जूली को नेता प्रतिपक्ष बनाकर पार्टी ने क्या दिया मैसेज:गहलोत ने पायलट खेमे में कैसे नहीं जाने दिया बड़ा पद; भंवर जितेंद्र की क्या रही भूमिका

लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने नेता प्रतिपक्ष और प्रदेशाध्यक्ष के पद पर फैसला करके अपनी सियासी रणनीति सामने रख दी है। पहली बार दलित चेहरे को नेता प्रतिपक्ष बनाकर दलित वोट बैंक को साधने का प्रयास किया है। कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष पद पर गोविंद सिंह डोटासरा को बरकरार रखकर फिलहाल सियासी उफान को रोक दिया है।
दोनों बड़े पदों पर हुए इस फैसले के कांग्रेस की अंदरूनी सियासत के हिसाब से कई मायने हैं। जूली के नेता प्रतिपक्ष बनने के पीछे बड़ा कारण कांग्रेस के बड़े चेहरों की सियासत और खींचतान भी है। जूली को नेता प्रतिपक्ष बनाने में गहलोत की बड़ी भूमिका रही। पूर्व सीएम चाहते थे कि दोनों महत्वपूर्ण पदों पर पायलट खेमे का कोई नेता न हो।
स्पेशल रिपोर्ट में पढ़िए नेता प्रतिपक्ष बनने के पीछे की कहानी और अब जूली को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा…

नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली और प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा।
गहलोत फैक्टर : पायलट खेमे के पास नहीं जाने दिए दोनों पद
पूर्व मंत्री टीकाराम जूली को नेता प्रतिपक्ष बनने के पीछे राष्ट्रीय महासचिव भंवर जितेंद्र सिंह के अलावा पूर्व सीएम अशोक गहलोत की भी बड़ी भूमिका मानी जा रही है।
बताया जाता है कि गहलोत की रणनीति पायलट खेमे के किसी भी नेता को दोनों पदों पर नहीं बैठने देने की थी, जिसमें वे कामयाब हो गए हैं।
नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली और प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा दोनों गहलोत के साथ काम कर चुके हैं। दोनों से सियासी तौर पर गहलोत को फिलहाल खतरा नजर नहीं आ रहा है।
इससे उलट पायलट खेमे का कोई नेता अगर संगठन या विधायक दल का प्रमुख होता तो गहलोत खेमे के लिए बड़ी चुनौती बनता।

गहलोत एक बार फिर पायलट को रणनीतिक रूप से पीछे रखने में सफल हो गए हैं।
दलित फैक्टर : खड़गे के अध्यक्ष बनने के बाद राज्यों में प्रयोग
कांग्रेस हमेशा दलित, किसान, आदिवासी वोट बैंक पर फोकस करते आई है। पिछले लंबे समय से इस वोट बैंक में सेंध लगी है और इस वजह से कांग्रेस की ताकत कम हुई।
मल्लिकार्जुन खड़गे के अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस अब राज्यों में भी दलित लीडरशिप को उभारने का प्रयोग कर रही है।
पिछली कांग्रेस सरकार के वक्त एससी, एसटी के तीन-तीन कैबिनेट मंत्री बनाने के साथ उन्हें क्रीम माने जाने वाले विभाग भी दिए गए थे।
उस वक्त पायलट खेमे के साथ रहे रमेश मीणा और वेद सोलंकी ने विधानसभा में दलित—आदिवासियों को महत्व नहीं देने, अच्छे विभाग नहीं देने का मुद्दा उठाया था।
कांग्रेस ने सत्ता में रहते हुए दलित आदिवासी वर्ग को साधने के लिए कैबिनेट मंत्री बनाने के साथ सियासी नियुक्तियों में भी प्रयोग किए।
अनुभव : मंत्री रहते विधानसभा में धारदार जवाब देते थे
टीकाराम जूली पिछली गहलोत सरकार में पहली बार मंत्री बने। वे विधानसभा में पूरी तैयारी के साथ आते थे।
पहली बार के मंत्री होने के बावजूद हर सवाल और हर मुद्दे पर धारदार तरीके से जवाब देते थे। हर सवाल पर पूरी तैयारी होती थी।
जूली के जवाब और तैयारी से आने को लेकर तत्कालीन स्पीकर सीपी जोशी भी कई बार तारीफ कर चुके थे। जूली की इस इमेज का भी नेता प्रतिपक्ष बनने में फायदा हुआ।
नेता प्रतिपक्ष के तौर पर विधानसभा के नियमों की अच्छी जानकारी जरूरी होती है। जूली आक्रामक रूप से बीजेपी को घेरते रहे हैं।
अवसर : सबसे मजबूत हालत में विधायक दल मिला, बड़ा नेता बनने का मौका
टीकाराम जूली प्रदेश के पहले दलित नेता प्रतिपक्ष हैं। जूली ऐसे वक्त में नेता प्रतिपक्ष बने हैं जब कांग्रेस विधानसभा में बहुत मजबूत स्थिति में है। कांग्रेस कई दशकों बाद 70 सीटों के साथ विधानसभा में है।
नेता प्रतिपक्ष के तौर पर टीकाराम जूली के लिए अनुकूल सियासी हालात हैं। उनके सामने बड़े नेता बनने का मौका है।
पिछली बार गोविंद सिंह डोटासरा विपक्ष में रहते हुए कांग्रेस विधायक दल के सचेतक थे। उस वक्त कांग्रेस के केवल 21 विधायक थे।
विधानसभा में डोटासरा ने धारदार तरीके से बीजेपी सरकार को घेरा था। जिससे एक नेता के तौर पर उनका सियासी कद बढ़ा और उनके कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष तक के सफर में यह बहुत काम आया।
अब जूली के सामने भी बड़ा मौका है। वे नेता प्रतिपक्ष बनने के साथ ही कांग्रेस के बड़े नेताओं की कतार में आ गए हैं। जनलेखा समिति अध्यक्ष के तौर पर उनके सामने ब्यूरोक्रेसी पर पकड़ बनाने का मौका रहेगा।
आगे चुनावी बैठकों में उम्मीदवार चयन से लेकर पार्टी के अहम मुद्दों पर भी उनकी राय ली जाएगी।
लेकिन गहलोत-भंवर के साये से निकलने की चुनौती भी
टीकाराम जूली के लिए नेता प्रतिपक्ष का पद कई सियासी मौके लेकर आया है, लेकिन इस पद पर चुनौतियां भी हैं।
राजस्थान कांग्रेस की सियासत में अशोक गहलोत और सचिन पायलट खेमों के बीच संतुलन बनाना सबसे बड़ी चुनौती है। इसके अलावा जूली को अशोक गहलोत और भंवर जितेंद्र सिंह के साये से बाहर निकलने की भी चुनौती रहेगी।
परसराम मदेरणा के बाद कांग्रेस में जितने भी नेता प्रतिपक्ष रहे हैं, उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती यही रही है कि वे अशोक गहलोत के साये से बाहर नहीं निकल पाए थे।
रामेश्वर डूडी ने बाद में कुछ प्रयास जरूर किए थे लेकिन उन्हें भी उतनी कामयाबी नहीं मिल पाई थी। नेता प्रतिपक्ष के तौर पर अपनी स्वतंत्र सियासी इमेज बनाना चुनौती और अवसर दोनों होंगे।

जूली को बड़े नेता के तौर पर खुद को स्थापित करने के लिए अशोक गहलोत और भंवर जितेंद्र सिंह के साये से बाहर निकलने की भी चुनौती रहेगी।
उदयपुर चिंतन शिविर का भी असर
कांग्रेस ने उदयपुर में हुए चिंतन शिविर में दलित, आदिवासी, ओबीसी, माइनोरिटी, महिलाओं और युवाओं को पर्याप्त भागीदारी देने की घोषणा की थी।
इसके तहत कांग्रेस संगठन में पदाधिकारी बनाने से लेकर चुनावों में टिकटों तक में इन वर्गों को आरक्ष्ण देने की बात कही गई थी।
अब दलित वर्ग से नेता प्रतिपक्ष बनाने को भी उदयपुर चिंतन शिविर में जारी किए गए घोषणा पत्र के असर के तौर पर देखा जा रहा है।
44 साल पहले पहाड़िया बने थे पहले दलित सीएम, लेकिन साल भर ही पद पर रहे
कांग्रेस ने आज से 44 साल पहले जगन्नाथ पहाड़िया को पहले दलित मुख्यमंत्री के तौर पर मौका दिया था। हालांकि पहाड़िया 06 जून 1980 से 13 जुलाई 1981 तक ही मुख्यमंत्री रहे, बाद में उन्हें हटा दिया था।
पहाड़िया संजय गांधी के नजदीकी थे। 23 जून 1980 को संजय गांधी का प्लेन क्रेश में देहांत हो गया था। संजय गांधी के निधन के बाद पहाड़िया के सियासी पैरोकार नहीं बचे थे और उन्हें साल भर के भीतर ही पद से हटा दिया गया था।
पूर्वी राजस्थान को साधने का प्रयास, सीएम का गृह क्षेत्र भरतपुर तो नेता प्रतिपक्ष अलवर से
कांग्रेस ने पूर्वी राजस्थान से नेता प्रतिपक्ष बनाकर क्षेत्रीय सियासी संतुलन भी साधने का प्रयास किया है। सीएम भजनलाल शर्मा मूल रूप से भरतपुर जिले के रहने वाले हैं।
बीजपी ने पूर्वी राजस्थान से सीएम बनाया तो कांग्रेस ने नेता प्रतिपक्ष इस इलाके से बनाकर क्षेत्रीय संतुलन बनाने का मैसेज दे दिया। कांग्रेस में प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा सीकर जिले के हैं, पार्टी के दोनों अहम पद अब पूर्वी राजस्थान के हिस्से हैं।
कांग्रेस में अभी उपनेता प्रतिपक्ष और सचेतक के पदों पर भी जिम्मेदारियां दी जानी हैं। मारवाड़ और दक्षिणी राजस्थान से नेताओं को इन पदों पर जिम्मेदारी दी जा सकती है।













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