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चीन, आतंकवाद, राजनीतिक अस्थिरता…पाकिस्तान और श्रीलंका के आर्थिक संकट में क्या-क्या कॉमन?

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चीन, आतंकवाद, राजनीतिक अस्थिरता…पाकिस्तान और श्रीलंका के आर्थिक संकट में क्या-क्या कॉमन?
पाकिस्तान और श्रीलंका दोनों ही आर्थित तौर पर नाकाम साबित हो चुके हैं। दोनों ही देश दक्षिण एशिया में स्थित हैं और चीन के कर्ज के बोझ तले दबे हैं। श्रीलंका और पाकिस्तान लंबे सयम से गृह युद्ध जैसे हालात से भी जूझते रहे हैं। वहां के राजनेताओं ने भी अपनी शक्तियों का फायदा खुद के लाभ के लिए ही उठाया है।
पाकिस्तान और श्रीलंका दोनों ही आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं। श्रीलंका जहां डिफॉल्ट हो चुका है, वहीं पाकिस्तान के सामने ऐसा संकट दरवाजे पर खड़ा है। अर्थशास्त्री श्रीलंका की हाल की वित्तीय समस्याओं को पर्यटन और विदेशों में काम करने वाले कामगारों के पैसा भेजने में आई भारी गिरावट को जिम्मेदार ठहराते हैं। लेकिन, खराब वित्तीय स्थिति और राजनीतिक हालात उन कारकों की सूची में सबसे ऊपर हैं, जिन्होंने श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को तबाह करने में सबसे बड़ी भूमिका निभाई। वहीं, पाकिस्तान के भी हालात कुछ ऐसे ही हैं। पाकिस्तान की जमीन, जनसंख्या और जीडीपी क्रमश श्रीलंका की तुलना में 12 गुना, 10 गुना और चार गुना अधिक है। हालांकि, पाकिस्तान का प्रति व्यक्ति जीडीपी श्रीलंका का आधा है। इन मतभेदों के बावजूद पाकिस्तान के विदेशी मुद्रा भंडार में भारी गिरावट और लगातार राजनीतिक संकट ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह आभास करा दिया है कि पाकिस्तान भी श्रीलंका के नक्शेकदम पर चल रहा है।

भारत से पहले श्रीलंका ने खोली थी अर्थव्यवस्था
श्रीलंका 1970 के दशक के अंत में खुली अर्थव्यवस्था सुधारों के माध्यम से अपनी अर्थव्यवस्था को उदार बनाने वाला पहला दक्षिण एशियाई देश था। इसके बावजूद यह देश अपने इतिहास में पहली बार मई 2022 में पुराने कर्ज के ब्याज के 78 मिलियन डॉलर का भुगतान नहीं कर पाया था। इस कारण श्रीलंका को डिफॉल्ट देश घोषित कर दिया गया था। श्रीलंका के केंद्रीय बैंक ने कहा कि देश में पर्यटन और कामगारों के धन में 2019 की तुलना में 2021 में क्रमश 86% और 18% की कमी आई है। इस कारण श्रीलंका में डॉलर की कमी हो गई है। डॉलर कम होने से श्रीलंका में ईंधन और दवाओं के आयात में मुश्किल हो रही है। चीन से स्वाइप एग्रीमेंट के कारण श्रीलंका के पास 1.5 अरब डॉलर का रिजर्व है, लेकिन शर्तों के कारण श्रीलंका इन पैसों का इस्तेमाल आयात के लिए नहीं कर सकता है।

श्रीलंका की राजनीति ने देश को डूबा दिया
श्रीलंका की राजनीतिक व्यवस्था में दो राजनीतिक दलों का दबदबा रहा है। सत्ता के गलियारों की अपनी दौड़ में उन्होंने देश की समग्र आर्थिक शक्ति की कीमत पर मतदानओ को आकर्षित करने के लिए लोकलुभावन नीतियां लागू की। इसमें टैक्स में कटौती और अन्य सरकारी योजनाओं में सब्सिडी देना शामिल था। शुरू में तो इसका फायदा भी हुआ। 2007 से 2016 तक औसतन 6 फीसदी की वृ्द्धि दर के साथ श्रीलंका को एशिया विकास बैंक ने उच्च मध्यम आय वाले राष्ट्र के रूप में वर्गीकृत किया था।

श्रीलंका अचानक डिफ़ॉल्ट कैसे हो गया?
अधिकांश आलोचकों ने श्रीलंका के डिफॉल्ट होने को लेकर पिछले दो साल को ही जिम्मेदार बताया है। हालांकि, यह देश पिछले एक दशक से इस रास्ते पर चल रहा था। श्रीलंका समय पर अपने विनिर्माण क्षेत्र में विविधता नहीं ला सका। यही अक्षमता इस द्वीपीय देश के आर्थिक पतन का संरचनात्मक मूल कारण थी, जो तीन दशक पहले शुरू हुई थी। श्रीलंका ने उत्पादन से संबंधित उद्योगों में निवेश करने के बजाय बुनियादी ढांचे के पुनर्निर्माण के लिए अंतरराष्ट्रीय स्रोतों से उधार लिया। नतीजतन, निर्यात का उत्पादन आधार और विकास सिकुड़ गया और विदेशी आय कामगारों के भेजे पैसे और पर्यटन पर निर्भर हो गई।

पाकिस्तान के कर्ज ने अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी
वर्तमान में पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था अपने सार्वजनिक ऋण के उच्चतम सीमा के स्तर को पार कर चुकी है। ऐसे में अब पाकिस्तान इन कर्जों को चुकाने में असमर्थ हो गया है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की एक रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान को इस संकट से निपटने के लिए 7 बिलियन डॉलर के ऋण की आवश्यकता है और 2026 तक के तीन वर्षों में पाकिस्तान को कुल 75 बिलियन डॉलर, या प्रति वर्ष 25 बिलियन डॉलर का भुगतान करना होगा। हालांकि, पाकिस्तान को इसमें थोड़ी राहत जरूर मिली है। हाल में ही जेनेवा जलवायु सम्मेलन में पाकिस्तान को वैश्विक दानदाताओं से 10 बिलियन डॉलर की मदद मिलने का भरोसा मिला है, लेकिन उनमें से 90% पैसा परियोजना ऋण के रूप में हैं, जो भुगतान संकट के संतुलन के लिए तत्काल सहायता प्रदान नहीं करते हैं।
यूएई और सऊदी ने पाकिस्तान को दी थोड़ी राहत
संयुक्त अरब अमीरात ने पाकिस्तान को दिए अपने मौजूदा ऋण के 2 अरब डॉलर का रोलओवर किया है और 1 अरब डॉलर का और कर्ज देने का ऐलान किया है। इस 3 अरब डॉलर की राशि को पाकिस्तान के लिए लाइफ लाइन माना जा रहा है। यही कारण है कि पाकिस्तान अस्थायी रूप से डिफ़ॉल्ट होने से अब तक बचा हुआ है। इसके अलावा सऊदी अरब ने अपने डेवलपमेंट फंड से पाकिस्तान को तेल आयात में 1 बिलियन डॉलर का वित्तपोषण करने का भरोसा दिया है।
कैसे तबाही के राह पर चला पाकिस्तान?
1980 के दशक में पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में एक मोड़ आया जब वह अपने बजट घाटे के कारण सार्वजनिक ऋण लेने लगा। पाकिस्तान पिछले कई दशकों से श्रीलंका के गृह युद्ध जैसे ही आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में भी लगा हुआ था। हालांकि, तब पाकिस्तान को आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के लिए विदेशों से भारी मात्रा में धन प्राप्त होता था, जिसने भुगतान संतुलन को स्थिर रखा था। जब महामारी ने विश्व अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया, तो इसने लॉकडाउन के कारण पाकिस्तान के घरेलू उत्पादन को प्रभावित किया। इसके अलावा, यूक्रेन-रूस युद्ध के परिणामस्वरूप पाकिस्तान के लिए उत्पादन की लागत में वृद्धि हुई, जो कि विदेशी कच्चे माल की आपूर्ति पर बहुत अधिक निर्भर करता है। उच्च उत्पादन लागत के कारण बिजली की दरें कई गुना बढ़ गईं, जिससे उद्योगों को अपना संचालन बंद करना पड़ा।
शुरू से ही महशक्तियों का पिछलग्गू रहा देश
1979 में अफगानिस्तान पर रूसी आक्रमण के बाद से, पाकिस्तान ने अपनी राजनीतिक और आर्थिक संरचना में महत्वपूर्ण परिवर्तनों का अनुभव किया है। विश्व शक्तियों ने पाकिस्तान और संबंधित आतंकवादी संगठनों को रूसी सेना के खिलाफ लड़ने के लिए युवाओं की भर्ती करने के लिए पर्याप्त वित्तीय, सैन्य और राजनीतिक समर्थन प्रदान किया। रूस के अफगानिस्तान से हटने के बाद अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने अपना समर्थन वापस ले लिया। इसके बाद पाकिस्तान ने जिन आतंकवादियों को जन्म दिया, हथियार दिए, ट्रेनिंग दिया, फलने-फूलने का मौका दिया, उन्होंने पाकिस्तान में ही घुसपैठ शुरू कर दी और आतंकवाद तेजी से पूरे देश में फैल गया।
इन कारणों से तबाह हुआ पाकिस्तान
इस बीच, राजनीतिक अस्थिरता, भ्रष्टाचार, सामाजिक अन्याय और आर्थिक विषमता ने आतंकवाद के विभिन्न रूपों के उद्भव को बढ़ावा दिया। 9/11 के बाद, आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक युद्ध में पाकिस्तान फिर से अमेरिका का दोस्त बन गया। हालांकि पाकिस्तान इस लड़ाई में सिर्फ अमेरिकी पैसों और हथियारों को पाने के लिए शामिल हुआ था। इसने पाकिस्तान में आतंकवाद और आतंकवादी समूहों का मुकाबला करने में अपनी भूमिका को प्रभावित किया और उसका उल्टा असर अपने देश में देखने को मिला। अफगानिस्तान से भागे आतंकवादियों ने पाकिस्तान को ठिकाना बना लिया। इस कारण पाकिस्तान के सीमाई क्षेत्र अशांत हो गए और सरकार का नियंत्रण खत्म हो गया।
पाकिस्तान को परियोजना की जरूरत
अतीत से, हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि पाकिस्तान के पास एक परियोजनात्मक अर्थव्यवस्था है। जब भी अंतराष्ट्री समुदाय पाकिस्तान को कोई परियोजना प्रदान करता है, तब भुगतान संतुलन की समस्या दूर हो जाती है। नई परियोजना के अभाव में पाकिस्तान का वित्तीय संकट बिगड़ता जा रहा है। ऐसे में सवाल उठ रहा है: क्या पाकिस्तान श्रीलंका के नक्शेकदम पर चल रहा है? पाकिस्तान और श्रीलंका के बीच ऐतिहासिक समानताओं में कामगारों के भेजे पैसों पर भारी निर्भरता, कम निर्यात, एक कम मैन्यूफैक्चरिंग फैसिलिटी, राजनीतिक अस्थिरता, लोकप्रिय राजनीतिक रणनीति, एक औपनिवेशिक संस्थागत ढांचा और प्राकृतिक आपदा शामिल हैं।

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