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जम्मू-कश्मीर में लिथियम की खोज का जश्न मनाना कहीं जल्दबाजी तो नहीं?

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जम्मू-कश्मीर में लिथियम की खोज का जश्न मनाना कहीं जल्दबाजी तो नहीं?
केंद्र सरकार ने 9 फरवरी, 2023 को जम्मू कश्मीर में “पहली बार” 59 लाख टन लिथियम के भंडार मिलने की घोषणा की थी
REPORT BY SAHIL PATHAN
भारत के जम्मू-कश्मीर में लिथियम के बड़े भंडार के मिलने की जानकारी सामने आई है, जोकि पूरे देश के लिए काफी मायने रखती है। लेकिन क्या जांच के प्रारंभिक चरण (जी3) में इस खोज का जश्न जल्दबाजी नहीं है।
सरकार ने जम्मू में लिथियम के जो भण्डार मिलने की बात कही है वो जांच के शुरूआती चरण में है, इस जांच के आगे अभी कई चरण है। ऐसे में वास्तविक स्थिति जांच के अगले चरणों के बाद ही पूरी तरह स्पष्ट हो पाएगी।
गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने 9 फरवरी, 2023 को जम्मू कश्मीर में “पहली बार” 59 लाख टन लिथियम (इन्फर्ड) के भंडार मिलने की घोषणा की थी। हालांकि, डाउन टू अर्थ को ऐसे कोई नए वैज्ञानिक तथ्य नहीं मिले हैं जो सरकार की हालिया घोषणा को आधार प्रदान करते हों। गौरतलब है कि ये भंडार रियासी जिले में मिले हैं।कई समाचार पत्रों और चैनलों ने जम्मू कश्मीर में अत्यधिक प्रतिक्रियाशील धातु के “विशाल” भंडार मिलने की बात कही है। लेकिन वो इस तथ्य से चूक गए कि जम्मू में मिले इन संसाधनों का केवल अनुमान है, उनकी पूरी तरह वैज्ञानिक पुष्टि नहीं हुई है और जांच प्रारंभिक चरण में है।
देखा जाए तो देश में यदि इनके पाए जाने की वैज्ञानिक पुष्टि हो जाती है, तो यह देश के लिए काफी फायदेमंद हो सकता है। गौरतलब है कि इसके फायदों को देखते हुए ही इस मिनरल को ‘व्हाइट गोल्ड’ भी कहा जाता है। औद्योगिक रूप से लिथियम के कई उपयोग हैं। साथ ही यह इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए इस्तेमाल होने वाली बैटरी का एक महत्वपूर्ण घटक है।
केंद्रीय खान मंत्रालय द्वारा जारी एक बयान के मुताबिक लिथियम का यह अनुमानित अनुमान 2018-19 में की गई फील्ड जांच में सामने आया था। इसमें 11 राज्यों में सोने और अन्य खनिजों के संभावित भंडारों का भी अनुमान लगाया गया था।
किसी भी खनिज भंडार के अन्वेषण में चार चरण शामिल होते हैं:
इनमें पहला टोही सर्वेक्षण (जी4), दूसरा प्रारंभिक अन्वेषण (जी3), तीसरा सामान्य अन्वेषण (जी2), और अंत में विस्तृत अन्वेषण जिसे जी1 के नाम से जाना जाता है। किसी भी खनिज भंडार में विस्तृत अन्वेषण के बाद ही सही स्थिति का पता चलता है, तब उसके खनन का काम शुरू होता है।मंत्रालय ने 9 फरवरी 2023 को केंद्रीय भूवैज्ञानिक प्रोग्रामिंग बोर्ड (सीजीपीबी) की 62वीं बैठक के दौरान संबंधित राज्य सरकारों को जी2 और जी3 चरणों में 15 अन्य संसाधनों भंडारों के साथ लिथियम के जी3 चरण की रिपोर्ट भी सौंपी है। इस रिपोर्ट के साथ ही 35 भूवैज्ञानिक ज्ञापन भी सौंपे गए हैं।
खनिज भंडार के आकलन की तीन कसौटियां अनुमानित (इन्फर्ड), निर्दिष्ट (इंडिकेटेड) और मापा गया हैं। देखा जाए तो जम्मू में जो संसाधन मिले हैं उनका केवल अनुमान है। जब तक उसे मापा नहीं जाता तब तक उनका खनन संभव नहीं हो सकता। ऐसे में हमें जश्न के लिए अभी और इंतजार करना होगा।एसजीएस मिनरल्स सर्विसेज, जोकि खनिज और खनन के बारे में परामर्श देने वाली फर्म है उसके अनुसार, लिथियम युक्त खनिजों की सबसे ज्यादा मात्रा ग्रेनाइट पेगमाटाइट्स में पाई जाती है। इन खनिजों में सबसे महत्वपूर्ण स्पोड्यूमिन और पेटालाइट हैं। जहां स्पोड्यूमिन में सैद्धांतिक तौर पर लिथियम ऑक्साइड (Li2O) की मात्रा 8.03 फीसदी है। यहां 8.03 फीसदी Li2O की सांद्रता का मतलब 80,300 भाग प्रति दस लाख (पीपीएम) है।जम्मू के रियासी जिले में जो सुबाथू फॉर्मेशन की कार्बोनेस शेल हैं वो इशारा करती हैं कि वहां मौजूद लिथियम का मान 500 से 1,000 पीपीएम के बीच हो सकता है। देखा जाए तो यह सघनता स्पोड्यूमिन की तुलना में बहुत कम है, जो वर्तमान में लिथियम का सबसे व्यवहार्य खनन योग्य हार्ड रॉक अयस्क है।
डीटीई को अपनी जांच में देश में लिथियम भंडार की खोज के दावों का समर्थन करने वाला कोई नया विस्तृत वैज्ञानिक दस्तावेज नहीं मिला है। इसका एकमात्र आधार जीएसआई द्वारा 1999 में जारी एक रिपोर्ट हो सकती है।रिपोर्ट के मुताबिक जम्मू के रियासी जिले में पूरे बॉक्साइट बेल्ट के बॉक्साइट कॉलम में Li और Zr की उच्च मान दर्ज किए गए हैं। रिपोर्ट के अनुसार यहां Li का औसत मान 337.47 पीपीएम दिखा रहा है।
नाम न छापने की शर्त पर कुछ सरकारी विशेषज्ञों ने बताया कि क्षेत्र की भूवैज्ञानिक जांच अभी भी जारी है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि बिना किसी नई विस्तृत रिपोर्ट के सरकार ने आधे-अधूरे विश्लेषणों को सार्वजनिक क्यों कर दिया है।समझ सकते हैं कि बाजार को प्रोत्साहित करना महत्वपूर्ण है, लेकिन अधूरी जानकारी के साथ ऐसा करना कितना सही है। हमने अमेरिका को दो बार ऐसे बुलबुलों के फटने का असर झेलते हुए देखा है। पहले डॉटकॉम बबल के दौरान और फिर हाउसिंग बबल युग के दौरान। एक बात स्पष्ट है कि काम करने के इरादे से अभाव का वास्तविक ज्ञान, बहुतायत की झूठी आशा से बेहतर है।

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