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इजरायल का वह अहसान जो कभी नहीं भूलेगा भारत, बिना रिश्‍तों के दिए हथियार और 1971 की जंग हार गया पाकिस्‍तान

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इजरायल का वह अहसान जो कभी नहीं भूलेगा भारत, बिना रिश्‍तों के दिए हथियार और 1971 की जंग हार गया पाकिस्‍तान

India Israel News: सात अक्‍टूबर को जब हमास ने इजरायल पर अचानक हमला किया तो भारत वह पहला देश बना जिसने उसे आतंकी हमले के तौर पर संबोधित किया। भारत और इजरायल के रिश्‍ते करीब दशक पुराने हैं। वहीं अब एक किस्‍सा ऐसा भी सामने आ रहा है जो सन् 1971 की जंग से जुड़ा है।

तेल अवीव: सन् 1971 में भारत और पाकिस्‍तान के बीच तीसरी जंग हुई। यह जंग वह घटना थी जिसमें अमेरिका और ब्रिटेन समेत कई पश्चिमी देश पाकिस्‍तान के साथ खड़े थे। वहीं एक देश ऐसा भी था जो राजनयिक रिश्‍ते न होने के बाद भी भारत के साथ खड़ा था। हम बात कर रहे हैं इजरायल की जिसके साथ उस समय भारत के कूटनीतिक रिश्‍ते जीरो थे। दुनिया जानती है कि सन् 1999 में जब कारगिल में संघर्ष हुआ तो इजरायल ने कैसे भारत की मदद की थी। लेकिन उससे पहले युद्ध में इजरायल ने जो मदद की थी, उसके बार में बहुत कम लोग जानते हैं। आज जब इजरायल, हमास के साथ जंग के मैदान में है तो उस घटना का जिक्र भी लाजिमी है। कुछ साल पहले आई एक किताब में इजरायल की बिना हिचकिचाहट भारत को दी गई मदद के बारे में बताया गया था।

1971 के बाद बना बांग्‍लादेश
श्रीनाथ राघवन की किताब ‘1971 ए ग्‍लोबल हिस्‍ट्री ऑफ द क्रिएशन ऑफ बांग्‍लादेश’ में बताया गया है कि कैसे 14 दिन के युद्ध ने पूर्वी पाकिस्‍तान से अलग बांग्‍लादेश के निर्माण में मदद की थी। राघवन ने नई दिल्ली में नेहरू मेमोरियल संग्रहालय और पुस्तकालय में रखे गए पीएन हक्सर के कागजात के हवाले से कई बातें कही हैं। ये दस्तावेज युद्ध के चौंकाने वाले कई पहलुओं को सामने रखते हैं। उनकी मानें तो 1971 की जंग भारत के उन सबसे बेहतरीन सैन्य क्षणों में एक है जिसके बारे में बहुत ज्‍यादा जानकारी नहीं दी गई है। उन्‍होंने लिखा है कि हक्‍सर जो एक राजनयिक थे तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सलाहकार भी थे। राघवन ने इन दस्‍तावेजों के रिसर्च के बाद लिखा है कि उस समय फ्रांस में भारत के राजदूत डीएन चटर्जी ने इजरायल से हथियारों को खरीदने की प्रक्रिया शुरू की थी।

इजरायल के खिलाफ था भारत
उन्‍होंने छह जुलाई, 1971 को विदेश मंत्रालय को एक नोट लिखा था। इसमें कहा गया था कि ‘प्रचार, वित्त और यहां तक कि हथियार और तेल की खरीद’ के लिए इजरायल से मदद अनमोल होगी। इंदिरा गांधी ने तुरंत इस प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। इसके बाद खुफिया एजेंसी रॉ की मदद से छोटे से देश लिकटेंस्टीन की शाही रियासत के माध्यम से हथियार हासिल करने की प्रक्रिया शुरू की गई। दिलचस्‍प बात है कि उस समय भारत के इजरायल के साथ राजनयिक संबंध नहीं थे। बल्कि सन् 1948 में भारत ने इसके निर्माण के खिलाफ मतदान किया था। साथ ही इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष में अरब देशों का समर्थन किया था।

हथियारों की कमी से जूझता इजरायल

उस समय इजरायल हथियारों की कमी से जूझ रहा था लेकिन तत्‍कालीन इजरायली पीएम गोल्डा मेयर ने ईरान को ध्‍यान में रखकर तैयार किए गए हथियारों को भारत भेजने का फैसला किया। उन्होंने सीक्रेट तरीके से हस्तांतरण को संभालने वाली फर्म के निदेशक श्लोमो जबुलडोविक्‍ज के जरिए हिब्रू में इंदिरा गांधी को इससे जुड़ा एक नोट भेजा था। इसमें उन्‍होंने हथियारों के बदले में राजनयिक संबंधों का अनुरोध किया था। हालाकि, राजनयिक संबंध सन् 1992 में स्थापित हुए और तब नरसिम्हा राव भारत के पीएम थे।

ईरान और पाकिस्‍तान के बीच समझौता
एक और नोट जो चार अगस्‍त 1971 का उससे भी इजरायल की मदद का पता चलता है। इस नोट में तत्कालीन रॉ चीफ आरएन काओ ने हक्सर को लिखा था। इसमें विस्तार से बताया गया है कि इजरायली ट्रेनर्स के एक बैच के साथ हथियारों को हवाई मार्ग से कैसे पहुंचाया जाएगा। हथियार आखिर में भारतीय सेना और मुक्ति वाहिनी के सेना पास पहुंचेंगे। इसमें बताया गया था कि ये हथियार पाकिस्तानियों को आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर करेंगे। किताब में यह भी बताया गया है कि भारत के हवाई हमले के समय कराची को कवर देने के लिए ईरान और पाकिस्तान के बीच एक गुप्त समझौता हुआ था। लेकिन ईरान के शाह सोवियत संघ के गुस्‍से के डर से समझौते से मुकर गए।

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