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जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट का फैसला:पुलिस ने छह महीने पहले जिसे आतंकी बताकर मारा था, उसका शव कब्र से निकालकर अब परिवार को सौंपेगी

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*जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट का फैसला:पुलिस ने छह महीने पहले जिसे आतंकी बताकर मारा था, उसका शव कब्र से निकालकर अब परिवार को सौंपेगी*
जम्मू-कश्मीर पुलिस के एनकाउंटर में छह महीने पहले मारे गए कथित आतंकी का शव कब्र से निकालकर उसके परिवार को सौंपा जाएगा। यह आदेश जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने शुक्रवार को पुलिस को दिया। पिछले साल नवंबर में हैदरपुरा में हुए एनकाउंटर के मामले में जस्टिस संजीव कुमार ने 13 पृष्ठों के अपने आदेश में कहा- मृतक अमीर लतीफ माग्रे के पिता की याचिका को मंजूर करते हुए जम्मू-कश्मीर सरकार को याचिकाकर्ता की मौजूदगी में मृतक का शव कब्र से निकालने का बंदोबस्त करे।अदालत ने कहा- अगर शव देने की स्थिति में नहीं है, तो भी याचिकाकर्ता और उनके करीबी रिश्तेदारों को उनकी परम्पराओं और धार्मिक विश्वास के अनुसार कब्रगाह में अंतिम संस्कार करने की अनुमति दी जाती है।

*5 लाख मुआवजा दे सरकार*
कोर्ट ने आदेश दिया कि- याचिकाकर्ता मोहम्मद लतीफ माग्रे को अपने बेटे अमीर लतीफ माग्रे के शव का परिवार की परम्पराओं, धार्मिक दायित्वों और विश्वास के अनुसार अंतिम संस्कार करने के अधिकार से वंचित रखने के लिए प्रदेश सरकार पांच लाख रुपए का मुआवजा देगा।

*कोर्ट ने यह भी कहा*
किसी अपने के शव का रीति रिवाज के साथ अंतिम संस्कार या उसे सुपुर्द-ए-खाक करने का हक संविधान में दिए गए जीने का अधिकार (अनुच्छेद-21) का हिस्सा है। आपने श्रीनगर में दबाव बनाने वालों को उनके अपनों के दो शव कब्र से निकाल कर दे दिए, लेकिन दूरदराज गांव में रहने वाले पिता को बेटे की आखिरी रस्मों से वंचित रखा। ये संविधान में शामिल समानता का अधिकार (अनुच्छेद-14) के विपरीत है।
कोर्ट ने कहा, यह साफ दिखता है कि हैदरपोरा मुठभेड़ में मारे गए अल्ताफ अहमद भट और डॉ. मुदस्सिर गुल के शव इसलिए सौंप दिए गए क्योंकि लोगों और परिजन ने प्रशासन पर दबाव बनाया था। वहीं, रामबन जिले के दूरदराज गांव के रहने वाले आमिर के पिता व रिश्तेदार घाटी में ऐसा दबाव नहीं बना सकते थे, इसलिए उन्हें अधिकार से वंचित रखा गया।

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