आखिर केईएम रोड के व्यापारियों ने अचानक क्यों बंद कर दी दुकानें,जाने क्या है माजरा
बीकानेर। एक ओर तो शहर की ट्रेफिक व्यवस्था को सुधारने की कवायद में जुटा है और स्थानीय व्यापारियों से सहयोग की अपेक्षा कर शहर के मुख्य बाजार में ट्रेफिक व्यवस्था को बहाल करने में लगा है। वहीं दूसरी ओर केईएम रोड के व्यापारी इस व्यवस्था को लेकर लगातार विरोध कर रहे है। जिसके चलते आज केईएम रोड के व्यापारियों ने प्रशासन की इस व्यवस्था को लेकर अपने प्रतिष्ठान बंद रखे। व्यापारियों का कहना है कि पहले वन वे और फिर पार्किग की व्यवस्था से दुकान संचालन भी दुभर हो गया है। पहले ही कोविड के चलते दो सालों से आर्थिक मार झेल चुके व्यापारी प्रशासन के अस्थाई प्रयोगों से धंधा चौपट कर बैठे है। व्यवसायी नपरत सेठिया का कहना है कि शहर की ट्रेफिक व्यवस्था में सुधार के लिये संभागीय आयुक्त के आव्हान प्रशासन और पुलिस की ओर बरती जा रही सख्ती के विरोध में आज व्यापारियों ने अपनी दुकानें बंद कर दी और उनकी मांग है जब तक ग्राहकों को केईएम रोड तक नहीं आने दिया जाएगा तब तक उनका विरोध जारी रहेगा। इस मामले में दुकानदारों ने प्रशासन और पुलिस के खिलाफ आंदोलन को तेज करने की रणनीति बनाई है।
आखिर कब सुधरने की आदत डालेगें हम……
शहर के लिये नासूर बने रेलवे फाटक और ट्रेफिक व्यवस्था को लेकर जिला प्रशासन की ओर से अनेक वैकल्पिक व्यवस्थाएं की गई और जिले में आने वाले हर प्रशासनिक अधिकारी कोई न कोई व्यवस्था कर शहर में सुचारू ट्रेफिक व्यवस्था करने की कवायद करता है। सरकार ने भी कभी एलिवेटेड तो कभी अंडर बाइपास तो कभी बाइपास के प्रस्ताव बनाएं। लेकिन जब इसको अमीलीजामा पहनाने का समय आता है तो कभी व्यापारी तो कभी राजनीतिक दल बाधक बन जाते है। जिसकी वजह से हालात वहीं ढाई के तीन पात वाले बन जाते है। अब सवाल उठता है कि बड़े शहरों की तर्ज पर अनेक व्यवस्थाएं चाहने वाले बीकानेर में आखिर सुधार के साथ चलने की आदत व्यापारी और शहरवासी क्यों नहीं डालना चाहते। अगर बड़े शहरों की बात करें तो उनका फैलाया 15 से 20 किमी होने के बाद भी व्यवसायिक गतिविधियों और आमजन का आवागमन प्रभावित नहीं होता। तो फिर बीकानेर में महज एक केईएम रोड या इसके ईदगिर्द वाले बाजारों में बदलाव की संभावनाओं को लेकर बार बार किये जा रहे प्रयोग में व्यापारी और स्थानीय लोग अपने आप को क्यों नहीं डालना चाहते। निश्चित तौर पर बदलाव के साथ कुछ परेशानियों जरूर आती है। परन्तु धीरे धीरे जब ये आदत में शुमार होने लगेगा तो सभी के हालात भी बदलेंगे। खैर प्रशासन की इस व्यवस्था को जहां आमजन सराह रहा है। वहां व्यापारी इसे अपने रोजगार की मार के रूप में देख रहे है। कुल मिलाकर आपसी समन्वय से बदलाव की इस व्यवस्था से राहत तो नजर आ रही है।
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