा इसे कल पहन लेना।और मुन्नी हां में सिर हिलाते हुए फिर से हमेशा की तरह फुदकती हुई ,कोई गीत गाती हुई खेल में मगन हो गई।
अगले दिन छुटकी शायद सुकून से सोई थी,इसलिए देर से ही उठी,मैने कमरे की खिड़कियों से परदे खिसकाते हुए कहा लगता है आज बहुत बढ़िया नींद आई है।
हां में जवाब देती हुई छुटकी का ध्यान खिड़की के बाहर से बहुत ही मीठी आवाज़ में गीत गुन गुनाती,खिल खिलाती ,फुदकती मुन्नी की तरफ गया।
छुटकी ने आश्चर्य से मुन्नी को देखा, वही अपनी पुरानी सी फ्रॉक और अपनी मां के दुपट्टे को बड़े ही सलीके से ओढ़े हुए… किसी खेल में मगन थी।छुटकी ने मुन्नी को आवाज लगा के अपने पास बुलाया और पूछा अरे मुन्नी वो दूसरी नई फ्रॉक नही पहनी?
मुन्नी ने बड़े ही इत्मीनान और सहजता से कहा, हां पहनूंगी ना,जब नानी के घर छुट्टी में जाऊंगी,अभी तो मेरे पास बहुत सारी पुरानी फ्रॉक रखी हैं,देखो ये भी तो कितनी सुंदर है…..
छुटकी उस नन्ही सी मुन्नी के चेहरे पर उस सुकून भरी संतुष्टि को कुछ क्षण निहारती रही,और मुन्नी को कुछ पल गले से लगाते हुए बोली हां मेरी मुनिया बिल्कुल सही कह रही है।
मुन्नी तो फिर से अपने खेल में मशगूल हो गई,लेकिन छुटकी कुछ देर यूंही सोचती हुई मंद मंद मुस्कुराती हुई मुझसे बोली दीदी,मुझे मेरी सभी परेशानियों के जवाब मिल गए हैं,आज मैं भी निकलूंगी…
चलो जल्दी से नाश्ता बनाते हैं,और….तुम इतना जो मुस्कुरा रही हो…गुन गुनाते हुए .मेरा हाथ पकड़ कर रसोई की और ले गई।
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