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नाथी का बाड़ा या डोटासरा का घर?

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राज्य में इन दिनों नाथी का बाड़ा चर्चा का विषय बना हुआ है।सीकर में अपने आवास पर ज्ञापन सौंपने के लिए पहुंचे चार शिक्षकों पर जमकर बरसे डोटासरा ने जब उन्हे अपने घर को नाथी का बाड़ा समझ कर आने के लिए कहा ,उसके बाद से पूरे राज्य में राजस्थान सरकार में शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा का व्यवहार चर्चा का विषय बना हुआ है।बात बात में खुदको एक शिक्षक का पुत्र बताने वाले डोटासरा शायद भारत में शिक्षक “गोविंद” से पहले पूजनीय हैं ये भूल गए उन्हें केवल “नाथी का बाड़ा ” ही याद रहा। ये पहली बार नहीं है जब डोटासरा अपने बयानों से विवाद का विषय बनते रहे हैं।
इसी संदर्भ में बात करें नाथी के बाड़े की तो मारवाड़ में प्राचीन समय में एक महिला थी नाथीबाई।जो शादी के बाद बालविधवा हो गई थी, लेकिन सामाजिक परंपरा के कारण दूसरा विवाह नहीं हो सका, तो नाथीबाई विधवा ही ससुराल में रही, नाथीबाई मेहनत मजदूरी करती, गरीबों की मदद करती, गांव में मान-सम्मान से रहती, ऐसे करते करते नाथीबाई के पास बहुत धन जमा हो गया।
गांव में जब कोई भी कोई शादी, मायरा, नुक्ता वगैरह बड़ा काम होता तो लोग नाथीबाई के पास आते और धन उधार लेते। नाथीबाई सबको धन देती कोई हिसाब नहीं लिखती और न ही ब्याज लेती।
ऐसे नेक आचरण से नाथीबाई बहुत प्रसिद्ध हुई जिसके पास कोई भी आदमी मदद मांगने जा सकता था।

इसलिए कहावत बनी “नाथी का बाड़ा “। डोटासरा जी नाथी का बाड़ा बनने के लिए जीवन में दुख और तकलीफें उठानी पड़ती हैं संयम और मेहनत लगती है।वो शिक्षक आपके यहां नाथी का बाड़ा समझ कर नहीं एक जनता के सेवक के पास अपने हक की बात करने आए थे।
समय समय का फेर है जल्द ही चुनावी दस्तक शुरू होगी और नाथी के बाड़े बदल जायेंगे।भारत का मतदाता बहुत दयालु है वास्तव में अपने घर को नाथी का बाड़ा ही बना देता है शायद इन राजनेताओं के लिए।पर जिसदिन भारतीय मतदाता अपनी शक्ति को जान गया उस दिन जो परिवर्तन की लहर आएगी, वो सैलाब कइयों को बहा ले जायेगा।

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