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पुस्तकायन का सातवाँ दिन: लेखक से संवाद एवं मुशायरे का हुआ आयोजन

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मैंने गंभीरता से लोकप्रियता का रास्ता अपनाया – अशोक चक्रधर

नई दिल्ली। 12 दिसंबर 2024; साहित्य अकादेमी द्वारा आयोजित किए जा रहे पुस्तकायन मेले के सातवें दिन ‘लेखक से संवाद’, ‘मुशायरा’ और ‘बच्चों की काव्य-पाठ प्रतियोगिता’ आयोजित की गई। बच्चों के लिए आयोजित काव्य प्रतियोगिता में बच्चों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। इस प्रतियोगिता के निर्णायक अखलेश श्रीवास्तव चमन थे। लेखक से संवाद कार्यक्रम के अंतर्गत आज प्रख्यात लेखक अशोक चक्रधर से ओम निश्चल ने बातचीत की। उन्होंने आलोचना से रचना की दुनिया में कदम रखने की अपनी यात्रा के बारे में विस्तार से बताया। मुक्तिबोध के अध्येता अशोक चक्रधर ने एक सवाल के जवाब में कहा कि मुक्तिबोध को जटिल कवि माना जाता है लेकिन मुझे लगता है कि ऐसा इसलिए है कि वह जटिल शैली का दौर था, वरना वे सुबोध है। उन्होंने आलोचना की गरिष्ठ भाषा पर टिप्पणी करते हुए कहा कि इसके चलते ही आलोचना में नकरात्मकता आई, जिसने जीवन जगत में अलग ही निराशा पैदा हुई, तब मुझे लगा कि मुझे समीक्षक से ज्यादा एक रचनाकार बनना होगा। अतः मैंने बड़ी गंभीरता के साथ लोकप्रिय साहित्य का रास्ता अपनाया। उन्होंने टाइपराइटर से कम्प्यूटर तक की अपनी यात्रा के बारे में विस्तार से बताया, जिसने हिंदी भाषा की उपयोगिता को आम लोगों तक मुहैया कराया।
मुशायरे का आयोजन कौशर मज़हरी की अध्यक्षता में हुआ जिसमें असद रजा, शफ़ी अयूब, तनवीर हसन, वसीम राशिद ने अपने-अपने कलामों से समा बाँध दिया। तनवीर हसन का एक शेर था, गिरा एक पेड़ से पत्ता जमीं पर, पता उसका तो अब साए जहाँ है। असद रजा ने कहा, उनको नफरत से मोहब्बत है खुदा खैर करे, बस मोहब्बत से ही नफरत है, खुदा खैर करे। कौसर मजहरी के शब्द थे – मैं अपनी सल्तनत से खुश बहुत हूँ, यहाँ मेरे सिवा कोई नहीं है। वसीम राशिद का शेर था, जिंदगी जिनकी गुजरती है उजालों की तरह, याद रखते हैं उन्हें लोग मिसालों की तरह। शफी अयूब ने फरमाया दूर नजरों से वो जाए तो ग़ज़ल होती है, कोई ख्वाबों में न आए तो ग़ज़ल होती है।
सांस्कृतिक कार्यक्रम के अंतर्गत अथर्व संतोष ने हिंदुस्तानी गायन और तमन्ना पोखरिया ने कथक नृत्य प्रस्तुत किया। पुस्तकायन में कल पुस्तक चर्चा, लघुकथा-पाठ, बच्चों के लिए कहानी-पाठ प्रतियोगिता एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा।

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