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जैमर के बावजूद जेल में कैसे हुआ लॉरेंस का इंटरव्यू?:राजस्थान-पंजाब में 2जी तकनीक के जैमर, सिग्नल-विकर मी जैसे ऐप दे सकते हैं धोखा

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जैमर के बावजूद जेल में कैसे हुआ लॉरेंस का इंटरव्यू?:राजस्थान-पंजाब में 2जी तकनीक के जैमर, सिग्नल-विकर मी जैसे ऐप दे सकते हैं धोखा

कुख्यात गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई का जेल से प्रसारित हुआ इंटरव्यू राजस्थान की जेल से हुआ या नहीं, इसका खुलासा तो जांच पूरी होने के बाद ही हो सकेगा।

पड़ताल में सामने आया कि पुरानी तकनीक के जैमर, जेल प्रशासन की मिलीभगत और लापरवाही के कारण ही ये संभव हुआ। ये खामियां राजस्थान और पंजाब दोनों की जेल में हैं।

राजस्थान की जेलों में बंद कई गैंगस्टर और बदमाश अभी भी जेल से जुर्म का साम्राज्य बेखौफ चला रहे हैं। राजू ठेहट मर्डर की प्लानिंग भी अजमेर जेल में पहुंचे मोबाइल से ही रची गई थी।

संडे बिग स्टोरी में पढ़िए- कैसे जेलों से चल रहा खौफ का साम्राज्य..

इस साल 28 जनवरी को दुर्गापुरा स्थित जी क्लब पर फायरिंग भी लॉरेंस बिश्नोई गैंग ने कराई थी। इससे पहले गैंग ने क्लब के मालिक से 5 करोड़ की रंगदारी मांगी थी। गैंग के गुर्गे रितिक बॉक्सर ने सोशल मीडिया पर पोस्ट कर फायरिंग की जिम्मेदारी ली थी। इस मामले में गिरफ्तार 4 आरोपियों से पूछताछ में जेल में बंद लॉरेंस बिश्नोई का नाम सामने आने पर जयपुर पुलिस उसे पंजाब से 15 फरवरी को गिरफ्तार कर लाई थी।

जी क्लब फायरिंग केस में जवाहर सर्किल थाना पुलिस लॉरेंस बिश्नोई को 15 फरवरी को जयपुर लाई थी।

पंजाब SIT का दावा- लॉरेंस का इंटरव्यू राजस्थान की जेल में हुआ

पूछताछ के बाद लॉरेंस को वापस बठिंडा जेल भेज दिया गया। लेकिन इसी बीच लॉरेंस के जेल से 2 इंटरव्यू टीवी पर प्रसारित होने से राजस्थान पुलिस पर भी सवाल उठने शुरू हो गए। क्योंकि इंटरव्यू से पहले लॉरेंस राजस्थान पुलिस की कस्टडी में था। पंजाब एसआईटी ने भी इंटरव्यू राजस्थान की जेल में होने का दावा किया था। एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट में दो में से एक इंटरव्यू राजस्थान की किसी जेल से होने की बात कही है।

इंटरव्यू पार्ट-1 : गैंगस्टर लॉरेंस का पहला इंटरव्यू 14 मार्च की शाम को ब्रॉडकास्ट किया गया था। तब DGP पंजाब ने पहले इंटरव्यू के बाद साफ तौर पर लॉरेंस का इंटरव्यू पंजाब से बाहर होने की बात कही थी।

इंटरव्यू पार्ट-2 : इसके तीन दिन बाद 17 मार्च को फिर दूसरा पार्ट ब्रॉडकास्ट किया गया। जिसमें लॉरेंस ने जेल के अंदर से इंटरव्यू करने का सबूत भी दे दिया। उसने अपनी बैरक भी दिखाई और बताया कि उसे बाहर नहीं जाने दिया जाता, लेकिन मोबाइल उसके पास आ जाता है और सिग्नल भी।

14 मार्च को लॉरेंस का पहला इंटरव्यू प्रसारित हुआ था।

14 मार्च को लॉरेंस का पहला इंटरव्यू प्रसारित हुआ था।

इस पर पंजाब पुलिस का कहना था कि लॉरेंस को जेल गार्ड की कस्टडी में रखा गया था वहां जैमर लगे हैं, इसलिए वहां इंटरव्यू होना संभव नहीं है। ऐसा ही दावा राजस्थान पुलिस भी कर रही है। पुलिस को मुताबिक राजस्थान की जेलों में जैमर लगे हैं। लेकिन सबसे बड़ा सवाल तो ये है कि अगर जैमर लगे थे तो फिर जेल में बैठ लॉरेंस का इंटरव्यू हुआ कैसे?

इसको लेकर पड़ताल की तो सामने आया कि अधिकांश जेलों में लगे जैमर पुरानी टेक्नोलॉजी के हैं, जो केवल 2जी और 3जी नेटवर्क को ही जाम कर सकते हैं। 4जी या 5जी टेक्नोलॉजी पर आधारित नेटवर्क को ये जैमर नहीं रोक पाते। टेक्नोलॉजी की इसी खामी का फायदा गैंगस्टर उठाते हैं। राजस्थान की सबसे हाई सिक्योरिटी जेल अजमेर में भी 3जी टेक्नोलॉजी का जैमर लगा हुआ है। यह वर्तमान में कारगर नहीं है।

लॉरेंस को पूछताछ के बाद जयपुर की सेंट्रल जेल में रखा गया था।

लॉरेंस को पूछताछ के बाद जयपुर की सेंट्रल जेल में रखा गया था।

राजस्थान ही नहीं पंजाब की जेलों में भी जैमर पुराने

जयपुर सेंट्रल जैल के सुपरिटेंडेंट ओमप्रकाश शर्मा ने बताया कि जयपुर जेल में 2 जी और 3 जी तकनीक के जैमर लगे हुए हैं। लेकिन जयपुर जेल से लॉरेंस बिश्नोई का इंटरव्यू नहीं हुआ है। यह मामला सामने आने के बाद हमारे स्तर पर हुई जांच में यह स्पष्ट हो गया था।

पंजाब की जेलों में 4जी जैमर लगाने पर स्वत: संज्ञान मामले पर हाईकोर्ट में पंजाब सरकार ने करीब 11 महीने पहले जवाब पेश कर बताया था कि पायलट प्रोजेक्ट के तहत बठिंडा सेंट्रल जेल में दिल्ली की एक फर्म द्वारा परीक्षण के आधार पर चार 4जी जैमर स्थापित किए गए हैं। जबकि हकीकत ये है कि अधिकांश जेलों में वहां भी जैमर पुराने ही हैं और जेलों में बंद अपराधी हाई फ्रीक्वेंसी एरिया में जाकर 5जी तकनीक का उपयोग कर रहे हैं।

लॉरेंस गैंग किसी भी साजिश में अपने एसोसिएट्स से बातचीत के लिए ऐसे ऐप इस्तेमाल करती है जिनका सर्वर भारत में नहीं है और लोकेशन ट्रेस करना आसान नहीं।

लॉरेंस गैंग किसी भी साजिश में अपने एसोसिएट्स से बातचीत के लिए ऐसे ऐप इस्तेमाल करती है जिनका सर्वर भारत में नहीं है और लोकेशन ट्रेस करना आसान नहीं।

सिग्नल ऐप और विकर मी जैसे ऐप का इस्तेमाल, नहीं पकड़ पाते जैमर

लॉरेंस से जुड़े जितने भी मामलों में जांच हुई, उसमें ये सामने आया की क्राइम की पूरी साजिश भारत में बैन पर्सनल मैसेंजर ऐप के जरिए रची गई। सिग्नल के बाद अब विकर मी ऐप का इस्तेमाल ज्यादा होने लगा है। लॉरेंस और उससे जुड़े गुर्गे अब सिग्नल की बजाय नया ऐप इस्तेमाल करने लगे हैं। भारत में विकर-मी ऐप पूरी तरह से बैन है। फिर भी गैंगस्टर विकर मी ऐप का इस्तेमाल करते हैं। इस ऐप से फिरौती से लेकर मर्डर की पूरी प्लानिंग की जाती है।

क्योंकि इस ऐप से लोकेशन ट्रेस नहीं होती और डेटा भी सेफ रहता है। सीकर में राजू ठेहट मर्डर से लेकर जयपुर में जी क्लब फायरिंग में पूरी डीलिंग विकर-मी ऐप के जरिए ही की गई थी। प्रदीप शुक्ला से लेकर शक्ति सिंह रानोली को भी पहले ऐप डाउनलोड कराया गया था। तभी आगे काम शुरू किया गया था।

एक्सपर्ट्स की मानें तो इसमें भी कोई दो राय नहीं है कि ये इंटरव्यू भी ऐसे ही किसी ऐप के जरिए दिया गया हो। ताकि लोकेशन को ट्रेस करना आसान नहीं हो। लेकिन मिलीभगत के बिना लॉरेंस तक मोबाइल पहुंचना भी चौंकाने वाली बात है।

यह भी किसी से छिपा नहीं है कि लॉरेंस कितने बेखौफ तरीके से जेल के अंदर ही मोबाइल इस्तेमाल करता है। वो खुलेआम स्वीकार भी चुका है।

यह भी किसी से छिपा नहीं है कि लॉरेंस कितने बेखौफ तरीके से जेल के अंदर ही मोबाइल इस्तेमाल करता है। वो खुलेआम स्वीकार भी चुका है।

राजस्थान में जेलों से ही हुई बड़ी साजिशें, एक्सटॉर्शन कॉल के 20 मामले

प्रदेश में पिछले दो साल में एक्सटॉर्शन कॉल के 20 मामले सामने आए हैं। इनमें अलवर जिले की भिवाड़ी जेल से 8 और कोटा, जयपुर जेल के दो-दो मामले शामिल हैं। चूरू और भरतपुर की सेवर जेल के तीन-तीन और टोंक व अजमेर जेल से एक-एक मामला सामने आया था। इन तीन बडे़ मामलों से समझते हैं…

केस-1 : हाई सिक्योरिटी जेल में बनी राजू ठेहट की हत्या की प्लानिंग

राजस्थान की सबसे सुरक्षित मानी जाने वाली अजमेर की हाई सिक्योरिटी जेल में गैंगस्टर राजू ठेहट की हत्या की प्लानिंग बनी थी। जेल के दो गार्ड ने आनंदपाल गैंग के कुलदीप तक मोबाइल फोन पहुंचाया था और इसी फोन का उपयोग कर शूटर्स तैयार किए गए। पुलिस जांच में सामने आया कि गार्ड ने इसके लिए 70 हजार रुपए लिए थे। जांच के बाद पुलिस ने गार्ड को गिरफ्तार कर लिया।

राजू ठेहट हत्याकांड में पुलिस गिरफ्त में आनंदपाल गैंग का कुलदीप (बाएं) और जेल गार्ड योगेश (दाएं)।

राजू ठेहट हत्याकांड में पुलिस गिरफ्त में आनंदपाल गैंग का कुलदीप (बाएं) और जेल गार्ड योगेश (दाएं)।

केस-2 : सेवर जेल से फोन कर कैदी ने दो ज्वेलर से मांगी रंगदारी

जेल में मोबाइल का उपयोग धड़ल्ले से किया जा रहा है। इसका ताजा उदाहरण भरतपुर के सेवर जेल का है। जहां कैदी ने फोन कर दो ज्वेलर को रंगदारी की मांग करते हुए धमकाया। ज्वेलर ने 19 दिसंबर को इस संबंध में केस दर्ज कराया। जब पुलिस ने मोबाइल नंबर के आधार पर अपराधी की लोकेशन खंगाली तो वह सेवर जेल के आस पास पाई गई। जांच में सामने आया कि कैदी देवराज सिंह ने ही भरतपुर और जयपुर के ज्वेलर्स को रंगदारी के लिए फोन कर धमकाया था।

पुलिस ने कैदी के पास से मोबाइल फोन और एक सिम भी बरामद की, जिससे कैदी ने कॉल किया था। चौंकाने वाली बात तो ये है कि इससे पहले भी कैदी देवराज ने इसी ज्वेलर से 19 जुलाई 2021 को दस लाख और 21 सितंबर को पांच लाख की रंगदारी मांगी थी। जेल प्रशासन की नाकामी और सख्त कार्रवाई नहीं होने पर कैदी ने एक बार फिर जेल में बैठे- बैठे वारदात को अंजाम दिया।

सेवर जेल में बंद कैदी देवराज सिंह ने ही भरतपुर और जयपुर के ज्वेलर को रंगदारी के लिए फोन किए।

सेवर जेल में बंद कैदी देवराज सिंह ने ही भरतपुर और जयपुर के ज्वेलर को रंगदारी के लिए फोन किए।

केस-3 : जेल में बैठकर कराई थी बजरंग दल संयोजक की हत्या

उदयपुर के बहुचर्चित राजू तेली हत्याकांड के तार भी उदयपुर सेंट्रल जेल से जुड़े हुए थे। इसकी पुष्टी खुद पुलिस ने जांच के दौरान की थी। बजरंग दल के विभाग संयोजक राजू परमार उफ राजू तेली की हत्या जेल में बंद हार्डकोर अपराधी दिलीप नाथ के इशारे पर हुई थी। जांच के बाद पुलिस ने जेल में बंद दिलीप के पास से मोबाइल जब्त किया था। इसी मोबाइल के जरिए उसने अपने गुर्गों को हत्या के निर्देश दिए थे।

औचक निरीक्षण के भरोसे जेल प्रशासन!

जेल में एंट्री के दौरान किसी भी व्यक्ति को कड़ी जांच से गुजरना पड़ता है। बिना जेल प्रशासन की जांच के कोई सामान जेल में नहीं जा सकता। इस पूरी कवायद के बाद भी जेलों में मोबाइल फोन और सिम पहुंच रहे हैं। यानी कड़ी सुरक्षा में सेंध लगाना आसान होता जा रहा है। हालांकि समय-समय पर जेलों का औचक निरीक्षण होता है। इस दौरान कुछ मोबाइल और सिम कार्ड पकड़े भी गए हैं। इस पर कैदी के खिलाफ केस दर्ज कराया जाता है। बावजूद इसके जेलों में मोबाइल फोन पर अंकुश नहीं लग पा रहा है। ऐसे में जेल प्रशासन पर सवाल उठना लाजिमी है।

लॉरेंस गैंग के खास गुर्गे रोहित गोदारा ने हाल ही में जयपुर में श्री राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना अध्यक्ष सुखदेव सिंह गोगामेड़ी की हत्या करवाई थी।

लॉरेंस गैंग के खास गुर्गे रोहित गोदारा ने हाल ही में जयपुर में श्री राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना अध्यक्ष सुखदेव सिंह गोगामेड़ी की हत्या करवाई थी।

जेलों में न एक्स-रे न ही मेटल डिटेक्टर

राजस्थान की जेलों में सुरक्षा उपकरणों की कमी भी जेल में सेंध लगाने का बड़ा कारण है। प्रदेश की जेल एक्स रे बैगेज स्केनर, हैंड हेल्ड मेटल डिटेक्टर, सेलफोन डिटेक्टर व डिटेक्शन सैट, नाइट विजन डिवाइस, वॉक-टॉकी, बॉडीवार्न कैमरा और इलेक्ट्रिक सायरन जैसे उपकरणों की कमी से जूझ रहे हैं। इनकी पूर्ति होने पर सुरक्षा व्यवस्था पुख्ता हो सकेगी।

कैदियों के लिए कॉलिंग सुविधा

जेलों में मोबाइल फोन के बढ़ते इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिए जेल प्रशासन ने प्रदेश के जेलों में कैदियों को कॉलिंग सुविधा भी उपलब्ध कराई है। प्रदेश के 9 सेंट्रल जेल, हाई सिक्योरिटी जेल अजमेर सहित 26 जिला जेलों में यह सुविधा दी जा रही है। इसके साथ ही 7 महिला बंदी सुधार गृहों और तीन उप कारागृह में भी कॉलिंग की सुविधा दी गई है। इससे कैदी अपने परिवार, रिश्तेदार और दोस्तों से रजिस्टर्ड कराए गए 4 नंबरों पर बात कर सकते हैं। इन नंबरों की जांच एसओजी और एटीएस द्वारा समय समय पर की जाती है। इस समय कैदी इस प्रणाली का 2.30 लाख मिनट प्रति सप्ताह उपयोग कर रहे हैं।

जैमर लगाने की कवायद

राजस्थान की जेलों में 2014 में जेलों में जैमर लगाने का प्रस्ताव दिया गया था। 2016 में प्रदेश की जेलों में जैमर लगाए गए थे। 2018 से अधिकांश जेलों में जैमर बंद हैं। इन्हें अपग्रेड और रिप्लेस करने के लिए पत्राचार किया गया। एक्सपर्ट ने जांच के बाद बताया कि यह अपग्रेड नहीं हो सकते हैं। इन्हें बदलना ही होगा। अब यह कारगर नहीं है।

क्या कहते हैं एक्सपर्ट

पूर्व अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक राजेंद्र प्रसाद का कहना है कि नई तकनीक के मामले में पुलिस हमेशा अपराधियों के पीछे ही रही है। चाहे हथियार हो या तकनीक। पुलिस को हमेशा बाद में ही अपग्रेड किया जाता है। यही हालात जेल सुरक्षा को लेकर भी है। पुलिस को जेल सुरक्षा पुख्ता करने के लिए जैमर को अपग्रेड करना जरूरी है। पुलिस विभाग को भी लेटेस्ट टेक्नोलॉजी अपनानी चाहिए। हालांकि इसमें खर्च अधिक होता है। ऐसे में यह पॉलिसी सरकार के स्तर पर प्राथमिकताओं के अनुसार डिसाइड किए जाते हैं।

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