एडल्ट्री अपराध नहीं:55% पार्टनर को देते धोखा; एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर अपराध नहीं, सहमति से संबंध बनाने पर जेल नहीं भेज सकते
नई दिल्ली
एडल्ट्री यानी व्यभिचार अपराध नहीं है। कभी इंडियन पीनल कोड (IPC) में धारा 497 के नाम से जाने जाने वाले कानून को नए बिल में शामिल नहीं किया गया है। इसी साल भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य संहिता नाम से तीन बिल को संसदीय पैनल के पास भेजा गया था।
इस पैनल ने एडल्ट्री को अपराध मानने की सिफारिश की थी। रिपोर्ट में कहा गया कि एडल्ट्री में दोषी पाए गए केवल पुरुष को ही सजा न हो बल्कि महिला को भी सजा मिलनी चाहिए। लेकिन सरकार ने इस सिफारिश को नहीं माना। यानी एडल्ट्री अपराध की श्रेणी में नहीं आता।
497 धारा मतलब वाइफ को हसबैंड की प्रोपर्टी बताना
इंडियन पीनल कोड का सेक्शन 497 जेंडर के आधार पर भेदभाव को प्रोमोट कर रहा था। इसे न केवल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने बल्कि बृज लाल की अध्यक्षता वाली संसदीय पैनल ने भी माना कि यह कानून केवल पुरुषों को सजा देता है जबकि औरत को हसबैंड की संपत्ति के रूप में देखता है।
2018 में सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने सेक्शन 497 को आर्टिकल 14, 15 और 21 का भी उल्लंघन माना।
तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पति अपनी पत्नी का मास्टर नहीं हो सकता और न ही कानूनी रूप से वह पत्नी का संप्रभु स्वामी हो सकता है।
पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट की वकील तनु बेदी बताती हैं कि एडल्ट्री से जुड़ा यह कानून पत्नी को सिर्फ एक प्रोपर्टी की तरह ही देखता है। साथ ही महिला या पुरुष होने को लेकर कई तरह के भेदभाव हैं।
यदि पत्नी का किसी के साथ अफेयर है तो पति प्रेमी के खिलाफ मुकदमा कर सकता है। 5 साल तक के लिए पत्नी के प्रेमी को जेल भिजवा सकता है। लेकिन पत्नी अपने पति को किसी और के साथ पाती है तो वह अपने पति को एडल्ट्री के लिए सजा नहीं दिलवा पाती। न ही पति के प्रेमी को ही सजा दिलवा सकती है।
महत्वपूर्ण बात यह है कि सेक्शन 497 पत्नी के प्रेमी को ही सजा दिए जाने का प्रावधान करता है।
यानी जो प्रेमी है वही एडल्ट्री के दायरे में आता है। ऐसे मामलों में महिला के खिलाफ न तो केस दर्ज होता था और न ही उसे सजा देने का प्रावधान था।
तनु बेदी बताती हैं कि IPC की धारा 497 असंवैधानिक और भेदभाव वाला कानून है इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने इसे हटाया।
यह कानून एक पुराने माइंडसेट को ही दिखा रहा था। वास्तव में यह सिर्फ पति का एक अधिकार माना गया कि पत्नी उसकी संपत्ति है।
अगर इस संपत्ति की चोरी हो गई तो एडल्ट्री मान लिया गया। यह एक पक्षीय कानून था जिसे बहुत पहले खत्म करना चाहिए था।
सहमति से बने संबंध पर किसी को जेल नहीं भेज सकते
हैदराबाद में जानी-मानी वकील वसुधा नागराज कहती हैं कि कपल में किसी का बाहर से रिश्ता है तो यह उनके अलग होने का एक आधार हो सकता है। लेकिन शादी या शादी से बाहर दो लोगों को आपसी सहमति से बने सेक्स संबंधों पर जेल नहीं भेजा सकता।
एडल्ट्री क्राइम नहीं हो सकता, यह तलाक के लिए एक आधार हो सकता है। वह बताती हैं कि कई ऐसे मामले आते हैं जिसमें पुरुष के एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स होते हैं। विरोध करने पर पति अपनी पत्नी को पीटता है। लेकिन पत्नी किसी से दोस्ती करती है या किसी पराए पुरुष से बात भी कर लेती है तो पति को यह बर्दाश्त नहीं होता।
औरत को व्यभिचारी या कुलटा होने का दंश झेलना पड़ता है। पति उस पर केस करने की धमकी देता है। पुरुष को ज्यादा फर्क नहीं पड़ता लेकिन औरत को बदनामी झेलनी पड़ती है।
पत्नी को कुलटा बता मेंटेनेंस न देने का षड्यंत्र रचते पुरुष
सुप्रीम कोर्ट में वकील सितवत नबी बताती हैं कि एडल्ट्री कोई क्राइम नहीं है इसे ‘रिजल्ट ऑफ अनहैप्पी मैरिज’ कह सकते हैं। एडल्ट्री को क्राइम नहीं मानने से महिलाओं को उनका हक मिल सकता है।
सितवत बताती हैं कि तलाक के मामलों में मेंटेनेंस नहीं देना पड़े इसलिए पति कई बार पत्नी को चरित्रहीन बता देते हैं। वह अच्छे कैरेक्टर की नहीं हैं। उसके पराए पुरुषों से संबंध हैं। इसके लिए वो तरह-तरह के प्रूफ देते हैं जिसमें वाट्सएप चैट या फोटो या बातचीत की ऑडियो।
दिलचस्प यह है कि पति पत्नी को ‘एडल्ट्री वुमन’ साबित करने के लिए डिटेक्टिव का भी सहारा लेते हैं। वो पत्नी की जासूसी करवाते हैं, कहां आती है कहां जाती है, किससे मिलती है। इन साक्ष्यों को कोर्ट में जमा करने का उद्देश्य यही होता है कि किसी तरह पत्नी को कुलटा साबित कर दिया जाए ताकि मेंटेनेंस न देना पड़े।
कानून यही है कि एडल्ट्री साबित करने पर मेंटेनेंस नहीं मिलता। सितवत कहती हैं कि अब एडल्ट्री क्राइम नहीं है तो पुरुष इसे अपने फायदे के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकते।
एडल्ट्री का आरोप लगाकर बच्चों की कस्टडी तक छीन लेते हैं
यदि पत्नी पर व्यभिचारी होने का आरोप लगता है तो जज भी उसे एक पेरेंट के रूप में अनफिट पाते हैं। उसके व्यभिचारी होने से बच्चों पर बुरा असर पड़ेगा, यह टैग उस पर चिपका दिया जाता है।
इसलिए अधिकतर मामलों में महिला को उसके बच्चों से मिलने से रोक दिया जाता है। उसे बच्चों की कस्टडी नहीं मिलती। वह इस डर से पति की डिमांड को चैलेंज नहीं करती कि कहीं पति उस पर क्रिमिनल केस न कर दे।
सितवत नबी कहती हैं कि इन वजहों से एडल्ट्री को अपराध की श्रेणी से बाहर करना जरूरी था।
व्यभिचारी होने का आरोप लगा महिलाओं से घरेलू हिंसा
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) की हाल की रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 4,45,256 केस दर्ज किए गए। यानी हर घंटे 51 FIR की गई।
IPC में दर्ज किए गए इन क्राइम में से 31.4% महिला के पति या उसके रिलेटिव ने ही किए।
सविता अली बताती हैं कि किसी पराए पुरुष से बातचीत या दोस्ती होने पर पत्नी पर लांछन लगता है। शुरुआत कहासुनी से होती है और फिर ये मारपीट में बदल जाती है।
घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं के लिए हैदराबाद में ‘भरोसा’ सेंटर खोला गया है। इस सेंटर में डोमेस्टिक वॉयलेंस के जो मामले आते हैं उसका एक कारण एडल्ट्री या एक्स्ट्रा मैरिटल रिलेशनशिप होता है। पति पत्नी को एडल्ट्री में फंसाने की धमकी देता है।
लिव इन रिलेशन को ढाल की तरह इस्तेमाल कर रहे पुरुष
पटना हाई कोर्ट की वकील सविता अली बताती हैं कि IPC की धारा 494 के तहत पति या पत्नी में से कोई भी वैवाहिक जीवन में रहते हुए दूसरी शादी करते हैं तो इसे अवैध माना जाता है। इसमें आरोपित व्यक्ति को जेल हो सकता है।
सविता कहती हैं कि शादीशुदा पुरुष इस कानून का फायदा उठाते हैं। वो लिव इन रिलेशन में रहते हैं। वो जानते हैं कि लिव इन रिलेशन गैर कानूनी नहीं है और इसी की आड़ में व्यभिचार करते हैं। इसमें महिलाओं को ही नुकसान उठाना पड़ता है। महिलाओं के साथ घरेलु हिंसा का एक बड़ा कारण यह है।
पटना में वन स्टॉप सेंटर में कई महिलाएं हैं जिन्होंने पति से मानसिक प्रताड़ना झेली है, पति घर से बाहर रहते हैं, पैसे नहीं देते, बाहर पैसे खर्च कर देते हैं।
महिलाएं 494 में केस दर्ज नहीं कर पातीं। सविता एडल्ट्री कानून की वकालत करते हुए कहती हैं कि इसे महिला और पुरुष दोनों पर समान रूप से लागू किया जाना चाहिए था।
भारत में एडल्ट्री को लेकर क्या स्थिति है। इस पर एक्स्ट्रा मैरिटल डेटिंग एप ग्लीडेन ने एक सर्वे किया है। 25 से 50 वर्ष के 1525 शादीशुदा लोगों पर यह सर्वे किया गया। दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, चेन्नई, हैदराबाद, पुणे, कोलकाता और अहमदाबाद में शादीशुदा लोगों से बात की गई। उसकी ये रिपोर्ट देख लेते हैं-
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