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गरीबी, बेबसी, चूहों से बदतर जिंदगी… वे हीरो हैं, पर भगवान किसी को रैट माइनर न बनाए!

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गरीबी, बेबसी, चूहों से बदतर जिंदगी… वे हीरो हैं, पर भगवान किसी को रैट माइनर न बनाए!

रैट होल माइनिंग आमतौर पर 4 फीट से कम चौड़ी जगह पर खुदाई करने की एक प्रक्रिया है। भारत में इसका इस्तेमाल आमतौर पर कोयले की माइनिंग में खूब होता रहा है। उत्तराखंड के सिल्क्यारा टनल में फंसे मजदूरों को बाहर निकालने में रैट होल माइनर्स ने अहम भूमिका निभाई है। हमें उनकी तारीफ करनी चाहिए लेकिन एक बड़ा सवाल भी है।

हाइलाइट्स

  • सिल्क्यारा टनल में फंसे सभी 41 मजदूरों को बाहर निकाला गया
  • असली हीरो,मजदूरों के लिए रैट होल माइनर्स वरदान साबित हुए
  • लगा है प्रतिबंध, रैट होल माइनिंग का महिमामंडन नहीं करना चाहिए
uttarkashi tunnel rescue

  • उत्तराखंड के सिल्क्यारा टनल में 17 दिनों से फंसे सभी 41 मजदूरों को बाहर निकाल लिया गया। इन मजदूरों के लिए रैट होल माइनर्स वरदान साबित हुए। मंगलवार को सही मायने में वे हीरो थे। जब उनको इस काम में लगाया गया तभी उनको विश्वास था कि वह इस काम को पूरा कर लेंगे। इनमें से कुछ रैट मानर्स ने मीडिया से जैसे बात कि उससे लगा कि वो इस काम को आसानी से पूरा कर लेंगे। भले ही देश इन 6 रैट होल माइनर्स की कुशलता और बहादुरी से चकित है फिर भी हमें इस अभ्यास (रैट होल माइनिंग) का महिमामंडन नहीं करना चाहिए। रैट होल माइनिंग पर पर्यावरण निगरानी संस्था एनजीटी द्वारा अच्छे कारणों से प्रतिबंध लगाया गया है। रैट होल माइनिंग में लोगों का एक छोटा समूह शामिल होता है जो खनिज भंडार तक पहुंचने के लिए खुदाई करता है। खनन का यह असुरक्षित तरीका संसाधनों से समृद्ध क्षेत्रों में आम होता था, लेकिन आस-पास की आबादी गरीब।

खनन माफिया आम तौर पर इन रैट होल माइनर्स को नियुक्त करते हैं। मेघालय अक्सर रैट होल के लिए खबरों में रहा है लेकिन रैट होल माइनिंग अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका, एशिया में कई जगहों पर और यहां तक कि ऑस्ट्रेलिया में भी होती है। कोल्टन-कोलम्बाइट टैंटलम जिसका उपयोग मोबाइल फोन बनाने के लिए किया जाता है। इस खनिज का खनन विभिन्न अफ्रीकी देशों में अवैध रूप से रैट होल माइनिंग के जरिए किया जाता है। भारत में भी, रैट होल माइनिंग खनन के उन क्षेत्रों में सबसे आम है जहां खनिज कम गहराई पर पाए जाते हैं।


पूरे पूर्वोत्तर में कोयला भंडारों का खनन एक बड़ी समस्या है। स्थानीय लोग एक व्यक्ति के लिए रेंगकर या चलकर अंदर जाने के लिए जमीन में एक गड्ढा खोदते हैं। एक बार गड्ढा खोदे जाने के बाद माइनर रस्सी या बांस की सीढ़ियों के सहारे सुरंग के अंदर जाते हैं। फिर फावड़ा और टोकरियों के जरिए मैनुअली सामान बाहर निकालते हैं। सबसे अधिक इसका इस्तेमाल कोयला खदान में किया जाता है। प्रतिबंध के बावजूद भारत में इस विधि से खनन जारी है। इसमें कई बार हादसा भी होता है। अचानक कुछ गिरने से दुर्घटनाएं होती हैं। खदानों से निकलने वाली गैस में सांस लेने की वजह से कई बार इस काम में लगे लोगों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी है। विडंबना यह है कि ऐसी खनन गतिविधियों में लगे लोग मुश्किल से ही कोई पैसा कमाते हैं। वे गरीब श्रमिक हैं जिन्हें दलालों और बड़े खनिज व्यापारियों ने छोटी मजदूरी के लिए नियुक्त किया है। असली पैसा दलालों और व्यापारियों द्वारा हड़प लिया जाता है।


आजकल कोई भी रैट होल माइनिंग का जोर-शोर से विज्ञापन नहीं करता क्योंकि रैट-होल माइनिंग अवैध है। रैट होल माइनर्स एक दूसरे की मदद से काम में निपुण होते हैं। इनके सलाहकार आमतौर पर बुजुर्ग होते हैं जिन्होंने वही काम किया है। निश्चित रूप से इसके लिए कोई मानक प्रक्रिया नहीं है बस जीवित बचे लोगों से ये लोग व्यावहारिक प्रशिक्षण लेते हैं। जो कुछ भी काम आए जाए, जो कुछ भी उन्हें खनिजों को चुपचाप निकालने में मदद करता है वह उनके संचालन का तरीका बन जाता है।

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रैट होल माइनर्स के जरिए अवैध खनन एक भयानक प्रथा है। असुरक्षित परिस्थितियों में काम करने वाले रैट होल माइनर्स अक्सर स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित होते हैं। अवैध खनन से सरकार को खनिज रॉयल्टी से वंचित होना पड़ता है और यह पर्यावरण की दृष्टि से विनाशकारी है। रैट होल माइनर्स कभी गरीबी से बााहर निकल नहीं पाए और सरकार को फायदा नहीं होता। फायदा सिर्फ बीच के लोगों का है। इसलिए जब हम सिल्क्यारा के नायकों का जश्न मनाते हैं, तो हमें रैट होल माइनिंग का जश्न नहीं मनाना चाहिए। यह भारत के खनन मानचित्र पर एक धब्बा है।

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