कश्मीरी लेखक प्राण किशोर कौल साहित्य अकादेमी की महत्तर सदस्यता से सम्मानित
पुणे, 27 दिसंबर 2024। साहित्य अकादेमी ने आज प्रतिष्ठित कश्मीरी लेखक, निर्देशक, नाटककार, फिल्म निर्माता, प्रसारक और चित्रकार प्राण किशोर कौल को उनके निवास पर अपना सर्वोच्च सम्मान, अकादेमी की महत्तर सदस्यता प्रदान की। यात्रा में उनकी असमर्थता के कारण अकादेमी के अध्यक्ष माधव कौशिक और सचिव के. श्रीनिवासराव ने उनके आवास पर जाकर उन्हें सम्मानित किया। प्रारंभ में के. श्रीनिवासराव ने प्राण किशोर के साहित्यिक योगदान के बारे में बोलते हुए कहा कि उनका लेखन विविध विषयों से युक्त बहुआयामी है। उन्होंने प्रदर्शन कला के क्षेत्र में और चालीस के दशक के अंत में कश्मीर में सांस्कृतिक क्रांति लाने में भी प्रमुख भूमिका निभाई है। माधव कौशिक ने श्री कौल को सम्मान स्वरूप उत्कीर्ण ताम्र फलक और शॉल भेंट किया तथा के. श्रीनिवासराव ने प्रशस्ति पत्र का वाचन किया।
माधव कौशिक ने अपने वक्तव्य में कहा कि महत्तर सदस्यता किसी लेखक को अकादेमी द्वारा दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान है और मूर्धन्य साहित्यकार प्राण किशोर कौल को सम्मानित करके अकादेमी स्वयं अपने को सम्मानित होता महसूस कर रही है।
प्राण किशोर कौल ने अपने स्वीकृति भाषण में उन्हें अकादेमी की महत्तर सदस्यता प्रदान करने के लिए साहित्य अकादेमी के अधिकारियों को धन्यवाद दिया और कहा कि अपने आवास पर साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष और सचिव की गरिमामयी उपस्थिति से वे अभिभूत हुए हैं।
1926 में श्रीनगर, कश्मीर के मल्लापोरा के मध्यम वर्गीय शिक्षित परिवार में जन्मे प्राण किशोर का पालन-पोषण विद्वत्तापूर्ण वातावरण में हुआ और उन्होंने 1947 में पंजाब विश्वविद्यालय, लाहौर से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। अनुवाद सहित उनकी प्रमुख प्रकाशित कृतियों में शामिल हैं – शीन ते वतपुद, शीन, गुल गुलशन गुलफाम, मून ऑफ द सैफरन फील्ड्स, ज़ून ज़र्रा ज़र्रान हेन्ज़, रेडियो कश्मीर एंड माई डेज़ इन ब्रॉडकास्टिंग और संतोष इन सर्च ऑफ़ ट्रुथ। कश्मीर में आधुनिक रंगमंच के जनक, प्राण किशोर ने जम्मू-कश्मीर में नाटकों के अलावा ओपेरा, छाया नाटक और संगीत नाटक जैसी विभिन्न शैलियों की शुरुआत की। ऑल इंडिया रेडियो में नाटकों और फीचर के वरिष्ठ निर्माता के रूप में, उन्होंने 2000 से अधिक रेडियो नाटक, वृत्तचित्र और फीचर का निर्माण किया है। उनके उपन्यास गुल गुलशन गुलफाम को दूरदर्शन पर प्रसारित किया गया था। उन्होंने कश्मीरी में पहली फीचर फिल्म ‘मैंज़रात’ का निर्देशन भी किया।
उनको प्राप्त अनगिनत पुरस्कार-सम्मानों में पद्मश्री अलंकरण और उनके उपन्यास शीन ते वतपुद के लिए साहित्य अकादेमी पुरस्कार शामिल हैं।
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