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‘ढांचे के गुंबद से गिरा लेकिन खरोंच तक नहीं आई’:नदबई के ललिल बोले- 7 दिसंबर को बारांबकी स्टेशन पर गोली पास से निकली

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‘ढांचे के गुंबद से गिरा लेकिन खरोंच तक नहीं आई’:नदबई के ललिल बोले- 7 दिसंबर को बारांबकी स्टेशन पर गोली पास से निकली

‘6 दिसंबर 1992 को हम गीता भवन से विवादित स्थल पहुंच गए। पूरे परिसर की बैरिकेडिंग की गई थी। कारसेवकों के साथ मैं ढांचे तक पहुंच गया। ढांचे पर चढ़ रहा था कि अयोध्या के कार्यपाल मजिस्ट्रेट ने पुलिस को आदेश दिया- इन्हें नीचे उतारो। हड़बड़ी में मेरा पैर फिसला और मैं नीचे आकर गिरा। भगवान राम की कृपा से मुझे खरोंच भी नहीं आई। अयोध्या में जिस बैरिकेडिंग के पाइप से ढांचा तोड़ा वह लेकर अपने घर आया। आज भी उसकी पूजा करता हूं।’

यह कहना है भरतपुर जिले के नदबई कस्बे के RSS स्वयंसेवक और एलआईसी एजेंट ललित किशोर सिंघल (49) का। ललित 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में हुई कार सेवा में 18 साल के ललित न केवल शामिल हुए थे, बल्कि विवादित ढांचे तक पहुंच गए थे और गुंबद से फिसलकर गिर गए थे। राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम को लेकर ललित किशोर सिंघल उत्साहित हैं। इस मौके पर उन्होंने कार सेवा की यात्रा, बाबरी ढांचा विध्वंस और घर लौटने का वाकया सुनाया।

नदबई कस्बे के कटरा स्कूल के पास रहने वाले एलआईसी एजेंट ललिल किशोर ने घर के पूजा-स्थल में रखी एक लोहे की रॉड दिखाई जिसे पीले कपड़े से लपेट रखा था। उन्होंने बताया कि अयोध्या में इसी रॉड से उन्होंने मस्जिद का ढांचा तोड़ा, यह पुलिस की बैरिकेडिंग से उखाड़ा था। लौटते वक्त इसे साथ ले आया। 31 साल से इसे पूजाघर में रखा है।

कार सेवक ललित किशोर की जुबानी अयोध्या की कहानी…

जिस वक्त वह घटनाक्रम हुआ, मैं 18 साल का था। राम मंदिर को लेकर कार सेवा का जोश था। नदबई से बड़ी तादाद में लोग कार-सेवा में जा रहे थे। मैंने पिता रामकिशन सिंघल से कारसेवा में जाने की अनुमति मांगी। उन्होंने कहा- वहां जो भी काम दें उसे पूरी शिद्दत से और प्रभु श्री राम का नाम लेकर पूरा कर घर लौटना। इसके बाद 30 नवंबर 1992 को नदबई से मैं, आरएसएस स्वयंसेवक जगदीश भातरा, भानु पाठक, दिनेश पाठक, घनश्याम शर्मा, तेज सिंह शर्मा और विजय गोस्वामी मरुधर एक्सप्रेस से अयोध्या के लिए रवाना हुए। हमने एक छोटा बैग लिया था जिसमें गर्म कपड़े और कंबल था। कार सेवा में जाने के लिए नदबई आरएसएस संघ की एक बैठक हुई थी, जिसमें हम 7 लोगों के जाने का तय हुआ था।

हम मरुधर एक्सप्रेस से 1 दिसंबर की सुबह 11 बजे लखनऊ उतरे। लखनऊ से आगे के सफर के लिए हमने लोकल ट्रेन पकड़ी और अयोध्या पहुंच गए। वहां फैजाबाद स्टेशन के पास ही विश्व हिंदू परिषद की ओर से रजिस्ट्रेशन कैंप लगाया गया था। इन कैंप में कार सेवकों को पहचान के लिए कार्ड दिया जा रहा था। मैंने भी यह कार्ड बनवाया। इस कार्ड पर श्रीराम कारसेवा समिति, राजस्थान लिखा था, इसके अलावा कार सेवक का नाम, पिता का नाम, पता और प्रांत प्रमुख के हस्ताक्षर थे।

कार सेवा के दौरान ललित सिंघल को फैजाबाद स्टेशन के कैंप से यह परिचय पत्र मिला था।

कार सेवा के दौरान ललित सिंघल को फैजाबाद स्टेशन के कैंप से यह परिचय पत्र मिला था।

हमारी टोली को विवादित स्थल से करीब डेढ़ किलोमीटर दूर गीता भवन में रखा गया था। यहां एक हॉल में करीब 200 कार-सेवक ठहरे थे। गीता भवन में बड़ी तादाद में कार सेवक रुके हुए थे। 1 से 7 दिसंबर तक हम गीता भवन में ही रहे। मौसम सर्दी का था, ऐसे में चावल की भूसी पर फर्श डालकर सोने का प्रबंध किया गया। ओढ़ने के लिए कंबल दिया गया। अगले एक दो दिन विवादित ढांचे के पास लाल कृष्ण आडवाणी, साध्वी ऋतंभरा, उमा भारती, अशोक सिंघल जैसे नेताओं के जोशीले भाषण हुए। गीता भवन से हम उन्हें सुनने जाते थे।

कार सेवकों के लिए अयोध्या में 16 जगहों पर विशाल लंगर लगाए गए थे। बड़ी संख्या में कार सेवक देशभर से अयोध्या पहुंच रहे थे। गीता भवन से हम रोजाना सुबह जल्दी उठते और 3 किलोमीटर दूर सरयू पर जाकर स्नान करते थे। फिर लंगर में भोजन कर किसी भाषण रैली में शामिल होकर नेताओं के आह्वान सुनते।

माहौल लगातार गरमा रहा था। अयोध्या पुलिस छावनी बन चुका था। अयोध्या आने वाले सारे रास्ते बंद कर दिए गए थे। विवादित परिसर पर वायरिंग और बैरिकेडिंग कर दी गई थी। हर तरफ पुलिस थी। 5 दिसंबर की शाम को यह अंदेशा हो गया था कि कल कुछ बड़ा होने वाला है।

ललित किशोर का कहना है कि वे गुंबद से करीब 107 फीट से फिसलते हुए, कारसेवकों से टकराते हुए मिट्‌टी में ाकर गिरे थे। (फाइल फोटो)

ललित किशोर का कहना है कि वे गुंबद से करीब 107 फीट से फिसलते हुए, कारसेवकों से टकराते हुए मिट्‌टी में ाकर गिरे थे। (फाइल फोटो)

6 दिसंबर को हम बाबरी परिसर के लिए निकले। पुलिस की बैरिकेडिंड तोड़ कुछ कार सेवकों के पीछे-पीछे में विवादित परिसर के अंदर दाखिल हुआ और गुंबद पर चढ़ने लगा। इस दौरान अयोध्या के कार्यपाल मजिस्ट्रेन ने पुलिस को आदेश किया कि बाबरी ढांचे पर चढ़े कार सेवकों को उतारा जाए।

हड़बड़ी में मेरा पैर फिसला, मैं 107 फीट की ऊंचाई पर था। गुंबद पर फिसलते हुए, कार सेवकों से टकराते हुए, मैं मिट्‌टी में जाकर गिरा। मुझे खरोंच तक नहीं आई। वहां बड़ी संख्या में भीड़ था। कार सेवकों ने पुलिस की बैरिकेडिंग तोड़ दी थी। मैंने भी एक बैरिकेड का पाइप तोड़ा। कार सेवक रॉड, सरिए, पाइप और बल्लियों से ढांचे पर प्रहार कर रहे थे। शाम 6 बजे तक कार सेवकों ने परिसर को मलबे के ढेर में बदल दिया।

इसके बाद शाम से पूरी रात मानव श्रंखला बनाकर मलबे को सरयू में फेंक दिया गया। यह करते करते सुबहके 5 बज गए थे। दूसरे दिन सुबह ही कर्फ्यू लग गया था। सेना के आने की तैयारी थी। अयोध्या के सारे रास्ते बंद कर दिए गए थे।

अयोध्या में कार सेवकों के प्रवेश को रोकने के लिए हर रास्ते पर बैरिकेडिंग कर दी गई थी। (फाइल)

अयोध्या में कार सेवकों के प्रवेश को रोकने के लिए हर रास्ते पर बैरिकेडिंग कर दी गई थी। (फाइल)

मैं कुछ कार सेवकों के साथ रेलवे स्टेशन पहुंच गया और अयोध्या-बाराबंकी पैसेंजर ट्रेन में चढ़ गया। बाराबंकी स्टेशन पर कुछ लोगों ने कार सेवकों पर फायरिंग कर दी। गोली मेरे पास से निकली। स्टेशन पर तनाव के हालात हो गए। इस दौरान स्टेशन मास्टर ने कार सेवकों से शांति बनाए रखने की अपील की। कहा- आप लोग इन लोगों से कुछ नहीं कहिए, शांति रखिये। आप लोग चले जाएंगे, बाद में ये हमें परेशान करेंगे।

लखनऊ पहुंचकर मरुधर एक्सप्रेस से मैं 8 दिसंबर को शाम 6 बजे नदबई पहुंच गया। मेरे माता-पिता मुझे देखकर बहुत खुश हुए। पिता की आंखों में आंसू थे। उन्होंने मुझे गले लगा लिया। अयोध्या से मैं अपने साथ लोहे का पाइप लाया था, जिसे पूजा घर में रख दिया।

अयोध्या से ललित एक रॉड लेकर आए थे। जिसे वे अपने पूजा घर में रखते हैं।

अयोध्या से ललित एक रॉड लेकर आए थे। जिसे वे अपने पूजा घर में रखते हैं।

पत्नी ने कहा- शादी के बाद पता चला कार सेवक हैं

ललित किशोर की पत्नी सुलेखा सिंघल ने कहा- शादी के बाद मुझे पता चला कि पति ललित किशोर राम मंदिर की कार सेवा के लिए अयोध्या गए थे। यह जानकर तब बहुत खुशी हुई थी। अब राम मंदिर बन रहा है तो खुशी का ठिकाना नहीं है। जिस काम से पति तब अयोध्या गए थे, वो काम अब पूरा हो रहा है।

नदबई कस्बे के कटरा स्कूल इलाके में रहने वाले ललित किशोर की शादी सुलेखा से 13 मार्च 1999 को हुई थी। परिवार में पत्नी दो बेटे, भविष्य (22) और प्रतीक (15) हैं। भविष्य एलएलबी कर रहा है और प्रतीक दसवीं क्लास में है। माता पिता का देहांत हो चुका है। 19 फरवरी 2023 उनके पिता का निधन हो गया। पिता कृषि पर्यवेक्षक थे।

ललित किशोर ने जब कार सेवा में हिस्सा लिया था, तब वे महज 18 साल के हैं। ललित किशोर की एक पुरानी तस्वीर।

ललित किशोर ने जब कार सेवा में हिस्सा लिया था, तब वे महज 18 साल के हैं। ललित किशोर की एक पुरानी तस्वीर।

प्राण प्रतिष्ठा को लेकर राम-भक्तों में उत्साह

राम मंदिर को लेकर 9 नवंबर 2019 में सुप्रीम कोर्ट की ओर से फैसला सुनाया गया। इसके बाद 5 अगस्त 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन किया। इसके करीब साढे 3 साल बाद 22 जनवरी 2024 को राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होगी। भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में सनातन प्रेमियों में इन दिनों को लेकर खासा उत्साह है।

राम मंदिर के इतिहास में 1990 और 1992 में सैकड़ों कार सेवकों की कहानी भी जुड़ी हुई है। अक्टूबर 1990 में राम मंदिर के लिए पहली बार रामभक्तों ने कार सेवा की। इस दौरान उत्तरप्रदेश की मुलायम सरकार ने कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश दे दिया। इसके बाद 1992 में दूसरी बार अयोध्या में हिंदू संगठनों की ओर से कारसेवा की गई। जहां 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचे को गिरा दिया गया। अयोध्या में दो बार हुई इस कार सेवा में राजस्थान से भी कई कार सेवकों ने हिस्सा लिया था।

रिपोर्ट- अभय शर्मा, नदबई।

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मुझे 1990 और 1992 में कारसेवा के लिए अयोध्या जाने का मौका मिला। साल 1990 में सरयू नदी की पुलिया पार करने का नजारा भूल नहीं सकता। हजारों की संख्या में कारसेवक एक साथ पुलिया पार कर रहे थे। उनमें मैं भी था। आधी पुलिया चढ़ चुका था। आगे पुलिस लाठियां और गोलियां बरसा रही थी।

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