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भारत में अंतिम सांसें गिनती पत्रकारिता: हिंदी पत्रकारिता दिवस विशेष

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भारत में अंतिम सांसें गिनती पत्रकारिता: हिंदी पत्रकारिता दिवस विशेष
“प्रकाशन एक व्यापार है, लेकिन पत्रकारिता न कभी व्यापार थी और न ही आज है। न ही यह कोई पेशा है।”
हेनरी आर. ल्यूस के इस कथन से तात्पर्य यह है कि पत्रकारिता सत्य का अन्वेषण है उसे व्यापार की संज्ञा में नहीं रखा जा सकता।आज हिंदी पत्रकारिता दिवस के परिपेक्ष्य में देखें तो प्रेस की स्वतंत्रता पर नज़र रखने वाली दुनिया की जानीमानी एजेंसी Reporters Sans Frontières (RSF) ने अपनी 2022 की रिपोर्ट में प्रेस की आज़ादी के मामले में 180 देशों में भारत को 150वां स्थान दिया। स्थिति यह है कि यह युगांडा (132) रवांडा (136), क़ज़ाकिस्तान (122), उज़्बेकिस्तान (133) और नाइज़ीरिया (129) जैसे निरंकुश देशों से भी पीछे है।
भारत में प्रेस की स्वतंत्रता को सबसे अधिक ख़तरा किसी और से नहीं बल्कि मीडिया से ही है और टीवी पर बैठे दंगाई मानसिकता के एंकरों से है।”
अल जज़ीरा में प्रकाशित होने वाले यूएस-स्थित कश्मीरी पत्रकार राक़िब हमीद नाइक के शब्दों में भारत का लोकतंत्र ‘पतन की कगार पर’ है और प्रेस की स्वतंत्रता ‘वेंटिलेटर पर’ है क्योंकि पत्रकारों के खिलाफ कार्रवाई हर दिन बढ़ रही है।
भारत के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के साथ मीटिंग करने वाले डेनियल बस्तार ने माना है कि, “मोदी सरकार ने प्रेस की स्वतंत्रता पर अपनी छवि में हेरफेर करने की कोशिश की है। RSF के प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत की रैंकिंग से “बेहद नाखुश” मोदी सरकार ने अपना 15 सदस्यीय “प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक निगरानी सेल” भी बनाया था। उनमें से ज्यादातर सरकारी लोग थे। इनमें दो पत्रकार भी थे जो आयोग के काम करने के तरीके से बहुत ही नाखुश थे। उन्होंने कहा कि यह निगरानी प्रकोष्ठ हमारी पैरवी करने के लिए था, हमारे साथ अच्छा व्यवहार करने के लिए ताकि हम भारत को बेहतर रैंकिंग दे सकें। लेकिन हमने कहा कि हमें समस्याओं से ठोस तरीके से निपटना होगा। और उन्होंने कहा कि नहीं, नहीं, आप अपने पश्चिमी (वेस्टर्न) पूर्वाग्रह में हैं।” बस्तार ने आगे कहा, “इससे आपको इस बात की जानकारी मिलेगी कि सरकार कैसे डेटा में हेरफेर करने की कोशिश करती है।”उन्होंने माना कि ज़मीनी हक़ीक़त उससे भी अधिक भयावह है।भारत में प्रेस की स्वतंत्रता का रिकॉर्ड अब इतना खराब है कि यह युगांडा, रवांडा, कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान और नाइजीरिया जैसे निरंकुश देशों से भी पीछे है। इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत के मुक़ाबले संयुक्त अरब अमीरात, कतर और जॉर्डन जैसे राजशाही देश भी पत्रकारों के साथ बेहतर व्यवहार किया जाता है।
पत्रकार आशुतोष जो सत्य हिंदी नामक मीडिया संस्थान के निर्माणकर्ता , ने इस रिपोर्ट पर कहा कि “भारत में लोकतंत्र उस तरह जीवंत नहीं बचा जिस तरह ये कभी हुआ करता था, आज भारत में लोकतंत्र हर रोज़ धीमी मौत मर रहा है।”
न्यूज़क्लिक के साथ काम करने वाले पत्रकार श्याम मीरा सिंह, जो कि पहले एक बड़े टीवी चैनल की वेबसाइट में काम करते थे, उन्हें वहाँ से प्रधानमंत्री के लिए लिखे केवल एक क्रिटिकल ट्वीट के लिए नौकरी से निकाल दिया गया था। इस मामले में उनपर UAPA जैसा एक्ट भी लगा दिया गया जो क़ानून आतंकियों पर रोक लगाने के उद्देश्य के लिए लाया गया था।
राजनीति की भेंट चढ़ा प्रजातंत्र का चौथा स्तंभ मौजूदा डेमोक्रेसी के लिए ही खतरनाक बनता जा रहा है. मीडिया के जरिये आज राष्ट्रभक्ति के सर्टिफिकेट तो बांटे जा रहे हैं परंतु आगे बढ़ने की दौड़ में संस्थान खबर को पीछे छोड़ रहे हैं।
हिंदी पत्रकारिता दिवस पर भारतीय पत्रकारों के लिए होरैस ग्रीले की ये पंक्तियां सही ठहरती है कि
“पत्रकारिता में आपकी जान जा सकती है, लेकिन जब तक आप इसमें है यह आपको जिंदा रखेगी”।

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