मणिपुर में ‘शूट एट साइट’ के ऑर्डर, पूरे राज्य में कर्फ़्यू और सेना का फ़्लैग मार्च
मणिपुर में ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर द्वारा आयोजित एक जन रैली के हिंसक हो जाने के बाद प्रशासन ने शूट एंड साइट का ऑर्डर दिया है.
प्रदेश के अधिकांश ज़िलों में कर्फ़्यू लगा दिया गया है. हालात को नियंत्रित करने के लिए सेना और असम राइफ़ल्स के जवानों को तैनात किया गया है.
इससे पहले सेना ने कहा था कि उसने राज्य पुलिस के साथ मिलकर हिंसा को कई जगह क़ाबू किया और फ़्लैग मार्च भी किया.
बुधवार से पूरे राज्य में मोबाइल इंटरनेट सेवाओं को तत्काल प्रभाव से पांच दिनों के लिए निलंबित कर दिया गया है.
हालांकि सोशल मीडिया पर इस व्यापक हिंसा को लेकर जो तस्वीरें और वीडियो शेयर किए गए हैं उनमें कई जगह घरों को आग में जलता हुआ देखा जा सकता है. एक वीडियो में कुछ लोगों को चुराचांदपुर में हथियारों की एक दुकान तोड़कर बंदूक़ें लूटते देखा जा सकता है.
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने गुरुवार को मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह से बात की और राज्य की मौजूदा स्थिति की जानकारी ली.
इस बीच मणिपुर के मुख्यमंत्री ने एक वीडियो बयान जारी कर राज्य के सभी समुदायों से शांति बनाए रखने की अपील की है.
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ट्वीट कर हिंसा की ख़बरों पर गहरा दुख व्यक्त किया. उन्होंने कहा, “ये समय राजनीति का नहीं है. राजनीति और चुनाव इंतज़ार कर सकते हैं लेकिन हमारे ख़ूबसूरत राज्य मणिपुर को बचाना प्राथमिकता होनी चाहिए.”
क्या है विरोध और हिंसा की वजह
दरअसल 19 अप्रैल को मणिपुर उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को चार सप्ताह के भीतर मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) श्रेणी में शामिल करने के अनुरोध पर विचार करने के लिए कहा था.
कोर्ट ने अपने आदेश में केंद्र सरकार को भी इस पर विचार के लिए एक सिफ़ारिश भेजने को कहा था.
इसी के विरोध में ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर ने बुधवार को राजधानी इंफ़ाल से क़रीब 65 किलोमीटर दूर चुराचांदपुर ज़िले के तोरबंग इलाक़े में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ रैली का आयोजन किया था. इस रैली में हज़ारों की संख्या में लोग शामिल हुए थे.
कहा जा रहा है कि उसी दौरान हिंसा भड़क गई.
चुराचांदपुर ज़िले के अलावा सेनापति, उखरूल, कांगपोकपी, तमेंगलोंग, चंदेल और टेंग्नौपाल सहित सभी पहाड़ी ज़िलों में इस तरह की रैली निकाली गई थीं.
पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि तोरबंग इलाक़े में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ रैली में हज़ारों आंदोलनकारियों ने हिस्सा लिया था, जिसके बाद जन-जातीय समूहों और ग़ैर-जनजातीय समूहों के बीच झड़पें शुरू हो गईं.
सबसे ज़्यादा हिंसक घटनाएं विष्णुपुर और चुराचांदपुर ज़िले में हुईं हैं. जबकि राजधानी इंफ़ाल से भी गुरुवार सुबह हिंसा की कई घटनाएं सामने आईं हैं.
मणिपुर में हिंसा प्रभावित इलाक़ों की मौजूदा स्थिति पर बात करते हुए सेना के जनसंपर्क अधिकारी लेफ़्टिनेंट कर्नल महेंद्र रावत ने कहा, “अभी स्थिति नियंत्रण में है. आज (गुरुवार) सुबह तक हिंसा पर क़ाबू पा लिया गया था.”
उन्होंने कहा, “तीन और चार मई की रात को सेना और असम राइफ़ल्स की मांग की गई थी जिसके बाद से हमारे जवान हिंसा प्रभावित इलाक़ों में लगातार काम कर रहे हैं. हिंसाग्रस्त इलाक़ों से लगभग चार हज़ार ग्रामीणों को निकालकर राज्य सरकार के विभिन्न परिसरों में आश्रय दिया गया है. हालात को नियंत्रण में रखने के लिए फ़्लैग मार्च किया जा रहा है.”
लेफ़्टिनेंट कर्नल महेंद्र रावत के अनुसार, भारतीय सेना और असम राइफ़ल्स ने राज्य में क़ानून व्यवस्था बहाल करने के लिए सभी समुदायों के नौ हज़ार से अधिक नागरिकों को निकालने के लिए रात भर बचाव अभियान चलाए हैं.
मैतेई समुदाय और पहाड़ी जनजातियों के बीच क्या है विवाद
मणिपुर की आबादी लगभग 28 लाख है. इसमें मैतेई समुदाय के लोग लगभग 53 फ़ीसद हैं. ये लोग मुख्य रूप से इंफ़ाल घाटी में बसे हुए हैं.
मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने का विरोध कर रही जनजातियों में कुकी एक जातीय समूह है जिसमें कई जनजातियाँ शामिल हैं.
मणिपुर में मुख्य रूप से पहाड़ियों में रहने वाली विभिन्न कुकी जनजातियाँ वर्तमान में राज्य की कुल आबादी का 30 फ़ीसद हैं.
लिहाज़ा पहाड़ी इलाक़ों में बसी इन जनजातियों का कहना है कि मैतेई समुदाय को आरक्षण देने से वे सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में दाख़िले से वंचित हो जाएंगे, क्योंकि उनके अनुसार मैतेई लोग अधिकांश आरक्षण को हथिया लेंगे.
मणिपुर में हो रही इस ताज़ा हिंसक घटनाओं ने राज्य के मैदानी इलाक़ों में रहने वाले मैतेई समुदाय और पहाड़ी जनजातियों के बीच पुरानी जातीय दरार को फिर से खोल दिया है.
वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप फंजोबम कहते हैं, “प्रदेश में यह हिंसा एक दिन में नहीं भड़की है. बल्कि पहले से कई मुद्दों को लेकर जनजातियों में नाराज़गी पनप रही थी. मणिपुर सरकार ने ड्रग्स के ख़िलाफ़ व्यापक अभियान छेड़ रखा है.”
उनके मुताबिक़, “इसके अलावा वनांचलों में कई जनजातियों द्वारा क़ब्ज़ा की गई ज़मीन भी ख़ाली करवाई जा रही है. इसमें सबसे ज़्यादा कुकी समूह के लोग प्रभावित हो रहे थे. जिस जगह से हिंसा भड़की है, वो चुराचंदपुर इलाक़ा कुकी बहुल है. इन सब बातों को लेकर वहां तनाव पैदा हो गया है.”
मैतेई समुदाय को एसटी दर्जा देने की मांग पर विवाद
प्रदीप फंजोबम कहते हैं, “कोर्ट ने राज्य सरकार को केवल एक ऑब्ज़र्वेशन दिया था. क्योंकि मणिपुर में मैतेई समुदाय का एक समूह लंबे समय से एसटी दर्जा देने की मांग कर रहा है. इस मांग को लेकर भी मैतेई समुदाय आपस में बंटा हुआ है. कुछ मैतेई लोग इस मांग के समर्थन में हैं और कुछ लोग इसके विरोध में हैं.”
उन्होंने कहा, “अनुसूचित जनजाति मांग समिति मणिपुर बीते 10 सालों से राज्य सरकार से यह मांग कर रहा है. लेकिन किसी भी सरकार ने इस मांग पर अबतक कुछ नहीं किया. लिहाज़ा मैतेई जनजाति कमेटी ने कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया. कोर्ट ने इस मांग को लेकर राज्य सरकार से केंद्र के समक्ष सिफ़ारिश करने को कहा है. लेकिन इसको लेकर ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर ने विरोध जताना शुरू कर दिया.”
विरोध कर रही जनजातियों का कहना है कि मैतेई समुदाय को पहले से ही एससी और ओबीसी के साथ आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग का आरक्षण मिला हुआ है. ऐसे में मैतेई सबकुछ अकेले हासिल नहीं कर सकते. मैतेई आदिवासी नहीं हैं, वे एससी, ओबीसी और ब्राह्मण हैं.
विरोध कर रहे लोगों का कहना है कि अगर मैतेई समुदाय को एसटी का दर्जा दे दिया गया तो उनकी ज़मीनों के लिए कोई सुरक्षा नहीं बचेगी और इसीलिए वो अपने अस्तित्व के लिए छठी अनुसूची चाहते हैं.
मैतेई समुदाय से जुड़े एक व्यक्ति ने नाम न ज़ाहिर करने की शर्त पर बताया कि मैतेई समुदाय के लोग अपने ही राज्य के पहाड़ी इलाक़ों में जाकर नहीं बस सकते. जबकि कुकी तथा एसटी दर्जा प्राप्त जनजातियां इंफ़ाल वैली में आकर बस सकती हैं.
वो कहते हैं कि इस तरह तो उनके पास रहने के लिए ज़मीनें नहीं बचेंगी.
पुराना संवेदनशील मामला
मणिपुर के वरिष्ठ पत्रकार युमनाम रूपचंद्र सिंह कहते हैं, “मणिपुर में मौजूदा व्यवस्था के तहत अभी मैतेई समुदाय के लोग पहाड़ी ज़िलों में जाकर नहीं बस सकते. मणिपुर के 22 हज़ार 300 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में महज़ 8 से 10 प्रतिशत ही मैदानी इलाक़ा है.”
“मैतेई समुदाय की सबसे बड़ी शिकायत यह है कि पहाड़ी इलाक़े में बसे लोग मैदानी इलाक़ों में जाकर बस सकते हैं लेकिन मैतेई लोग वहां बस नहीं सकते. कृषि भूमि में जनजातीय लोगों का दबदबा बढ़ रहा है. लिहाज़ा इस तरह की कई बातों को लेकर यह पूरा टकराव है.”
वरिष्ठ पत्रकार युमनाम रूपचंद्र कहते हैं, “एसटी दर्जा देने की बात को लेकर हाई कोर्ट के ऑब्ज़र्वेशन का ग़लत अर्थ निकाला गया है. अदालत ने ऐसा कोई आदेश नहीं दिया है कि मैतेई समुदाय को एसटी का दर्जा दे दिया जाए. दरअसल ये विवाद पहाड़ी और घाटी के लोगों के बीच काफ़ी पुराना और संवेदनशील है. ये हिंसा ग़लत सूचना फैलाने का परिणाम लग रहा है.”
मैतेई लोगों के लिए एसटी दर्जा की मांग को लेकर कोर्ट जाने वाले अनुसूचित जनजाति मांग समिति मणिपुर का कहना है कि एसटी श्रेणी में मैतेई को शामिल करने की मांग केवल नौकरियों, शैक्षणिक संस्थानों और कर राहत में आरक्षण के लिए नहीं की जा रही है, बल्कि यह मांग उनकी पुश्तैनी भूमि, संस्कृति और पहचान की रक्षा करने के लिए है.
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