REPORT BY SAHIL PATHAN
सार
जम्मू-कश्मीर पुलिस के एक अधिकारी के अनुसार, अब जो खास ऑपरेशन शुरू किया गया है, उसमें पांच एजेंसियां शामिल हो गई हैं। सभी का आपस में बेहतरीन तालमेल है। राष्ट्रीय जांच एजेंसी, आर्मी, सीआरपीएफ, जम्मू-कश्मीर पुलिस और इंटेलिजेंस (स्थानीय और केंद्रीय), ये सभी एजेंसियां आतंकियों और उनके मददगारों की तलाश कर रही हैं। अभी तक कश्मीर घाटी में लगभग 500 संदिग्ध लोगों से पूछताछ हो चुकी है…
विस्तार
कश्मीर में आतंकियों द्वारा की गई सामान्य लोगों की हत्या के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने अपनी सुरक्षा नीति में कई तरह के बदलाव किए हैं। घाटी में बड़े पैमाने पर पाकिस्तानी आतंकी संगठनों के ओवर ग्राउंड और अंडर ग्राउंड वर्कर छिपे हैं, ये इंटेलिजेंस इनपुट पुख्ता होने के बाद अब वहां पर ‘4+1’ का एक्शन प्लान लागू किया गया है। कश्मीर के आईजी विजय कुमार कहते हैं, पुलिस ने एग्रेसिव ऑपरेशन शुरू किया है, सार्थक नतीजे भी मिल रहे हैं। जम्मू-कश्मीर के सुरक्षा विशेषज्ञ कैप्टन अनिल गौर (रिटायर्ड) के मुताबिक कश्मीर और आतंकवाद, इन मुद्दों को पाकिस्तानी फौज संभालती है। पाकिस्तान को हर सूरत में ‘अनुच्छेद 370’ का कड़वा घूंट पीना होगा। अगर तालिबान खान (इमरान खान) यह सोचकर कश्मीर में अशांति फैला रहे हैं कि इससे उनके चुनावी एजेंडे को गति मिलेगी तो वे बड़ी गलती कर रहे हैं। फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) को गुमराह करने के लिए पाकिस्तान अपने आतंकी संगठनों को नया नाम देकर घाटी में भेज रहा है, उसकी दोहरी नीति और छल की पोल अब दुनिया के सामने खुल चुकी है।
फोकस ग्राउंड वर्कर्स पर
जम्मू-कश्मीर पुलिस के एक अधिकारी के अनुसार, अब जो खास ऑपरेशन शुरू किया गया है, उसमें पांच एजेंसियां शामिल हो गई हैं। सभी का आपस में बेहतरीन तालमेल है। राष्ट्रीय जांच एजेंसी, आर्मी, सीआरपीएफ, जम्मू-कश्मीर पुलिस और इंटेलिजेंस (स्थानीय और केंद्रीय), ये सभी एजेंसियां आतंकियों और उनके मददगारों की तलाश कर रही हैं। अभी तक कश्मीर घाटी में लगभग 500 संदिग्ध लोगों से पूछताछ हो चुकी है। जांच एजेंसियों का मुख्य फोकस घाटी में लोगों के बीच रह रहे पाकिस्तान के ओवर ग्राउंड वर्कर्स पर है। पाकिस्तान के आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद व हिज्बुल मुजाहिदीन (एचएम) आदि ने अपनी उप शाखाएं तैयार कर ली हैं। जैसे लश्कर को अब अल बर्क और जैश-ए-मोहम्मद को अल उमर मुजाहिदीन कहा जाने लगा है।
पुलिस अधिकारी बताते हैं, ‘4+1’ का एक्शन प्लान लागू करने के सार्थक नतीजे मिलते रहेंगे, ऐसी उम्मीद है। एनआईए, जिस तरह से छापे मार रही है, उससे घाटी में आतंकियों के मददगारों में हड़कंप मचा है। इसमें हाई तकनीक से लैस ‘एनटीआरओ’ के उपकरणों की मदद भी ली जा रही है। मोबाइल ट्रेसिंग से ओवर ग्राउंड वर्कर्स का पता लगाया जा रहा है। जम्मू कश्मीर प्रशासन में भी राष्ट्र विरोधी ताकतों के एजेंट भरे पड़े हैं। पिछले दिनों ऐसे कई लोगों के खिलाफ कार्रवाई हुई है। सूचनाएं लीक करने वालों का पता लगाया जा रहा है। अगले कुछ सप्ताह में कश्मीर घाटी और इसके बाहर रह कर आतंकियों को विभिन्न तरीकों से मदद पहुंचाने वाले कई सफेदपोशों को सलाखों के पीछे पहुंचाया जा सकता है।
भर्ती के संकट से जूझ रहे आतंकी संगठन
पिछले साल पांच अप्रैल को केरन सेक्टर में आतंकियों के खिलाफ एक ऑपरेशन में स्पेशल फोर्सेज के पांच जवान शहीद हो गए थे। मई 2020 में सेना के कर्नल सहित चार जवान हंदवाड़ा में शहीद हुए थे, जबकि माछिल सेक्टर में भी अगस्त 2020 में एक कैप्टन सहित चार जवान शहीद हो गए थे। सोमवार को सुरनकोट में एक जेसीओ सहित पांच जवानों की शहादत हुई है। ये सभी ऑपरेशन पहाड़, जंगल या बर्फ में हुए थे। सुरक्षा विशेषज्ञ कैप्टन अनिल गौर बताते हैं, ऐसा नहीं कहा जा सकता कि जंगल या पहाड़ पर जवानों से कोई चूक हुई है। वे मैदानी इलाके में अच्छा करते हैं। ये बात सही नहीं है। घुसपैठ किस इलाके से हो रही है, कई बार इसका ठीक अंदाजा नहीं हो पाता। पेट्रोलिंग के दौरान अचानक घात लगा कर हमला हो जाए, ये ऑपरेशन की परिस्थितियों पर निर्भर करता है।
कई बार ऐसा होता है कि आतंकी ज्यादा ऊंचाई पर रहते हैं। उन्हें ‘चपेट में आने वाले’ प्वाइंट कहा जाता है। रिज के आसपास पहचान छिप जाती है। दिन में धूप और रात को अंधेरे में कुछ नहीं दिखाई पड़ता। ये परेशानी कुछ ही जगहों पर आती हैं। ऐसी स्थिति में आतंकी ‘हाइट और हाइड’, दोनों का फायदा उठाते हैं। जब उन्हें शेल्टर मिल जाता है तो वे मौका देखकर सुरक्षा बलों के दस्ते पर घात लगाकर हमला कर देते हैं। भारतीय सुरक्षा बल पूरी तरह से मुस्तैद हैं। ये दांव की बात है, कभी आतंकी इसका लाभ उठा लेते हैं। पिछले साल दो सौ से अधिक आतंकी मारे गए थे। इस बार भी मारे जा रहे हैं। अब तो नई भर्ती के लिए युवक ही नहीं मिल रहे। आतंकी संगठन भर्ती के संकट से जूझ रहे हैं।
बतौर कैप्टन गौर, पाकिस्तानी फौज के लिए कश्मीर पैसा कमाने का जरिया है। सेना के कई अफसर कश्मीर के नाम पर ग्रांट जारी कराते हैं। इससे वे कुछ पैसा आतंकवाद पर लगाते हैं और बाकी का खुद रखते हैं। कश्मीर और आतंक, ये दोनों मुद्दे सेना के हवाले हैं। प्रधानमंत्री इमरान खान की कुर्सी तभी तक सुरक्षित है, जब तक उन्हें सेना प्रमुख बाजवा का साथ मिला हुआ है। अपनी कुर्सी बचाने के लिए यानी चुनावी एजेंडे के तौर पर सेना की मदद से इमरान खान, कश्मीर में अशांति फैलाते हैं। वे जानते हैं कि कर्ज में सिर तक डूब चुके पाकिस्तान की सत्ता पर दोबारा से कब्जा करना है, तो उसके लिए कश्मीर में आतंकी गतिविधियां तेज करनी होंगी। बाकी कश्मीर घाटी में इस बार एनआईए व दूसरी एजेंसियां जिस रास्ते पर आगे बढ़ रही हैं, उससे आतंकियों का स्पोर्ट सिस्टम खत्म हो जाएगा।
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