बीकानेर।अजित फाउण्डेशन के वार्षिक उत्सव के दौरान सुप्रसिद्ध फिल्मकार प्रिया थुवसेरी द्वारा निर्मित डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘‘सिटी गर्ल्स’’ का प्रदर्षन किया गया। इस अवसर पर फिल्म निर्माता प्रिया थुवसेरी ने बताया कि किस प्रकार एक छोटे कस्बे या गांव से लड़कियां बाहर आना चाहती है। उन्होंने बताया कि किशोरी बालिकाएं सामाजिक जड़ताओं से उठकर अपना सहज जीवन जीना चाहती है, वह आजादी से जीना चाहती है और अपने फैसले स्वयं लेना चाहती है। इन्ही विचारांे पर केन्द्रित ‘सिटी गर्ल्स’ फिल्म दो युवतियेां पर केन्द्रित है जो गांव से शहर आती है वहां उनको किस प्रकार की समस्याओं एवं चुनौतियांे का सामना करना पड़ता है लेकिन वह वापस घर जाना नहीं चाहती क्योंकि वहां फिर से उन्हें सामाजिक जड़ताओं का सामना करना पड़ेगा। ‘सिटी गर्ल्स’ फिल्म बहुत ही सहजता से हमें बताती है कि किस प्रकार लड़कियों के जीवन में मुष्किले आती है और उनका सामना हमें कैसे करना चाहिए। फिल्म प्रदर्षन के पश्चात निदेशक प्रिया थुवसेरी ने दर्षकों के साथ विचार-विमर्ष किया तथा उनके कई सवालों के जवाब देकर जिज्ञासाओं को शांत किया।
वार्षिक उत्सव के अगले चरण में दिल्ली आईआईटी की प्रो. सिमोना साहनी ने किशोर-किशोरियों को सुप्रसिद्ध कथाकार मोहन राकेष द्वारा लिखी गई कहानी ‘मलबे का मालिक’ सुनाई। यह कहानी मूलतः भारत-पाक विभाजन के दौरान हुई हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख त्रासदी पर आधारित है। प्रो. सिमोना ने बताया कि इस भीषण हत्या काण्ड के कुछ समय बाद के हॉकी टीम का आना और उनसे जूड़ी यादों पर आधारित यह कहानी हमारे सामने कई प्रष्न छोड़ती है जिनका जवाब हमें अपने आस-पास का माहौल एवं समाज से लेने होगें। वर्तमान परिस्थितयों में हमें साम्प्रदायिक सौहार्द एवं आपसी सामंजस्य की ओर ध्यान देना होगा। जिससे ही हम सषक्त समाज की नींव रख सकते है। कहानी के समाप्त होने पर इस कहानी पर सार्थक चर्चा की गई।
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