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एक इंटेलिजेंस लीक ने दिलाई बांग्लादेश को आजादी:दुनिया का पहला लीक…खुफिया चिट्‌ठी से भड़की थी US की क्रांति

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एक इंटेलिजेंस लीक ने दिलाई बांग्लादेश को आजादी:दुनिया का पहला लीक…खुफिया चिट्‌ठी से भड़की थी US की क्रांति

REPORT BY SAHIL PATHAN

‘अगर आप अपने दुश्मन की कमजोरी जानते हैं…तो आप आधी जंग जीत चुके हैं।’

हजारों साल पुरानी चीनी दार्शनिक सुन त्जु की किताब ‘आर्ट ऑफ वॉर’ में लिखी ये लाइन डिजिटल होते जा रहे वॉरफेयर के दौर में भी बिल्कुल सटीक बैठती है।

रूस-यूक्रेन युद्ध में अपने सैनिक भेजने की बात से अब तक इनकार करता रहा अमेरिका अब अपने ही एक सैनिक के हाथों लीक हुए खुफिया दस्तावेजों के चलते बैकफुट पर है।

रूस के खिलाफ अमेरिका और यूरोप की रणनीति हो या अमेरिकी खुफिया एजेंसियों की अपने ही सहयोगी देशों में जासूसी…सोशल मीडिया पर लीक हुए अमेरिकी वॉर स्ट्रैटजी सीक्रेट्स को हाल के दिनों का सबसे बड़ा इंटेलिजेंस लीक माना जा रहा है।

कुछ एक्सपर्ट्स यहां तक मानते हैं कि इन रणनीतियों के सार्वजनिक होने से भले युद्ध पर खास असर न पड़े, लेकिन अमेरिकी और यूरोपीय देशों के सैनिकों की यूक्रेन में मौजूदगी को रूस मुद्दा बना सकता है।

आज जब कुछ एक्सपर्ट रूस-यूक्रेन जंग में तीसरे विश्व युद्ध की आहट देखते हैं, तब इस तरह के इंटेलिजेंस लीक दुनिया की तस्वीर बदल सकते हैं।

मगर ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है…

क्या आप जानते हैं कि 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भारत की जीत का सबसे बड़ा हथियार पाकिस्तान का एक इंटेलिजेंस लीक था?

क्या आप जानते हैं कि 1962 में एक इंटेलिजेंस लीक ने ही दुनिया को तीसरे विश्व युद्ध से बचा लिया था?

जानिए, कब हुआ था दुनिया का पहला इंटेलिजेंस लीक…और कब-कब देशों के सीक्रेट लीक होने की वजह से ग्लोबल पॉलिटिक्स और पावर की तस्वीर ही बदल गई…

पहले जानिए, सबसे ताजा इंटेलिजेंस लीक का सच

अमेरिकी एयरमैन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म डिस्कॉर्ड पर लीक किए खुफिया पेपर्स

अमेरिका के मैसाचुसेट्स नेशनल गार्ड के इंटेलिजेंस विंग में IT स्पेशलिस्ट के तौर पर एयरमैन रैंक पर काम करने वाले 21 वर्षीय जैक टाइक्साइरा ने रूस-यूक्रेन युद्ध से जुड़े खुफिया पेपर्स एक सोशल मीडिया ऐप डिस्कॉर्ड पर लीक कर दिए।

अमेरिका ने लीक हुए दस्तावेजों को कभी सही नहीं माना है, लेकिन 13 अप्रैल को जैक टाइक्साइरा की गिरफ्तारी ने इस बात पर मुहर लगा दी है कि पेपर वाकई में असली थे।

अमेरिका ने लीक हुए दस्तावेजों को कभी सही नहीं माना है, लेकिन 13 अप्रैल को जैक टाइक्साइरा की गिरफ्तारी ने इस बात पर मुहर लगा दी है कि पेपर वाकई में असली थे।

डिस्कॉर्ड एक ऐसा प्लेटफॉर्म है जहां एक जैसी रुचि रखने वाले लोग एक चैटरूम बनाकर किसी भी विषय पर बात कर सकते हैं या जानकारी साझा कर सकते हैं।

टाइक्साइरा की गिरफ्तारी के बाद ये खुलासा हुआ है कि इन पेपर्स के लीक होने के बहुत पहले से ही वो डिस्कॉर्ड के चैट रूम्स में खुफिया जानकारियां साझा करता था।

समझिए, क्यों इन लीक्स की वजह से अमेरिका और यूरोप परेशान हैं

1. अमेरिका का झूठ सामने आया कि उसने यूक्रेन में सैनिक नहीं भेजे

इन दस्तावेजों से पता चला है कि 14 अमेरिकी, 15 फ्रांसीसी और 50 ब्रिटिश सैनिक युद्ध में शामिल हैं। ये स्पेशल फोर्स के सैनिक हैं जो तेजी से विश्व स्तरीय ट्रेनिंग दे सकते हैं।

ये तस्वीर यूक्रेन से सटे रोमानिया में मौजूद अमेरिकी सैनिकों की है। अब तक अमेरिका यही कहता रहा है कि उसके सैनिक रोमानिया में ही हैं। मगर इन पेपर्स के मुताबिक वो यूक्रेन में मौजूद हैं और उसकी सेना को ट्रेनिंग भी दे रहे हैं।

ये तस्वीर यूक्रेन से सटे रोमानिया में मौजूद अमेरिकी सैनिकों की है। अब तक अमेरिका यही कहता रहा है कि उसके सैनिक रोमानिया में ही हैं। मगर इन पेपर्स के मुताबिक वो यूक्रेन में मौजूद हैं और उसकी सेना को ट्रेनिंग भी दे रहे हैं।

ये भी पता चला है कि यूक्रेन के 12 ब्रिगेड काउंटर ऑफेंसिव की तैयारी कर रहे हैं। और तो और ये दस्तावेज भी बताते हैं अब तक युद्ध में 43000 रूसी सैनिकों की जान जा चुकी है और पौने दो लाख से सवा दो लाख रूसी सैनिक घायल हो चुके हैं।

2. मिस्र, हंगरी और सर्बिया जैसे देशों का दोहरा चरित्र भी सामने आ गया

इस लीक से ये भी पता लगा कि अमेरिका का सहयोगी देश मिस्र रूस को 40 हजार रॉकेट बेचने की तैयारी कर रहा था।

2014 की इस तस्वीर में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ इजिप्ट के राष्ट्राध्यक्ष अब्देल फतह अल-सीसी दिख रहे हैं। इजिप्ट ने खुलकर तो अमेरिका का समर्थन किया है, मगर रूस को रॉकेट बेचने की तैयारी से उसकी मंशा पर सवाल उठने लगे हैं।

2014 की इस तस्वीर में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ इजिप्ट के राष्ट्राध्यक्ष अब्देल फतह अल-सीसी दिख रहे हैं। इजिप्ट ने खुलकर तो अमेरिका का समर्थन किया है, मगर रूस को रॉकेट बेचने की तैयारी से उसकी मंशा पर सवाल उठने लगे हैं।

हंगरी नाटो का सदस्य है और खुले तौर पर अमेरिका का समर्थन करता है। मगर लीक हुए पेपर्स के मुताबिक अमेरिकी खुफिया एजेंसियों की निगरानी में ये सामने आया है कि हंगरी अमेरिका को नंबर-1 दुश्मन मानता है। इस लीक के बाद हंगरी और मिस्र दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों को शर्मिंदगी उठानी पड़ रही है।

ये भी खुलासा हुआ है कि रूस के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंध का खुले तौर पर विरोध करने वाले देश सर्बिया ने चुपचाप यूक्रेन को सैन्य सामग्री मुहैया कराई है।

कुछ लीक्स चर्चा में आते हैं…कुछ की असलियत पर्दों में ही रह जाती है

1971 में अमेरिका में पेंटागन पेपर्स के नाम से चर्चित एक इंटेलिजेंस लीक में खुलासा हुआ था कि अमेरिका के 4 राष्ट्रपतियों ने वियतनाम युद्ध की सच्चाई जनता और संसद से छुपाई थी।

2003 में सामने आए प्लेम अफेयर ने अमेरिका के इराक पर हमले पर ही सवाल खड़े कर दिए थे।

2010 में एडवर्ड स्नोडन के जरिए विकिलीक्स पर जारी हुए खुफिया दस्तावेजों ने अफगानिस्तान युद्ध से लेकर अमेरिकी एजेंसियों के कैदियों पर टॉर्चर तक को चर्चित कर दिया था।

पनामा पेपर्स ने दुनिया की बड़ी हस्तियों के काले धन को तो पेगासस पेपर्स ने दुनिया की सरकारों के अवैध सर्विलांस को चर्चा में ला दिया।

लेकिन इनके अलावा कई इंटेलिजेंस लीक्स ऐसे भी हुए हैं जिनकी चर्चा तो कम होती है, मगर उनका असर काफी गहरा रहा है।

जानिए, कौन से थे ये इंटेलिजेंस लीक्स…

आधुनिक विश्व का पहला लीक…जिसने अमेरिकी क्रांति की स्पीड बढ़ा दी

आधुनिक इतिहास में पहला रिकॉर्डेड इंटेलिजेंस लीक 1773 का माना जाता है।

जून, 1773 में मैसाच्युसेट्स के गवर्नर थॉमस हचिन्सन की लिखी कुछ चिटि्ठयां बॉस्टन गजट में छप गईं।

ये चिटि्ठयां हचिन्सन ने ब्रिटिश सरकार को लिखी थीं, जिनमें ये आगाह किया गया था कि अमेरिकी क्रांतिकारियों को रोकने के लिए सेना बढ़ा दी जाए।

1774 में अमेरिकी अखबार में छपे इस कार्टून में थॉमस हचिन्सन पर मौत को हमला करते हुए दिखाया गया था। इससे पता चलता है कि उस समय हचिन्सन की चिट्‌ठी सार्वजनिक होने से अमेरिकी जनता उनसे और ब्रिटिश सरकार से कितनी नाराज थी।

1774 में अमेरिकी अखबार में छपे इस कार्टून में थॉमस हचिन्सन पर मौत को हमला करते हुए दिखाया गया था। इससे पता चलता है कि उस समय हचिन्सन की चिट्‌ठी सार्वजनिक होने से अमेरिकी जनता उनसे और ब्रिटिश सरकार से कितनी नाराज थी।

दरअसल, ये चिटि्ठयां एक अज्ञात सूत्र ने दिसंबर, 1772 में अमेरिकी क्रांतिकारी बेंजामिन फ्रैंकलिन को दी थीं। फ्रैंकलिन के एक साथी जॉन एडम्स ने इन्हें जून, 1773 में अखबार में छपवा दिया।

नतीजा ये हुआ कि बॉस्टन में स्थानीय लोगों और ब्रिटिश सरकार के प्रतिनिधियों में तनाव बढ़ गया। 1773 में ही यहां ‘टी एक्ट’ लागू हुआ था जिसके विरोध में दिसंबर, 1773 में बॉस्टन बंदरगाह पर विद्रोह हो गया। इसे इतिहास में ‘बॉस्टन टी पार्टी’ के नाम से जाना जाता है।

नथैनियल कुरिअर की 1846 की इस पेंटिंग में बॉस्टन टी पार्टी को दर्शाया गया है, जिसमें अमेरिकी क्रांतिकारियों ने विरोध करते हुए ब्रिटिश जहाजों में आए चाय के क्रेट्स समुद्र में गिरा दिए थे।

नथैनियल कुरिअर की 1846 की इस पेंटिंग में बॉस्टन टी पार्टी को दर्शाया गया है, जिसमें अमेरिकी क्रांतिकारियों ने विरोध करते हुए ब्रिटिश जहाजों में आए चाय के क्रेट्स समुद्र में गिरा दिए थे।

इस घटना के बाद क्रांति की आग ऐसी भड़की कि 1776 में अमेरिका ब्रिटेन के चंगुल से आजाद हो गया।

दुनिया के पहले इंटरकॉन्टिनेंटल बम…जिनका असर ही छुपा लिया गया

आज दुनिया का हर देश इंटर कॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल्स को अपनी ताकत मानता है। यानी ऐसी मिसाइल जो एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप तक मारक रेंज रखती हो।

मगर द्वितीय विश्व युद्ध के समय ऐसी मिसाइल्स मौजूद नहीं थीं। जापान ने 1944 में पहली बार इंटरकॉन्टिनेंटल बम का इस्तेमाल अमेरिका के खिलाफ किया था, मगर वो कभी इन बमों का असर ही नहीं जान पाया।

दरअसल, जापान ने प्रोजेक्ट फू-गो के नाम से अमेरिका पर गुब्बारे बम छोड़े थे। जापान के होन्शू से छोड़े गए हर विशालकाय गुब्बारे के साथ 15 किलो विस्फोटक होता था।

ऑपरेशन फू-गो के तहत ऐसे 9300 गुब्बारे बम जापान ने छोड़े थे।

ऑपरेशन फू-गो के तहत ऐसे 9300 गुब्बारे बम जापान ने छोड़े थे।

नवंबर, 1944 से अप्रैल, 1945 के बीच जापान ने ऐसे 9300 गुब्बारा बम छोड़े। इन बमों को 9000 किमी. दूर अमेरिका में जाकर फटना था। मगर जापान के पास ऐसा कोई तरीका नहीं था कि वो इन बमों से हुए नुकसान के बारे में पता कर पाए।

अमेरिका में पकड़े गए एक गुब्बारे की अंदरूनी मशीनरी की तस्वीर। इसमें विस्फोटक को कंट्रोल करने के लिए पूरा मैकेनिज्म बना था, ताकि वह किसी चीज से टकराने के बाद ही फटे।

अमेरिका में पकड़े गए एक गुब्बारे की अंदरूनी मशीनरी की तस्वीर। इसमें विस्फोटक को कंट्रोल करने के लिए पूरा मैकेनिज्म बना था, ताकि वह किसी चीज से टकराने के बाद ही फटे।

वो पूरी तरह से अखबारों और रेडियो पर ही निर्भर था जो अमेरिका में नुकसान की खबरें दुनिया को पहुंचाते।

अमेरिकी इंटेलिजेंस ने जनवरी, 1945 से इन बमों को इंटरसेप्ट करना शुरू किया था। मई, 1945 में ऑरेगन के ब्लाई शहर में ऐसे एक गुब्बारे की वजह से 6 नागरिकों की जान चली गई थी। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान यूएस मेनलैंड पर यही इकलौती वॉर कैजुअल्टी थी।

ऑरेगन में जहां जापानी गुब्बारा बम से 6 लोगों की मौत हुई थी, वहां एक स्मारक बनाया गया है, जो आज भी कायम है।

ऑरेगन में जहां जापानी गुब्बारा बम से 6 लोगों की मौत हुई थी, वहां एक स्मारक बनाया गया है, जो आज भी कायम है।

लेकिन अमेरिकी खुफिया विभाग ने जनवरी, 1945 में ही सभी अखबारों और रेडियो ब्रॉडकास्टर्स को गुप्त मेमो भेजकर सख्त हिदायत दी थी कि इन गुब्बारों के बारे में कोई भी खबर न छापी जाए।

10 मार्च, 1945 को जापान का एक गुब्बारा वॉशिंगटन राज्य के टॉपेनिश शहर में बिजली की ट्रांसमिशन लाइन से टकरा गया था। इसकी वजह से परमाणु बम बनाने के अमेरिकी मैनहटन प्रोजेक्ट की बिजली भी 3 दिन तक कटी रही थी।

13 अप्रैल, 1945 की इन तस्वीरों में अलास्का के ऊपर उड़ रहे एक जापानी गुब्बारा बम को अमेरिकी P-38 फाइटर द्वारा मार गिराते दिखाया गया है।

13 अप्रैल, 1945 की इन तस्वीरों में अलास्का के ऊपर उड़ रहे एक जापानी गुब्बारा बम को अमेरिकी P-38 फाइटर द्वारा मार गिराते दिखाया गया है।

मगर फरवरी, 1945 में एक रिपब्लिकन नेता के आर्टिकल छोड़ किसी भी अखबार में इन गुब्बारों और इससे हुए नुकसान का कोई जिक्र ही नहीं हुआ।

जापान ने पहले तो अनुमान के आधार पर ये प्रचारित किया कि इन बमों से अमेरिका में भारी नुकसान हुआ है। मगर जब अमेरिका से कोई जानकारी ही बाहर नहीं आई तो उसके लिए मुश्किल खड़ी हो गई।

अप्रैल, 1945 तक कागज और हाइड्रोजन गैस की कमी के चलते जापान ने गुब्बारा बम बनाना छोड़ दिया।

क्यूबन मिसाइल क्राइसिस…एक लीक की वजह से ही रूस के इरादे जान पाया था अमेरिका

द्वितीय विश्व युद्ध खत्म होते-होते जापान पर परमाणु बम गिराकर अमेरिका खुद को सुपर पावर साबित कर चुका था।

हालांकि 1950 का दशक पूरा होने तक रूस भी परमाणु बम बना चुका था। इसी न्यूक्लियर रेस ने दुनिया को सालों तक कोल्ड वॉर में उलझाए रखा।

1954 से 1956 के बीच अमेरिका जुपिटर नामक मीडियम रेंज बैलिस्टिक मिसाइल बना चुका था। न्यूक्लियर हमला करने में सक्षम ये मिसाइल जमीन, हवाई जहाज और नेवी के शिप्स से भी दागी जा सकती थी जिसकी मारक क्षमता 2400 किमी थी।

अमेरिकी जुपिटर मिसाइल, जिन्हें इटली और तुर्की में तैनात किया गया था।

अमेरिकी जुपिटर मिसाइल, जिन्हें इटली और तुर्की में तैनात किया गया था।

साल 1958 तक इटली में 30 जुपिटर तैनात किए जा चुके थे और साल 1959 तक 15 मिसाइल तुर्की में भी लग चुकी थी। रूस इसे अप्रत्यक्ष आक्रमण मान रहा था।

लिहाजा रूस ने अमेरिका के नाक के नीचे उसके दुश्मन क्यूबा से हाथ मिला लिया। क्यूबा के राष्ट्राध्यक्ष फिदेल कास्त्रो ने चुपके से रूसी इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइलों की क्यूबा में तैनाती की तैयारी शुरू कर दी।

मगर ये जानकारी अमेरिका को पहले ही मिल चुकी थी। जरिया था रूसी मिलिट्री इंटेलिजेंस का कर्नल ओलेग पेन्कोव्स्की।

ओलेग पेन्कोव्स्की रूसी मिलिट्री इंटेलिजेंस का एक अफसर था। कोल्ड वॉर के दौरान उसे कोडनेम ‘हीरो’ दिया गया था।

ओलेग पेन्कोव्स्की रूसी मिलिट्री इंटेलिजेंस का एक अफसर था। कोल्ड वॉर के दौरान उसे कोडनेम ‘हीरो’ दिया गया था।

पेन्कोव्स्की, रूस के सरकारी तंत्र में करप्शन और चाटुकारिता से परेशान था। वो 1961 में मास्को में एक पार्टी के दौरान ब्रिटिश खुफिया एजेंसी MI-6 के मास्को चीफ रूआरी चिजोल्म की पत्नी जेनेट से मिला था।

पेन्कोव्स्की ने खुद MI-6 और CIA से सूचनाएं साझा करने की पेशकश की थी। वो एक मिनिएचर कैमरे से रूसी खुफिया दस्तावेजों की तस्वीरें खींचता और इन्हें सिगरेट के पैकेट या मिठाई के डिब्बों में माइक्रोफिल्म्स के जरिए जेनेट तक पहुंचा देता था।

पेन्कोव्स्की की दी हुई जानकारी की वजह से अमेरिकी एजेंसियों को पता था कि रूस के पास R-12 न्यूक्लियर मिसाइल्स हैं और इन्हें क्यूबा भेजा जा रहा है।

पेन्कोव्स्की की दी हुई जानकारी की वजह से अमेरिकी एजेंसियों को पता था कि रूस के पास R-12 न्यूक्लियर मिसाइल्स हैं और इन्हें क्यूबा भेजा जा रहा है।

पेन्कोव्स्की ने ही रूसी न्यूक्लियर मिसाइल्स की जानकारी अमेरिका को भेजी थी। अक्टूबर, 1962 में जब 4 रूसी पनडुब्बियां न्यूक्लियर मिसाइल्स लेकर क्यूबा के लिए रवाना हुईं तो अमेरिका पहले से तैयार था।

अमेरिका के U-2 स्पाई शिप ने क्यूबा की ये तस्वीरें खींचीं थी जिनमें लॉन्ग रेंज मिसाइल्स के लॉन्च पैड बनाने की तैयारी दिख रही थी। इसी के आधार पर अमेरिका ने अपने नेवल शिप्स क्यूबा भेज दिए थे।

अमेरिका के U-2 स्पाई शिप ने क्यूबा की ये तस्वीरें खींचीं थी जिनमें लॉन्ग रेंज मिसाइल्स के लॉन्च पैड बनाने की तैयारी दिख रही थी। इसी के आधार पर अमेरिका ने अपने नेवल शिप्स क्यूबा भेज दिए थे।

22 अक्टूबर को अमेरिकी नेवल शिप्स ने क्यूबा को घेर लिया और अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ. केनेडी ने जनता के सामने ऐलान कर दिया था रूस, क्यूबा की जमीन से अमेरिका पर परमाणु हमला कर सकता है। ऐसा हुआ तो अमेरिका पूरी ताकत से जवाब देगा।

ये तस्वीर 23 अक्टूबर, 1962 की है जिसमें तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ. केनेडी क्यूबा के मिसाइल इम्बार्गो के डिक्लेयरेशन पर हस्ताक्षर कर रहे हैं।

ये तस्वीर 23 अक्टूबर, 1962 की है जिसमें तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ. केनेडी क्यूबा के मिसाइल इम्बार्गो के डिक्लेयरेशन पर हस्ताक्षर कर रहे हैं।

अमेरिकी जहाजों ने क्यूबा के आस-पास आने वाले हर रूसी जहाज पर पाबंदी लगा दी थी। तस्वीर में एक रूसी कार्गो शिप के ऊपर उड़ता अमेरिकी P-2H नेपच्यून फाइटर प्लेन दिख रहा है।

अमेरिकी जहाजों ने क्यूबा के आस-पास आने वाले हर रूसी जहाज पर पाबंदी लगा दी थी। तस्वीर में एक रूसी कार्गो शिप के ऊपर उड़ता अमेरिकी P-2H नेपच्यून फाइटर प्लेन दिख रहा है।

अपना प्लान खुलने के बाद रूस ने अपनी न्यूक्लियर सबमरीन्स को वापस बुला लिया। बदले में अमेरिका ने भी इटली और तुर्की से अपनी मिसाइल्स को समेटना शुरू कर दिया।

ये तस्वीर 1963 की है जब ओलेग पेन्कोव्स्की पर मुकदमा चल रहा था।

ये तस्वीर 1963 की है जब ओलेग पेन्कोव्स्की पर मुकदमा चल रहा था।

हालांकि इस पूरे फसाद के बीच 22 अक्टूबर को ही मास्को में पेन्कोव्स्की को गिरफ्तार कर लिया गया। उसकी मौत कैसे हुई, ये आज भी एक रहस्य है।

पाकिस्तान का इंटेलिजेंस लीक ही बना बांग्लादेश की आजादी का हथियार

1970 के दिसंबर में पाकिस्तान के आम चुनाव में पूर्वी पाकिस्तान (आज का बांग्लादेश) में शेख मुजीब-उर रहमान की पार्टी आवामी लीग को 162 में 160 सीटों पर जीत मिली थी।

पाकिस्तान के संसद में 313 में 167 सांसद ले कर अवामी लीग सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। 88 सीट जीत कर जुल्फिकार अली भुट्टो की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी सरकार बनाने के लिए दूसरी सबसे बड़ी उम्मीदवार थी।

रहमान को सरकार नहीं बनाने दिया गया। उल्टे 25 मार्च 1971 को पाकिस्तान की सेना ने पूर्वी पाकिस्तान की पुलिस, पैरामिलिट्री फोर्स और विद्यार्थियों पर आक्रमण कर दिया। रहमान गिरफ्तार कर लिए गए और पूर्वी पाकिस्तान में कत्ल, बलात्कार और हैवानियत का दौर शुरू हो गया। ऐसे समय में एक बंगाली नवयुवक पाकिस्तानी सेना में तैनात था।

2021 में भारत सरकार ने सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट कर्नल काजी सज्जाद अली जहीर को पद्मश्री सम्मान से नवाजा।

2021 में भारत सरकार ने सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट कर्नल काजी सज्जाद अली जहीर को पद्मश्री सम्मान से नवाजा।

पूर्वी पाकिस्तान में जन्मे काजी सज्जाद अली जहीर 1969 में पाकिस्तान सेना में कैडेट अफसर बने और छठे फील्ड आर्टिलरी रेजिमेंट में सियालकोट में तैनात हो गए। जल्द ही उन्होंने उर्दू और पंजाबी भी सीख ली थी। सियालकोट में लोगों को कभी शक भी नहीं हुआ कि जहीर पूर्वी पाकिस्तान के हैं।

उन्हें कमांड पोस्ट पर जाने और वॉर इक्विप्मेंट का मुआयना करने के भरपूर अवसर मिले। सेना में उनकी ख्याति मास्टर मैप रीडर के तौर पर बढ़ने लगी। मैप के सहारे रात के अंधेरे में वे सेना तैनाती स्थल तक बड़े आसानी से पहुंच सकते थे।

उनके अफसरों में उनकी उपयोगिता बढ़ती रही थी और उनके पास सूचना प्राप्त करने का दायरा भी बढ़ता जा रहा था। साल 1971 की शुरुआत में ही उन्हें कमांड पोस्ट, हथियारों की आवाजाही और हेलिपैडों की दुरुस्तगी से अनुमान होने लगा था कि पाकिस्तान की सेना युद्ध की तैयारी कर रही है।

7 मार्च, 1971 को लरकाना में भुट्टो के घर पर 3 हेलिकॉप्टर उतरे और यहां पूर्वी पाकिस्तान में बंगालियों पर हैवानियत बरपाने का ऑपरेशन सर्चलाइट प्लान बनाया गया।

जनरल टिक्का खान को बांग्लादेश में हुए नरसंहार का आर्किटेक्ट माना जाता है।

जनरल टिक्का खान को बांग्लादेश में हुए नरसंहार का आर्किटेक्ट माना जाता है।

प्लान की खबर मुजीबुर रहमान के पास उसी दिन पहुंच चुकी थी। उसी दिन पाकिस्तान सेना ने जनरल टिक्का खान को ढाका रवाना कर दिया।

खान वो ही जनरल था जिसने बलूचिस्तान में नरसंहार को अंजाम दिया था। रहमान ने जनता को हथियार उठाने का आह्वान कर दिया था। जहीर को एहसास हो चला था कि उसकी जरूरत पूर्वी बंगाल में है।

मैप एक्सपर्ट जहीर 1971 में मात्र बीस वर्ष के थे। उन्होंने ठाना कि चुपके से पाकिस्तान छोड़ कर भारत में दाखिल होंगे और भारत की सेना से संपर्क करेंगे।

सेना की तैनातियों की जानकारी मैप पर होने के कारण जहीर ने शकरगढ़ के रास्ते जम्मू में दाखिल होने का प्लान बनाया, क्योंकि इस रूट पर पाकिस्तानी सेना की तैनाती सबसे कम थी।

जेब में 20 रुपए और जूतों में मैप छिपा कर जहीर पाकिस्तानी सेना और भारत में BSF की गोलियों के बीच खाइयों से होते हुए रात के अंधेरे में जम्मू पहुंचे। वे जम्मू के भीतर गए और उन्हें CRPF के जवानों ने पकड़ा।

भारत को लगा जहीर पाकिस्तानी जासूस हैं। उन्हें पठानकोट ले जाया गया जहां उन्होंने पाकिस्तानी सेना की तैनातियों को मैप पर दिखाया।

जहीर ने भारतीय सेना को बताया कि पाकिस्तान युद्ध की तैयारी जम्मू फ्रंट के लिहाज से नहीं कर रहा है। यहां की तैयारी केवल कन्फ्यूज करने के लिए है।

जहीर को दिल्ली ले जाया गया। वे कहते हैं उन्हें कभी नहीं बताया गया कि उन्हें भारत की सेना ने बंदी बनाया है। दिल्ली के सफदरजंग एनक्लेव स्थित एक घर में वे आराम से रह रहे थे और सेना को विस्तार से खुफिया जानकारी दे रहे थे।

भारत के सेना प्रमुख जनरल मानेकशॉ और उस वक्त मुक्ति वाहिनी के प्रमुख कर्नल उस्मानी के बीच में जहीर पर चर्चा हुई। सितंबर में भारत ने उन्हें मुजीबनगर में मुक्तिवाहिनी को सौंप दिया। मुक्तिवाहिनी के पास दो ही आर्टिलरी यूनिट थीं जिसमें से एक को जहीर के कमांड में सौंप दिया गया।

मुक्ति वाहिनी की शुरुआत एक क्रांतिकारी सेना की तरह हुई थी। स्थानीय युवाओं को हथियार चलाने की ट्रेनिंग दी गई थी।

मुक्ति वाहिनी की शुरुआत एक क्रांतिकारी सेना की तरह हुई थी। स्थानीय युवाओं को हथियार चलाने की ट्रेनिंग दी गई थी।

आगे जाकर मुक्तिवाहिनी ने एक संगठित सेना का रूप ले लिया। उनकी पैदल टुकड़ियों और आर्टिलरी ब्रिगेड्स ने पाकिस्तानी सेना को रोक दिया।

आगे जाकर मुक्तिवाहिनी ने एक संगठित सेना का रूप ले लिया। उनकी पैदल टुकड़ियों और आर्टिलरी ब्रिगेड्स ने पाकिस्तानी सेना को रोक दिया।

अक्टूबर 1971 से लेकर दिसंबर की शुरुआत तक मुक्तिवाहिनी ने पाकिस्तानी सेना के पसीने छुड़ा दिए थे। पाकिस्तान सितंबर के महीने से ही भारत पर आक्रमण करने का प्लान बना रहा था जिसका नाम था ऑपरेशन चंगेज खान।

मुक्तिवाहिनी की सफलता से घबराकर पाकिस्तान ने 3 दिसंबर, 1971 को उत्तर भारत के 11 शहरों पर भारतीय लड़ाकू जहाज के अड्डों पर एयर रेड शुरू कर दिया। लिहाजा आधिकारिक तौर पर भारत ने पाकिस्तान से युद्ध का बिगुल बजा दिया।

6 दिसंबर को भारतीय सेना की तरफ से जहीर को सूचना मिली कि उनके द्वारा दी गई खुफिया जानकारी बहुत काम आई है। भारत की सेना पाकिस्तान की सीमा में 56 किमी तक अंदर घुस चुकी थी।

16 दिसंबर को पाकिस्तान के 93000 सैनिकों ने भारत और मुक्तिवाहिनी के सामने सरेंडर कर दिया।

16 दिसंबर, 1971 की इस आइकॉनिक तस्वीर में पाकिस्तानी ईस्टर्न कमांड के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल ए.ए.के. नियाजी सरेंडर के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करते दिख रहे हैं।

16 दिसंबर, 1971 की इस आइकॉनिक तस्वीर में पाकिस्तानी ईस्टर्न कमांड के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल ए.ए.के. नियाजी सरेंडर के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करते दिख रहे हैं।

पाकिस्तान का बंटवारा हो गया और स्वतंत्र बांग्लादेश में कर्नल जहीर शहीद भारतीय सैनिकों के योगदान को पहचान दिलाने की मुहिम में लग गए। करीब 300 सैनिकों को बांग्लादेश सरकार ने सम्मानित किया।

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