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क्या भारत जोड़ो यात्रा से एक बार फिर भारत के साथ-साथ यूपी में भी सत्ता में वापसी करेगी कांग्रेस, पढ़ें एक विश्लेषण

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Report By Dr Mudita Popli
उत्तर प्रदेश देश की राजनीति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है या यूं कहें तो उत्तर प्रदेश ने हमेशा देश की राजनीति को दिशा दी है।भारतीय राजनीति में कांग्रेस का विकल्प तलाशने की कोशिश का प्रादुर्भाव यहीं से हुआ और डॉ. लोहिया ने जब गैर कांग्रेसवाद की अपनी राजनीतिक सोच को अमली जामा पहनाया तो तीन बड़े नेताओं ने उत्तर प्रदेश के कन्नौज, मुरादाबाद और जौनपुर में हुए 1963 के लोकसभा के उपचुनावों में हिस्सा लिया। लोहिया कन्नौज, आचार्य जेबी कृपलानी मुरादाबाद और दीनदयाल उपाध्याय जौनपुर से गैर कांग्रेसवाद के उम्मीदवार बने। इसी प्रयोग के बाद गैर कांग्रेसवाद का अभ्युदय हुआ।उसी के बाद 1967 में हुए आम चुनावों में कांग्रेस अमृतसर से कोलकाता तक अपनी कई अजेय सीटों पर चुनाव हारकर कई राज्य विधानसभाओं में विपक्षी पार्टी बन गई।
इससे पूर्वकांग्रेस ने 1952, 1957 और 1962 में हुए विधान सभा चुनावों में निर्णायक बहुमत हासिल किया, लेकिन किसी भी मुख्यमंत्री ने राज्य में अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया। 1967 के बाद, राजनीतिक अस्थिरता और भी अधिक तीव्र हो गई, क्योंकि राज्य में प्रभुत्व के लिए प्रतिस्पर्धा करने वाले कई दलों के बीच सत्ता घूमती रही।
1977 में पहली बार केंद्र में गैर कांग्रेस सरकार बनी थी। इस सरकार में जनता पार्टी की उत्तर प्रदेश में जीती गई 85 सीटों का मुख्य योगदान था। उस चुनाव में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी समेत कांग्रेस पार्टी के सभी उम्मीदवार उत्तर प्रदेश में चुनाव हार गए थे। लेकिन जब 1980 में हुए अगले आम चुनाव में कांग्रेस ने लगभग सभी सीटें जीत लीं तो देश में उसकी सरकार बन गयी और इंदिरा गांधी फिर प्रधानमंत्री बनीं।
राजनीतिक पार्टियों के भाग्योदय में भी उत्तर प्रदेश एक मानदंड का काम करता है। आज के मुख्य राजनैतिक दल भारतीय जनता पार्टी को 1984 में हुए लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश ने नकार दिया तो पार्टी पूरे देश में केवल दो सीटों पर सिमट गई थी। लेकिन 1989 में उत्तर प्रदेश में उसे सफलता मिली तो बीजेपी एक महत्वपूर्ण पार्टी बनी और उसे केंद्र में वीपी सिंह की सरकार बनवाने का मौका मिला। यानी उत्तर प्रदेश के बिना राजनीतिक वर्चस्व को प्राप्त करना संभव नहीं है। शायद यही कारण है कि कांग्रेस के गढ़ यूपी में जब कांग्रेस की नहीं चली तो देश में भी उसका हश्र बहुत बुरा हुआ। 2012 में मायावती कार्यालय में पूर्ण कार्यकाल पूरा करने वाली यहां पहली मुख्यमंत्री बनीं। हिंदुस्तान की राजनीति का एक प्रस्थान बिंदु यहां से देखने को मिलता है कि देश में लोकप्रिय सरकार बनाने के लिए उत्तर प्रदेश में राजनीतिक हैसियत बनाना जरूरी है।
वर्तमान परिदृश्य में राहुल गांधी ने अपनी भारत जोड़ो यात्रा का दूसरा दौर उत्तर प्रदेश से प्रारंभ किया यह बात अलग रही कि यूपी जैसे बड़े राज्य में भारत जोड़ो यात्रा केवल 3 जिलों को पार करती हुई निकली लेकिन यूपी में इस यात्रा को जो इमोशनल फैक्टर मिला उसने इसकी सुर्खियां बढ़ा दी। यहां राहुल गांधी को अपनी सबसे बड़ी ताकत बहन प्रियंका गांधी का साथ मिला।वहीं
यहीं पर ही इस यात्रा के दौरान रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (RAW) के पूर्व प्रमुख एएस दौलत भी शामिल हुए। शिवसेना की सांसद प्रियंका चतुर्वेदी भी सीलमपुर इलाके में इस यात्रा में जुड़ीं। इस यात्रा को लेकर आरएलडी चीफ जंयत चौधरी ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए ट्वीट किया था कि, ‘तप कर ही धरती से बनी ईंटें छू लेती हैं आकाश! भारत जोड़ो यात्रा के तपस्वियों को सलाम! देश के संस्कार के साथ जुड़ कर उत्तर प्रदेश में भी चल रहा ये अभियान सार्थक हो और एक सूत्र में लोगों को जोड़ते रहे!”
गत सात सितंबर को कन्याकुमारी से आरंभ हुई भारत जोड़ो यात्रा 24 दिसंबर को दिल्ली पहुंची थी और नौ दिनों के विराम के बाद यह फिर से उत्तर प्रदेश से आरंभ हुई और उत्तर प्रदेश के बाद हरियाणा, पंजाब से होते हुए जम्मू-कश्मीर में जाकर संपन्न होगी। आगामी चुनाव में भारत जोड़ो यात्रा का भगवा रंग पर क्या असर देखने को मिलेगा यह तो अभी भविष्य के गर्भ में है लेकिन यूपी में जिस प्रकार राहुल गांधी ने ताल ठोक कर भारत जोड़ो यात्रा के दूसरे चरण का आगाज किया है वह आने वाले दिनों में एक नई कहानी बनने की उम्मीद जरूर दिखलाता है।

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